Thursday, December 03, 2009

सफलता हमेशा काम के बाद आती है

यह चिट्ठी ई-पाती श्रंखला की कड़ी है। यह श्रंखला, नयी पीढ़ी की जीवन शैली समझने, उनके साथ दूरी कम करने, और उन्हें जीवन मूल्यों को समझाने का प्रयत्न है। यदि लगन है, काम करने का ज़स्बा है तो सफलता कदम चूमेगी।


मुन्ने राजा
तीन दशक पहले, तुमने हमारे जीवन में कदम रखा। पता ही नहीं चला कि वे कब बीत गये। तुमने, न केवल हमारे जीवन में,  पर सबके जीवन में खुशी भरी।

आज, तुम्हारे साथ बिताये, दिन याद आये, घटनायें याद आयीं। तुम्हें याद है दूरदर्शन में आने वाला विज्ञान पहेली का प्रोग्राम - जिसे हम साथ देखा करते थे। इसमें दो बार पुरस्कार मिला:
  • पहली बार सवाल था कि चन्द्रमा पृथ्वी से दूर क्यों जा रहा है। 
  • दूसरी बार सवाल था कि चमगादड़ किस प्रकार अपना शिकार ढ़ूढते हैं।

तुम्हारे बड़े होने के साथ, हमसे (शायद केवल मुझसे, तुम्हारी मां से नहीं) एक गलती हो गयी। मैंने अपने सपने, तुम्हारे साथ पूरे करने की कोशिश की। यह ठीक नहीं है। सबको अपने सपने देखने और  पूरे करने की बात है न कि अपने पिता के। शायद भारतीय माता-पिता की यही कमी है। लेकिन, इसके बावज़ूद भी, तुममें वह सब है जिस पर किसी भी माता-पिता को गर्व हो। तुम्हारी आदतें, शौक, प्राथमिकता सही हैं। हां चाहो तो पेंसिल चबाना छोड़ सकते हो और जल्दी उठने की आदत डाल सकते हो :-)

मैं आजकल आमिर एक्ज़ल की लिखी पुस्तक 'द आर्टिस्ट एण्ड द मैथमेटीशियन: द स्टोरी ऑफ निकोला बूरबाकी, द जीनियस हू नेवर इक्ज़िस्टेड' (The artist and the mathematician: the story of  Nicolas Bourbaki, the genius mathematician who never existed by Amir D. Aczel) पढ़ रहा हूं। 

पिछली शताब्दी  में, आधुनिक गणित में बहुत से पेपर और पुस्तकें निकोला बूरबाकी (Nicolas Bourbaki) के नाम से लिखीं गयीं। इन पुस्तकों ने आधुनिक गणित को नयी उचांई दी। इस नाम का कोई भी गणितज्ञ नहीं था। कुछ फ्रांसीसी गणितज्ञों ने मिल कर यह कार्य के १९३० के दशक में शुरू किया। इस काम में १० से लेकर २० गणितज्ञ जुड़े थे। यह पुस्तक इन्हीं गणितज्ञों के बारे में है।  यह भी एक रोचक बात है कि उन्होंने निकोला बूरबाकी नाम क्यों चुना।


जेनरल चार्ल्स डेनिस बूरबाकी का यह चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

पुस्तकों में लेखक का नाम देना जरूरी होता है। जेनरल चार्ल्स डेनिस बूरबाकी (Charles Denis Sauter Bourbaki) फ्रांसीसी सेना के एक प्रसिद्ध अधिकारी थे। फ्रांसीसी गणितज्ञों ने, बस उसी के नाम पर, एक काल्पनिक नाम नीकोला बूरबाकी चुन लिया और लगे लिखने गणित पर पुस्तकें। यह इतनी अच्छी थीं कि उसने गणित को नयी दिशा ही दे दी। मैंने इसके बारे में 'शून्य, जीरो, और बूरबाकी' की चिट्ठी में भी लिखा है। 


मैं अभी तक इस इस पुस्तक में दो गणितज्ञों के बारे में पढ़ पाया हूं: 
  • एक हैं एलेक्ज़ेंडर ग्रॉथेन्डीक (Alexander Gronthendiek); और
  • दूसरे हैं  आन्द्रे वाइल (Andre Weil)। 
इन दोनो के पारिवारिक परिवेश में बहुत अन्तर था।


एलेक्ज़ेंडर का बचपन गरीबी और अकेलेपन में गुजरा। उसने गणित की पढ़ाई अपने आप की। 

वहीं आन्द्रे का जीवन समृद्ध था। उसे किसी बात की कमी नहीं थी। उसने  सबसे  अच्छे स्कूलों में पढ़ाई की और उसे जाने माने गणितज्ञों के साथ रहने का मौका मिला। उसे डॉक्टरेट मिलते ही, २३ साल की उम्र में, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी मिल गयी। वह वहां कुछ समय रहा फिर वापस यूरोप चला गया। 

गणित के क्षेत्र में, दोनो का काम महत्वपूर्ण है पर एलेक्ज़ेंर ने ज्यादा काम किया है। वह २०वीं शताब्दी के महानतम गणितज्ञों में गिना जाता है। यह बताता है आपकी कैसी भी परिस्थिति हो यदि काम के लिये लगन है, ज़स्बा है - तो सफलता कदम चूमेगी। अंग्रेजी में पुरानी कहावत है,
'The only place where success comes before work is dictionary.' 
सफलता हमेशा काम के बाद ही आती है यहां तक कि शब्दकोश में भी। 
यह भी सच है,
'The real success is finding work that you love and the next best thing is finding love in whatever you do.'
अपने प्यार को ही, जीविका बना लेना सफलता है। दूसरी बेहतर बात, जीविका में ही प्यार पाना है।
आजकल ठंडक शुरू हो गयी है। सुबह कोहरा पड़ने लगा है। तुम्हारी भेजी स्वॅट जैकेट बहुत काम आती है। वही सुबह पहन कर, ठहलने जाता हूं।

जीवन में तुम खुश रहो, सफल हो।
पापा

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About this post in Hindi-Roman and English yeh post ee-paaati shrnkhla kee kari hai. yeh nayee peedhee ko smjhne, unse dooree kum karne, aur unhein jeevan ke moolyon smjhaane ka praytna hai. yadi lagan ho, jasba ho to saphaltaa kadam choomegee. yeh {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is part of e-paati (e-mail) series and is an attempt to understand the new generation, bridge the between gap and to inculcate right values in them. Success follows hard work. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.


सांकेतिक शब्द
culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो
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10 comments:

  1. Anonymous11:05 pm

    ई-पाती की परिकल्पना हमें तो भा रही

    बी एस पाबला

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  2. आज के इस आलेख से बहुत कुछ सीखा है जो शेष जीवन में अवश्य ही काम आएगा। आप का आभार!

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  3. कितने अच्छी चिट्ठियां लिखते हैं आप अपने मुन्ने बेटे को!
    एक कहावत हम लोगों की तरफ बोली जाती है ,वह जौनपुरी कहावत है -
    बाढ़ें पूत पिता के धर्मे ...

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  4. आप बताते जाइए हम सुन रहे है ....समझ रहे हैं ......मुन्ने राजा की तरह !

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  5. बहुत बढ़िया , बेटे के नाम एक पिता का पत्र , बातों बातों में , रोचक सी शिक्षाएं दी हैं |

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  6. वाह! हिन्दी में यह ठीक है कि सफलता काम के बाद आती है!

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  7. और मुझे भी लगता है कि पत्र लेखन शैली अच्छा माध्यम है सम्प्रेषण का!

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  8. मुन्ना5:12 pm

    पापा, मुझे खुशी है कि तुमने वह गलती की।

    आज, मैंने भारतीय भोजन के रेस्ट्राँ में, दोपहर का स्पेशल खाना खाया। अब मुझे व्यामशाला में जा कर सारी कैलरी को जलाना है।

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  9. एक पिता की ये बातें मेरे जैसे बहुत सारे बेटों के जीवन को सफल कर देंगीं।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  10. Anonymous11:56 pm

    आप माने या न माने पर आप काफी भावुक हो गए थे. वैसे हर बाप का ये सपना होता है, कि वो अपने बच्चे में खुद को फिर से ढूंढे. मालूम नहीं मेरे को कि आपने ऐसी क्या गलती कर दी. और आपके बेटे ने जबाब में लिखा कि ..

    पापा, मुझे खुशी है कि तुमने वह गलती की।
    आज, मैंने भारतीय भोजन के रेस्ट्राँ में, दोपहर का स्पेशल खाना खाया। अब मुझे व्यामशाला में जा कर सारी कैलरी को जलाना है।

    इन सब को पढ़ के लगता है.. कि आपका सुपुत्र बाहर नौकरी कर रहा है- बाहर यानी विदेश में. और अगर मेरा अंदेशा गलत नहीं है, तो कुछ परिवेश को लेके बातचीत हो रही होगी. लड़के की अपनी प्राथमिकताएं होंगी और आप अपनी बातों को दूरी की वजह से समझा नहीं पा रहे होंगे. खैर ये पर्सोनल बातें हैं, और मैं इस डिटेल में नहीं जाऊँगा. वैसे मैं भी आपके लड़के की उम्र का हूँ और आपकी बात में मैं एक बाप की मजबूरी को देख रहा हूँ.

    बस मैं सिर्फ और सिर्फ एक बात कहना चाहता हूँ यहाँ इस कमेन्ट के सहारे.. मैं आपके मुन्ने से बस एक बात कहना चाहता हूँ...
    मुन्ना,

    एक बात हमेशा याद रखना कि तुम खुशनसीब हो कि तुम्हे बाप का प्यार नसीब है. बाप का साया बहुत बड़ी चीज़ होती है. बाप की मार, बाप की फटकार के पीछे की मिठास को कभी मौका लगे तो महसूस करना .. जो मजा उसमें है, जो स्नेह उसमें है, वो किसी और चीज़ में नहीं है दोस्त. बाप अगर गुस्सा भी करता है.. बाप अगर कुछ अपनी पुराने समय की (आज के ज़माने के हिसाब से दकियानूसी) बाते भी करता है, जो कि हमें नागवार गुजरता है. तो दोस्त फिर भी थोडा वक़्त ले के अपने बाप को समझो.. याद रखो दोस्त.. बाप को कभी इस हालत और मंझदार में ले आके मत छोड़ो कि उसे गलती के लिए माफी मांगनी पड़े.. अगर ऐसा होता है, तो वो वो हर लड़के की सबसे बड़ी हार है... सबसे बड़ी हार...

    बस...बाकी बाद में.

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आपके विचारों का स्वागत है।