Sunday, March 09, 2008

जब एक घन्टा, एक मिनट लगता है: ई-पाती

पापा
कुछ दिन पहले हमारे यहां एक वैज्ञानिक आये थे। वे कह रह थे कि विषय पर कितनी प्रगति हुई है उससे उस विषय के महत्व का पता चलता है। उनके विचार से, कुछ विषय दूसरे विषयों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। मुझे तो वह बड़बोले लगे।

अरस्तू, ग्रीक दार्शनिक (३८४ ईसा पूर्व - ३२२ ईसा पूर्व)

उन्हें अरस्तु के दर्शन (Aristotle's philosophy) और श्यूबर्ट के संगीत (Schubert's music) का
अच्छा ज्ञान था। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं उन्हें कूप-मंडूक ही समझती।

श्यूबर्ट, ऑस्ट्रियन संगीतकार (१३.१.१७९७ - १९.११.१८२८)

उनसे लोगों ने कुछ खास सवाल नहीं पूछे पर मुझसे नहीं रहा गया। मैंने उनसे पूछा,
'जिस विषय पर आप काम कर रहे हैं, उस पर पिछले बीस साल में कोई प्रगति नहीं हुई है तो क्या वह विषय महत्वपूर्ण नहीं है?'
उन्होने इस सवाल का जवाब नहीं दिया, बस मुस्करा कर रह गये।

मुझे आश्चर्य हुआ कि वे भाषण के बाद मेरे पास आये और बहुत देर तक मुझसे अपने भाषण के बारे में बात करते रहे। उन्हें शक था कि श्रोता, उन्हें समझ पाये कि नहीं। उन्होने मुझसे बहुत अच्छी तरह से बात की।

यह ई-मेल बहुत लम्बी हो गयी। आपको बहुत बोर किया। अब समाप्त करती हूं।

अपना और मम्मा का ख्याल रखियेगा।


बिटिया रानी
मुझे तो तुम्हारी ई-मेल बहुत छोटी लगती है। यह कुछ उसी तरह की बात है जब आइंस्टाइन (Albert Einstein) ने अपनी सेक्रेटेरी को सापेक्षिता का सिद्धान्त (Theory of Relativity) कुछ इस प्रकार से समझाया था,

'When you sit on a hot stove, you feel one minute is one hour but when you sit next to your sweetheart, you feel one hour is one minute.'
जब आप एक गर्म तवे पर बैठते हैं तब आपको एक मिनट एक घन्टा लगता है

तुम्हारी ई-मेल, प्रिय जन के पास बैठना सा है।
पर जब आप अपने प्रिय जन के पास बैठते हैं तो एक घन्टा एक मिनट लगता है।
मुझे तो तुम्हारी ई-मेल एक प्रिय जन के पास बैठ कर बात करना सा लगता है। जितनी भी बड़ी क्यों न हो, छोटी ही लगती है। इसका हमेशा इंतजार रहता है।
१४ साल की उम्र में अलबर्ट आइंस्टाइन (१४.३.१८७९ - ८.४.१९५५)

मुझे तुम्हारी ई-मेल से कुछ बातें याद आयीं।
पहली: अपने श्रोताओं के स्तर को ध्यान में रख कर बोलो
भाषा भी हमेशा अपने श्रोताओं के स्तर की होनी चाहिये। कई वक्ता जानबूझ कर कठिन शब्दों का प्रयोग करते हैं वे सोचते हैं कि इससे उनके श्रोतागण प्रभावित होते हैं पर इसका एकदम उल्टा असर होता है। मैं इसलिये अकसर साधारण हिन्दी में बोलना पसन्द करता हूं।

अपने देश में कई वक्ता इसलिये अंग्रेजी में बोलते हैं - सोचते हैं लोग प्रभावित होंगे। श्रोता यह तो समझ सकते हैं कि वक्ता को अंग्रेजी बोलना आता है पर मुझे इसमें शक है कि क्या श्रोता, वक्ता को ठीक से समझ पाते हैं। हां, जहां लोगों को हिन्दी न समझ में आती हो वहां बात दूसरी है।

दूसरी: बोलने (लिखने) के पहले, विषय को ठीक तरह से समझो
मुझे विद्यार्थी जीवन में वी. के. कृष्णमेनन और एम. सी. सीतलवाद दोनो को कश्मीर समस्या पर सुनने का मौका मिला। कृष्णमेनन, रक्षा मंत्री और सीतलवाद महा- न्यायविद रह चुके हैं। मुझे याद नहीं कि वे, उस समय, इन पदों पर थे अथवा नहीं। कृष्णमेनन लगभग घन्टा भर बोले। वे बातों को घुमा कर, गोल गोल चक्कर में बोल रहे थे। कुछ समझ में नहीं आया कि वे क्या कहना चाहते हैं। सीतलवाद ने लगभग पन्द्रह मिनट अपनी बात पूरी की - अंग्रेजी सरल थी, समझ में आयी, किसी बात को दोहराया नहीं - कश्मीर समस्या एकदम ठीक से समझ में आयी।

यह ध्यान देने वाली बात है कि वही व्यक्ति अपनी बात सपष्ट भाषा में रख सकता है जो विषय को ठीक प्रकार से समझता हो। यदि वक्ता (लेखक) को विषय की पकड़ नहीं तो वह बस गोल-गोल चक्करों में घूमता रहेगा और समय बर्बाद करेगा।

तीसरी: लोग, अपनी कमियों को छुपाने के लिये सवाल नहीं पूछते हैं
प्रायः लोग अक्सर सवाल इसलिये नहीं पूछते हैं कि कहीं और लोग उनके सवाल पूछने के कारण उन्हें बेवकूफ न समझें। वास्तव में, बेवकूफ ही सवाल नहीं पूछते। प्रसांगिक सवाल पूछने पर वक्ता को अच्छा ही लगता है। तुम्हारे सवाल से उस वैज्ञानिक को स्पष्ट हो गया होगा कि या तो वह स्वयं महत्वहीन विषय पर काम कर रहा था या फिर गलत था। शायद उसे अपने तर्क की गलती समझ में आयी, इसीलिये उसने तुमसे बात करना पसन्द किया।

चौथी: महत्वपूर्ण, वे अनुत्तरित विषय हैं - जिसमें तुम मदद कर सको
मेरे विचार से वह वैज्ञानिक सही बात नहीं कह रहे थे। यदि आईंस्टाइन पिछली शताब्दी के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे तो रिचर्ड फाइनमेन (Richard Feynman) उसके दूसरे भाग के।

एक बार एक विद्यार्थी ने फाइनमेन को पत्र लिखा था कि वह साधारण से विषय पर काम कर कर रहा है। इस पत्र ने फाइनमेन को दुखी किया। उन्हें लगा कि उसके अध्यापक ने उसे ठीक से नहीं बताया कि क्या महत्वपूर्ण है और क्या नहीं है। फाइनमेन ने उसे लिखा,

'विज्ञान में वह सवाल महत्वपूर्ण है जिसका हल अभी तक न निकला हो और जिसके हल ढ़ूढ़ने में तुम कुछ सहायता कर सकते हो।
तुम पहले छोटी छोटी और आसान सवालों का हल खोजो जो कि आसानी से मिल सकता है। तुम्हें सफलता पर आनन्द आयेगा। तुम अपने आप को इस आनन्द से मत वंचित रखो क्योंकि तुम्हें गलतफहमी है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है।
मैंने स्वयं बहुत सारे ऐसे सवालों पर कार्य किया है जो कि साधारण थे पर मुझे उनको करने में आनन्द आया क्योंकि मैं उन पर कुछ कार्य कर सका।
तुम उस किसी भी अनुरत्तित सवाल पर काम करो चाहे वह किसी विषय का क्यों न हो जिसका हल न निकला हो और तुम उस सवाल के हल निकालने कुछ मदद कर सकते हो। कोई भी सवाल छोटा या बेकार नहीं होता यदि तुम उसका हल ढ़ूढ़ने में कुछ कर सकते हो।'
फाइनमेन की पुत्री ने उनके पत्रों को एक पुस्तक के रूप में 'Don't you have time to think' नाम से प्रकाशित किया है। इस पुस्तक की समीक्षा, मैंने कड़ियों में अपने उन्मुक्त चिट्ठे की फिर पर फिर उसे संकलित कर लेख चिट्ठे पर की है। तुम यदि यह कड़ी पढ़ना चाहो तो यहां या फिर पूरी समीक्षा संकलित रूप में पढ़ना चाहो तो यहां पढ़ सकती हो।

आज का दिन न केवल तुम्हारे लिये, पर हमारे लिये भी खास है। आज के दिन ही तो, एक प्यारी सी परी, इस दुनिया में आयी थी।

लिखना कि परी ने आज क्या किया, कहां गयी, या माल्टा के सपनों में खोयी रही या फिर न्यूयॉर्क की परेशानियों में।
पापा

ई-पाती
ओपेन सोर्स की पाती - बिटिया के नाम।। पापा, क्या आप उलझन में हैं।। बिटिया रानी, जैसी दुनिया चाहो, वैसा स्वयं बनो।। जब एक घन्टा, एक मिनट लगता है।।

इस चिट्ठी के चित्र विकीपीडिया से है और ग्नू स्वतंत्र अनुमति पत्र की शर्तों के अन्तर्गत प्रकाशित किये गये हैं।

यह पोस्ट नयी पीढ़ी के साथ जीवन शैली को समझने के बारे में है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

yah post nayee peedheer ke sath jeevan shailee samjhane ke baare men hai. yah {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is part understanding life style with coming generation. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.


सांकेतिक शब्द
Albert Einstein,
culture, Family, life, Life, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन दर्शन, जी भर कर जियो,

12 comments:

  1. Anonymous7:23 pm

    फ़िर एक बार कितनी सरलता से आपने समझाया है. ओह तो क्या आज बधाई देने का दिन है ? :-)

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  2. अच्छी लगी पोस्ट।

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  3. बहुत बढ़िया पोस्ट. अच्छा लगा पढ़ कर, समझ कर.

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  4. बहुत बढ़िया पोस्ट...अच्छा लगा पढ़ कर.

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  5. लाजवाब पोस्ट। मेरा तो रिवीजन हो गया।

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  6. उम्दा पोस्ट! परी और उसके माता-पिता को जन्मदिन की शुभकामनायें!

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  7. बिटिया रानी को मेरी और से भी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं -आपके ये पत्र 'पिता के पत्र पुत्री के नाम '[नेहरू-इंदिरा] की याद दिलाते हैं .

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  8. अपनी बात को कहने का आपका सलीका लाजवाब है। मैं आपके इस हुनर को सलाम करता हूँ।

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  9. पिता पुत्री की पाती पढ़कर बहुत अच्छा लगता है. बिटिया को हमारा खूब सारा प्यार व आशीर्वाद.

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  10. ऐसे ही किसी पोस्‍ट का शायद मुझे इंतजार था.

    धन्‍यवाद...और आपकी बिटिया को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं.

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  11. Anonymous11:16 am

    परी और उसके माता पिता को बधाई और शुभकामनाएँ.....बाकी तो सब कुछ सीखने लायक है ही पोस्ट मे. भाषण के बारे मे उम्दा बातें बताई आपने..

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  12. बहुत अच्छी पोस्ट!

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आपके विचारों का स्वागत है।