Thursday, June 12, 2008

लीसा, अपने मन की बात सुनो: ई-पाती

लीसा से मेरी मुलाकात वियाना में कॉन्वेंट में हुई थी। मैंने उसकी आप सब से मुलाकात, अपनी चिट्ठी 'एक प्यारी सी लड़की - लीसा' पर करवायी थी और वायदा किया था कि उसके और मेरे बीच बीच ई-मेल की चर्चा करूंगा। यह चिट्ठी उसमें से एक है।



गुटन टॉग(Guten Tag!) (नमस्ते)
आपकी भेजी दो पुस्तकें - फैंटास्टिक वॉयेज (Fantastic Voyage) एवं - डबल हेलिक्स (Double Helix) मिली।

यदि आप इन पुस्तकों की समीक्षाओं का हिन्दी में पॉडकास्ट सुनना चाहते हैं तो यहां और यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को सुनने के लिये दहिने तरफ तीसरा विज़िट देखें।
मैं इन्हें जल्द ही पढ़ कर इनके बारे में आपको ईमेल करूंगी और इन पुस्तकों को मैं अपने मित्रों को भी पढ़ने को दूंगी।

आपने लिखा है कि आपको कॉन्वेन्ट में रह कर अच्छा लगा, मन में शान्ति आयी। मुझे भी वहां जा कर बहुत अच्छा लगता है इसलिये, मैं वहां जाती हूं पर मेरे मित्रों को वहां अच्छा नहीं लगता है। वे मेरे साथ वहां नही जाते हैं।

सिस्टरों का जीवन कठिन पर प्रेणनादायक है। मुझे ईश्वर के पास रहना में आनन्द आता है।इसलिये मैं सोचती हूं कि नन बन जाऊं, फिर लगता है कि अभी पढ़ाई करूं। आप को क्या लगता है कि मुझे क्या करना चाहिये।

क्या आपने बर्फ देखी है। इस बार आप दिसंबर के अन्त या फिर जनवरी के शुरू में आईये उस समय सब तरफ बर्फ ही बर्फ रहती है और बहुत अच्छा लगता है।
लीसा


लीसा, तुम्हारी प्यारी सी ई-मेल मिली।

ईसा से ६ (कुछ के अनुसार ४) सदी पहले, लाउज़ा (Lao tse या Laozi) नाम के चीनी दार्शनिक हुए हैं।
उनका कहना था,
चीन में लाओज़ि की मूर्ति - विकिपीडिया से
'Always we hope someone else has the answer. Some other place will be better, some other time it will all turn out. This is it. No one else has the answer. No other place will be better, and it has already turned out. At the centre of your being you have the answer; you know who you are and you know what you want. There is no need to run outside for better seeing, nor to peer from a window. Rather abide at the centre of your being; for the more you leave it the less you learn. Search your heart and see the way to do is to be.'

मुझे दर्शन कम समझ में आता है। मैं उनकी बात को इस तरह से समझता हूं,
'Search your heart and be what it wants you to be'
अपने दिल को टटोलो, और वह करो जो यह तुमको बताये।
अपने मन की बात सुनो।
इसी संदर्भ में, मैं तुम्हें, एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक रिचर्ड फाइनमेन (Richard Feynman) का एक किस्सा बताता हूं।

फाइनमेन भौतिक शास्त्र में नोबल पुरुस्कार विजेता थे। वे जीवन्त थे और अक्सर मौज मस्ती के लिये काम करते थे। मौज मस्ती मे ही उन्होने उस विषय पर काम किया जिस पर उन्हे नोबेल पुरुस्कार मिला। यह इस प्रकार है।

रिचर्ड फाइनमेन ने कुछ समय कॉरनेल विश्वविद्यालय (Cornell University) में पढ़ाया। वे बाद में वे कैलटेक (California Institute of Technology) चले गये। एक दिन जब वे कॉरनेल के अल्पाहार गृह में बैठे थे। वहां एक विद्यार्थी ने सफेद रंग की प्लेट को फेंका। प्लेट के बीच में कॉरनेल का लाल रंग का चिन्ह था। प्लेट डगमगा भी रही थी और घूम भी रही थी। यह अजीब नज़ारा था। फाइनमेन इसके डगमगाने और घूमने और के बीच में सम्बन्ध ढ़ूढ़ने लगे। इसमे काफी मुश्किल गणित के समीकरण लगते थे। इसमें उनका बहुत समय लगा। उन्होंने पाया कि दोनो मे २:१ का सम्बन्ध है। उनके साथी उनसे पूछते थे कि

'क्या यह महत्वपूर्ण है? क्यों अपना समय इसमें बेकार कर रहे हो?'
फाइनमेन का जवाब था,
'इसका कोई महत्व नहीं है मैं यह सब मौज मस्ती के लिये कर रहा हूं।'
कुछ समय बाद वे जब एलेक्ट्रॉन के घूमने के बारे में शोध करने लगे तो उन्हें कॉरनेल की डगमगाती और घूमती प्लेट में लगी गणित फिर से याद आने लगी। इसी ने उस सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण उन्हें नोबेल पुरूस्कार मिला।

जीवन में जरूरी है कि वह सब भी किया जाय जो दिल कहता है, चाहे वह केवल मौज मस्ती के लिये हो और उस समय, उसका कोई महत्व न लगता हो।

जिसमें तुम्हें आनन्द आये वही जीवन में करो क्योंकि यही काम तुम सबसे अच्छा कर सकती हो। यदि वह न कर सको तो जो भी काम करो, उसमें आनन्द ढ़ूढ़ने का प्रयत्न करो। मुझे विज्ञान के साथ प्रकृति से नियम ढ़ूढ़ने में मजा आता था पर मैं यह न कर सका। अब जो भी काम करता हूं चाहे वह चिट्ठा लिखना ही क्यों न हो - उसी में आनन्द प्राप्त करने का प्रयत्न करता हूं।

लीसा, तुम अभी छोटी हो। तुम्हारे लिये, इस समय अपने जीवन के बारे में तय कर लेना ठीक नहीं। तुम ठीक सोचती हो - तुम्हें अभी पढ़ना चाहिये। पढ़ाई पूरी करते करते तुम अपने दिल की बात जान सकोगी कि वह क्या कहता है। फिर उसी के मुताबिक करना।

तुम्हें पुस्तकें मिली - जान कर अच्छा लगा। पुस्तकों के बारे में, तुम्हारी ईमेल का इंतजार रहेगा।

मुझे ठंड अच्छी नहीं लगती, मेरा गला बहुत जल्दी खराब हो जाता है। इसलिये दिसंबर में तो नहीं पर, गर्मी में एक बार फिर आउंगा क्योंकि मुझे वियाना अच्छा लगा। इस बार सॉल्सबर्ग और तुम्हारे शहर लिंज़ भी घूमने का प्रोग्राम रखूंगा और तुम्हारे द्वारा बनायी गयी चाय भी पियूंगा।
Auf Wiedersehen (ऑउफ वीडरसेहन) (नमस्ते, फिर मिलेंगे)


ई-पाती

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।: Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)
यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप -
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में - सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।


यह पोस्ट नयी पीढ़ी के साथ जीवन शैली को समझने के बारे में है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

yah post nayee peedheer ke sath jeevan shailee samjhane ke baare men hai. yah {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is part understanding life style with coming generation. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.


सांकेतिक शब्द
Albert Einstein,
culture, Family, life, Life, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन दर्शन, जी भर कर जियो,
Reblog this post [with Zemanta]

3 comments:

  1. रोचक।
    मुझे कोई लीसा़ नहीं मिली, पर आपकी पोस्ट पढ़ कर एक लीसा क्रियेट करने का मन हो रहा है जिसके माध्यम से अपने जीवन के ऑब्जर्वेशन्स एक किशोर वय व्यक्ति की फीक्वेन्सी पर बता सकूं।
    बहुत जमी यह पोस्ट।

    ReplyDelete
  2. बहुत रोचक. आनन्द आया पढ़कर.

    ReplyDelete
  3. पिता के पत्र पुत्री के नाम की परम्परा में ही एक अद्यतन पुष्प -उन्मुक्त जी, आपका यह पत्र व्यवहार अछा लगा .

    ReplyDelete

आपके विचारों का स्वागत है।