Friday, March 31, 2006

४. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – सौफ्टवेर क्या है

इस विषय पर पिछला चिठ्ठा|
तकनीकी दृष्टि से साफ्टवेयर के दो हिस्से होते हैं । सोर्स कोड (source code) और औबजेक्ट कोड (object code)| इन दोनों को समझने के लिये थोडा कमप्यूटर साफटवेयर के इतिहास को जानना होगा|

सोर्स कोड और औबजेक्ट कोड
कम्प‍यूटर हम लोगो की भाषा नहीं समझते हैं| वे केवल हां या ना, अथवा 1 अथवा 0 की भाषा समझते हैं| हमारे लिये इस भाषा में प्रोग्राम लिखना बहुत मुश्किल है| पहले प्रोग्राम इसी तरह से लिखे जाते थे एक पंच-कार्ड होता था जिसे छेद किया जाता था कार्ड में छेद का मतलब हां और यदि छेद नहीं है तो मतलब ना|


Punch Card

जब कमप्यूटर विज्ञान का विकास हुआ तो ऊचें स्तर की कमप्यूटर भाषाओं (high level languages), जैसे कि बेसिक, कोबोल , सी ++ इत्यादि, का भी ईजाद किया गया| इन भाषाओं में ख़ास सुविधा यह है कि प्रोग्राम अंग्रेजी भाषा के शब्दों एवं वर्णमाला का प्रयोग करते हुये लिखा जा सकता है| जब इस तरह से प्रोग्राम लिख लिया जाता है तो उसे हम सोर्स कोड कहते हैं| अब इसे कमप्यूटर के समझने की भाषा में बदला जाता है|

ऊचें स्तर की कमप्यूटर भाषाओं में एक प्रोग्राम होता है जिसे कम्पाइलर (complier) कहते हैं| कम्पाइलर के द्वारा सोर्स कोड को जब कम्पाइल किया जाता है तो सोर्स कोड कम्प‍यूटर की भाषा, यानी 1 या 0 की भाषा में, बदल जाता है| इसको औबजेक्ट कोड या मशीन कोड भी कहते हैं| सौफ्टवेर किस तरह से कानून में सुरक्षित होता है, जानने से पहिले कुछ बात बौधिक सम्पदा अधिकारों की - जिसकी चर्चा अगली बार|

Thursday, March 30, 2006

एक कैमरा हो प्यारा सा

केरल के सफ़रनामे पर सुनील जी की टिप्पणी
यात्रा विवरण तो बहुत अच्छा है पर अगर साथ में तस्वीरें भी होतीं तो और भी अच्छा हो जाता|
मुझे भी यही लगता है, पर क्या करूं मेरे पास एक रील वाला अच्छा सा कैमरा था उसमें दूर की फोटो खीचने की सुविधा थी| मेरी गलती से गिर गया और टूट गया| मित्रों ने कहा कि अब डिज़िटल कैमरा लो| बस क्या था पहुंचा ईन्टरनेट पर, लगा ढ़ूंढ़ने डिज़िटल कैमरा| गूगल पर देखा तो उसने 188,000,000 और याहू ने 97,200,000 वेब साईट बतायी| कुछ वेब साईट के अन्दर गया तो दिमाग और चक्कर खा गया पिक्सल, स्पीड और मालुम नही क्या क्या| न कोई कैमरा खरीद पाया हूं न कोई फोटो ले पाता हूं|

यदी आपकी जानकारी में कोई अच्छा डिज़िटल कैमरा हो जिससे दूर की भी फोटो ली जा सकती हों SLR हो तो क्या बतायेंगे| बस आखें बन्द कर के वही ले लेता हूं और अगली बार फोटो के लिये किसी को नहीं कहना पड़ेगा|

Wednesday, March 29, 2006

३. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – गलतफ़हमी

इस विषय पर पिछला चिठ्ठा|
आज की तारीख में यह एक महज गलतफहमी है कि ओपेन सोर्स सौफ्टवेर केवल कमप्यूटर वैज्ञानिकों के लिये है पर आम व्यक्ति के लिये नहीं है| यह कुछ साल पहले ठीक हो सकता था, पर आज नहीं|

मैं कोई कमप्यूटर वैज्ञानिक नहीं हूं पर मेरे कमप्यूटर मे कोई भी मालिकाना (Proprietary) सौफ्टवेर नही है| आज की तारीख में ओपेन सोर्स सौफ्टवेर में औफिस में होने वाले सारे कार्य करना, लिखना, ईन्टरनेट पर जाना, तरह तरह के PPT Presentation देना, गाने सुनना, DVD देखना, ब्लौग करना, या और कुछ जो कि हम सब करना चाहते हैं उतना ही सरल है जितना कि मालिकाना सौफ्टवेर में|

सबसे अच्छी बात है यह है कि बौधिक सम्पदा अधिकारों (Intellectual Property Rights) की कोई झन्झट नहीं तथा इसमें काम करने से आम व्यक्ति को पैसे खर्चा करने से मुक्ति और सौफ्टवेर की चोरी का कोई सवाल नही|

अगला चिठ्ठा - सौफ्टवेर क्या होता है|

Tuesday, March 28, 2006

२. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - चर्चा के विषय

इस विषय पर पिछला चिठ्ठा|

ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के निम्न पक्षों के बारे में आगे चर्चा होगी| पर हो सकता है कि चर्चा इस क्रम में न हो जिसमें यह लिखें है|

  • ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के बारे में क्या गलतफ़हमी है|
  • सौफ्टवेर क्या होता है|
  • बौधिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights) क्या होते हैं|
  • सौफ्टवेर किस तरह से कानून में सुरक्षित होता है|
  • मालिकाना (Proprietary) तथा ओपेन सोर्स सौफ्टवेर में क्या अन्तर है|
  • लाइसेंस क्या होते हैं|
  • कौपीलेफ्ट (Copyleft) और जी.पी.एल. {General Public License (GPL)} क्या है|
  • ओपेन सोर्स सौफ्टवेर क्या है|
  • ओपेन सोर्स सौफ्टवेर क्यों महत्वपूण है|
  • कौन कौन से लोकप्रिय ओपेन सोर्स सौफ्टवेर हैं|
  • लिन्कस क्या है इसमें डिस्ट्रीब्यूशन तथा डेस्कटौप क्या होते हैं|
  • लिन्कस के बारे में क्या मुकदमे चल रहें हैं|
  • ओपेन सोर्स सौफ्टवेर का दृष्टिकोण किस तरह से जीवन और समाज के अन्य पहुलवों को प्रभावित कर रहा है|
  • यदि ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के लिये पैसा नहीं लिया जा सकता तो कोई इसमे व्यवसाय क्यों करता है| क्या इससे भी पैसा कमाया जा सकता है|

यदि आपको लगता है कि ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के किसी और पक्ष के बारे में चर्चा होनी चाहिये तो टिप्पणी करने में सकोंच न करियेगा|


ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के बारे में कुछ गलतफ़हमियां हैं, अगला चिट्टा इसी के बारे में|

Sunday, March 26, 2006

१. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर

कुछ दिन पहिले ओपेन सोर्स सौफ्टवेर एवं हिन्दी ब्लौगिंग नाम का लेख प्रकाशित करते समय कहा था कि कभी ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के महत्व के बारे में भी चर्चा करना ठीक रहेगा| सूचना प्रद्योकिकी की दिशा तथा इसका भविष्य शायद ओपेन सोर्स सौफ्टवेर पर निर्भर करेगा|

आज जब ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के बारे में लिखने की सोचने लगा तो लगा कि यह बहुत बड़ा विषय है तथा एक बार में लिखने मे तो नानी याद आ जायगी और आपके पास इतना बड़ा लेख पड़ने के लिये समय भी नहीं होगा| इसलिये छोटे, छोटे लेख प्रकाशित करके इस विषय के बारे में तथा उसके महत्व के बारे रखना ही अच्छा होगा|

यदी आप कमप्यूटर विज्ञान से सम्बधं नहीं रखते हैं तो आप यह न सोचे कि यह लेख आपके लिये नही है| यह लेख वास्तव मे आम व्यक्ति के लिये ही है|

आप यदी यह सोचें कि यह आपके समझ मे नहीं आयेगा तो गलत होगा, मैं कमप्यूटर पर काम तो करता हूं पर कमप्यूटर वैज्ञानिक नही हूं इन लेखों मे कोई भी ऐसी बात नहीं होगि जो एक आम व्यक्ति न समझ सके|

इसलिये जाये नहीं एक नज़र इधर भी|

चिठ्ठे को पड़ना या न पड़ना तो आपके ऊपर है| पर जब लेख पर कुछ टिप्पणी हो जाती है तो कुछ जोश आ जाता है और हौसले बुलन्द|

अगली बार ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के उन पक्षों के बारे में - जिनकी आगे चर्चा होगी|

Friday, March 24, 2006

खेल - पहेली: क्या कोई सहायता करेगा

मेरे एक मित्र ने एक पहेली इसको खेल के रूप में भेजा यह इस जगह पर है|
आप खेल कर देखिये| इसका जवाब यदि आपके समझ में आये तो क्या मुझे भी बतायेगें|

Wednesday, March 22, 2006

तीन दिन: भगवान के घर में - तीसरा दिन

वायनाड जिले के दक्षिण-पुर्व हिस्से में पहाड़ी है, देखने में यह एक लेटी हुई महिला लगती है: बायीं तरफ उसके पैर हैं तथा दायीं तरफ सिर| हिन्दू पुणान के अनुसार भगवान राम ने ताड़का का वध किया था और यह ताड़का ही है जो गिरी पड़ी है| मुझे तो वह कोई दानवी नहीं लगी, दृश्य इतना सुन्दर है कि मुझे वह एक लेटी हुई सुन्दरी लगी| इसी सुन्दरी के वक्ष-स्थल के नीचे है एडक्कल गुफायें, जहां हमें तीसरे दिन सुबह जाना था|

एडक्कल गुफायें
एडक्कल मलयालम का शब्द है जिसका मतलब होता है चट्टान – चट्टानों के बीच में| यह दो गुफायें हैं जो कि ऊपर की तरफ से एक चट्टान से बन्द है| यह कोई तीस हज्जार साल पहिले भूकम्प के कारण बनी बतायी जाती हैं| कुछ दूर आप जीप से जा सकते हैं, फिर कुछ ऊपर सीड़ियों से, तब टिकट घर जहां से टिकट लीजये, फिर पत्थर तथा लोहे की सीड़ियां, तब गुफायें| पहली गुफा की दीवालों पर कुछ नही है पर दूसरी बहुत कुछ खुदा है| कुछ तस्वीरें हैं जिनकी अपनी कथा है; कुछ पुरानी द्राविदियन भाषा में लिखा है, 'यहां वह शूरवीर आया था जिसने हज़ार शेर मारे हैं'

यह गुफायें करीब १२०० मीटर की ऊचांई पर हैं| पहाड़ी की चोटी इन गुफाओं से भी ३०० मीटर ऊपर है| यदि आप पहाड़ी की चोटी पर चढना चाहते हैं तो गुफाओं से उपर चढना पड़ेगा; कुछ दूर रस्सी के सहारे, कुछ दूर पहाड़ी पर| यह जोश का काम है| कुछ लड़के केरल के पौलीटेक्नीक से आये थे वे चढ रहे थे मुझे भी जोश आ गया, मैं भी चढने लगा| लड़को ने अभी जीवन के एक चौथाई बसन्त देखे थे और मैं जीवन के दो-तिहाई से ज्यादा बसन्त देख चुका हूं २०० मीटर चढने के बाद मुझे लगा शायद ऊपर तक चढ तो जाऊंगा पर नीचे न उतर पाउगां और कहीं एकदम ऊपर न चला जाऊं| कुछ लड़के मुझसे नीचे से ही वापस चले गये, कुछ मुझसे ऊपर तक भी गये, दो ने कहा कि वे चोटी तक गये थे मैनें उनसे कहा कि मुझे ऊपर से ली गयी फोटो भेजना; अभी तक नहीं आयी हैं आयेगीं तो आपको भी दिखाउंगा| नीचे गुफा पर कुछ लड़कियां पहाड़ी की चोटी पर चढने को आतुर दिखा पड़ी| मैने उन लड़कियों के जोश की सरहना की और उनको एक ईनाम देने की बात भी कही, यदी वे पहाड़ी की चोटी पर चढ पायीं| अभी तक किसी ने इनाम क्लेम नही किया है, कोई करेगा तो आपको भी बताउगां|

हेरिटेज़ म्यूज़ियम
एडक्कल गुफायें से हम लोग हेरिटेज़ म्यूजियम आये| वहां के मैनेजर ने बतया कि यह ज़िले स्तर का म्यूज़ियम है तथा अपनी तरह का हिन्दुस्तान में पहला| इस म्यूज़ियम में वायनाड ज़िले पायी जाने वाली मूर्तियां तथा ट्राइबल लोगों का समान है| यहां से लेटी हुई सुन्दरी एकदम साफ दिखायी पड़ती है| यदी यहां पर एक दूरबीन होती तो एडक्कल गुफायें को अच्छी तरह से देखा जा सकता था शायद आप कभी भविष्य में जायें तो वहां आपको एक दूरबीन मिले|

जगंल - कुलार्च रेजं
हम लोग शाम को जगंल वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी की कुलार्च रेजं से गये| इसके बद जगंल के अन्दर- अन्दर बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान गये जहां पर एक बहुत बड़ा जलाशय है| यहां पर जानवर पानी पीने आते हैं| हम लोगों ने यहां पर हाथियों तथा जगंली सुअरों के झुन्डों को देखा|

रात हो चली थी हम लोग वापस चल दिये| रास्ते में एक गार्ड पोस्ट पर एक शोधकर्ता से मुलाकात हई, वह टाईगरों की सख्यां के बारे में शोध कर रहे थे| उन्होने बताया कि टाईगरों की सख्यां के बारे में बताना कठिन कार्य है पर तीन तरीकों से अलग अलग जगंलो में टाईगरों की सख्यां के सापेक्षिक घन्तव के बारे में शोध किया जा सकता है|
  1. रोज़ जगंल के अलग अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी चल कर टाईगरों के पजों के निशान देखे जाते हैं|
  2. रोज़ जगंल के अलग-अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी चल कर टाईगरों के मल के सैम्पल को लेकर उसकी डी. एन. ए. (DNA) टेस्टिन्ग की जाती है पर अभी यह तक्नीक अपने देश में बहुत विकसित नही है|
  3. जगंल के अलग अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी पर दो तरफ कैमरे लगायें जाते हैं तथा जब कोई जानवर इनके बीच आता है तो उसकी दोनो तरफ से फोटो ले ली जती है| हर टाईगर की धारियां अलग-अलग होती हैं इससे टाईगरों की पहचान की जा सकती है| यह कैमरे केवल रात मे ही चलते क्योंकि टाईगर रात मे निकलता है| वह इसी प्रकार से शोध कर रहा था|

शोधकर्ता के अनुसार बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान में टाईगरों की सख्यां सबसे ज्यादा है तथा लगभग १४ टाईगर प्रति १०० वर्ग किलोमीतर है| मैं बान्धवगड़ वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी में टाईगरों की सख्यां सबसे ज्यादा समझ्ता था उसके मुताबिक यह केवल ११ टाईगर प्रति १०० स्कवैर किलोमीतर है| मैने उससे यह कहा कि यदी ऐसा है तो लोगों को क्यों बान्धवगड़ वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी में हमेशा टाईगर दिख जाता है पर बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान में नही| उसका जवाब मजेदार था| उसके मुताबिक बान्धवगड़ वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी एक टूरिस्ट स्पौट के रूप में विकसित हो चुका है और वहां के टाईगरों को जीप का डर समाप्त हो चुका है इसलिये वह सामने आ जाते हैं पर बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है| हम लोग वापस चल दिये क्योंकि अगले दिन सुबह हमें वापस घर के लिये प्रस्थान करना था|

हम लोग वायनाड मे दो दिन थे| यह कम थे वहां कुछ झरने, द्वीप्समूह, तथा डैम है जो कि समय की कमी रहते हम लोग नही देख पाये| हमारी केरल की यत्रा सुखद थी पर एक बात में कहना चाहूगां, मैने कई जगह छोटे तथा बड़े धार्मिक स्थल बने या बनते देखे, शायद जरूरत से ज्यादा| स्कूल, अस्पताल, कारखाने एक तरह के भाव मन में लाते हैं तथा धार्मिक स्थल कुछ अलग तरह के भाव मन में लाते हैं| कहीं यह किसी तनाव, या अशान्ति का सूचक तो नहीं| यदी ऊपर कोई है तो वह चाहे ख़ुदा हो, या ईश्वर हो, या भगवान हो| वह न ही वह अपने वतन, देश, घर को, पर हमारे देश भारतवर्ष तथा इस विश्व को रहने लायक बना कर रखे - ऐसी कामना, ऐसी इच्छा, ऐसा विश्वास लिये हम घर वापस लौटे|

तीन दिन: पहला/ दूसरा/ तीसरा


Monday, March 20, 2006

तीन दिन: ईश्वर के देश में - दूसरा दिन

हम लोग सुबह वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी के लिये निकल पड़े| केरल की सड़कें बहुत अच्छी हैं| एक बार ससंद में सड़कों के बारे में चर्चा हो रही थी तो किसी ने सड़कों को ओमपुरी तथा हेमा मालिनी के गालों से उनकी तुलना की| बिहार की सड़कें ओमपुरी के गालों जैसी बतायी गयीं: फिर तो केरल की सड़कें हेमा मालिनी के गालों जैसी हैं - एकदम चिकनी| अब्दुल हमारे टैक्सी के चालक थे बस पलक झपकते वह हवाई जहाज की रफतार पकड़ते थे| मुझे उन्हे रास्ते भर बताना पड़ा कि मै अळाह मिया से प्रेम करता हूं पर इतना भी नही कि मैं, उनसे मिलने, कुछ साल पहिले ही पहुंच जाऊं|

पूकोड झील
रास्ते में पूकोड झील पड़ी| यह एक पिकनिक स्पौट है: शान्त, स्वच्छ, वा सुन्दर| पिकनिक की जगह पर इतनी सफाई कम देखने को मिलती है: मन प्रसन्न हो गया| थोड़ी धूप हो गयी थी इसलिये बोटिंग न करके हम लोगों ने उसका पैदल चक्कर लगाना ठीक समझा| थोड़ी देर बद लगा कि कुछ बच्चे बोट पर गा रहें| गाना लय में तथा अच्छा लग रहा था पर समझ में नहीं आ रहा था चक्कर के बाद यह बच्चे अपने टीचरों के साथ मिले| मैने उनके स्कूल तथा गाने के बारे में बात की| यह बच्चे पहली से लेकर चौथी क्लास में परुमदचेरी मोपला लोवर प्राइमरी स्कूल नादापुर कालीकट में पड़ते थे| स्कूल के टीचरों ने मोपला का अर्थ मुसलिम बताया गया| मेरे पूछने पर उन्होने कहा कि यह इस लिये रखा गया है कि वह मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में है इसके अलावा इसका कोई और अर्थ नहीं है क्योकि न तो उस स्कूल के मैनेजर मुसलमान है न ही यह स्कूल केवल मुसलमानो के लिये है इस स्कूल में सब धर्म के बच्चे पड़ते हैं तथा सब धर्म के टीचर हैं|

कुजं अबदुल्ला इस स्कूल में अरेबिक पड़ाते हैं उन्होने बताया कि कुछ स्कूलों में उर्दू तथा कुछ में सस्कृंत पड़ायी जाती है| वही गीत बच्चों के साथ गा रहे थे| उन्होने वह गाना फिर से सुनाया और उसका मतलब भी बताया| यह गीत मछुवारे जब मछली पकड़ने जाते हैं तो गाते हैं इसमें वे, मुथपन्न, जिसे वे भगवान मानते हैं की स्तुति की गयी है वे उससे प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हे स्वस्थ रखे, सलामत रखे, और उन्हे समृधि दे| मेरे पास टेप-रिर्कौडर नही था वरना उस गाने को टेप करके आप तक पहुंचाता| क्या उस स्कूल के टीचर यदी इस ब्लौग को पड़ रहें हो तो उस गीत को टेप करके क्या मेरे पास भेज सकते ताकि मैं उसे लोगों तक पहुंचा सकूं| या कोई अन्य पाठक मेरी मदद करेगा|

मेरा पूकोड झील से बिलकुल जाने का मन नही था पर शाम के पहिले वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी पहुचना था इसलिये मन मार कर वहां से चलना पड़ा| मन में यही इच्छा थी कि यदि सारे पिक्निक स्पौट इतने साफ हो जायें तो क्या बात है|

एग्रीक्लचर रिर्सच अनुसन्धान
वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी वायनाड के सुलतान बत्तरी तहसील में है हम लोगों ने अपना डेरा वहीं जमाया| जगंल जाने में कुछ समय था इसलिये एग्रीक्लचर रिर्सच अनुसन्धान को देखने के लिये चले गये| वहां पर एक प्रौफेसर साहब ने घुमाया| यहां पर तरह तरह के फल, मसाले (लौगं, इलायची इत्यादि) के पेड़ लगे थे| वे उनको बेचते भी थे - कुछ साल पहिले उनकी सेल ६५ लाख थी मैनं कहा कि तब तो यह जगह आत्म निर्भर होगी उन्होने कहा कि नहीं| मुझे कुछ आश्चर्य हुआ| वे बोले केरल में लोग कम काम करते हैं दो लोग भी इकठ्ठा होगें तो अपनी यूनियन बना लेगें| केरल में हिन्दू, मुसल्मान, तथा ईसाइ तीनो की संख्या लगभग बराबर है| मैने पूछा क्या भगवानो की भी यूनियन है, वे हल्के से मुस्करा कर बोले, शायद| एग्रीक्लचर रिर्सच अनुसन्धान एक दिन आत्म निर्भर बने, हमारी Bio-diversity को बनाये रखने में मददगार साबित हो, हमारी हो रही bio-piracy को रोकने सहायक बने ऐसी कामना करते हुए हम ने वहां से विदा ली|

जगंल - मुतंगा रेजं
केरल, कर्नाटक, तथा तामिलनाडू की सीमायें जहां मिलती हैं वह जगंल है| जो हिस्सा केरल में है वह वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी कहलाता है| जो हिस्सा कर्नाटक में है वह बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान कहलाता है| जो हिस्सा तामिलनाडू में है वह मुदुमलाई राष्ट्रीय वन उद्यान कहलाता है यानी यह तीनो एक ही जगंल के हिस्से हैं| वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी तथा मुदुमलाई राष्ट्रीय वन उद्यान हाथियों के लिये सुरक्षित क्षेत्र हैं तथा बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान टाईगर के लिये सुरक्षित क्षेत्र है|

जगंल या तो सुबह देखने जाया जाता है या शाम को| शाम होने वाली थी और हम लोग वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी - मुतंगा रेजं देखने निकल पड़े| मैं मध्य-प्रदेश के कुछ जगंलो में गया हूं| मुझे यह जगंल, मध्य-प्रदेश के जगंलो से कम घना लगा| हिरण, चीतल, साम्भर के कुछ झुन्ड दिखायी पड़े| कुछ जगंली भैसें (Bison) भी दिखायी पड़े| पर हाथी का कोई झुन्ड नहीं दिखायी पड़ा| एक जगह घास ऊचीं ऊचीं थी वहां पर हाथी की चिंघाड़ सुनायी पड़ी; वहां देखने पर सूंड़ फिर हाथी का सिर दिखायी पड़ा| हम लोग जीप के ऊपर चड़ कर देखने लगे| थोड़ी देर बाद वह सूड़ हम लोगों की तरफ आने लगी| हमारा एक साथी चिल्लाया, भगो और हम सब गाड़ी पर तेज़ी से भाग कर बैठे और वहां से रफू-चक्कर| रात को जब हम जब अपने कमरे में आये तो बहुत थके हुऐ थे, पता ही नही चला कि कब निद्रा देवी की गोद में चले गये|

तीन दिन: पहला/ दूसरा/ तीसरा

Thursday, March 16, 2006

तीन दिन: ख़ुदा के वत़न में - पहला दिन

होली भाई-चारे एवं समानता का त्योहार है पर उत्तर भारत के बहुत से शहरो में इसका स्वरुप बदल गया है। वहां यह शोर-शराबे, बत्तमीजी, दूसरों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ करने का दिन बन गया है। हसीं मज़ाक अच्छा है और जीवन में जरूरी भी, पर लोग यह नहीं समझ पाते या समझना नहीं चाहते कि कुछ लोगों को रगों से एलर्जी हो सकती है तथा रगं, अबीर ऐसे लोगों का पूरा हफ्ता बरबाद कर देते है। सामुहिक मिलन अच्छी बात है पर अपने देश में अलग से मिलने का ऐसा मर्ज़ है कि अक्सर कुछ ज्यादा ही हो जाता है। बहुत से लोग इसी कारण होली में उत्तर भारत से भागते हैं, मै भी उनमे से एक हूं और मैं होली पर केरल की सैर पर चला गया।

प्लेन कालीकट (नया नाम कोज़ीकोड) देर से पहुंचा, सुबह कोहरा था इसीलिये उड़ने में देर हुई। प्रकति में सब रगं हैं पर उसके सबसे प्यारे रगं हैं: हरा तथा नीला। इसी लिये पेड़ों को उसने हरा तथा आकाश एवं समुद्र को नीला रगं दिया। केरल में उतरते सब जगह पेड़ पौध हरे रगं में दिखे, उसके पीछे नीला आसमान और नीला समुद्र। दृश्य देख कर एक पुराना पिक्चर का गाना याद आया,
हरी भरी वसुन्धरा,
पर नीला, नीला यह गगन।
दिशायें देखो रगं भरी
चमक रही उमगं भरी।
वह कौन चित्रकार है,
वह कौऽऽऽन चित्रकार है।
रगों के इस छटा को देखते हुए ही शायद केरल के टूरिस्ट विभाग का मोटो है: Kerala – God's own country यानी ख़ुदा का घर/ ईश्वर का देश/ भगवान का घर।

कप्पड़ समुद्र-तट
प्लेन तो हमारा देर से पहुंचा, केवल शाम का समय था। १४९८में, वास्को डि-गामा सबसे पहले कप्पड़ बीच पर उतरा था इस लिये हम लोग कप्पड़ समुद्र-बीच देखने गये। बीच पर चट्टाने थीं जिस पर समुद्र की लहरें खेल रही थीं। समुद्र कुछ अशान्त सा लगा पर बीच एकदम साफ थी भीड़ नहीं थी। थोड़ी देर में सूरज डूबने लगा उसकी लालिमा समुद्र पर फैल गयी दूसरी तरफ चन्द्रमा उगने लगा दृश्य सुन्दर था ज्लदी में कैमरा ले जाना भूल गया इसलिये फोटो नहीं ले सका।


कप्पड़ समुद्र-तट पर वास्कोडिगामा - चित्र विकिपीडिया से


एक ठेलेवाला चाय बेच रहा था केरल में चाय, चाय की पत्ती से नही, पर चाय के बुरादे से बनती है, थोड़ी अजीब सी लगी। कुछ और लोग भी चाय पी रहे थे मैने उनसे बात करने के लिये कहा कि वास्को डिगामा यहां उतरा था यह ऐतिहासिक समुद्र-बीच है केवल समुद्र-बीच के पहिले एक टूटे-फूटे पत्थर पर यह लिखा है यह तो टूरिस्ट स्पौट है कुछ अच्छा बना कर लिखना चाहिये था। उसने कहा कि वासको डि-गामा बहुत क्रूर व्यक्ती था उसके बारे में क्यों लिखा जाय। मैने बहस को बड़ाने के लिये कहा कि फिर भी यह इतिहास की बात है कि योरप से सबसे पहिले उसी ने भारत का रास्ता खोजा था इसलिये इस जगह को इतिहासिक जगह के रूप में देखें तथा यदी वह क्रूर था तो उस बात को भी लिखें। उसने कहा हमलोग कुछ नहीं सुनना चाहते यदि वास्को डि-गामा कि यहां मूर्ती बनायी जायगी या कुछ लिखा जायगा तो हम उसे तोड़ देंगे नष्ट कर देगें। मुज्ञे लगा कि उसका पारा गरम हो रहा है, इसके पहिले कोई अप्रिय घटना हो जाय मेने विषय बदलना ही ठीक समझा। बी.बी.सी. की वेब-साईट पर वास्को डि-गामा का ईतिहास देखें तो इन लोगों का गुस्सा समझा जा सकता है।

समुद्र पर दूर रोशनी दिखायी पड़ रही थी मैने पूछा यह रोशनी कैसे है। उसने कहा कि यह मछुहारों के नाव की रोशनी है जो बैटरी से जल रही है उसने यह भी बतया कि मछुहारों के पास मोबाईल फोन रहता है और वे मछली पकड़ने के बाद मोबाईल फोन से व्यापारियों से बात करते रहते हैं जो सबसे अच्छा पैसा देने की बात करता है वहीं सौदा पक्का कर लेते हैं मोबाइल क्रान्ती का एक और फायदा। रात हो रही थी हम लोग वापस लौट आये। दूसरे दिन हमें पश्चिम की ओर वायनाड ज़िले में वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी देखने जाना था। दूसरे दिन का किस्सा अगली बार।

तीन दिन
: पहला/ दूसरा/ तीसरा

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Sunday, March 12, 2006

डैनिश व्यंगकार – कार्टून

मैंने कुछ दिन पहले धार्मिक उन्माद के बारे मे लिखा था इस पर आलोक जी ने टिप्पणी की,
'धार्मिक नहीं, इसे साम्प्रदायिक उन्माद कहना चाहिए। धर्म और सम्प्रदाय में तो फ़र्क है।'
मुझे भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान नहीं है शायद आलोक जी का शब्द चयन सही है।

मैंने यह चिट्ठी, एक मिनिस्टर के द्वारा विवादित कार्टून के बारे की गयी टिप्पणी पर लिखा था। इस कार्टून के बारे में रोनॉल्ड ड्वॉरकिन (Ronald Dworkin) के एक लेख के बारे में आपका ध्यान आकर्षित करना चहता हूं जो कि मुझे, आप जैसे, किसी एक ने भेजा है। यह लेख न्यू यॉर्क बुक रिवियू में यहां छपा है।

रोनॉल्ड ड्वॉरकिन अमेरिका के जाने माने कानून के विशेषज्ञ हैं। यह बहुत समय तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून के अध्यापक रहे तथा अब न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में कानून के अध्यापक हैं। यह लेख मुझे सारे विचारों को समन्वित करते हुये लगता है, आपका क्या विचार है।
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Tuesday, March 07, 2006

ओपेन सोर्स सौफ्टवेर एवं हिन्दी ब्लौगिंग

लिन्कस, विन्डोस की तरह कमप्यूटर को चलाने के लिये एक औपरेटिंग सिस्टम है तथा फायरफौक्स, इन्टरनेट एक्सप्लोरर की तरह इन्टरनेट पर जाने के लिये का प्रोग्राम है| यह दोनो औपेन सोर्स है; ओपेन सोर्स सौप्टवेर का महत्व अपनी जगह है (यहां देखें) : इसलिये मैं, कमप्यूटर का जानकार न होते हुये भी, इन्ही पर काम करता हूं| मैं ओपेन सोर्स सौप्टवेर के महत्व के बारे में आगे कभी अवश्य चर्चा करना चाहूंगा पर अभी में ओपेन सोर्स सौप्टवेर में काम करने से हिन्दी ब्लौगिंग के स्न्दर्भ में आयी कुछ मुशकिलों के बारे में बताना चाहूंगा| शायद कोई कमप्यूटर या हिन्दी ब्लौगिंग का जानकार मेरी मदद करे|

मैने हिन्दी में ब्लौगिंग अभी अभी शुरू की है, कुछ पोस्ट भी किया| कुछ लोगों ने उसकी कमी को बताया|


पहली कमी तो यह है की इ की छोटी मात्रा गलत लगी है| यह गलती फायरफौक्स पर काम करने के कारण हुई| यदी लिन्कस में फायरफौक्स में हिन्दी का कोई पेज़ देखें तो आपकी समझ में आयेगा| उसमें 'दिन' देखने में 'दनि' लगता है| मैनें इसे हटाने के लिये 'िदन' करके लिखा, यह लिन्कस फायरफौक्स में तो ठीक दिखायी पड़ने लगा पर किसी और वेब ब्राउसर में उसी तरह से दिखा जैसा लिखा है|


दूसरी कमी आधे अक्षर की है आधे अक्षर तो बाकी वेब ब्राउसर पर तो ठीक लगतें हैं पर लिन्कस के फायरफौक्स में पूरे अक्षर के नीचे हलन्त लगा दिखायी पड़ता है|


यह दोनो कमी लिन्कस
में ओपरा में भी है पर लिन्कस के दूसरे वेब ब्राउसर कौनकरर पर नही है| फायरफौक्स पर काम करने का फायदा यह है कि यह सब तरह के औपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है तथा सारे वेब ब्राउसरों में सबसे स्थिर है|

तीसरी कमी तो नही कहनी चाहिये पर तीसरी बात यह है कि लिन्कस तथा विन्डोस की मशीन में यदी फायरफौक्स में भी देखें तो अन्तर है अभी मेरी समझ मे नही आ रहा है कि इसे कैसे दूर करें|

Sunday, March 05, 2006

वेलेंटाईन दिन

हर साल १४ फरवरी को वेलेंटाईन के दिन पर हमारे देश में तरह तरह के विरोध होते हैं। दुकानो तथा होटलों में तोड़ फोड़ होती है। यदी कोई लड़का या लड़की साथ दिखायी पड़ जाय तो उनकी शामत ही समझिये। मुझे यह सब बेईमानी लगता है।

हमने ग्लोबलीकरण स्वीकार किया है, केबल टीवी आता ही है, पिक्चरों में यही सभ्यता दिखायी जाती है: जब उसे हम मना नहीं कर पा रहे तो उस स्भयता को मना कर पाना मुशकिल है। यह शायद सम्भव नहीं कि हम ग्लोबीकरण तथा केबल टीवी को तो स्वीकार कर लें पर उसमें दिखायी जाने वाली सभ्यता को नहीं। इन दोनो में बीच का रास्ता नहीं है: कम से कम आसान या व्यवहारिक तो नहीं लगता। एक को स्वीकार करना तथा दूसरे पर तोड़-फोड़, अभद्रता: है। यह मेरी समझ से बाहर है।

इसका एक पहलू और भी है यदि लड़की तथा लड़के या उनके माता पिता को कोई आपत्ति न हो तो तीसरे को बोलने का क्या अधिकार।

धार्मिक उन्माद

कुछ लोग अपने देश भारतवर्ष को धर्म निर्पेक्ष कहते हैं तो कुछ पंथ निर्पेक्ष। मैं इस विवाद में नही पड़ना चाहता कि क्या सही शब्द है पर मै इतना जानता हूं कि हमारा संविधान सब धर्मो का आदर करता हैपर फिर भी इतने सालो बाद हमें धार्मिक उन्माद या धार्मिक पागलपन के अलावा क्या मिलायदी मैं हुसैन होता तो सरस्वती का वह चित्र न बनाता जिस पर इतना बवाल हुआपर यदी चित्र बन गया था तब उस पर इतना बवाल बेकार था लोग अक्सर लीक से हट कर इसलिये काम करते हैं कि वे चर्चा में आ जायें या चर्चा में बने रहें। बवाल करके हुसैन को उससे ज्यादा महत्व दे दिया जितना उन्हे मिलना चाहिये था। इसी तरह से डैनिश व्यंगकार को पैगम्बर का कार्टून नहीं बनाना चाहिये था पर यदी बन गया तो उस पर यह पागलपन बेकार है तथा किसी सरकार के मिनिस्टर के व्दारा उस व्यंगकार के सर पर इनाम रखना; उस मिनिस्टर का सरकार में बने रहना: इस पर न तो मेरे पास उस मिनिस्टर के लिये, न ही उस सरकार के लिये कोई शब्द है

Friday, March 03, 2006

दावतें

हमारे देश में खाने की कमी है| ज्यातर जनता को पेट भर खाने को नही मिलता है पर उच्च वर्ग के लोगों को देखें तो उनके यहां दावतें ही दावतें | अक्सर यदी शहर में कोई ख़ास व्यक्ती आया तो सुबह के नाशते से ले कर रात के खाने तक बस खाने में व्यस्थता रहती है या उसकी तैयारी में | जैसे खाने के अलावा कोई काम न हो| जैसे सम्बन्ध स्थापित करने का केवल यही तरीका बचा हो|