Saturday, May 26, 2007

रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता

इस विषय की पिछली चिट्ठी पर, मैंने अपनी मां के बारे में कुछ और बताने का वायदा किया था पर मुझे लगा कि मैं इस बार बचपन में देखी एक अंग्रेजी फिल्म के बारे में बात करूं जो इस समय प्रसांगिक है। मां की बात, आपातकाल की बात, फिर आगे।

पिछले कुछ महीने, हिन्दी चिट्टाजगत में पत्रकार छाये रहे। यह फिल्म भी एक पत्रकार और एक राजकुमारी की प्रेम कहानी है जिसने रुमानी फिल्मों में नये आयाम स्थापित किये। यह पत्रकारिता की मर्यादाओं को, एक
नये रिश्ते में बांधती है। यह फिल्म उन कलाकारो के द्वारा अभनीत की गयी जो कि अंग्रेजी फिल्मों में बेहतरीन कलाकार हो कर ऊभरे। इन्होने अपने वास्तविक जीवन में भी मित्रता, सम्मान का एक अनोखा रिश्ता कायम किया। जी हां, मैं बात कर रहा हूं ऑड्री हेपबर्न और ग्रेगरी पेक की और फिल्म है - 'रोमन हॉलीडे'।

कहा जाता है कि यह फिल्म, राजकुमारी मार्ग्रेट के रोम यात्रा से ली गयी घटनाओं पर आधारित कहानी है। इस कहानी में राजकुमारी 'ऎन' रोम जाती है। उसे वहाँ अपने देश के प्रतिनिधि की तरह बर्ताव करना है। वहाँ वह अपने देश के राजदूत के साथ टिकती है। उसे राजकुमारी की तरह बर्ताव करना बहुत मुश्किल लगता है वह इस तरह के जीवन से ऊब चुकी है और साधारण व्यक्ति की तरह जीना चाहती है। इस कारण, वह उन्मादी (hysterial) हो जाती है तो डाक्टर उसे नींद का इंजेक्शन लगा देता है। इसके पहले वह इंजेक्शन कारगर हो, वह खिड़की से निकल कर भाग जाती है। सड़क पर, उसकी मुलाकात एक अमेरिकी पत्रकार 'जो' से होती है। राजकुमारी, इंजेक्शन के कारण, रास्ते में ही सोने लगती है। इस पर पत्रकार,
राजकुमारी को अपने घर ले जाता है।

अगले दिन उस राजकुमारी ऎन को पत्रकार सम्मेलन में भाग लेना था जिसमें इस पत्रकार को भी जाना था। उसमें जाने के लिये जब वह दफ्तर पहुँचता है तो उसका सम्पादक बताता है कि राजकुमारी की बीमारी के कारण पत्रकार सम्मेलन स्थगित कर दिया गया है। सम्पादक, पत्रकार को राजकुमारी का चित्र दिखाता है तब उसे पता चलता है कि राजकुमारी वही लड़की है जो उसके घर में है। वह सम्पादक से पूछता है कि यदि वह राजकुमारी की कुछ खास चित्र उसे दे दे तो उसे क्या मिलेगा। संपादक उसे बहुत पैसा देने की बात कहता है। वह वापस अपने घर आता है और अपने एक मित्र को लेकर राजकुमारी के साथ घूमने जाता है। वे लोग साधारण व्यक्ति की तरह सैर सपाटा करते हैं, मज़ा आता है।

पत्रकार के मित्र के पास एक लाइटर है जो कि एक कैमरा है। उससे वह राजकुमारी की फोटो लेता रहता है। वे लोग रात को समुद्र तट पर पार्टी में जाते है। जहां पर राजकुमारी के देश की खुफिया पुलिस, जो उसे ढूढ़ रही होती है, पहचान लेती है और उसे वापस ले जाना चाहती है। पत्रकार और राजकुमारी वहां से भाग जाते हैं। जब राजकुमारी वापस लौट रही होती है तो उसे लगता है कि उसका अपने देश के प्रति भी कर्तव्य है और उसे वापस जाना चाहिए। वह वापस चली जाती है।

अगले दिन, राजकुमारी पत्रकार सम्मेलन को सम्बोधित करती है जिसमें वह उनके जवाब भी देती है। यह
अमेरिकी पत्रकार और उसका मित्र भी उस प्रेस कान्फ्रेंस में होते हैं। उसका मित्र, राजकुमारी का चित्र, उसी लाइटर से लेता है तब राजकुमारी को पता चलता है कि यह लोग पिछले दिन भी उसकी फोटो ले रहे थे। राजकुमारी ऎन से सवाल पूछा जाता है कि वह देशों की दोस्ती के बारे में क्या सोचती है। राजकुमारी जवाब देती है,
'मेरा उस पर उतना ही विश्वास है जितना विश्वास मुझे दो व्यक्तियों के संबंध में है।'
इस पर अमेरिकी पत्रकार कहता है,
'राजकुमारी आपका विश्वास गलत साबित नहीं होगा।'
राजकुमारी कहती है कि उसे यह सुनकर प्रसन्नता हुई।

जब वह पत्रकार सम्मेलन समाप्त होता है तो राजकुमारी सबसे हाथ मिलाती है। अमेरिकी पत्रकार राजकुमारी को एक खास तोहफ़ा देता है जिसमें उनके द्वारा खींचे हुये सारे चित्र और निगेटिव रहते है । इसे राजकुमारी मुस्कराहट के साथ स्वीकार करती है और धीरे-धीरे वहां चली
जाती है जहां से शायद यह लोग फिर कभी नहीं मिल पाये।

इस पिक्चर में मुख्य भूमिका ऑड्री हेपबर्न और ग्रेगरी पेक ने निभायी है और इसका निर्देशन वाइलर ने किया है। यह आड्री हेपबर्न की पहली अमेरिकन पिक्चर थी और उन्हें इस पिक्चर में सबसे अच्छे कलाकार ऑस्कर पुरस्कार भी मिला। यह एक प्रेम कहानी है जो कि रिश्तों के बीच आदर और सम्मान की सीमा भी बताती है। यह अच्छी फिल्म है और सपरिवार देखने योग्य है।

मैं नहीं जानता कि यह वास्तविक जीवन में होता है कि नहीं। यह तो एक फिल्म थी पर मेरे विचार में यह पत्रकारिता की मर्यादा को ठीक तरह से परिभाषित करती है। पत्रकारिता का यही अर्थ होना चाहिए।


चित्रों को बड़े रूप में देखने के लिये उन पर चटका लगायें

भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

Wednesday, May 23, 2007

अम्मां - बचपन की यादों में

रिश्तों में सबसे गहरा, सबसे पाक रिश्ता है मां का। पिछले दिनो, कई चिट्ठाकारों ने अपनी मां को अलग अलग तरीके से याद किया। किसी ने 'कोंहड़ौरी (बड़ी) बनाने का अनुष्ठान – एक उत्सव' के साथ, तो किसी ने 'वो २७ साल' लिख कर, किसी ने 'फिर कुछ कहना है' कह कर, तो किसी को 'मां भूक लगी है' के साथ, किसी के लिये 'मां' ही काफी था, तो किसी को 'घुघूती जी और मेरी माँ' से, तो किसी ने 'घुघूती बासूतीजी के प्रश्नों के उत्तर' देते हुऐ मां के बारे में बताया। यह सब पढ़ कर मुझे अपनी मां की याद आयी। लगा, कि मैं भी उनके बारे में लिखूं, जीवन के अनमोल पलों को पुनः जियूं। यह श्रंखला रिश्तों के बारे में है। इसे जब मैंने लिखना शुरू किया तो लगा कि इसी में कुछ उनके बारे में लिखूं।

बसंत पंचमी १९३९ - मेरी मां, पिता की शादी। मां , उस समय ११वीं कक्षा की छात्रा थीं और पिता उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। १९४० में, पिता ने अपनी उच्च शिक्षा पूरी की और मां ने इण्टरमीडिएट पास किया। पिता तो, बाबा के कस्बे में, वापस आकर व्यवसाय में लग गये पर मां उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहर चली गयीं। अगले चार वर्ष छात्रावास में रह कर, उन्होने स्नातक और कानून की शिक्षा पूरी की। १९४४ में, वे अपने विश्वविद्यालय की पहली महिला विधि स्नातक बनीं। उनकी उच्च शिक्षा पूरी हो जाने के बाद ही, हम भाई-बहन इस दुनिया में आए। १९५० में, मेरे पिता इस कस्बे में व्यवसाय की बढ़ोत्तरी के लिये आये।

पिता, चाहते हैं कि हमारा लालन-पालन एक सामान्य भारतीय के अनुसार हो। वह इतना पैसा जरूर कमाते थे कि हमें हिन्दुस्तान के किसी भी स्कूल में आराम से पढ़ने भेज सकते थे पर उन्होंने हम सब को वहीं पढ़ने भेजा जहाँ हिन्दुस्तान के बच्चे सामान्यत: पढ़ते हैं। हमने अपनी पढ़ाई एक साधारण से स्कूल में पूरी की।

पिता, हिन्दी के भी बहुत बड़े समर्थक थे। हमें हिन्दी मीडियम स्कूल में ही पढ़ने के लिये भेजा गया। घर में अंग्रेजी में बात करना मना था। मेरे पड़ोस के सारे बच्चे, अंग्रेजी मीडियम में पढ़ते थे। उनके स्कूलों का भी बहुत नाम था। पड़ोस में सारे बच्चे अंग्रेजी में ही बात करते थे। यह हमें कभी, कभी शर्मिंदा भी करता था। मां हमेशा हमें दिलासा देती,

'ये लोग अपने स्कूल पर गर्व करते हैं पर तुम्हारा स्कूल तुम पर।'
मां की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। वे अंग्रेजी के महत्व को समझती भी थीं। वे हमें बीबीसी सुनने के लिये प्रेरित करती। प्रतिदिन शाम को, हम सब भाई-बहनों को उन्हें अंग्रेजी की कोई न कोई कहानी रीडर्स डाइजेस्ट से या फिर अंग्रेजी का अखबार पढ़ कर सुनाना पड़ता था। वे हमारा उच्चारण ठीक करती और अर्थ समझाती थीं। किसकी बारी पड़ेगी यह तो हम लोग यह खेल से ही निकालते थे,

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बोल,
अस्सी नब्बे पूरे सौ।
सौ में लगा धागा,
चोर निकल भागा।

बस जिस पर 'भागा' आया उसे ही पढ़नी पड़ती थी। उन्होने,
हमें पुस्तकें खरीदने से कभी नहीं रोका। इसके लिये उनके पास हमेशा पैसा रहता था। शायद हम सब के पुस्तक प्रेम का कारण, इस तरह से व्यतीत की गयी अनगिनत शामें है।

एक बार मैंने मां से पूंछा कि तुम इतनी पढ़ी-लिखी हो, तुमने वकालत या कोई और काम क्यों नहीं किया। उनका जवाब था कि, '

मैं घर की सबसे बड़ी बहू हूं। तुम्हारे बाबा के कस्बे से तुम्हारे चाचा, बुआ, उनके लड़के, लड़कियां सब यहीं पढ़ने आए। वे सब हमारे साथ ही रहे, यदि मैं कुछ काम करती तो उनका ख्याल, तुम लोगों का ख्याल कैसे रख पाती। पैसे तो तुम्हारे पिता, हम सबके लिए कमा ही लेते हैं बस इसलिए घर के बाहर जाना ठीक नहीं समझा।'

मैंने उन्हें हमेशा सफेद रंग की साड़ी पहने हुए देखा।
उनके सफेद रंग की साड़ी पहनने के कारण, गोवा में चर्च के अन्दर, क्रॉस के ऊपर सफेद कपड़े को देख कर, उनकी याद आ गयी

मैंने मां को कभी सिंदूर लगाये नहीं देखा। एक बार हम ट्रेन में सफर कर रहे थे। एक महिला ने मां से पूछा कि क्या वे विधवा हैं? मां मुस्करायीं और हमारी ओर इशारा कर बोली,
'इनके पिता को सफेद रंग पसन्द है, बस इसलिये, मैंने इसे अपना लिया। शादी के बाद, जब भी सिंदूर लगाया तो सर में दर्द हो गया - शायद कुछ मिलावट हो। इनके पिता ने सिंदूर लगाने के लिए मना कर दिया। बस इसलिये सिंदूर नहीं लगाती।'
उस महिला ने मां से माफी मांगी पर ट्रेन पर हमारी उनसे अच्छी मित्रता हो गयी। मुझे भी, होली के रंगों से, एलर्जी हो जाती है। शायद, यह मैंने उन्हीं से पाया है।

बहन और मां के बीच में फिल्में देखने का एक अजीब रिश्ता था। वे दोनों हर हिन्दी फिल्म पहले दिन, पहले शो पर देखा करती थीं और पिता के घर वापस पहुँचने के पहले वापस। मैं समझता हूं कि मेरी बहन ने, स्कूल और विश्वविद्यालय से पीरियड कट कर, जितनी फिल्में देखी हैं वह किसी और लड़की ने नहीं देखी होंगीं। जब मेरी बहन ने पढ़ाना शुरू किया तब उसका स्कूल शनिवार को आधे दिन का होता था। तब वे दोनों पहले दिन को छोड़कर शनिवार को पहला शो देखने लगी।

हमें हिन्दी फिल्में देखने की अनुमति नहीं थी। मां को लगता था कि इसका असर अच्छा नहीं होगा। हम केवल अंग्रेजी फिल्में पिक्चर
या फिर बच्चों का कोई खास शो ही देख सकते थे। बहन की शादी, मेरे विश्विद्यालय के जीवन के अन्तिम चरण पर हुई। उसके बाद, मेरी मां को हिन्दी फिल्में देखने के लिए साथी मिलना बन्द हो गया तब मैंने उनके साथ हिन्दी फिल्में देखना शुरू किया। कुछ दिनों के बाद मेरे दोस्त भी हमारे गुट में शामिल हो गये। टिकट का पैसा और कोका-कोला के पैसे तो मेरी मां ही देती थी :-) शादी के बाद, शुभा के साथ अनलिखी शर्त थी,
'हिन्दी पिक्चर में, मेरी मां भी साथ चलेंगी।'
वे जब तक जीवित रहीं, ऎसा ही रहा।

मां की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे छोटी-छोटी बातों से जीवन को भरपूर जीना जानती थीं, दशहरे की झांकी हो या कोई मेला हो, वह हमेशा उसमें जाने में उत्साहित रहती थीं और हम लोगों को भी वहाँ ले जाती थीं। वहाँ पर चाट खाना, कचौड़ी खाना उनको प्रिय था और हमें भी। मुझे यह अब भी बहुत प्रिय है पर शुभा को नहीं। बस जब वह नहीं होती है तब ही इसका आनन्द उठाता हूं।

मेरी मां एक गरीब परिवार से थीं और वह कहती थीं कि उनके घर एक बार ही खाना बनता था। वे हर का, खास तौर से गरीब रिश्तेदारों का ख्याल ज्यादा ही रखती थीं। उनका कहना था कि जो जीवन में बहुत नहीं कर पाया उसका बहुत ख्याल रखना चाहिए क्योंकि वह शायद हिचक के कारण कुछ न कह पाये।

मैंने मां को पिता से कभी बात करते नहीं देखा पर उनके कुछ न कहने पर वह मेरे पिता के मन की हर इच्छा जान जाती थीं। वे पिता की हर बात नहीं मानती थीं कई बार वे हमारा साथ देती थीं पर जिसे वे मानती थी वह उनके न बताये भी जान जाती थीं जैसे कि वे उनका मन पढ़ लेती हों। मैं अक्सर सोचता हूं कि शुभा, क्यों मेरे मन की बात नहीं समझ पाती है? वह कहती है कि,

'तुम्हारे मन में जो है वह मुझे बताते क्यों नहीं।'
लगता है कि मेरी मां किसी और मिट्टी की बनीं थीं। वह मेरे पिता के बिना बोले ही, उनका मन जान जाती थीं।

अगली बार - कुछ मित्रता के बारे में।

भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

Monday, May 21, 2007

महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता : आज की दुर्गा

(इस बार चर्चा का विषय है महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)

Get this widget | Share | Track details


अधिकतर धर्मों के लिये स्वीय कानून (Personal Law) अलग-अलग है। अलग-अलग धर्मों में महिलाओं के भरण-पोषण भत्ता की अधिकारों की सीमा भी अलग-अलग है पर यह अलगाव अब टूट रहा है।

Indian Divorce Act ईसाइयों पर लागू होता है। इसकी धारा ३६ में यह कहा गया है कि मुकदमे के दौरान पत्नी को, पति की आय का १/५ भाग भरण-पोषण भत्ता दिया जाय। पहले, अक्सर न्यायालय न केवल मुकदमा चलने के दौरान, बल्कि समाप्त होने के बाद भी १/५ भाग भरण-पोषण के लिए पत्नी को दिया करते हैं। यह सीमा न केवल ईसाईयों पर बल्कि सब धर्मों पर लगती थी। इस समय यह समीकरण बदल गया है और कम से कम पति की आय का १/३ भाग पत्नी को भरण-पोषण भत्ता दिया जाता है। यदि पत्नी के साथ बच्चे भी रह रहे हों तो उसे और अधिक भरण-पोषण भत्ता दिया जाता है।

पत्नी को भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने के दफा फौजदारी की धारा १२५ में भी प्रावधान है। इस धारा की सबसे अच्छी बात यह थी कि यह हर धर्म पर बराबर तरह से लागू होती थी। वर्ष १९८५ में शाहबानो का केस आया। इसमें उसके वकील पति ने शाहबानो को तलाक दे दिया। उसे मेहर देकर, केवल इद्दत के दोरान ही भरण-पोषण भत्ता दिया पर आगे नहीं दिया। शाहबानो ने फौजदारी की धारा १२५ के अंतर्गत एक आवेदन पत्र दिया। १९८५ में उच्चतम न्यायालय द्वारा Mohammad Ahmad Kher Vs. Shahbano Begum में यह फैसला दिया कि यदि मुसलमान पत्नी, अपनी जीविकोपार्जन नहीं कर पा रही है तो मुसलमान पति को इद्दत के बाद भी भरण-पोषण भत्ता देना होगा।

शाहबानो के फैसले का मुसलमानों के विरोध किया। इस पर संसद ने एक नया अधिनियम मुस्लिम महिला विवाह विच्छेद संरक्षण अधिनियम Muslim Women (Protection of Rights on Divorce Divorce Act) 1986 बनाया। इसको पढ़ने से लगता है कि यदि मुसलमान पति, अपनी पत्नी को मेहर दे देता है तो इद्दत की अवधि के बाद भरण-पोषण भत्ता देने का दायित्व नहीं होगा। यह कानून मुसलमान महिलाओं के अधिकार को पीछे ले जाता था। इस अधिनियम की वैधता को एक लोकहित जन याचिका के द्वारा चुनौती दी गयी। वर्ष २००१ में Dannial Latif Vs. Union of India के मुकदमें में उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम को अवैध घोषित करने से तो मना करा दिया पर इस अधिनियम के स्वाभाविक अर्थ को नहीं माना। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम के आने के बावजूद भी यदि पत्नी अपनी जीविकोपार्जन नहीं कर पाती है तो मुसलमान पति को इद्दत की अवधि के बाद भी भरण-पोषण भत्ता देना पड़ेगा। अर्थात इस अधिनियम को शून्य तो नहीं कहा पर इसे निष्प्रभावी कर दिया। उच्चतम न्यायालय का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों के सम्बन्ध में अच्छे फैसलों में से एक है।

अगली बार चर्चा का विषय रहेगा - घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) २००५

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता

Tuesday, May 15, 2007

हिन्दी चिट्ठाकारिता, मोक्ष, और कैफे हिन्दी

हिन्दी चिट्ठाकारिता को मोक्ष कब और कैसे मिलेगा? क्या हिन्दी चिट्ठों के फीड एग्रेगेटर इसे मोक्ष दिलवा पायेंगे? इस संदर्भ में कुछ विचार, कुछ धन्यवाद, कुछ आभार।

इस समय तीन अच्छे हिन्दी चिट्ठों के फीड एग्रेगेटर हैं:
इस समय, यह तीनो RSS अपनी फीड देते हैं। इनमें कुछ न कुछ, तो अन्तर है पर यह लगभग सारे हिन्दी चिट्ठों की प्रविष्टियों के बारे में बताते हैं। इन तीन के अतिरिक्त, नारद जी के बीमार हो जाने के समय, मैंने भी इस तरह की सेवा, Hindi – Podcast and Blogs नाम से शुरू की थी पर उसकी जरुरत न होने के कारण अब अन्तरजाल से हटा दी है।

हिन्दी चिट्ठों पर नयी प्रविष्टियां के बारे में पता करने के लिये इन वेबसाइट पर जा कर प्रविष्टियों का तरीका पुराना हो गया है। इस समय सबसे अच्छा तरीका है कि आप इनकी RSS फीड अपने कंप्यूटर में स्थापित में कर लें। यह किसी भी फीड रीडर में हो सकता है। RSS फीड क्या होता है यह कैसे कंप्यूटर में स्थापित किया जा सकता है यह आप यहां पढ़ सकते हैं पर RSS फीड समझने का सबसे आसान तरीके तो यहां है जो कि देबाशीष जी मुझे मेरी चिट्ठी पर टिप्पणी कर के बताया था।

मेरे विचार से इस समय ऊपर वर्णित तीनो में सबसे अच्छा हिन्दी बलॉग्स डॉट कॉम है। मैं इसकी RSS फीड अपने कंप्यूटर पर लेता हूं। इसका कारण यह है कि यह सारी प्रविषटियों के साथ, उस प्रविष्टि की दो या तीन पंक्ति भी देता है जिससे यह सुविधा रहती है कि किस प्रविष्टि को पढ़ा जाय और किसको छोड़ दिया जाय। चिट्ठियों की संख्या में बढ़ोत्तरी और समय आभाव के कारण, आजकल यह महत्वपूर्ण हो गया है। नारद में यह सुविधा कुछ प्रविष्टियों के साथ है पर ज्यादातर के साथ नहीं - यह नारद में तकनीकी कारण से है।

मैं हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट की भी RSS फीड लेता हूं यह न केवल हिन्दी पॉडकास्ट के बारे में भी सूचना देता है और इसमें हिन्दी चिट्ठों की प्रविष्टियों के अतिरिक्त कुछ और भी प्रविष्टियों की सूचना रहती है जो कि बाकी दोनो में नहीं है।

इन तीन सुविधाओं के बाद भी, क्यों कुछ दिन पहले केवल नारद के ऊपर कुछ चिट्ठों को लेकर विवाद उठा। इसके बहुत से कारण हैं और मैं उन सब कारणों पर नहीं जाना चाहता पर कुछ कारण यह हैं कि कई लोगों को फीड एग्रेगेटर की भूमिका और नारद के बारे में गलतफहमी है।
  • यह तीनो केवल फीड एग्रेगेटर हैं। यह आपको बताते हैं कि कहां, किस चिट्ठे में नयी प्रविष्टि आयी है। इसके अतिरिक्त इनका कोई और कार्य नहीं है। चिट्ठी में क्या है, उसका दायित्व उस चिट्ठाकार का है जिसने उसे लिखा है इन तीनो का नहीं। आप उस चिट्ठी को पढ़ना चाहें तो पढ़े, न पढ़ना चाहें तो न पढ़े।
  • कभी कभी चिट्ठियों पर आयी टिप्पणियों से, कई बार परिचर्चा और गूगल हिन्दी समूह पर चर्चा के दौरान चिट्ठाकार बन्धुवों के विचारों से लगा कि वे समझते हैं कि नारद के बिना मोक्ष नहीं।

हिन्दी चिट्टाजगत में, मैं बहुतों के विचारों से सहमत रहता हूं और कुछ से नहीं। सहमत रहने वाले चिट्ठाकारों में अनूप जी भी हैं। मुझे उनके विचार सुसंगत और संयत लगते हैं। मेरे विचार से, वे हिन्दी चिट्ठाकारिता को मोक्ष दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। मैं नहीं जानता कि उनका नारद के प्रबन्ध तंत्र से वैसा संबन्ध है जैसा सृजन शिल्पी जी सोचते हैं या फिर कुछ और। वे नारद के बारे में गलतफहमी को टिप्पणी द्वारा चिट्ठाचर्चा पर 'आई एम लविंग इट' चिट्ठी पर यह कहते हुऐ दूर करते हैं कि,
'क्या नारद पर कोई चिट्ठा रजिस्टर किए बगैर, दुनिया उसके बारे मे जान पाएगी? यह ऐंठ ठीक नहीं है। यह मत भूलो कि ब्लाग्स हैं तो नारद है। यह नहीं कि नारद था इसलिये ब्लाग्स लिखने लगे लोग! अपनी तुरही खुद बजाने से बचना चाहिये हम को।'

मेरे विचार हम सब चिट्ठाकार अपना मोक्ष स्वयं ढूढ़ेगें न कि कोई और। हमें मोक्ष मिलेगा कि नहीं, यह तो अन्तरजाल ही जाने पर जहां तक हिन्दी चिट्टाकारिता के मोक्ष की बात है वह शायद यह तीनो (नारद, हिन्दी बलॉग्स डॉट कॉम, हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट) या इस तरह के अन्य फीड एग्रेगेटर मिलकर भी न दिलवा पायें। यह तो हिन्दी चिट्टाकारिता रॉकेट के पहले चरण के इंजिन हैं। यह केवल हिन्दी को उन्मुक्त आकाश तक ले जायेंगे। इनका काम तो हिन्दी को अंतरजाल पर लाना है। मेरे विचार से इस समय यही हमारा उद्देश्य भी होना चाहिये और विवादों से बचना चाहिये।

इस समय, यही काम अलग तरीके से चिट्ठाचर्चा भी करती है जिसमें इस बात पर जोर रहता है कि ज्यादा से ज्यादा चिट्ठों की चर्चा की जाय। यही कार्य संजय जी, समीर जी, जीतेन्द्र जी तथा और कई अन्य भी, ज्यादा से ज्यादा चिट्ठों पर टिप्पणी कर के करते हैं ताकि लोगों का उत्साह बना रहे। यही कारण है कि हम सब नये चिट्टाकार बन्धुवों का जोर-शोर से स्वागत करते हैं।

इसमें शक नहीं कि हम अपने उद्देश्य में सफल होंगे और ज्लद ही ज्लद हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ती जायगी। वह दिन दूर नहीं जब प्रतिदिन १००० से अधिक नयी प्रविष्टियां होने लगेंगी। उस समय हिन्दी चिट्टाकारिता के रॉकेट को गन्तव्य (मोक्ष) पर पहुंचने के लिये दूसरे चरण के इंजिन की आवश्यकता पड़ेगी तब इन तीनो विकल्पों से बेहतर विकल्प, वह वेबसाइटें होंगी जो कि अलग अलग श्रेणियों में हिन्दी की अच्छी प्रविष्टियों के बारे में बतायेंगी, जैसे कि देसी पंडित, हिन्दी जगत, कैफै हिन्दी और कई अन्य। इस तरह की वेबसाइटें अभी उतनी लोकप्रिय नहीं हैं पर हिन्दी चिट्ठाकारिता की नैया पार लगाने पर इनकी निष्पक्षता, इनका कौशल, इनकी दूरदर्शिता ही काम करेगी। मुझे पूरा विश्वास है कि यह, बाखूबी से, अपना काम करेंगी।

मुझे इस तरह की वेबसाइट में, कैफे हिन्दी पसन्द आती है। मैं इसकी भी RSS फीड अपने कंप्यूटर में लेता हूं। इसको पसन्द करने के कई कारण हैं
  • इसमें कई श्रेणियां हैं और सबके लिये अलग अलग RSS फीड हैं।
  • प्रविष्टियों के बारे में, मुझे इनका चयन अच्छा लगता है। इसमें न केवल मेरी पर सारे चिट्ठाकार बन्धुवों की उम्दा चिट्ठियां हैं।
  • कैफे हिन्दी पर चिट्ठियां अपने मूल चिट्ठों से ज्यादा सुन्दर दिखती हैं और इसका कारण है कि उनके साथ कोई न कोई सुन्दर चित्र होता है। मैं अक्सर इन पर इन चित्रों को देखने जाता हूं कि सम्पादक ने किस तरह से उस चिट्टी के मर्म को समझ कर चित्र में उतारा है।

कुछ दिन पहले, मैंने 'हैकरगॉचिस् और जिम्प' नामक चिट्टी लिखी। संजय जी ने टिप्पणी कर कहा,
'जब सोफ्टवेर है ही तो अपना एक चित्र बना ही डालो।'

मुझे उल्लू पक्षी पसन्द है। मैंने बचपन में पाला था पर उसके खाने का प्रबन्ध ठीक से न हो पाने के कारण छोड़ना पड़ा। मैंने सबसे पहले उल्लू चित्र को अपने चिट्ठे पर डाला। नितिन जी यह पसन्द नहीं आया इसलिये हटा दिया। उसके बाद एम सी ऐशर के एक चित्र को डाला। ऐशर मेरे सबसे प्रिय चित्रकार हैं। इस समय चल रही श्रंखला के बाद उन पर लिखूंगा । नितिन जी की टिप्पणी से मुझे यह भी लगने लगा था कि मैं अपना
चित्र डालूं। मैंने कैफे हिन्दी के प्रबन्धक मैथली जी से पूछा कि वे किस प्रकार चित्र बना कर चिट्ठियों में डालते हैं। उन्होने न केवल यह मुझे बताया पर हम दोनो का कार्टून चित्र भी बनाने की भी बात की।

मेरे तो मन की मुराद पूरी हो गयी। मैंने उन्हें कोई चित्र तो नहीं भेजा पर प्रार्थना की वे हम दोनो के बारे में, हमारे चिट्टों के द्वारा, टेलीग्राफ अखबार में निकले लेख के आधार पर, या मुन्ने की मां के द्वारा टेलीग्राफ लेख पर स्पष्टीकरण से, जो भी हमारी तस्वीर उनके मन में उभरती हो उससे चित्र बना दें। उन्होने इस आधार पर यह चित्र बनाया है। आज से यही हमारी पहचान है।

यह चित्र, मैथली जी की कल्पना में हम हैं। यह चित्र हमसे कितना मिलता हैः बहुत कुछ पर इसमें हम,
  • अपनी उम्र से कम लगते हैं,
  • कुछ ज्यादा सुन्दर, कुछ ज्यादा स्मार्ट दिखते हैं,
  • कुछ ज्यादा बुद्धिमान लग रहें हैं।
चित्र तो ऐसे ही होते हैं :-) वास्तविक जीवन में न सही, चलिये किसी कि कल्पना में ही सही, हम हीरो तो लगें।

मैथली जी, आपको इस उपहार के लिये धन्यवाद हमारा आभार।

Friday, May 11, 2007

Love means not ever having to say you're sorry

इस चिट्ठी में एक खास प्रेम कहानी के बारे में, और इसी सन्दर्भ में सबसे ज्यादा उद्धरित पंक्ति के बारे में चर्चा करने की बात हुई थी। वह यह रही।

एक अभिनेता की पत्नी की तबियत ठीक नहीं रहती थी। पत्नी के डाक्टर ने अभिनेता से मिलने की इच्छा जाहिर की। जब अभिनेता, डाक्टर से मिला तो उसने बताया कि उसकी पत्नी को कैंसर है और छ: महीने के अन्दर ही उसकी मृत्यु हो जायेगी। अभिनेता ने अपने काम से छुट्टी ली और वह अपनी पत्नी से यह बिना बताये कि उसकी मृत्यु होने वाली है, उन जगहों पर ले गया जहाँ उसकी पत्नी हमेशा जाना चाहती थी। उसकी पत्नी की मृत्यु ६ महीने के अन्दर ही हो गयी। इसके बाद यह सवाल उठा कि कौन अच्छा अभिनेता था: वह पति जिसने अपनी पत्नी के साथ आखिरी छ: महीने उस की पसन्द की जगह, उसे बिना यह बताये गुजारे कि उसकी ज्लद ही मृत्यु होने वाली है या फिर वह पत्नी, जो यह जानते हुए कि वह छ: महीने बाद नहीं रहेगी सारी जगह गयी और अपने पति को नहीं मालुम होने दिया कि उसे अपनी मृत्यु के बारे में मालुम है। यह मेरी प्रिय प्रेम कहानियों में से एक है।

इस कहानी को एक दूसरे रूप में, एरिक सीगल ने Love Story नामक पुस्तक में लिखा है। यह पुस्तक १९७० में छपी थी। यह ऑलिवर बैरेट और जेनी कैविलरी की प्रेम कहानी है। ऑलिवर अमीर, बहुत अच्छा खिलाड़ी, और हावर्ड में पढ़ता था। जैनी गरीब, संगीत से प्रेम रखने वाली, और रेडक्लिफ में पढ़ती थी।

यह कहानी कुछ इस तरह से शुरू होती है।
'What can you say about a twenty-five-year-old girl who died ?
That she was beautiful. And brilliant. That she loved Mozart and Bach. And the Beatles. And me. Once, when she specifically lumped me with those musical types, I asked her what the order was, and she replied, smiling, “Alphabetical.” At the time I smiled too. But now I sit and wonder whether she was listing me by my first name-- in which case I would trail Mozart - or by my last name, in which case I would edge in there between Bach and the Beatles. Either way I don't come first, which for some stupid reason bothers hell out of me, having grown up with the notion that I always had to be number one. Family heritage, don't you know?'
जेनी की भी मृत्यु ६ महीने के अन्दर कैंसर से हो जाती है। इस पुस्तक का अन्त इस प्रकार होता है कि ऑलिवर का पिता जब अस्पताल में पहुंचता है तो जेनी की मृत्यु हो चुकी होती है।
'“Oliver,” said my father urgently, “I want to help.” “Jenny's dead,” I told him. “I'm sorry,” I told him. “I'm sorry,” he said in a stunned whisper.
Not knowing why, I repeated what I had long ago learned from the beautiful girl now dead.
“Love means not ever having to say you're sorry.”'
And then I did what I had never done in his presence, much less in his arms. I cried.'
इस कहानी के दूसरी अन्तिम पंक्ति प्यार का एक अर्थ बताती है जो कि इस चिट्ठी का शीर्षक है। मेरे विचार में यह पंक्ति प्यार के संदर्भ में सबसे ज्यादा उद्धरित पंक्ति है। इस कहानी पर, इसी नाम से एक पिक्चर भी बनी है जिसे ऑर्थर हिलर ने निर्देशित किया है और मुख्य भूमिका रायन ओ'नील एवं एली मैक्ग्रॉ ने निभायी है यह पंक्ति पिक्चरों के डायलॉगो में, दस सबसे लोकप्रिय डायलॉग में एक है।

यह पुस्तक उस समय प्रकाशित हुई जब मैं विश्वविद्यालय में पढ़ता था। विश्वविद्यालय के जीवन में लड़कियां भी साथ पढ़ती थीं। वह उम्र ही अलग थी और वह समय भी। किशोरावस्था में पैर रखते समय, लड़कियों का साथ पढ़ना, अलग अनुभूति ही था। उसमें से एक के बारे में मैंने उर्मिला की कहानी में बताया है। यह पुस्तक तथा उस पर बनी पिक्चर मुझे बहुत पसन्द आयी। यह पुस्तक पढ़ने और पिक्चर देखने योग्य है। मैंने यह पुस्तक भी बहुतों को उपहार में दी। इस चिट्ठी को लिखने से पहले मैंने इसे फिर पढ़ा। मुझे यह उतनी अच्छी लगी जितनी कि ३५ साल पहले लगी थी। यदि आपने नहीं पढ़ी हो तो जरूर पढ़ कर देखिये।

अगली बार, एक ऐसे रिश्ते की बात करेंगे जो कि रिश्तों में सबसे पवित्र है और जिसका प्यार सबसे सच्चा - यानि मां के बारे में।

भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're सॉरी

सांकेतिक शब्द
book, book, books, Books, books, book review, book review, book review, Hindi, kitaab, pustak, Review, Reviews, किताबखाना, किताबखाना, किताबनामा, किताबमाला, किताब कोना, किताबी कोना, किताबी दुनिया, किताबें, किताबें, पुस्तक, पुस्तक चर्चा, पुस्तकमाला, पुस्तक समीक्षा, समीक्षा,

Tuesday, May 08, 2007

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन

श्रंखला - हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू - की पिछली चिट्ठी (Our sweetest songs are those that tell of saddest thought) पर, ममता जी ने किशोर कुमार के एक गाने कि पंक्ति से टिप्पणी की। मैंने जब यह श्रंखला लिखनी शुरू की थी तब इस कड़ी के लिये, वही शीर्षक सोचा था। लगता है कि उन्हें इस कड़ी का आभास हो गया था। वे इलाहाबाद शहर की हैं और लोग तो यही कहते हैं कि इस शहर की मिट्ठी कुछ अलग है

चलिये अब बात करें उस चिट्ठी की जिसके कारण मैंने यह श्रंखला शुरू की।

कुछ दिन पहले रचना जी ने एक चिट्ठी रिश्ते पढ़ी। इस चिट्ठी में कुछ दर्द था, कुछ तड़पन तो कुछ बीते हुऐ जमाने की बात। इसी से मुझे शैली की कविता To A Skylark की पंक्ति Our sweetest songs are those that tell of saddest thought की याद आयी। मेरा मन था कि उस चिट्ठी पर इसी पंक्ति से टिप्पणी करूं पर यह चाह कर भी, न कर सका।

मुझे रचना जी की रिश्ते वाली चिट्ठी कुछ उदास, कुछ मायूस, कुछ निराश, कुछ नकारात्मक सी लगी। यह केवल मेरा ही सोचना नहीं था पर वहां बहुत लोगो ने टिप्पणी की है, शायद वे सब यही सोचते थे। शैली की कविता की वह पंक्ति जो मैं टिप्पणी करना चाहता था वह भी यही कुछ बयां करती है। इस पंक्ति में कुछ इसमें भी निराशावाद है बस इसीलिये इस पंक्ति से टिप्पणी नहीं की। मैं कुछ आशावादिता, कुछ सुनहरे समय की बात करना चाहता था, इसलिये टिप्पणी की कि,

'मैं तो यही समझता हूं कि प्रेम, (अपने हर रंग में) बन्धन रहित है।'
अनूप जी और घुघूती जी भी इस टिप्पणी से सहमत थे, शायद वे भी कुछ सकारत्मक कहना चाहते थे। रचना जी ने राजेश जी की टिप्पणी का जवाब देते समय तो कहा कि वे मेरी और घुघूती जी की बात समझ रहीं हैं पर मेरी टिप्पणी का जवाब अपने ही दार्शनिक अंदाज में दिया :-(

खैर रचना जी का, मेरी टिप्पणी पर दिये जवाब का जो भी अर्थ हो पर मेरी टिप्पणी की पंक्ति, न केवल मेरे मन के करीब है पर मेरे जीवन का अभिन्न अंग, मेरी जीवन शैली का एक भाग भी है। मेरे साथ
इसका इत्तफ़ाक कई बार हुआ है। यह न केवल मेरे जीवन की बहुत सारी घटनाओं से जुड़ी है पर उन कई किस्से, कहानियों, पिक्चरों, और गानों से जुड़ी है जो कि मेरे लिये सुखद हैं और मुझे अच्छे लगते हैं। यह टिप्पणी करते समय मैंने उन सब को पुनः याद किया और आने वाली कुछ चिट्ठियों में, इन्हीं के बारे में चर्चा करूंगा।

अगली बार हम प्यार के बारे में बात करेंगे। क्या प्यार एक खामोशी है, या खामोशी के रुके हुऐ अफसाने, या केवल एक एहसास, या फिर कुछ और। हम बार बात करेंगे, एक खास प्रेम कहानी के बारे में, जो शायद सबसे ज्यादा चर्चित प्रेम कहानी है और जानेगे प्यार के अर्थ को। जानेगे उस कहानी को, उसकी उस पंक्ति को, जो इस सन्दर्भ में सबसे ज्यादा उद्धरित पंक्ति है।

मैंने इस चिट्ठी के लिये यह शीर्षक ही क्यों चुना? यह तो आपको रचना जी की 'रिश्ते' वाली चिट्टी पढ़ कर ही समझ आयेगा। मुझे उनकी यह चिट्ठी, बीते दिन की याद करती सी लगती है।


भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

Saturday, May 05, 2007

स्वीय विधि (Personal Law)

(इस बार चर्चा का विषय है महिला अधिकार और स्वीय विधि। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)

Personal-Law-Women...


लिंग के आधार पर सबसे ज्यादा भेद-भाव Personal Law में दिखाई देता है और इस भेदभाव को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code) बनाया जाय।

हमारे संविधान का भाग चार का शीर्षक है - 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' (Directive Principles of the State policy)। इसके अंतर्गत रखे गये सिद्घान्त, न्यायालय द्वारा क्रियान्वित (Enforce) नहीं किये जा सकते हैं पर देश को चलाने में उन पर ध्यान रखना आवश्यक है । अनुच्छेद ४४ इसी भाग में है। यह अनुच्छेद कहता है कि हमारे देश में समान सिविल संहिता बनायी जाय पर इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो रहा है।

हमारे संविधान के भाग तीन का शीर्षक है - मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)। इनका क्रियान्वन (enforcement) न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। इस समय न्यायपालिका के द्वारा मौलिक अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों में संयोजन हो रहा है। न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते हुये राज्य की नीति के निदेशक तत्वों की सहायता ले रहे हैं। बहुत सारे लोग न्यायालयों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह देश में समान सिविल संहिता के लिये बड़ा कदम उठाए। उनके मुताबिक:-
  • संविधान के अनुच्छेद १३ के अंतर्गत स्वीय विधि (Personal Law) और किसी दूसरे कानून में कोई अन्तर नहीं है। यदि स्वीय विधि (Personal Law) में भेदभाव है तो न्यायालय उसे अनुच्छेद १३ शून्य घोषित कर सकता है।
  • स्वीय विधि, संविधान के अनुच्छेद १४ तथा १५ का उल्लंघन करते हैं और उन्हें निष्प्रभावी घोषित किया जाना चाहिये।
  • संसद, राजनैतिक कारणों से इस बारे में कोई कानून नहीं बना पा रही है इसलिये न्यायालय को आगे आना चाहिये।

न्यायपालिका ने इस दिशा में एक और कदम Sarla Mudgal Vs. Union of India वा Madhu Kishwar Vs. State of Bihar में उठाया था पर इस कदम को Ahmedabad Women Action Group (AWAG) Vs. Union of India में यह कहते हुये वापस ले लिया कि,
'यह सरकार की नीतियों पर निर्भर करता है जिससे सामान्यत: न्यायालय का कोई संबंध नही रहता है। इसका हल कहीं और है न कि न्यायालय के दरवाजे खटखटाने पर।'
न्यायपालिका आगे क्या करेगी - यह तो भविष्य ही बतायेगा पर शायद पहल उन महिलाओं को करनी पड़ेगी जो इस तरह के भेदभाव वाले स्वीय विधि से प्रभावित होती हैं।

यदि न्यायालयों के निर्णयों को आप देंखे तो पायेंगे कि न्यायपालिका किसी भी स्वीय विधि (Personal Law) को निष्प्रभावी घोषित करने में हिचकिचाती है लेकिन उस कानून की व्याख्या करते समय वह महिलाओं के पक्ष में रहता है। यही कारण है कि अपवाद को छोड़कर न्यायालयों ने कानून की व्याख्या करते समय, उसे महिलाओं के पक्ष में परिभाषित किया। इसके लिये चाहे उन्हें कानून के स्वाभाविक अर्थ से हटना पड़े। यह बात सबसे स्पष्ट रूप से Danial Latif Vs Union of India के फैसले से पता चलती है। इस मुकदमे में मुस्लिम स्त्री (विवाह-विच्छेद पर अधिकारों का समक्षण) अधिनियम १९८६ {Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act 1986} की वैधता को चुनौती दी गयी थी। इसके बारें में हम आगे बात करेंगे।

अगली बार चर्चा का विषय रहेगा - महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।


आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)

Tuesday, May 01, 2007

Our sweetest songs are those that tell of saddest thought

इस चिट्ठी का शीर्षक, पर्सी बिश शॅली की एक कविता 'To a Skylark' कि एक पंक्ति है। यह पंक्ति दर्द और मिठास के रिश्ते को सबसे अच्छी तरह से व्यक्त करती है। इस कविता के बारे में बात करने से पहले, कुछ शॅली के बारे में।

अंग्रेजी साहित्य में पांच प्रसिद्घ रूमानी कवि हुए हैं, पर्सी बिश शॅली उनमें से एक हैं, बाकी चार वर्डस्वर्थ, कोलरिज, बाइरन और कीटस् हैं। शॅली एक उपदेशक थे और अपनी कविता के द्वारा समाज सुधार करना चाहते थे। उनकी मृत्यु ३० साल की कम उम्र में हो गयी इसलिए कहना मुश्किल है कि यदि वे जीवित रहते तो यह सम्भव होता या नहीं। यह भी अपने में एक प्रश्न है कि कविता के द्वारा ऐसा कार्य संभव है या नहीं।

शॅली का जन्म ४ अगस्त १७९२ में हुआ था। इन्होंने अपना स्कूली जीवन ईटन (Eton) में व्यतीत किया और उच्च शिक्षा के लिए आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। १९११ में, उन्होंने The necessity of Atheism नाम से एक पर्चा प्रकाशित किया जिसके कारण उन्हें आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया।

आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से निष्कासित किये जाने के बाद ही, उन्नीस साल की उम्र में शॅली का प्रेम १६ साल की हैरियट बेस्टब्रुक से हुआ जिसके साथ उन्होंने शादी रचायी। शॅली भावनात्मक व्यक्ति थे और बहुत जल्द ही उनका प्रेम एक दूसरी १६ साल की लड़की , मैरी गाडविन के साथ चलने लगा; वे उसके साथ १८१४ में यूरोप भाग गये। १८१६ में जब वे वापस इंगलैंड आये तो शॅली की पहली पत्नी हैरियट की मृत्यु, दुर्घटना के कारण हो गयी। शॅली ने मैरी से शादी कर ली। वे पुन: १८१८ में यूरोप गये वहां बाइरन के साथ रहे और इन दोनों के कहने पर मैरी ने फ्रैंकेस्टाइन नामक किताब लिखी जो कि विज्ञान की कल्पित कहानियों में सबसे ज्यादा जानी-मानी पुस्तक है। और इसके बारे में मैं यहां बता चुका हूं। ८ जुलाई १९२२ में जब शॅली ३० साल के भी नहीं हुये थे, इटली के पास समुद्र में, उनकी नाव डूब जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गयी।

शॅली और मैरी दोनों ही शाकाहारी होने की वकालत करते थे और उन्होंने इस बारे में कई लेख भी लिखे जिसमें कि प्रमुख है, “A Vindication of Natural Diet” and “On the Vegetable
System of Diet.”

शॅली की कवितायें अंग्रेजी साहित्य की धरोहर है इनकी एक कविता 'To a Skylark' है। स्काईलार्क एक छोटी सी चिड़िया है।
यह ऊंचे आकाश में उड़ना पसन्द करती है। इनकी आवाज मधुर होती है। यह अपनी आवाज के लिये जानी जाती है।

महिला स्काईलार्क चिड़ियाएं, उन पुरुष स्काईलार्क चिड़ियाओं को पसन्द करती हैं जो जितने ज्यादा समय के लिये गा सकते हैं। यदि आप इस चिड़िया की आवाज सुनना चाहें या फिर इसके बारे में जानना चाहें तो बीबीसी रडियो पर यहां सुन सकते हैं।

'To a Skylark' कविता के पहले भाग में, शॅली इस चिड़िया के बारे में बात करते हैं और दूसरे भाग में, उससे प्रेरित होकर अपनी भावनायें, अपने जीवन का दर्शन बताते हैं। इस चिट्ठी का शीर्षक इसी कविता का भाग है और उनके द्वारा की गयी रचना का सबसे ज्यादा प्रसिद्ध उद्घरण। यह जिस छन्द से लिया गया है वह इस प्रकार है,

'We look before and after,
And pine for what is not:
Our sincerest laughter
With some pain is fraught;
Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.'

यह छन्द बताता है कि हम, भावनात्मक स्तर पर, सबसे ज्यादा बीते हुऐ पलों से जुड़े होते हैं। यह पल ही हमारे लिये बहुमूल्य हैं। वे ही हमारे जीवन के सबसे सुनहरे पल हैं। वे बीते हुऐ हैं - वापस नहीं आ सकते। इसी लिये उनके लिये हम सबसे ज्यादा दुखी होते हैं। यही कारण है दर्द और मिठास के अनोखे रिश्ते का।

पर सवाल है कि, मैंने क्यों 'हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू' की शुरू की? मैं क्यों इस रिश्ते की चर्चा कर रहा हूं? मैंने क्यों शॅली की 'To a Skylark'कविता की इस पंक्ति के बारे में बात की? मैंने क्यों इस श्रंखला की भूमिका के लिये एक दर्द भरी शायरी रखी?

सच यह है कि, इसका सम्बन्ध कुछ हिन्दी जगत में प्रकाशित एक चिट्ठी से है। यह अगली बार।


भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

इस चिट्ठी के चित्र विकीपीडिया से है और ग्नू स्वतंत्र अनुमति पत्र की शर्तों के अन्तर्गत प्रकाशित किये गये हैं।