Tuesday, May 15, 2007

हिन्दी चिट्ठाकारिता, मोक्ष, और कैफे हिन्दी

हिन्दी चिट्ठाकारिता को मोक्ष कब और कैसे मिलेगा? क्या हिन्दी चिट्ठों के फीड एग्रेगेटर इसे मोक्ष दिलवा पायेंगे? इस संदर्भ में कुछ विचार, कुछ धन्यवाद, कुछ आभार।

इस समय तीन अच्छे हिन्दी चिट्ठों के फीड एग्रेगेटर हैं:
इस समय, यह तीनो RSS अपनी फीड देते हैं। इनमें कुछ न कुछ, तो अन्तर है पर यह लगभग सारे हिन्दी चिट्ठों की प्रविष्टियों के बारे में बताते हैं। इन तीन के अतिरिक्त, नारद जी के बीमार हो जाने के समय, मैंने भी इस तरह की सेवा, Hindi – Podcast and Blogs नाम से शुरू की थी पर उसकी जरुरत न होने के कारण अब अन्तरजाल से हटा दी है।

हिन्दी चिट्ठों पर नयी प्रविष्टियां के बारे में पता करने के लिये इन वेबसाइट पर जा कर प्रविष्टियों का तरीका पुराना हो गया है। इस समय सबसे अच्छा तरीका है कि आप इनकी RSS फीड अपने कंप्यूटर में स्थापित में कर लें। यह किसी भी फीड रीडर में हो सकता है। RSS फीड क्या होता है यह कैसे कंप्यूटर में स्थापित किया जा सकता है यह आप यहां पढ़ सकते हैं पर RSS फीड समझने का सबसे आसान तरीके तो यहां है जो कि देबाशीष जी मुझे मेरी चिट्ठी पर टिप्पणी कर के बताया था।

मेरे विचार से इस समय ऊपर वर्णित तीनो में सबसे अच्छा हिन्दी बलॉग्स डॉट कॉम है। मैं इसकी RSS फीड अपने कंप्यूटर पर लेता हूं। इसका कारण यह है कि यह सारी प्रविषटियों के साथ, उस प्रविष्टि की दो या तीन पंक्ति भी देता है जिससे यह सुविधा रहती है कि किस प्रविष्टि को पढ़ा जाय और किसको छोड़ दिया जाय। चिट्ठियों की संख्या में बढ़ोत्तरी और समय आभाव के कारण, आजकल यह महत्वपूर्ण हो गया है। नारद में यह सुविधा कुछ प्रविष्टियों के साथ है पर ज्यादातर के साथ नहीं - यह नारद में तकनीकी कारण से है।

मैं हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट की भी RSS फीड लेता हूं यह न केवल हिन्दी पॉडकास्ट के बारे में भी सूचना देता है और इसमें हिन्दी चिट्ठों की प्रविष्टियों के अतिरिक्त कुछ और भी प्रविष्टियों की सूचना रहती है जो कि बाकी दोनो में नहीं है।

इन तीन सुविधाओं के बाद भी, क्यों कुछ दिन पहले केवल नारद के ऊपर कुछ चिट्ठों को लेकर विवाद उठा। इसके बहुत से कारण हैं और मैं उन सब कारणों पर नहीं जाना चाहता पर कुछ कारण यह हैं कि कई लोगों को फीड एग्रेगेटर की भूमिका और नारद के बारे में गलतफहमी है।
  • यह तीनो केवल फीड एग्रेगेटर हैं। यह आपको बताते हैं कि कहां, किस चिट्ठे में नयी प्रविष्टि आयी है। इसके अतिरिक्त इनका कोई और कार्य नहीं है। चिट्ठी में क्या है, उसका दायित्व उस चिट्ठाकार का है जिसने उसे लिखा है इन तीनो का नहीं। आप उस चिट्ठी को पढ़ना चाहें तो पढ़े, न पढ़ना चाहें तो न पढ़े।
  • कभी कभी चिट्ठियों पर आयी टिप्पणियों से, कई बार परिचर्चा और गूगल हिन्दी समूह पर चर्चा के दौरान चिट्ठाकार बन्धुवों के विचारों से लगा कि वे समझते हैं कि नारद के बिना मोक्ष नहीं।

हिन्दी चिट्टाजगत में, मैं बहुतों के विचारों से सहमत रहता हूं और कुछ से नहीं। सहमत रहने वाले चिट्ठाकारों में अनूप जी भी हैं। मुझे उनके विचार सुसंगत और संयत लगते हैं। मेरे विचार से, वे हिन्दी चिट्ठाकारिता को मोक्ष दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। मैं नहीं जानता कि उनका नारद के प्रबन्ध तंत्र से वैसा संबन्ध है जैसा सृजन शिल्पी जी सोचते हैं या फिर कुछ और। वे नारद के बारे में गलतफहमी को टिप्पणी द्वारा चिट्ठाचर्चा पर 'आई एम लविंग इट' चिट्ठी पर यह कहते हुऐ दूर करते हैं कि,
'क्या नारद पर कोई चिट्ठा रजिस्टर किए बगैर, दुनिया उसके बारे मे जान पाएगी? यह ऐंठ ठीक नहीं है। यह मत भूलो कि ब्लाग्स हैं तो नारद है। यह नहीं कि नारद था इसलिये ब्लाग्स लिखने लगे लोग! अपनी तुरही खुद बजाने से बचना चाहिये हम को।'

मेरे विचार हम सब चिट्ठाकार अपना मोक्ष स्वयं ढूढ़ेगें न कि कोई और। हमें मोक्ष मिलेगा कि नहीं, यह तो अन्तरजाल ही जाने पर जहां तक हिन्दी चिट्टाकारिता के मोक्ष की बात है वह शायद यह तीनो (नारद, हिन्दी बलॉग्स डॉट कॉम, हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट) या इस तरह के अन्य फीड एग्रेगेटर मिलकर भी न दिलवा पायें। यह तो हिन्दी चिट्टाकारिता रॉकेट के पहले चरण के इंजिन हैं। यह केवल हिन्दी को उन्मुक्त आकाश तक ले जायेंगे। इनका काम तो हिन्दी को अंतरजाल पर लाना है। मेरे विचार से इस समय यही हमारा उद्देश्य भी होना चाहिये और विवादों से बचना चाहिये।

इस समय, यही काम अलग तरीके से चिट्ठाचर्चा भी करती है जिसमें इस बात पर जोर रहता है कि ज्यादा से ज्यादा चिट्ठों की चर्चा की जाय। यही कार्य संजय जी, समीर जी, जीतेन्द्र जी तथा और कई अन्य भी, ज्यादा से ज्यादा चिट्ठों पर टिप्पणी कर के करते हैं ताकि लोगों का उत्साह बना रहे। यही कारण है कि हम सब नये चिट्टाकार बन्धुवों का जोर-शोर से स्वागत करते हैं।

इसमें शक नहीं कि हम अपने उद्देश्य में सफल होंगे और ज्लद ही ज्लद हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ती जायगी। वह दिन दूर नहीं जब प्रतिदिन १००० से अधिक नयी प्रविष्टियां होने लगेंगी। उस समय हिन्दी चिट्टाकारिता के रॉकेट को गन्तव्य (मोक्ष) पर पहुंचने के लिये दूसरे चरण के इंजिन की आवश्यकता पड़ेगी तब इन तीनो विकल्पों से बेहतर विकल्प, वह वेबसाइटें होंगी जो कि अलग अलग श्रेणियों में हिन्दी की अच्छी प्रविष्टियों के बारे में बतायेंगी, जैसे कि देसी पंडित, हिन्दी जगत, कैफै हिन्दी और कई अन्य। इस तरह की वेबसाइटें अभी उतनी लोकप्रिय नहीं हैं पर हिन्दी चिट्ठाकारिता की नैया पार लगाने पर इनकी निष्पक्षता, इनका कौशल, इनकी दूरदर्शिता ही काम करेगी। मुझे पूरा विश्वास है कि यह, बाखूबी से, अपना काम करेंगी।

मुझे इस तरह की वेबसाइट में, कैफे हिन्दी पसन्द आती है। मैं इसकी भी RSS फीड अपने कंप्यूटर में लेता हूं। इसको पसन्द करने के कई कारण हैं
  • इसमें कई श्रेणियां हैं और सबके लिये अलग अलग RSS फीड हैं।
  • प्रविष्टियों के बारे में, मुझे इनका चयन अच्छा लगता है। इसमें न केवल मेरी पर सारे चिट्ठाकार बन्धुवों की उम्दा चिट्ठियां हैं।
  • कैफे हिन्दी पर चिट्ठियां अपने मूल चिट्ठों से ज्यादा सुन्दर दिखती हैं और इसका कारण है कि उनके साथ कोई न कोई सुन्दर चित्र होता है। मैं अक्सर इन पर इन चित्रों को देखने जाता हूं कि सम्पादक ने किस तरह से उस चिट्टी के मर्म को समझ कर चित्र में उतारा है।

कुछ दिन पहले, मैंने 'हैकरगॉचिस् और जिम्प' नामक चिट्टी लिखी। संजय जी ने टिप्पणी कर कहा,
'जब सोफ्टवेर है ही तो अपना एक चित्र बना ही डालो।'

मुझे उल्लू पक्षी पसन्द है। मैंने बचपन में पाला था पर उसके खाने का प्रबन्ध ठीक से न हो पाने के कारण छोड़ना पड़ा। मैंने सबसे पहले उल्लू चित्र को अपने चिट्ठे पर डाला। नितिन जी यह पसन्द नहीं आया इसलिये हटा दिया। उसके बाद एम सी ऐशर के एक चित्र को डाला। ऐशर मेरे सबसे प्रिय चित्रकार हैं। इस समय चल रही श्रंखला के बाद उन पर लिखूंगा । नितिन जी की टिप्पणी से मुझे यह भी लगने लगा था कि मैं अपना
चित्र डालूं। मैंने कैफे हिन्दी के प्रबन्धक मैथली जी से पूछा कि वे किस प्रकार चित्र बना कर चिट्ठियों में डालते हैं। उन्होने न केवल यह मुझे बताया पर हम दोनो का कार्टून चित्र भी बनाने की भी बात की।

मेरे तो मन की मुराद पूरी हो गयी। मैंने उन्हें कोई चित्र तो नहीं भेजा पर प्रार्थना की वे हम दोनो के बारे में, हमारे चिट्टों के द्वारा, टेलीग्राफ अखबार में निकले लेख के आधार पर, या मुन्ने की मां के द्वारा टेलीग्राफ लेख पर स्पष्टीकरण से, जो भी हमारी तस्वीर उनके मन में उभरती हो उससे चित्र बना दें। उन्होने इस आधार पर यह चित्र बनाया है। आज से यही हमारी पहचान है।

यह चित्र, मैथली जी की कल्पना में हम हैं। यह चित्र हमसे कितना मिलता हैः बहुत कुछ पर इसमें हम,
  • अपनी उम्र से कम लगते हैं,
  • कुछ ज्यादा सुन्दर, कुछ ज्यादा स्मार्ट दिखते हैं,
  • कुछ ज्यादा बुद्धिमान लग रहें हैं।
चित्र तो ऐसे ही होते हैं :-) वास्तविक जीवन में न सही, चलिये किसी कि कल्पना में ही सही, हम हीरो तो लगें।

मैथली जी, आपको इस उपहार के लिये धन्यवाद हमारा आभार।

8 comments:

  1. मोक्ष तथा उन्मुक्त की छवि की खोज शायद ही कभी पूरी हो :)

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  2. Anonymous10:27 am

    उन्मुक्त जी; कैफेहिन्दी को पसंद करने के लिये धन्यवाद एवं आभार. हम हमेशा कोशिश करते रहेंगें कि कैफेहिन्दी आपने मानकों को छूने की कोशिश करती रहे.
    आप जिस मैथिली के बारे में कह रहे हैं क्या वो मैं ही हूं? (बड़ा भला भला सा लग रहा है.)

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  3. इतनी सारी जानकारी के लिए धन्यवाद । चलिये कुछ ही सही।

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  4. मैं कुछ सीरियलाना अंदाज में कहूं तो आप दोनों की जोड़ी लग रही है मि. बीन और रजनी की!

    बहुत बढ़िया. मैथिली जी को धन्यवाद. मुझे अगर चित्र उकेरने आते तो मैं भी आप दोनों के चित्र कुछ ऐसे ही बनाता :)

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  5. Anonymous12:37 pm

    To chitra ka shukriya CafeHindi ki taarif se diya ja raha hai, badhiya :) PR ke gun koi Maithili ji aur unke putra Dhurvirodhi se sikhe.

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  6. मेरा तो कई महीनों से (जब से नारद का पुनर्जन्म हुआ था) यही मानना है कि हम सभी, जो भी लगातार चिट्ठा पढ़ते है, एक दिन अपने-अपने मोक्ष की व्यवस्था स्वयं करेंगे। कोई भी Ready Made तंत्र सभी के लिये कारगर नहीँ रहेगा

    यह होगा तब जब असंख्य पोस्ट प्रतिदिन होंगी, मतलब कि तब जबकि हिन्दी चिट्ठाकारी अपने शैशव काल से ऊपर उठेगी, जब हम सभी अधिकतर चिट्ठाकारों के नाम भी याद नहीं रख सकेंगे, जब हमें आपस में बहस के लिये भी समय नहीँ होगा। नहीँ-नहीँ, होगा - परंतु बस 2-4 लोगों तक, अनेकों को तो पता भी न चलेगा कि कहीँ-कोई बहस हो रही है।

    कुल मिलाकर मतलब यह कि हर एक के लिये, पूरे चिट्ठा-जगत पर नज़र रखना असम्भव होगा अओर समी अपने अपने "मोक्ष" के साधान स्वयं बनायेंगे! न सिर्फ़ एग्रीगेटर से, बल्कि अपने व्यक्तिगत एग्रीगेटर द्वारा।

    आपने एक और बहुत सही बात लिखी कि जो नारद को प्रथम चरण के रॉकेट की सटीक उपमा दी। जहाँ मैं अभी हिन्दी चिट्ठाकारी का शैशव-काल मानता हूँ वहाँ इस प्रथम चरण के राकेट को शिशु के लिये पिता के समकक्ष देखा जा सकता है।

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  7. उन्मुक्तजी आपकी और मुन्ने की मां जी की फोटॊ (काल्पनिक ही सही)देखकर अच्छा लगा!कैफ़े हिंदी बहुत अच्छी साइट है!इसका और प्रचार होगा तो यह और लोकप्रिय होगी। मैथिलीजी इसके लिये बधाई के पात्र हैं। आपने हमारी सोच के बारे में कुछ अच्छा इसके लिये शुक्रिया। :) मुझे तकनीकी जानकारी नहीं है लेकिन आप कह रहे हैं तो मानने में कोई हर्ज नहीं है। नारद की मुख्य भूमिका केवल एक 'एग्रिगेटर' की है। इसके अलावा इसका और कोई रोल नहीं है यह बात जितनी जल्द लोगों को समझ में आ जाये उतना अच्छा। मेरे ख्याल में नारद के साथ लोगों की भावनायें जुड़ी रहीं इसलिये लोग इसकी भूमिका के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशील रहे। हालांकि नारद ने हिंदी ब्लाग जगत के प्रचार-प्रसार के लिये बहुत उल्लेखनीय भूमिका अदा की और आगे भी निकट भविष्य में करता रहेगा लेकिन यह सच है कि ब्लाग हैं तो नारद( या अन्य एग्रिगेटर) हैं। बढ़ते ब्लागों के साथ इनकी भूमिका में बदलाव आते जायेंगे। क्या, कैसे यह समय बतायेगा। :)

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  8. आपकी और उपर टिपिण्णियों में विद्व जनों के द्वारा कही गयी समस्त बातों से मैं पूर्णतः सहमत हूँ. इस तरह के विचार विमर्श का समय आ गया है.

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आपके विचारों का स्वागत है।