Thursday, October 06, 2011

दूसरे की गलती से सीखने वाले, बुद्धिमान होते हैं

यह चिट्ठी ई-पाती श्रंखला की कड़ी है। यह श्रंखला, नयी पीढ़ी की जीवन शैली समझने, उनके साथ दूरी कम करने, और उन्हें जीवन मूल्यों को समझाने का प्रयत्न है। सच में बुद्धिमान वह हैं जो दूसरी की गलती से ही सीख ले लेते हैं।


मैंने कुछ दिन पहले 'जिया धड़क धड़क जाये' शीर्षक से चिट्ठी प्रकाशित की थी। इसमें वर्ष २००८ का लेखा जोखा लिखा था। कुछ लोगों को लगा कि मैं इस बात से दुखी हूं कि मुझे टिप्पणियां कम मिलती हैं।
  • मुझे इस बात का मलाल नहीं है कि मुझे टिप्पणियां कम मिलती हैं। टिप्पणियां न मिलने के कई कारण हैं। मैं उनसे वाकिफ हूं। मैंने उक्त चिट्ठी पर टिप्पणियों की बात, सांख्यिकी के तौर पर लिखी थी न कि शिकायत के कारण।
  • मुझे मालुम है कि मेरी चिट्ठियां पढ़ी जाती हैं। मुझे, वर्ष २००६ में लिखी चिट्ठियों पर, औसतन एक से भी कम टिप्पणियां मिलीं। फिर भी, हिन्दी चिट्टागजत ने, इसी साल के लिये तरकश द्वारा आयोजित चुनाव में रजत कलम दिया। अब जब समीर जी सामने हों तो किसी और को स्वर्ण कलम कैसे मिल सकता है :-)
  • मुझे यह भी लगता है कि कुछ लोग मेरा लेखन पसन्द करते हैं। शायद, इसीलिये इस वेबसाइट को शुरू किया होगा।


    कौन है यह शख़्स, क्यों शुरू की यह वेबसाइट - कुछ समझ में नहीं आता है। लगता है कि मैं अज्ञात में चिट्ठाकारी करता हूं इसलिये ईश्वर ने मुझे यह सजा दी कि तुम भी इसी सोच में परेशान रहो।

कई लोगों को मेरी यह चिट्ठी, अलग-अलग कारणों से पसन्द नहीं आयी पर मेरे परिवार वालों को यह चिट्ठी अच्छी लगी। मुन्ने की सात समुन्दर पार से लिखी ईमेल और उसे मेरा जवाब यह है।


पापा
मैंने अपने लैपटॉप में मैक का नया सॉफ्टवेयर डलवाया है। इसमें हिन्दी देखने में कोई मुश्किल नहीं है। अब मैं तुम्हारे चिट्ठे का आनन्द ले सकूंगा।

तुम्हारी चिट्ठी 'जिया धड़क धड़क जाये' मन को छूने वाली है। मै अज्ञेयवादी हूं पर यदि ईश्वर है तो सच में, हमारे परिवार को उसका आशिर्वाद प्राप्त है। उसने हमें वह सब कुछ दिया जो आज तक किसी और को दिया है। मैं नहीं समझता कि हमें किसी भी चीज की जरूरत है। हम भाग्यशाली हैं।

तुम्हारी उक्त चिट्ठी को पढ़ने के बाद मुझे रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता कि यह पंक्तियां याद आयीं,

'The woods are lovely, dark and deep,
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep'
जंगल बहुत सुन्दर और घने हैं
मुझे बहुत से वायदे निभाने हैं,
और मुझे सोने से पहले बहुत दूर जाना है
और मुझे सोने से पहले बहुत दूर जाना है।
मुन्ना

बेटे राजा
तुम्हारी प्यारी सी ईमेल मिली। मुझे खुशी है कि मैक के नये सॉफ्टवेयर में हिन्दी देखने में कोई मुश्किल नहीं है। हम तुम इस चिट्ठे के जरिये काफी बात कर पायेंगे।

मैंने अपनी उक्त चिट्ठी में मैंने कुछ पति, पत्नी के सम्बन्धों के बारे में लिखा है। मुझसे कहीं कुछ गलती हो गयी पर तुम्हारी मां से नहीं। एक पुरानी कहावत है,

'Those who learn from the mistakes of others are intelligent; those who are learn from their mistakes are ordinary; and those who even do not learn from their mistakes are fools.'
जो लोग दूसरे की गलती से सीखते हैं वे बुद्धिमान होते हैं। जो अपनी गलती से सीखते हैं वह सधारण होते हैं और जो अपनी गलती से भी नहीं सीखते वे बेवकूफ होते हैं।
मुझे यह बताने की जरूरत नहीं कि मैं किस श्रेणी में आता हूं। मुझे यह भी बताने की जरूरत नहीं कि हम सब तुम्हें किस श्रेणी में समझते हैं और तुम वास्तव में किस श्रेणी के हो।

बिटिया रानी का शोध ठीक चल रहा होगा। भौतिक शास्त्र तो मेरा प्रिय विषय रहा है। यदि मेरा बस चलता तो मैं भी भौतक शास्त्री होता पर शायद भाग्य में फाइलें ही ऊधर उधर करना लिखा था। बिटिया रानी ने वायदा किया है कि वह इस साल कार चलाना सीख लेगी। आशा करता हूं कि वह इस पर कायम रहेगी :-)

लिखना कि तुम्हारा शोध कैसा चल रहा है। क्या तुम्हें हरपीस वायरस के कार्य करने के तरीके के बारे में कुछ और पता चला। यह चिट्ठी भी देखो यह तुम्हारे शोध कार्य में सहायता करेगी।
पापा


मिश्र जी ने टिप्पणी कर, रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता का हरिवंश राय बच्चन के द्वारा किया गया अनुवाद, बताया है। यह मेरे किये गये अनुवाद से कहीं बेहतर है। मैं उसे यहां उद्धरित कर रहा हूं।
'सुन्दर सघन मनोहर वन तरु,
मुझको आज बुलाते हैं।
किये मगर जो वादे मैंने,
याद मुझे आ जाते हैं।
अभी कहाँ आराम मुझे,
यह मूक निमंत्रण छलना है।
और अभी तो मीलों मुझको,
मीलों मुझको चलना है।'

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बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।

About this post in Hindi-Roman and English
yeh post ee-paaati shrnkhla kee kari hai. yeh nayee peedhee ko smjhne, unse dooree kum karne, aur unhein jeevan ke moolyon smjhaane ka praytna hai. sach mein budhimaan vh hain jo doosree kee galtee se hee samajh jaate hain. yeh {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is part of e-paati (e-mail) series and is an attempt to understand the new generation, bridge the between gap and to inculcate right values in them. Intelligent are those who learn and understand from the mistake of the others. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.


सांकेतिक शब्द
culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो

18 comments:

  1. उन्मुक्तजी, आपका ब्लाग हिंदी ब्लागजगत के सबसे बेहतरीन ब्लागों में एक हैं। मैं और राजीव टंडनजी अक्सर इस बारे में बातें करते हैं।
    टिप्पणियों से किसी ब्लाग की गुणवत्ता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। कुछ लोगों को भले लगा हो लेकिन मुझे कभी यह नहीं लगा कि आप इस बात से दुखी हैं कि आपको टिप्पणियां कम मिलती हैं। आपकी तमाम ई-पातियां मेरी पढ़े जाने की लिस्ट में हैं। आशा है जल्द ही उन सबको पढ़ सकूंगा। आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिये शुभकामनायें। मुन्ने की मां को सादर नमस्ते।

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  2. पिता-पुत्र का पत्र संवाद अच्छा लगा, पहले कहीं पढ़ा था आज आपके लेख को पढ़ कर गुगल किया तो ये मिला -
    "Learn from the mistakes of others. You can’t live long enough to make them all yourself."
    -Eleanor Roosevelt,US diplomat & reformer (1884 - 1962)

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  3. आप से सहमत हूँ। न केवल दूसरे की गलतियों से सीखना चाहिए अपितु सब गलतियों से सीखना चाहिए। चिट्ठी पढ़ी जाए यह महत्वपूर्ण है।

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  4. आपकी चिट्ठियां भाव विह्वल करती हैं ! अच्छा हुआ आपको भी कोई अज्ञात रहकर सता रहा है ! मुझे उससे वह जो भी हो स्नेह है ! आप अपने को अज्ञात बना कर चाहे अनचाहे ईश्वरीय स्टेटस दे रहे हैं और मुझ जैसे तुच्छों को अज्ञेयवादी बना रहे हैं ! अज्ञात होने की यह चरमावस्था मुझे कतई रास नही आती !

    स्तरीय और बौद्धिक अभिरुचि वाले ब्लागों में हिन्दी के पाठकों की रूचि कम ही है -फिर टिप्पणियाँ बटोरने के लटके झटके आप अपनाते नहीं -अपना भी नहीं सकते ! और यह भी सही है कि जहां रूचि नहीं होगी कब तक कोई जबरदस्ती टिप्पणी करेगा ! आप भी कई बार वहां टिप्पणी नहीं करते जहाँ मैं सोचता हूँ कि आपकी टिप्पणी तो जरूर आनी चाहिए ! बल्कि कई बार आपकी टिप्पणियाँ वहां दिख जाती हैं जहाँ उनकी उम्मीद नहीं रहती ! तो यह तो अपनी अपनी रूचि का मामला है !
    मगर मुझे इस बात की कोफ्त है कि कई सामान रूचि होने के बदभी मैं आपकी अज्ञातता की अभेद्य दीवार तोड़ नहीं पा रहा हूँ ! यह तो हद है !
    आलेख में प्रूफ़ की बस दो गलतियाँ यूं हैं -
    शोद्ध=शोध ! ,those who are learn ( are ?) ,
    और मुन्ने को फ्रास्ट की कविता का यह अनुवाद जिसे शायद हरिवंश राय बच्चन ने किया था मेरी और से उपहार में भजें -
    सुन्दर सघन मनोहर वन तरु
    मुझको आज बुलाते हैं
    किये मगर जो वादे मैंने
    याद मुझे आ जाते हैं
    अभी कहाँ आराम मुझे
    यह मूक निमंत्रण छलना है
    और अभी तो मीलो मुझको
    मीलों मुझको चलना है !

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  5. अच्छी पोस्ट ,आपकी सभी पोस्ट अच्छी होतीं हैं -जो अच्छा है उसे प्रमाण की जरूरत नहीं है .

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  6. Bahut Badiya post :)

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  7. मिश्र जी, आपकी नज़र पैनी है। गलती सुधारने के धन्यवाद।

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  8. आपका चिट्ठा सर्वोत्तम 5 चिट्ठों में आता है.

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  9. आपके हर पोस्ट से अपनापन झलकता है, और मैं वही अपनापन खोजते हुए ब्लौग पढने आया करता हूँ..

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  10. एक बार एक हिंदी ब्लॉगर से चर्चा हुई थी की कौन निस्वार्थ ब्लॉग्गिंग करता है? सभी के साथ कुछ ना कुछ कहीं न कहीं कुछ तो होता है जिसके लिए वो ब्लॉग्गिंग करता है. उस ब्लॉगर ने मुझसे कहा की नहीं उन्मुक्तजी एक मात्र ऐसे ब्लॉगर हैं जो निस्वार्थ ब्लॉग्गिंग करते हैं. आपके इस चिट्ठे को तो नियमित पढता हूँ हाँ टिपण्णी कभी-कभी छूट जाती है पर टिपण्णी तो मोह माया है ब्लॉग शाश्वत है :-)

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  11. उन्मुक्त जी, हमने पहले भी लिखा था कि ब्लॉगजगत में आपका ब्लॉग सबसे अलग और विशेष है.टिप्पणी देने के मामले को हम शायद अभी इतनी गम्भीरता से नही लेते जितना पढ़ने को महत्त्व देते हैं..

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  12. जानकर खुशी हुई कि आपके दोनो बच्चे शोध कार्य मे रत हैं। मैं भी जब से अटलांटा आया हूँ, चिट्ठाकारी पर असर पड़ा है।

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  13. सोनू जी, कुछ समय पहले आपने इस चिट्ठी पर निम्न टिप्पणी की,
    میں آپکو پڈھتا ہوں ـ
    आपका धन्यवाद। पर कृपया हिन्दी या अंग्रेजी में ही टिप्पणी करें। मैं इस टिप्पणी को समझ नहीं पाया।

    मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप या कोई अन्य चिट्ठकार बन्धु इसका हिन्दी या अंग्रेजी में अनुवाद कर टिप्पणी कर दे।

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  14. उन्मुक्त जी आपने इस चिट्ठी को फिर से पोस्ट किया है न ..मेरी टिप्पणी तो कालजयी :) है फिर से वही समझी जाय ...हाँ बस यह और जोड़ना है कि बेटे के पिता के नाम पत्र में अनुवाद में तुम्हारे के स्थान पर आप करना चाहें ..यह आपसे अनुरोध है ...अंगरेजी के यू का हिन्दी में तुम और आप दोनों अर्थ होता है न!हिन्दी के उसी आदर भाव को मैं एक पुत्र के लिहाज से भी अपने पिता के प्रति देखना चाहता हूँ !

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  15. अरविन्द जी, कुछ गलती हो गयी। मैं इसे अपडेट करना चाहता था लेकिन वह पुनः प्रकाशित हो गयी।

    मैं अपनी मां, बड़े भाई, और बड़ी बहन को तुम ही कहता हूं। हांलाकि पिता को आप कहता हूं। मेरी पत्नी मुझे तुम और में उसे तुम ही कहता हूं।

    मेरा बेटा मुझे तुम ही कह कर बुलाता है। मुझे यही प्रिय लगता है। इससे अपनेपन का अहसास होता है। यदि वह मुझे आप कहे तो मुझे अच्छा न लगेगा।

    मैं अपनी चिट्ठियों में नाम को और परिचय को छोड़ बाकी सारी बात वैसे ही कहने का प्रयत्न करता हूं जैसा कि होता है। यह लिखना आसान भी है। बस इसीलिये ऐसा लिखा।

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  16. कुछ और ही हो गया नुमायाँ
    मै अपना लिखा मिटा रहा था
    आपकी बात को अगर कुछ गलत समझ लिया गया तो इसमें आप के लिखे की कोई कमी नहीं है
    आपका चिट्ठा हमारी समझ से सर्वश्रेष्ठ चिट्ठों में है ये और बात है कि इसके पाठक टिप्पणियाँ करने में कंजूस हैं जैसे हमें ही देख लीजिये

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  17. चिट्ठा और उसमें लिखी चिट्ठी दोनों मन को छू गये. टिप्पणियों आप चाह्ते हैं यह तो लोगों की अज्ञानता ही हो सकती है.आप जैसे चिट्ठाकर तो स्व तृप्ति के लिये लिख कर सुखी हैं !हरिवबंश राय बच्चन का अनुवाद पहली बार पढा .आभार !

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  18. टिपण्णी के सन्दर्भ में कहना चाहूँगा कि मैंने गिनी चुनी टिपण्णी ही की होगी लेकिन आपका ब्लॉग हमारे पसंदीदा ब्लॉग में से है.

    टिपण्णी से ब्लॉग की गुणवत्ता का कोई सम्बन्ध नहीं यह तो सभी मानेंगे.

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आपके विचारों का स्वागत है।