Tuesday, July 03, 2007

विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में: आज की दुर्गा

(इस बार चर्चा का विषय है वैवाहिक सम्बन्धी अपराध। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)

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लैंगिक न्याय से सम्बन्धित, सबसे ज्यादा विवादास्पद विषय दण्ड न्याय का है। यहां पर न केवल लैंगिक न्याय को देखना है पर उसका अभियुक्त के अधिकारों के साथ ताल- मेल भी बैठाना है।

इसके पहले कि हम इस विषय पर हम नजर डालें, भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) में विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय की दो धाराओं -
धारा ४९७ (Adultery) और ४९८ (Enticing or taking away or detaining with criminal intent a married woman) - की चर्चा करना ठीक रहेगा। पर इन्हीं दो को क्यों?

विवाह सम्बन्धी अपराध, भारतीय दण्ड संहिता के २०वें अध्याय में हैं। इस अध्याय में छः धारायें हैं पर इन दो धारओं के बारे में, भारत सरकार के द्वारा गठित, राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन्हें यह कहते हुऐ हटाने की मांग की थी कि,
  • यह धारायें १९वीं शताब्दी की मान्यता को बनाये रखती हैं;
  • इन मान्यताओं में पत्नी को पति की सम्पत्ति माना जाता था; और
  • यह धारायें पत्नियों को पति से न्याय दिलाने में मुश्किल पैदा करती हैं।

गलत आचरण और कानून में अन्तर
आचरण कानूनी तौर पर गलत हो सकता है और अपराध भी, पर इन पर इन दोनों में अंतर है। यदि कोई आचरण, कानून के विरूद्घ है तो वह कानूनी तौर पर गलत आचरण है। सारे कानूनी तौर पर गलत आचरण के लिये सजा नहीं है और जिनके लिये है वे अपराध या फिर जुर्म कहलाते हैं। अर्थात हर अपराध, कानूनी तौर पर गलत आचरण होता है पर हर गलत आचरण अपराध नहीं होता है।

कानूनी तौर पर गलत आचरण - यदि वह अपराध न भी हो तो भी - के व्यावहारिक परिणाम (civil consequences) हो सकते हैं।

धारा ४९७ - भारतीय दण्ड संहिता
किसी विवाहित व्यक्ति के लिए अपने पती/पत्नी की अनुमति के बिना, किसी अन्य व्यक्ति के साथ संभोग करना कानूनी तौर पर गलत आचरण है पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा ४९७ केवल उस पुरूष को दण्डित करती है जो कि किसी विवाहित महिला के साथ उसके पति की अनुमति के बिना संभोग करता है। यहाँ यह आचरण विवाहित महिला के लिए अपराध नहीं है।

यदि कोई विवाहित पुरूष किसी अविवाहित महिला के साथ अपनी पत्नी की अनुमति के बिना संभोग करता है तो यह अपराध नहीं है हालांकि कि यह कानूनी तौर पर गलत आचरण है।

जैसा मैंने पहले बताया है कि कानूनी तौर पर गलत आचरण के व्यावहारिक परिणाम हो सकते हैं। उपर बताये गये, कानूनी तौर पर गलत आचरण (जो अपराध नहीं हैं) पर तलाक हो सकता है।

धारा ४९७ - भारतीय दण्ड संहिता
इसी तरह से भारतीय दण्ड संहिता की धारा ४९८, विवाहित महिला को गलत इरादे से संभोग करने के लिये भगा ले जाने को, अपराध करार करती है।

दण्ड प्रक्रिया की धारा १९८ (२) के अंतर्गत, इन दोनों अपराधों की संज्ञान भी खास परिस्थिति में ही लिया जा सकता है। अथार्त सब लोग इस बारे में शिकायत नहीं कर सकते हैं।

दुनिया के बहुत सारे देशों में इस तरह के आचरण को अपराधों की श्रेणी में नहीं रखा गया है पर तलाक लिया जा सकता है।

इन धाराओं की वैधता
यह दोनों धाराओं में महिलाओं से पक्षपात परिलक्षित होता है। इन दोनों धाराओं की वैधता को उच्चतम न्यायालय में Alamgir Vs. State of Biihar (१९५९) में चुनौती दी गयी थी। न्यायालय ने माना कि,
‘The provisions of S. 498 like those of S 497 are intended to protect the rights of the husband and not those of the wife.

The policy underlying the provisions of S. 498 may no doubt sound inconsistent with the modern notions of the status of women and of the mutual rights and obligation under marriage.'
'[It] is a question of policy with which courts are not concerned.'

धारा ४९८, के प्राविधान धारा ४९७ की तरह पतियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये है न कि पत्नियों के अधिकारों के लिये।
...
आज के समय में धारा ४९८ की नीति, महिलाओं की सामाजिक स्थिति एवं शादी के आपसी अधिकारों व कर्तव्य से असंगत है।

...
यह नीति के सवाल हैं और इनका न्यायालय से कोई सम्बन्ध नहीं है।

यह सब स्वीकारने के बाद भी, न्यायालय ने, इन धाराओं को वैध मान लिया। बाद के फैसलों में भी यही मत रहा। अब तो शायद, संसद को ही कुछ करना पड़े या क्या मालुम कोई महिला न्यायमूर्ति आये - वही कुछ करे। महिला न्यायमूर्तिं ही क्यों?

यह भी एक रोचक विषय है कि,
  • न्यायमूर्तीगण फैसला किस प्रकार से देते हैं;
  • महत्वपूर्ण फेसला देते समय, वे क्या देखते हैं;
  • किस कारण से, उनके बीच मतभेद हो जाता है; और
  • महत्वपूर्ण फैसला देते समय, वे किन कारणों पर विचार करते हैं?

इस बारे में सबसे प्रसिद्ध पुस्तक अमरीका के
न्यायमूर्ति कारडोज़ो ने 'The Nature of Judicial Prcess' (१९२१) के नाम से लिखी है। यह वास्तव में येल विश्वविद्यालय के सामने दिये गये 'स्टोरस् भाषण' (Storrs Lectures) हैं। यह आसान विषय नहीं है, लम्बा चलने वाला है - समय रहा तो इस पर भी लिखूंगा पर अभी तो यह श्रंखला समाप्त करनी है। इसमें अगली बार चर्चा रहेगी - यौन अपराधों के बारे में। इसमें हम देखेंगे कि किस तरह से इनसे संबन्धित कानून में परिवर्तन आया।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।। अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियम।। विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में

6 comments:

  1. सम्यक विषय पर अच्छा विश्लेषण!

    (किन्तु शीर्षक व्याकरण की दृष्टि से गलत है इसलिये अटपटा लग रहा है। ये बेहतर होता - "विवाह संबन्धी अपराध")

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  2. अनुनाद जी,
    आप ठीक कह रहे हैं। मैंने शीर्षक ठीक कर लिया है।
    धन्यवाद

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  3. बहुत बढ़िया विश्लेषण किया है आपने, उन्मुक्त जी. बधाई.

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  4. Anonymous6:41 am

    You have description about reading your blog in other script using Bhomiyo.

    Actually you can now use X-Literation proxy URL. e.g.
    http://bhomiyo.com/en.xliterate/unmukt-hindi.blogspot.com

    Let me know if you have any questions.

    -Piyush

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  5. janab aapki salah par amal kauga ...aapka post yakenan aakarsak hai................

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  6. aakarshak post hai ....unmukt ji aapki salah par pura amal hoga.........

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