Friday, April 07, 2006

बोरियत से बचने के लिये, उमंग क्या कर रहा है

पिछली बार यह बताने की बात हुई थी कि उमंग बोरियत से कैसे बच रहा है—यह रहा उसका तरीका|

मैं बहुत दिनो से अपने मित्र उमंग के यहां जाने की सोच रहा था| पिछले इतवार सुबह की सैर के बाद उसके यहां चाय पीने जा पहुंचा| देखा कि महाशय लौन में कुर्सी बैठे थे, मुंह से धुंआ, हांथ में पेन्सिल, सर मेज पर झुका हुआ, और मेज के ऊपर अखबार| उमंग की पत्नी बहुत चाहती है कि उमंग की सिग्रेट छूट जाये पर यह लत ऐसी लगी कि छोड़ने का नाम ही नही ले रही है इन दोनो के बीच बस यही टकरार है पर इसके अलावा सब बढ़िया|

'अच्छा तो सुबह, सुबह क्रौसवर्ड हो रहा है' मैने कहा|

'३ नहीं चलेगा, यहां ९ चलेगा|' मैने उसे बुदबुदाते सुना|

'अरे भाई क्रौसवर्ड में नम्बर कब से चलने लगे' मेरी अवाज कुछ उसका मज़ाक बनाते हुए थी|

'अरे उन्मुक्त अभी तक हिन्दी चिठ्ठेकारों को बोर करते थके नहीं, कि यहां भी चले आये| अरे घनचक्कर यह सुडोकू है न कि क्रौसवर्ड| समय काटने, दिमाग को चुस्त रखने, और बोरियत दूर करने के लिये इससे और कोई अच्छा तरीका नही' उसने कहा|

इसके पहले वह कुछ और कहता कि अन्दर से प्यारी सी आवाज आयी, 'उमुंक्त भैय्या बहुत अच्छे समय पर आये हो, आलू के परांठे बना रही हूं खा कर जाना, दही शहद के से लोगे या आम के अचार के साथ|'

'दोनो के साथ' मैने वहीं से कहा|

मुन्ने की मां को मालुम है कि मेरा उमंग के घर जाने का मतलब नाशता या खाना उसी के यहां| उमंग मेरे बचपन का दोस्त है और हम लोग साथ साथ खेले हैं| उमंग थोड़ा पढ़ाकू किस्म का है और पढ़ाई के बाद अध्यापक हो गया है| उमंग की पत्नी और मुन्ने की मां एक ही जगह से हैं हांलाकि शादी के पहिले जान पहचान नहीं थी पर उमंग की पत्नी सुलझी हुई महिला है और मुन्ने की मां की उससे अच्छी पटती है| मेरी और उमंग कि भी दोस्ती शायद इसी लिये चल रही है कि इन दोनो की पटती है| मुझे समझ मे नही आता है कि लोगों की दोस्ती बरकरार रहने के लिये पत्नियों का भी आपस मे पटना क्यों जरूरी है|

इधर उमंग चालू हो गया सुदोकू के बारे में, 'इसमें क्रौसवर्ड की तरह खाने होतें हैं पर वर्णमाला के अक्षर होने के बजाय कुछ खानों में अकं लिखे होते हैं जिन्हे givens कहा जाता है| बाकी खाने खाली होते हैं जिसमे अकं भरने होते हैं पर वह अकं न तो उस खाने की समतल लाईन, न ही खड़ी लाईन, और न ही उस ब्लौक में होना चाहिये'|

उसने बात को आगे बढ़ाते हुये कहा, 'यह खेल बहुत पुराना नहीं है सबसे पहिले १९७९ में डेल पेसिंल पज़लस एन्ड वर्ल्ड गेमस (Dell Pencil Puzzles & Word Games) नामक एक अमेरिकन पत्रिका में छपा था| इसका ईज़ाद भी वहीं हुआ'

'पर नाम तो जापनी है' मैने अपना ज्ञान बघेरा|

'हां' उसने समझाया| 'यह जपान में ज्यादा लोकप्रिय हो गया तथा वहां पहिले इसे "सूजी वा दोकुशिन नी कगिरू" (suji wa dokushin ni kagiru) कहा गया जिसका मतलब है "केवल एक ही नम्बर हो सकता है"| यह छोटा होकर सुडोकू (Sudoku)हो गया है| अब यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि इसकी विश्व प्रतियोगितायें भी होती हैं'

मैने भी कोशिश की| लगा कि अच्छी दिमागी कसरत है| करके देखिये और अपने मुन्ने और मुन्नी से भी करने को कहिये| यह रखेगा अपके दिमाग को चुस्त और ताजा|

यदी इसके बारे कुछ विस्तार में जानकारी चाहें तो अमेरिकन साईटिंस्ट का यह लेख देखें|

चलूं देखूं कौन दरवाजा खटकटा रहा है लगता है धर्मदास जी आ गये हैं| कई दिन से वे अनुगूंज के लिये चिठ्ठी लिखने को कह रहे हैं| यदि नही लिखी, तो गड़बड़ होगी| मुन्ने की अम्मा, मुझसे बात करना छोड़ देगी - अगली बार वही|

2 comments:

  1. मुझे समझ मे नही आता है कि लोगों की दोस्ती बरकरार रहने के लिये पत्नियों का भी आपस मे पटना क्यों जरूरी है|


    क्‍या बात कही है बंधु
    इसी समस्‍या के एक वेरिएशन के तहत मेरी मित्रों को मेरी पत्‍नी के साथ मित्रता बनाए रखनी पड़ती है

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  2. दूसरों की पत्नियों के साथ दोस्ती, हूं ऽऽ...ऽऽ, जरा बच के|

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