Monday, March 23, 2009

जीना इसी का नाम है

यह चिट्ठी मेरी श्रंखला 'हमने जानी है रिश्तों में रमती खुशबू' का पुनःलेख है। यह जीने के दर्शन के पहलुवों के बारे में चर्चा करती है।

मैंने कुछ समय पहले उन्मुक्त चिट्ठे पर 'हमने जानी है रिश्तों में रमती खुशबू' नाम की श्रंखला लिखी थी। इसकी अन्तिम कड़ी में इसका निष्कर्ष 'प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो' पर लिखा था,

'इसी चिट्ठी के साथ यह श्रंखला समाप्त होती है। अब कुछ नया शुरू करेंगे। फिर भी, मैं इस श्रंखला पर कभी एक पुनःलेख लिखना चाहूंगा,

  • इस श्रंखला का मेरे जीवन में क्या महत्व रहा;
  • इसने मेरे, मेरे परिवार, हम भाई बहनो के बीच कितनी खुशियां भरीं;
  • इसने मेरे मित्रों के जीवन में क्या बदलाव किया।
कब लिखूंगा, क्या मालुम - कह नहीं सकता। शायद कभी नहीं - हो सकता है ...'
आज उसी के बारे में।


यह श्रंखला मुझे, मेरे बचपन के जीवन की यादों में, मेरे उन्मुक्त दिनों के बीच ले गयी। वे दिन ही मेरे जीवन के सबसे सुखद दिन थे, चिन्ता रहित थे।



इस श्रंखला लिखते समय, एक शादी के समय, हम सब भाई, बहन, हमारे बेटे, बेटियां, बहुरानियां, दामाद सब साथ थे। हमने अपनी मां के साथ के, अपने बचपन के दिनों को फिर से जिया। उन चिट्ठियों को पढ़ने के बाद हम सब की आंखें नम थीं। हांलाकि हमारी आने वाली पीढ़ी उसे उतना नहीं समझ पायी जितना हम चाहते थे। समय बदल गया, समीकरण बदल गये, समाज का ढांचा बदल गया।

हम सब ने अपने सुखद दिनो की याद की, उनमें पुनः जिया। इस तरह की अनुभूति जीवन में प्रसन्नता एवं उत्साह भरता है और जीवन में कुछ नया करने को न केवल प्रेरित करता है पर इसकी हिम्मत भी देता है। इस श्रंखला ने वह सब न केवल मेरे साथ पर हमारे परिवार के साथ किया।


इस श्रंखला कि एक चिट्ठी शैली (Percy Bysshe Shelley) कि कविता 'To a Skylark' की एक पंक्ति 'Our sweetest songs are those that tell of saddest thought' है। इस कविता आप
Portrait of Percy Bysshe Shelley
यहां पढ़ सकते हैं।


मैं अंग्रेजी या हिन्दी साहित्य का कभी भी विद्यार्थी नहीं रहा। कुछ थोड़ा बहुत अपने आप ही पढ़ा है। शैली को भी तभी पढ़ा था। जब मैं इस विषय पर लिखने की सोचने लगा तो मैंने अपने एक मित्र उसकी पत्नी से फोन कर शैली की उस पंक्ति का मतलब समझाने को कहा। वे दोनो अंग्रेजी विषय पढ़ाते हैं। तीन दिन बाद मिलना तय हुआ। हम लोग रात में देर तक शैली और रुमानी कवियों के बारे में बात करते रहे।


कुछ देर बाद मेरे मित्र की पत्नी ने मुझ धन्यवाद दिया। मझे आश्चर्य हुआ और पूछा,
'तुम मुझे क्यों धन्यवाद दे रही हो? धन्यवाद तो, मुझे तुम लोगों को देना चाहिये।'
उसने कहा,
'हम दोनो अंग्रेजी पढ़ाते हैं। पढ़ाना, हमारे लिय उस दैनिक कार्य की तरह है जैसे दाल रोटी खाना, बस और कुछ नहीं। तुम्हारे द्वारा, शैली की उस पंक्ति का अर्थ पूछने पर, विद्यालय में, अन्य अध्यापक के साथ और विद्यार्थियों के बीच इस विषय पर चर्चा हुई और एक अच्छी बहस हुई कि उस पंक्ति का क्या अर्थ है। हमने तुम्हारे सवाल के जवाब पाने के लिये कई सुनहरे पल बहस में गुजारे। यह सब इसलिये हुआ कि तुम्हें शैली के बारे में उतनी उत्सुकता है। यह तुम्हें धन्यवाद है, हमें सुनहरे पल वापस देने का।'

मुझे गोवा यात्रा से हवाई जहाज पर लौटते समय, विमान परिचारिका की कही बात, 'अंकल तो बच्चे हैं', याद आ गयी। जीवन में जिज्ञासू बनना, उत्सुक रहना, कुतूहल जताना तो बच्चों का काम है।


शायद जिंदादिली ही उत्सुकता का दूसरा नाम है और यही है, जीवन, जीने का दर्शन।



मुझे मालुम है कि आप यहां यह सब पढ़ने नहीं आये थे आप तो आये थे किसी गाने को सुनने के लिये। तो सुन लिये अनाड़ी फिल्म के उस गाने को जिसके लिये आप यहां आये थे।
यह गाना मुकेश ने गाया है और इसे राज कपूर पर फिल्माया गया है।




इस गाने को पूर्वी बजाज ने भी संगीतमय किया आप इसका भी आनन्द लें।


'उन्मुक्त जी, यह पूर्वी बजाज कौन है?'
पूर्वी है नहीं पर थी। वह वहां चली गयी जहां से कोई वापस नहीं आता। उसके बारे में आप यहां पढ़ सकते हैं।
भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। मैं तुमसे प्यार करता हूं कहने के एक तरीका यह भी।। पुराने रिश्तों में नया-पन, नये रिश्तें बनाने से बेहतर है।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्ष - प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। पुनः लेख - जीना इसी का नाम है।।

इस चिट्ठी के दोनो चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से हैं।

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(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:
Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where 'Download' and there after name of the file is written.)

यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप -
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में - सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।






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culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो,




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11 comments:

  1. हमे इंतज़ार रहेगा उस समय का जब आप वो लिखेंगे

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. उन्मुक्त जी आपके लिखने का एक बहुत ही अलग style है जिसे पढ़ने मे भी एक अलग ही आनंद आता है ।

    पूर्वी बजाज द्वारा संगीतमय ये गीत भी पसंद आया ।

    पूर्वी की असमय मृत्यु के बारे मे पता चला था पर पूर्वी के बारे मे आज आपकी post से ही जाना ।

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  3. सच बोलूं तो मै तो आपको पढ़ने ही आया था, गाना सुनने नहीं! आपका हर लेख उन्मुक्त विचारों को जन्म देता है। मैं भी अब अंकल की कैटेगरी में आ गया हूँ और बच्चा ही बना रहना पसंद करता हूँ।

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  4. आज स्कूल से आकर जैसे ही ब्लोग्वाणी खोला,आपके चिठ्ठा "जीना इसी का नाम है " शीर्षक के साथ सामने आया बहुत दिनों से कुछ पढा नही था,सोचा पढूँ । जैसे-जैसे आगे बढी पहले रचना फ़िर पूर्वी का नाम आया ,संयोग देखिए-- माँ कल ही इंदौर आई हैं ,नासिक जाने के लिए ।पूर्वी का बजाया गाना सुना,माँ और भाभी के साथ !!! ,हम सब पुराने दिनों में चले गए !!!मैने पहले आप को पढा ही नही है ,आज इस पोस्ट के साथ जुडी सारी कडियाँ पढी---- बहुत अपना-सा लगा,हर पोस्ट पर कुछ कहना था ,मगर अपनी सारी यादों को मिलाकर कभी एक पोस्ट लिखुंगी ऐसा सोचा है ---"जीना इसी का नाम है" जैसे कई गीत हैं जो हरदम कानों में गूँजते रहते है, रिश्तों को हमने भी बहुत करीब से जाना है।

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  5. इस गान को सुनने के बाद पूर्वी बजाज के बारे में अनुमान कर सकते हैं। गीत की भावनाएँ तो बेमिसाल हैं ही। कोशिश करें शायद उन के अनुकूल बन सकें।

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  6. बहुत भावपूर्ण उन्मुक्त जी -दरअसल जीना तो बच्चों जैसा ही जीना है !
    परिचायिका =परिचारिका ?

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  7. वैसे हम तो पढने हो आये थे लेकिन पूर्वी को सुनकर बड़ा अच्छा लगा. पहली बार हमने भी जाना. आभार.

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  8. अरविन्द जी, धन्यवाद। आपकी नजर बहुत पैनी है। मैंने गलती सुधार ली।

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  9. nitin ji ne sahi kaha hai.. ham to aapko padhne aaye the.. saath me gana to ek bonus ke saman hai.. :)

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  10. उस पोस्‍ट का भी इन्‍तजार रहेगा।

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  11. आज कहने के लिए कुछ नही है ....लेखमाला का इन्तिज़ार रहेगा

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आपके विचारों का स्वागत है।