Wednesday, June 10, 2009

हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा नाटक भोपाल में खेले और देखे जा रहे हैं

इस चिट्ठी में भोपाल की बड़ी झील, वहां के नाटक और हिन्दी की लेखिका मालती जोशी की चर्चा है।

मुझे काम के सिलसिले में कभी-कभी भोपाल जाना होता है। मुझे यह शहर अच्छा लगता है। चौड़ी सड़कें, झीलें मन मोह लेती हैं। मेरे कई मित्र, जान पहचान के लोग भोपाल में रहते हैं। इसलिये यह शहर और भी अच्छा लगता है।


मैं कुछ दिन पहले भोपाल में था। वहां मैं कोशिश करता हूं कि वन विहार और बड़ी झील पर भी जाऊं। यह झील बहुत बड़ी है और इसमें समुद्र जैसी लहरें आती हैं।

मैं इस बार भी बड़ी झील पर घूमने के लिये गया पर उसमें पानी बहुत कम रह गया है। बिलकुल पतली सी हो गयी है। लोगों का कहना है कि पिछले दो सालों से वहां पानी ठीक से नहीं बरसा इसलिये पानी सूख गया। आशा करता हूं कि इस साल खूब बरसे ताकि इसमें पूरा पानी आ जाय अन्यथा इस सुन्दर दृश्य से हम सब वंचित रह जायेंगे।


भोपाल के भारत भवन में भारत भवन है। यह सुन्दर जगह है - कला प्रेमियों के लिये। मुझे नाटक देखने का भी शौक है। इसमें 'इफ्तेकार नाट्य समारोह' चल रहा था। मैं वहां इसका आखिरी नाटक 'रेशम का यह शायर' देखने के लिये गया।

भारत भवन पहुंचने में मुझे कुछ देर हो गयी थी। वहां पर लगभग दो सौ कारें खड़ी थीं। मुझे आश्चर्य हुआ कि उतने लोग नाटक देखने में रुचि रखते हैं। गेट पर पहुंचा तो अचम्भा और भी बढ़ गया। वहां तीस रुपये का टिकट था। मैं नहीं समझता था कि कोई टिकट लेकर नाटक देखने आयेगा। मैंने टिकट खरीदना चाहा पर टिकट बेचने वाले ने कहा कि नाटक खत्म हो रहा है आप ऐसे ही चले जाईये।

भारत भवन में खुली जगह भी है और हॉल भी है। नाटक हॉल के अन्दर हो रहा था। वहां तिल रखने की जगह नहीं थी। वह हॉल एयर कंडीशन तो था पर भीड़ के कारण बिलकुल काम नहीं कर रहा था। पसीने छूटने लगे। लगता है कि टिकट बेचने वाले ने टिकट इस लिये देने से मना कर दिया कि टिकट बचे ही नहीं होंगे और मुझसे बहाना मार दिया। खैर मैंने तो मुफ्त में ही नाटक देख लिया :-)

इस नाटक में गुलज़ार की नज़्मों, शायरी, त्रिवेणियों और फिल्मी गीतों को पिरो कर शायर के जीवन की झलक दिखायी गयी थी जो कि रिश्तों के बारे में थी।



नाटक समाप्त होने के बाद, मेरी एक पत्रकार प्रवीण दीक्षित से मुलाकात हुई। मैंने जब इतनी भीड़ और टिकट लगने पर आश्चर्य प्रकट किया तो उसने बताया,
'हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा नाटक भोपाल में खेले और देखे जा रहे हैं। परसों तो इतनी भीड़ हो गयी थी कि बाहर स्क्रीन लगानी पड़ी।'
नाटक भविष्य भोपाल में उज्जवल है। जया भादुड़ी भोपाल की हैं और बेहतरीन कलाकारा हैं। मुझे लगता है कि वहां से अन्य बेहतरीन कलाकार भी निकलने चाहिये।
'रेशम का यह शायर' नाटक का यह चित्र प्रवीण दीक्षित जी ने मुझे ईमेल से भेजा है और उन्हीं के सौजन्य से है।

मुझे शाम को एक जगह मिलने जाना था। उनकी पत्नी ने हिन्दी की कुछ पुस्तकें पढ़ने की इच्छा व्यक्त की थी। मालती जोशी मेरी हिन्दी की मेरी प्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। वे भोपाल शहर में रहने वाली हैं। मुझे लगा कि उनकी ही पुस्तक ले लूं और यदि हो सके तो उनसे मिल कर उनके हस्ताक्षर करवा लूं।


मैं एक दुकान पर उनकी पुस्तकें खरीदने गया। मैंने उनकी दो पुस्तकें 'मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियां' और 'दर्द का रिश्ता' खरीदीं। दुकान मालिक से बात भी की। मैंने दुकान मालिक से कहा, कि मालती जोशी, इसी ४ जून को ७५ साल की हो रही हैं। क्यों नहीं वे लोग उनका अभिनंदन समारोह करते हैं। उसमें उनकी पुस्तकों के बारे में बात कर सकते हैं। उसके बाद यदि यह अखबार में इसे निकाला जाए तो हिन्दी की पुस्तकों का प्रचार होगा और उनकी पुस्तकें बिक सकेंगी।


दुकान मालिक को यह बात नहीं मालूम थी कि मालती जोशी ७५ साल की हो रही हैं। शायद इसका भी पता नहीं था कि वे भोपाल की रहने वाली हैं। मेरे जोश दिलाने पर उसने कहा,
'यहां एक पुस्तकालय है। मैं उनसे बात कर इस तरह का समारोह करवाने का प्रयत्न करुंगा।'

मैं चार जून के पहले ही भोपाल से चल दिया। मुझे नहीं मालूम कि यह समारोह हुआ कि नहीं पर यदि हुआ हो तो उसमें मेरा भी कुछ श्रेय है। मुझे दुख है कि मालती जोशी से नहीं मिल सका। प्रयत्न करुंगा कि यह अगली बार कर सकूँ।


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About this post in Hindi-Roman and English

is post per,bhopal mein bari jheel, natak aur hindi lekhika malti joshi kee charchaa hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.


This post talks about lakes of Bopal, drama being played there and Hindi writer Malti Joshi. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द

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9 comments:

  1. "...मेरे कई मित्र, जान पहचान के लोग भोपाल में रहते हैं।..."

    शायद आपको मालूम हो कि वहाँ रविरतलामी नाम का आपका मित्र भी भोपाल शिफ़्ट हो गया है. अगली दफा जब भोपाल जाएं तो उनसे जरूर मिलें. वो आपसे मिलकर बहुत खुश होंगे.

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  2. आलेख भोपाल के नाटक परिदृश्य की झलक दिखा गया।

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  3. मैथिली गुप्त8:41 am

    उन्मुक्त जी, मालती जोशी की कहानियां मुझे बहुत प्रिय हैं, मेरे संग्रह में इनकी एक घर सपनों का, आखिरी शर्त, सहचारिणी, पराजय, समर्पण का सुख, मध्यान्तर, हार्ले स्ट्रीट और विश्वासगाथा है. दिल्ली की आम बुक शॉप पर तो इनकी किताबें मिलती हीं नहीं.

    यदि आप कभी इनसे मिलें तो इनके रचना संसार को नेट पर उपलब्ध कराने का आग्रह कीजियेगा, मेरी ओर से भी.

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  4. अरे हम तो समझते थे कि सबसे ज्यादा नाटक दिल्ली के संसद भवन के रंगमंच पर ही होते है :)
    अरे ये क्या हुआ रवी रतलामी जी ने अपना शहर और सरनेम दोनो रतलामी से बदल कर भॊपाली कर लिया :)
    चलिये अब तकनीकी ज्ञान सीखने के लिये भोपाल जाया जा सकता है अच्छॊ खबर

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  5. सौभाग्‍य से मुझे भारत भवन जाने का सुअवसर प्राप्‍त हो चुका है।
    अच्‍छी जानकारी दी आपने। आभार
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  6. अच्छे लोग जहां भी जाते हैं अपने सुकृत्य की सुगंध छोड़ आते हैं !

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  7. अजी हम तो वहम था कि सब से ज्यादा नाटक भारत मे सिर्फ़ दिल्ली मै "लोकतन्त्र नाम से" संसद भवन मै खेला जाता है, जहां देश के शहीदो का मजाक उडा जाता है,गरीबो का मजा भी उडाया जाता है, खुब पेसो का लेन देन भी होता है खुब टिकटे ही नही कुर्सिया भी खरीदी, बेची जाती है,यानि बहुत सुंदर सुंदर नाटक खेले जाते है.
    लेकिन हम आप की बात मान लेते है, ओर कभी भोपाल गये तो एक नाटक जरुर देखेगे.
    धन्यवाद

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  8. अबकी बार जब भी भोपाल आना हो तो जरूर बताईये. हम भी पहुँच जायेंगे छोटे कसबे के बड़े लोगों से मिलने. .

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  9. आपने मुझे १२-१५ साल पुराने वो दिन याद दिला दिए जब मैं अलमस्त सा दोस्तों के साथ भारत भवन और रवीन्द्र भवन में जो कुछ चल रहा होता था, देखने चला जाता था. हाय वो दिन क्यूँ याद आये!:*(

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