Sunday, June 28, 2009

सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य

हिन्दू मज़हब की एक धारणा के अनुसार, किसी को नहीं मालुम कि सृष्टि की रचना कैसे हुई - शायद यह उसके कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम है। इस चिट्ठी में, इसी की चर्चा है।
इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
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हिन्दू मज़हब की एक और कथा के अनुसार यह नहीं पता कि यह सब कैसे शुरू हुआ। शायद यह इसके बनाने वाले को भी नहीं पता है। ऋग्वेद के १०वें अध्याय का १२९वां श्लोक यही बताता है। नीचे इस श्लोक एवं इसका अनुवाद का उद्धरण स्वामी दयानन्द सरस्वती के द्वारा किया गया और दयानन्द संस्थान १५९७, हरध्यान सिंह मार्ग नयी दिल्ली-५ के द्वारा प्रकाशित पुस्तक से लिया गया है।


निहारिक सीएल ००२४+१७ गुच्छे (galaxy cluster CL0024+17) के चारो तरफ डार्क मैटर (dark matter) की रिंग - चित्र नासा के इस वेबपेज से


नास॑दासी॒न्नो सदा॑सीत्त॒दानीं॒ नासी॒द्रजो॒ नो व्यो॑मा प॒रो यत्।
किमाव॑रीव॒: कुह॒ कस्य॒ शर्म॒न्नम्भ॒: किमा॑सी॒द्गह॑नं गभी॒रम्।।१।।
पदार्थ:- (तदानीम्) उस समय सृष्टि रचना से पूर्व (न, असत्+आसीत्) न अभाव था (नोसद् आसीत्) ना ही भाव था (न रज:) न परमाणु (न व्योमो) ना आकाश (यत् पर:) जो सबसे सूक्ष्म है (किम् + आ + वरीय: ) आवरण क्या था ( कुह) कहां (कस्य शर्मन् ) कैसा घर था (किम् ) क्या (गहनम्) गम्भीर कठिनता से जानने योग्य गहरा (अम्भ:) जल था ।।१।।


न मृत्युरा॑सीद॒मृतं॒ न तर्हि॒ न रात्र्या॒ अह्नं॑ आसीत्प्रके॒त:।
आनो॑दवा॒तं स्व॒धया॒ तदेकं॒ तस्मा॑द्धा॒न्यन्न प॒र: किं च॒नास॑।।२।।
पदार्थ: - (तहिं) तब (न मृत्यु: आसीत्) न मौत थी (न अमृतम्) न अमरत्व था अर्थात् जीवन था न मृत्यु (रात्र्या + अह्न:) रात का दिन का (प्रकेत:) चिन्ह (न + आसीत्) नहीं था, सूर्य चन्द्र वा काल विभाग का कोई चिन्ह (आसीत् + अवातम्) बिना वायु अर्थात् बिना प्राण (स्वधया) अपनी शक्ति से तथा अपनों से धारणा की गई सूक्ष्म प्रकृति के साथ (तत्+एकम्) वह एक (आसीत्) था (तस्मात्+अन्यत्) उसके अतिरिक्त और कुछ (पर:) सूक्ष्म (किन्चन न आस) कुछ नहीं था।।२।।

भावर्थ:- प्रथम मन्त्र के प्रश्नों के उत्तर हैं सूक्ष्म प्रकृति सहित एक ईश्वर था, गीता में ईश्वर की दो प्रकृतियाँ बताई हैं भूम्यादि जड़ पदार्थ और जीव अत: ईश्वर,जीव, प्रृति तीन तत्व थे।।२।।


जब सृष्टि का उपादान कारण अव्यक्त रूप में था तो उसे सत् नहीं कहा जा सकता था क्योंकि वह [अलक्ष्मम् प्रमेयम्] था असत इसलिए नहीं कहा जा सकता कि अभाव से भाव नहीं होता। आकाश वह है जिसमें गमनागमन हो, जब गति का व्यवहार ही नहीं था तो क्या कुछ था? क्या वह आच्छादित था तो उसका आच्छादन क्या था? यहां कौन था? क्या कुछ गहन गम्भीर रूप में था? अर्थात् कुछ था अवश्य पर हमारे लिये वह अज्ञेय है अवर्णनीय है।


तम॑ आसी॒त्तम॑सा गूळहमग्रे॑ऽप्रके॒तं सलि॒लं सर्व॑मा इ॒दम्।
तु॒च्छयेना॒म्वपि॑हितं॒ यदासी॒त्तप॑स॒स्तन्म॑हि॒नाजाय॒तैकम्।।


पदार्थ:- (अग्ने) सृष्टि के व्यक्त रूप में आने से पहले (तमसा गूढ़म्) अन्धकार से ढका हुआ (तम: आसीत्) अन्धकार था (अप्रकेतम्) लक्षण में न आने वाले (सर्वम् +आ+इदम्) यह सब व्यापक हुआ (सलिलम्) गतिशील पदार्थ था (तुच्छ्येन) सूक्ष्म से (आ भु+अपिहितम्) सब ओर ढका हुआ था (तत्) वह (तपस:, महिना) तप ज्ञान के महत्व से (एकम् + अजायत) एक प्रकट हुआ।।३।।


काम॒स्तदग्रे॒ सम॑वर्त॒ताधि॒ मनसो॒ रेत॑: प्रथ॒मं यदासी॑त्।
स॒तो बन्धुमस॑ति॒ निर॑विन्दन्हृ॒दि प्र॒तीष्या॑ क॒वयो॑ मनी॒ष।।४।।


पदार्थ :- (अग्ने) प्रथम (काम:) संकल्प (सम+अवर्तन) वर्तमान हुआ जो (मनस:, अधि) मन में (प्रथमम् रेत:) प्रथम वीर्य (तत्+आसीत्) वह था (कवय:, मनीषा) क्रान्तिदर्शी विद्वानों ने (हृदि) हृदय में (प्रतीष्य) विचार कर (असति) अभाव में (सती बंधुम) भाव को बांधने वाले सत् को (निरविन्दन्) जाना।।४।।


भवार्थ:- फिर ईश्वर का संकल्प सृष्टि रचना का हुआ और अन्यक्त जगत् व्यक्त रूप में आ गया।।४।।


ति॒रश्र्चनो॒ वित॑तो र॒श्मिरे॑षाम॒ध: स्वि॑दा॒सी३ दु॒परि॑ स्विदासी३त्।
रे॒तो॒धा आ॑सन्महि॒मान॑ आसन्त्स्व॒धा अ॒वस्ता॒त्प्रय॑ति: प॒रस्ता॑त्।।५।।


पदार्थ:- (एषाम् रश्मि:) इन पदार्थों की किरणें (तिरश्चीन: वितत:) तिरछी फैली (अध: स्वित्+आसीत्) कदाचित् नीचे (उपरिस्वित्) कभी ऊपर (असीत्) थी (रेतोधा: आसन् महिमान: आसन्) वीर्य धारण करने वाला ईश्वर था और उसकी महिमायें थी (स्वधा अवस्तात्) प्रकृति छोटी थी (प्रयति: परस्तात्) रचना का पयत्न बड़ा था।।५।।


भावार्थ:- अब ये पदार्थ प्रकट रूप में आने लगे तब भी प्रकृति सीमित थी और बम्हा का रचना गुण महान था।।५।।


को अ॒द्घा वे॑द॒ क इ॒ह प्र वो॑च॒त्कुत॒ आजा॑ता कुत॑ इ॒यं विसृ॑ष्टि:।
अ॒र्वाग्दे॒वा अ॒स्य वि॒सर्ज॑ने॒नाथा॒ को वे॑द॒ यत॑ आब॒भूव॑।।६।।


पदार्थ :- (क: अद्घा वेद) ठीक-ठीक कौन जानता है (इहक: प्रवोचत्) इस विषय में कौन कह सकता है (कुत: आजाता:) कहां से उत्पन्न हुए (कुत: इयं विसृष्टि:) कहाँ से यह विशेष रूप वाली सृष्टि हुई (अस्य विसर्जनेन) इस सृष्टि रचना की तुलना में (देवा: अर्वाक्) विद्वान बाद के हैं (अथ) और (कोवेद) कौन जानता है (यत: आबभूव) जहां से संसार प्रकट हुआ।।६।।


भावार्थ:- सृष्टि रचना प्रत्यक्ष का विषय नहीं है, अनुमान और शब्द प्रमाण ही इसमें प्रधान है यह कितना उदार विचार वेद ने दिया है।।६।।


इ॒यं विसृ॑ष्टि॒र्यत॑ आब॒भूव॒ यदि॑ वा द॒धे यदि वा॒ न।
यो अ॒स्याध्य॑क्ष: पर॒मे व्यो॑म॒न्त्सो अ॒ङ्ग वे॑द॒ यदि॑ वा॒ न वेद॑।।७।।


पदार्थ :- (इयम् विसृष्टि:) यह विशेष रचना (यत: आवभूव) जहां से प्रकट हुई (यद् वा दधे) वा जो इसे धारण करता है (यदि वा न) अथवा नहीं धारण करता है (योऽस्माध्यक्ष:) जो इस सृष्टि का स्वामी है (हे अङ्ग) हे मित्र जिज्ञासु (स:) वह (वेद) जानता है (यदि वा न वेद) क्या नहीं जानता हैं? अर्थात (अपश्यत्) जानता है ।।७।।



भवार्थ:- सृष्टि का मर्म जानने की अपेक्षा ब्रह्मा को जानो "तस्मिन् ह विज्ञाने सर्वमिदं विज्ञान भवति" उपनिषद् कहता है उसके जान लेने पर सबका ज्ञान हो जायेगा। इस सूक्त में दर्शन के मौलिक विचार भगवान् ने मनुष्य को दिये हैं, उनका विकास मनुष्य नाना रूप में करता रहा है। दर्शन का मूल रूप तो सृष्टि और उसकी रचना का विचार ही है ।।७।।

चित्रकार की कल्पना से बाईनरी तारा समूह एच डी ११३७६६ (binary-star system HD 113766) जहां पृथ्वी की तरह ग्रह बनने की आशंका है - चित्र नासा के इस इस वेबपेज से

कई साल पहले दूरदर्शन में, जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' (Discovery of India) पर आधारित एक सीरियल आया था। इसके शीर्षक का गीत, इस श्लोक का अनुवाद था। मेरे विचार से यह गीत, इस श्लोक के भाव को जितनी बेहतर तरीके से, जितनी आसान रूप में बताता है वैसी किसी और ने इसकी व्याख्या नहीं की है। गीत के शब्द इस प्रकार हैं:
सृष्टि से पहले,
सत नहीं था,
असत भी नही,
अंतरिक्ष भी नहीं,
आकाश भी नहीं था।
छिपा था क्या, कहां ,
किसने ढ़का था
उस पल तो अगम,
असल जल भी कहां था।
सृष्टि का कौन है कर्ता
कर्ता है वह अकर्ता
ऊचें आकाश में रहता
सदा अदृश्य बना रहता
वही सचमुच में जानता
क्या नहीं है जानता ,
है किसी को नहीं पता, नहीं पता
नहीं है पता, नहीं है पता।
(इस गीत को आप मेरे उपर बताये मेरे पॉडकास्ट में सुन सकते हैं।)
शायद यही सच है।

साइंस ब्लॉगरस् एसोसियेशन में भी सृष्टि व जीवन की उत्पत्ति के बारे वैदिक विज्ञान के मत की चर्चा की जा रही है। वह चर्चा हिन्दू मज़हब के बारे में, मेरे द्वारा की गयी चर्चा से कुछ अलग है। मैं न तो संस्कृत का और न ही हिन्दू धर्म का ज्ञाता हूं। मैं नहीं जानता कि मेरे द्वारा अथवा साइंस ब्लॉगरस् पर की जा रही चर्चा ठीक है। मैं इतना अवश्य जानता हूं कि शब्दों के कई अर्थ होते हैं। अक्सर लोग उसके अलग, अलग अर्थ अपनी सुविधानुसार लगा लेते हैं।



मेरे विचार से यह कहना गलत है कि सृजनवाद हिन्दू मज़हब में नहीं है। यह यहां भी है। सच में, सृजनवाद हर मज़हब में है। शायद, यह इसलिए कि पुराने समय में प्राणियों की उत्पत्ति समझाने के लिए सृजनवाद सबसे आसान तरीका था। सृजनवाद के अनुसार मनुष्यों की उत्पत्ति किसी विकासवाद से नहीं, पर किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा सृजन किये जाने पर हुई है। हांलाकि अलग अलग मज़हबों में इस अदृश्य शक्ति का नाम, रूप अलग है।


सर्पिल निहारिका एनजीसी १५१२ (Spiral galaxy NGC 1512) में तारे बनते देखे जा सकते हैं - चित्र नासा की इस वेबपेज से


सृजनवाद केवल प्राणियों की उत्पत्ति तक ही नहीं सीमित हैं पर सृजनवादी यह भी कहते हैं कि यह सौर मंडल , यह ब्रह्माण्ड एक अदृश्य शक्ति के द्वारा सृजित है न कि उस प्रकार जैसे विज्ञान में बताया जाता है। इनके द्वारा इस तरह की डीवीडी भी बाज़ार में बेची जाती है।


अगली बार चर्चा करेंगे, १८ जून १८५८ में डार्विन को मिले पत्र की, किसका था वह किस लिये लिखा गया था। क्यों उसने डार्विन के विचार बदल दिये। कछ चर्चा करेंगे डार्विन के व्यक्तित्व की, वह क्यों ने केवल महानतम वैज्ञानिक थे पर उससे बेहतर इन्सान थे।


इस चिट्ठी के सारे चित्र नासा वेबसाइट से हैं। वे जिस वेबपज से हैं उनका लिंक वहीं दिया है। आप यदि उन चित्रों के बारे में जानना चाहें तो नासा के उस वेब पेज पर चटका लगा कर उसका बड़ा चित्र एवं वर्णन पढ़ सकते हैं। आप भी, नासा के चित्र प्रयोग कर सकते हैं। इस की शर्तें यहां लिखी है।

डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।। सेब, गेहूं खाने की सजा।। भगवान, हमारे सपने हैं।। ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री।। सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य।।


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hindu majahb kee ek dharana ke anusaar yeh kisee ko naheen malum kee srishti kaise banee. yeh iske rachayitaa ko bhee naheen malum. is chitthi mein isee kee charchaa hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

There is one saying in Hinduism that no one knows how it all began; even its creator does not know it. This post talks about the same. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.



सांकेतिक चिन्ह
Rigveda, ऋग्वेद,

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Thursday, June 25, 2009

आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी

इस चिट्ठी में, कोची (कोचीन) में घूमने की जगहों की चर्चा है।

सबसे पहले हम लोग वहाँ सिनागॉग, यानी की यहूदियों के पूजा स्थल, देखने गये। इसे १५६८ में स्पैनिश एवं डच यहूदियों ने बनावाया था। इसके उपर घड़ी की टावर १७६० में बनी। इसकी देखरेख करने वाले वाले ने बताया,

डच पैलेस से सियनगॉग के पीछे से दृश्य

'इस समय यहाँ पर यहूदियों के केवल पाँच परिवार रह गये है और उन पाँचों परिवार में केवल ग्यारह सदस्य है और पूरे केरल में केवल पन्द्रह परिवार यहूदियों के रह गये हैं।'


इस सिनागॉग के अन्दर का यह चित्र

सिनागॉग के बगल में डच पैलेस है। यह महल को पुर्तगलियों ने १५५५ में वहाँ के राजा वीर केरल वर्मा के लिए बनवाया था। १६६५ में, डच लोगों ने इसे बड़ा किया और इसकी मरम्मत करवायी। इसीलिए यह डच पैलेस के नाम से जाना जाता है। इसमें कोचीन के महाराजा की तस्वीरे, पालकियाँ, वेशभूषा व अस्त्र-शस्त्र रखे हुए हैं।


डच पैलेस घूमते समय हमारी मुलाकात अन्य पर्यटकों के साथ, मेरी मुलाकात जैताली नामक एक प्यारी सी युवती से हुई। उसके पैरों में लगी मेंहदी बहुत सुन्दर लग रही थी। वह स्वयं भी बहुत सुन्दर थी मैंने उससे कहा,

'आप जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैर में मेंहदी लगी है। क्या आपने यह कोचीन में लगवायी है?'
यह सुन कर वह शर्मा गयी। उसने मुझसे कहा,
'मेरी एक सप्ताह पहले मेरी शादी हुई है। यह मेंहदी मैंने शादी के लिए लगवायी थी।'
मैंने जैताली से पूछा कि क्या में उसके पैरों में लगी मेंहदी का चित्र खींच सकता हूं। उसने कहा,
'जरूर।'
उसने पैरों में जूते पहन रखे थे। उसने अपने जूते उतार दिये, जींस को कुछ ऊपर कर लिया ताकि पैरों की मेंहदी अच्छी तरह से दिख सके और अपने पति के साथ चित्र खिंचवाया।

जैताली हनीमून के लिए अपने पति करनाल मोदी के साथ अहमदाबाद से आयी थी। लेकिन, उसके साथ केवल उसके पति नहीं थे। साथ में पति के बड़े भाई और उनकी पत्नी भी थी। यह चारो लोग वहाँ मस्ती से घूम फिर रहे थे। करनाल, सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और न्यूट्रॉन सिस्टम नामक कम्पनी के साथ काम करते है। मैंने पूछा कि क्या वह लोग मुक्त सॉफ्टवेयर पर काम करते हैं उसने कहा नहीं :-(

'करनाल, जैताली, नमस्ते
करनाल मुक्त सॉफ्टवेयर का भविष्य उज्जवल है तम्हें इस पर भी काम करना चाहिये।
जैताली तुम और करनाल हमेशा सुखी रहो, खुश रहो यही ईश्वर से प्रार्थना'
हम लोग सन्त फ्रांसिस चर्च भी देखने गये जिसे १५१६ ई० में पुर्तगलियों के द्वारा बनवाया गया था। वास्कोडिगामा के मरने के बाद, वहाँ उन्हें गाड़ दिया गया था पर कुछ साल बाद उसे पुर्तगाल ले जाया गया।

हम लोग दो साल पहले कालीकट घूमने गये थे मैंने इसके बारे में 'प्रकृति की गोद में तीन दिन' नाम से यात्रा विवरण लिखा था। इसकी पहली कड़ी में कप्पड़ समुद्र-तट पर वास्कोडिगामा के बारे में हुई चर्चा का वर्णन किया था। वहां पर वास्कोडिगामा के बारे में लोगों की राय, खराब थी। फ्रांसिस चर्च में बैठे पादरी से मैंने उस चर्चा का वर्णन किया। उनका कहना था कि उस समय कोचीन और कालीकट के राजा के बीच में लड़ाई चल रही थी। वास्कोडिगामा ने कोचीन के राजा का साथ दिया, इसलिये वे लोग वास्कोडिगामा के बारे में इस तरह की बात करते हैं।



यहाँ पर हम लोगों ने मछली पकड़ने के लिये चाईनीज जाल भी देखे। कोचीन मे चीन से बहुत लोग आये थे। वे अलग तरीके से मछली पकड़ते थे। अब वे नहीं रह गये हैं पर केरल के लोग, उसी तरह से मछली पकड़ रहे हैं। इसमें एक तरफ बडा सा जाल है दूसरी तरफ भारी-भारी पत्थर लगे हुए हैं। जाल के डंडो पर कुछ व्यक्ति चलते है तो वह नीचे पानी में चला जाता है जब व्यक्ति वहां से हट जाते है तो पत्थर के भार से जाल ऊपर आता है और जो मछली जाल में फंस जाती है वह जाल के साथ ऊपर आ जाती हैं। यह जाल ढ़ेकली लीवर (lever) के सिद्घान्त पर काम करता है।


हम लोग दोपहर के भोजन के समय कुमाराकॉम पहुंचे। यहां हमें ताज गार्डन रिट्रीट (Taj Garden Retreat) होटल में एक रात रूकना था। इसके बारे में अगली बार।

सिनागॉग के अन्दर का चित्र, मैंने नहीं खींचा है। मैंने किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के हिन्दी चिट्ठे से उड़ाया है। वह महत्वपूर्ण इसलिये है कि जब हम सिनागॉग पहुंचे तो उसका इंचार्ज किसी भी व्यक्ति को अन्दर कैमरा नहीं ले जाने दे रहा था। वह अन्दर के चित्र खींचने से भी मना कर रहा था। कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति ही सिनगॉग के अन्दर से चित्र खींच सकता है। मैंने इस चित्र को जिस चिट्ठकार के चिट्ठे से चुराया है वह व्यक्ति हिन्दी चिट्टजगत के लिये भी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि वह चिट्ठकार, हम सब का उत्साह बढ़ाने के लिये, अधिक से अधिक चिट्ठियों पर टिप्पणी करता है। आज की चित्र पहेली यही है कि आपको उसका नाम बताना है। नहीं मालुम तो एक हिंट भी ले लीजिये। वह अंग्रेजी में भी चिट्टा लिखता है।

इस पहेली पर कोई भी व्यक्ति, पी एन सुब्रमनियम जी को छोड़, भाग ले सकता है।

कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा

क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है।। आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी।।

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Sunday, June 21, 2009

बच्चे व्यवहार से सीखते हैं, न कि उपदेश से

यह चिट्ठी ई-पाती श्रंखला की कड़ी है। यह श्रंखला, नयी पीढ़ी की जीवन शैली समझने, उनके साथ दूरी कम करने, और उन्हें जीवन मूल्यों को समझाने का प्रयत्न है। हमें घर में वह व्यवहार करना चाहिये जो हम अपने बच्चों में देखना चाहते हैं।


Saturday, June 20, 2009

ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री

हिन्दू मज़हब में भी सृजनवाद है। इस चिट्ठी में, इसी की चर्चा है।
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हिन्दू मज़हब की एक धारणा, अन्य मज़हबों की तरह, ईश्वर के द्वारा की गयी रचना की बात करती हैं।  कृष्ण गीता के ९वें वा ११वें अध्याय के में अर्जुन को समझाते हुऐ कहते हैं,
'गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत्।
प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।१८।।'
गति- कर्मफल, भर्ता- सबका पोषण करनेवाला, प्रभु-सबका स्वामी, प्राणियों के कर्म और अकर्मका साक्षी, जिसमें प्राणी निवास करते हैं वह वासस्थान, शरण अर्थात् शरण में आये हुए दु:खियों का दु:ख दूर करनेवाला, सुहृत् - प्रत्युपकार न चाहकर उपकार करनेवाला, प्रभव- जगत् की उत्पत्ति का कारण और जिसमें सब लीन हो जाते हैं वह प्रलय भी मैं ही हूँ। तथा जिसमें सब स्थित होते हैं वह स्थान, प्राणियों के कालान्तर में उपभोग करने योग्य कर्मो का भण्डार रूप निधान और अविनाशी बीज भी मैं ही हूँ अर्थात् उत्पत्तिशील वस्तुओं की उत्पत्ति का अविनाशी कारण मैं ही हूँ।

'कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्घो  लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त:।
ऋतेऽपित्वा न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:।।३२।।'
मैं लोकों का नाश करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ। मैं जिस लिये बढ़ा हूँ वह सुन, इस समय मैं लोकों का संहार करने के लिये प्रवृत्त हुआ हूँ, इससे तेरे बिना भी (अर्थात् तेरे युद्घ न करने पर भी) ये सब भीष्म, द्रोण और कर्ण प्रभृति शूरवीर- योद्घा लोग जिनसे तुझे आशंका हो रही है एवं जो प्रतिपक्षियों की प्रत्येक सेना में अलग-अलग डटे हुए हैं- नहीं रहेंगे ।
यह उद्धरण गीताप्रेस, गोरखपुर के द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भगवद्गीता शांकरभाष्य हिंदी-अनुवाद से लिया गया है। इसके अनुवादक श्रीहरिकृष्णदास गोयन्दका जी हैं।




मनु स्मृति के प्रथम अध्याय में ३१वां और ३२वां श्लोक में लिखा है।
'लोकानां तु विवृद्धयर्थं मुखबाहूरूपादत:।
ब्राहाणं क्षत्रियं वैश्यं शूद्रं च निरवर्तयत्।।३१।।'

(फिर उस परमात्मा ने) (लोकानां तु) प्रजाओं अर्थात् समाज की (विवृद्धवयर्थम्) विशेष वृद्धि=शान्ति, समृद्धि एवं प्रगति के लिए (मुखबाहु-ऊरू पादत:) मुख्, बाहु, जंघा और पैर के गुणों की तुलना के अनुसार क्रमश: (ब्राहम्णं क्षत्रिय वैश्यं च शूद्रम्) ब्राहम्ण,क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण को ( निरवर्तयत्) निर्मित किया। अर्थात चातुर्वर्ण्य- व्यवस्था का निर्माण किया।।


'द्विधा कृत्वाऽऽत्मनों देहमर्धेन पुरूषोऽभवत्।
अर्धेन नारी तस्यां स विराजमसृजत्प्रभु:।।३२।।'

वह ब्रह्मा (आत्मन:+देहम् ) अपने शरीर के (द्विधा कृत्वा) दो भाग करके (अर्धेन पुरूष्:) आधे से पुरूष और (अर्धेन नारी) आधे से स्त्री (अभवत्) हो गया (तत्याम्) फिर उस स्त्री में ( स.प्रभु:) उस ब्रह्मा ने ( विराजम्) 'विराट्' नामक पुरूष को (असृजत्) उत्पन्न किया।।
यह उद्धरण आर्य साहित्य प्रचार ट्रस्ट के द्वारा प्रकाशित मनु स्मृति से लिया गया है। इसकी समीक्षा प्रो. सुरेन्द्रकुमार ने की है।


हिन्दू मज़हब में भी सृजनवाद है पर इसमें अन्य मज़हबों से एक खास  अन्तर है। जहां यह बात अन्य मज़हबों में दस हजार साल के अन्दर हुई थी वहीं हिन्दू मज़हब में यह खरबों साल पहले हुई थी।


आर्थर सी क्लार्क के अनुसार हिन्दू का मज़हब में दिया गया अनुमान  ही सही है। वे अपनी पुस्तक प्रोफाईल्स आफ द फ्यूचर (Profiles of the Future) के ग्यारहवें भाग 'अबाउट टाइम' (About time) ( पेज १३८ ) में कहते है,
'Time has been a basic element in all religions ... Some faiths (Christianity, for instance) have placed creation and beginning of Time and very recent dates in the past, and have anticipated the end of the Universe in the near future. Other religions, such as Hinduism, have looked back through enormous vistas of Time and forward to even greater ones. It was with reluctance that western astronomers realized that the East was right, and that the age of the Universe is to be measured in billions rather than millions of years – if it can be measured at all.'
मज़हबों में समय की धारणा मूलभूत है … अधिकतर मज़हबों में, खास तौर से ईसाई  मज़हब में रचना और प्रलय की समय सीमा बहुत कम आंकी गयी है। कुछ  मज़हबों जैसे हिन्दू  मज़हब में समय सीमा बहुत ज्यादा आंकी गयी है। पश्चिमी खगोलशास्त्रियों ने मुश्किल से माना कि  पूरब में आंकी गयी समय सीमा सही है और सृष्टि के रचना की समय सीमा यदि आंकी जा सके तो वह करोड़ों में न होकर  खरबों में है।


अगली बार हम बात करेंगे हिन्दू मज़हब में सृष्टि की रचना के सम्बंध में जुड़े, एक अन्य विचार से। 
इस चिट्ठी के पहले दो चित्र श्री कृष्णा टीवी सीरियल से लिये गये हैं। 

डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
 भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।। सेब, गेहूं खाने की सजा।। भगवान, हमारे सपने हैं।। ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री।।


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There is creationism in Hindu religion too. This post talks about the same. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.



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Wednesday, June 17, 2009

हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है

केरल यात्रा के दौरान हम कोचीन में ताज मालाबार होटेल में रुके थे। इस चिट्ठी में उसी की चर्चा है।


कोचीन में, हम लोग ताज मालाबार होटल में रूके थे। होटल में पहुंचते समय अभिलाष, स्वागत कक्ष पर थे। उन्होंने मुस्कुरा कर हम लोगों का स्वागत किया और कहा कि उसने हमें अपग्रेड दे दिया है और हेल्टज रूम में रहने की सुविधा प्रदान की है। मेरे पूछने पर कि उसने ऎसा क्यों किया। उसने कहा, इसकें दो कारण बताये,
'पहला, हमें पहले पता चल गया था कि हिन्दी चिट्ठाकार उन्मुक्त सपत्नीक आ रहें हैं। हिन्दी चिट्ठाकारों को तो खास कमरा देना ही होता है।'

वाह, हिन्दी चिट्टकारी का यह फायदा तो मुझे मालुम ही न था :-)

स्वगत कक्ष पर अभिलाष,
अभिलाष जी, अन्य हिन्दी चिट्ठकारों का भी ख्याल करना।
'दूसरा, इस समय होटेल में, अच्छे कमरे खाली हैं। आप जब वापस जाएं तो अपने मित्रों को इस होटल के बारे में बतायें और उन्हें यह ठहरने के लिये कहें।'

होटेल के बाहर का दृश्य

ताज मालाबार होटल दो भागों में बना हुआ है पहला भाग पुराना है। इसे १९३६ में अंग्रेजों ने बनवायया था। उस समय यह नाविकों के आराम गृह की तरह प्रयोग किया जाता था। बाद में, ताज होटल ने, इसे खरीद लिया। इसमें एक नई बिल्डिंग बनवायी गयी है जो उसके बगल में बहुमंजिली इमारत है। शायद, हम लोगों का आरक्षण बहुमंजिली कमरे में था। अभिलाष ने हमें, हेल्टज रूम में यानी १९३६ में बने कमरे में भेज दिया। अभिलाष ने मुझसे पूछा,
'इस कमरे में दोनो विस्तर अलग-अलग हैं। यदि आप चाहें तो हम आपको दूसरा कमरा दे सकते हैं जिसमें दोनो बिस्तर साथ साथ हो।'
मैंने जवाब दिया,
'इस उम्र में हमें इसकी कोई जरूरत नहीं है। यह कमरा चलेगा।'


हम लोग जब कमरे में पहुंचे तो मुझे लगा कि हमारा रात में कोचीन में रूकने का निर्णय सही था। यह होटल भी बहुत अच्छा है और उसका कमरा भी। इस कमरे का भी फर्नीचर और समान, उसी समय की स्टाइल में था। इस कमरे के बाहर देखने पर अप्रवाही जल (Back water) और समुद्र का सुन्दर दृश्य दिखायी पड़ता था।


होटेल से बाहर अप्रवाही जल

कुछ साल पहले जब मै एक सम्मेलन में भाग लेने कोचीन आया था तब यहाँ पर 'ला मेरिडियन' होटल में ठहरा था। वह होटल भी एक बेहतरीन होटल है पर ताज मालाबार किसी मायने में उससे कम नहीं है।




सुबह मेरी मुलाकात होटेल के दरबान, ऑगस्टीन से हूई। मैं उसका चित्र नहीं ले पाया पर उसने बताया कि वह काम चलाऊ १८ भाषायें बोल सकता है। मैंने जब उससे पूछा कि उसने यह कैसे सीखा तो उसने बताया,
'कोचीन में विदेशी पर्यटक आते हैं। बस उन्ही से बात करते करते उनकी भाषा सीख ली।'
मैंने ऑगस्टीन से काफी देर बात की। वह मुझे हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति लगा।

हम लोग कुमाराकॉम जाने के पहले, कोचीन के दर्शनीय स्थल भी देखने गये थे। उस श्रंखला की अगली चिट्ठी, उसी के बारे में।

कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा

क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों को तो खास ख्याल रखना होता है।।

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  • क्या हिन्दू मज़हब में भी सृजनवाद है:
  • हिन्दू मज़हब - हम उत्पत्ति और प्रलय के चक्र में हैं:
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Sunday, June 14, 2009

भगवान, हमारे सपने हैं

हिन्दू मज़हब की शुरूआत एकदम अलग है। यह इन सबसे पुराना भी है। हिन्दुओं की सभ्यता में सृष्टि और प्राणि जगत के जन्म की कई धारणायें हैं। इसकी एक धारणा इसके अनन्त होने का वर्णन करती है। इसी की चर्चा इस कड़ी में हैं।

इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
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हिन्दू मज़हब की एक धारणा के अनुसार, हम सब प्रलय और पुन: जीवन के चक्र में चल रहे हैं। कार्ल सेगन ने खगोल शास्त्र में शोध किया है। उन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में कार्य किया है। दो दशक पहले दूरदर्शन में, कार्ल  द्वारा बनाया गया 'कॉस्मॉस्' नामक सीरियल आया था। इसमें ब्रह्मांड विज्ञान और सभ्यता के विकास की कहानी को बताया गया था।  बाद में, इसी सीरियल पर, इसी नाम से उनकी पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी। इसमें, कार्ल  कहते ( पेज २८५) हैं,

'The Hindu religion is the only one of the world's great faith dedicated to the idea that the Cosmos itself undergoes and immense, indeed an infinite number of deaths and rebirths. It is the only religion in which the time scales correspond, no doubt by accident, to those of modern  scientific cosmology. Its cycles run from our ordinary day and night to a day and night of Brahma, 8.64 billion years long, longer than the age of the Earth or the Sun and about half the time since the Big Bang. And there are much longer time scales still.


There is the deep and appealing notion that the universe is but the dream of the god who, after a hundred Brahama years, dissolves himself into a dreamless sleep. The universe dissolves with him – until, after another Brahma century, he stirs, recomposes himself and begins again to dream the great cosmic dream. Meanwhile, elsewhere, there are an infinite number of other universes, each with its own god dreaming the cosmic dream. These great ideas are tempered by another, perhaps still greater. It is said that men may not be the dreams of the gods, but rather that the gods are the dreams of men.'
हिन्दू मज़हब, संसार के प्रसिद्ध मज़हबों में से एक है। केवल इसी में मान्यता है कि सृष्टि रचना और प्रलय के अनन्त चक्र में चलती है। इसमें दिया गया सृष्टि रचना का  समय, आधुनिक विज्ञान के सबसे करीब है … यह चक्र खरबों साल का है ...
इसमें मान्यता है कि सृष्टि, ईश्वर के सपने हैं, जो एक ब्रह्मा शताब्दी में समाप्त होती  हैं और अगली ब्रह्मा शताब्दी में  पुनः इसकी रचना होती है … पर शायद मानव ईश्वर के सपने न होकर, ईश्वर ही मानव के सपने हैं।


रचना और प्रलय का चक्र, ब्रह्मा शताब्दी से जुड़ा है। यह हमारी शताब्दी के बराबर नहीं है पर उससे कहीं बड़ी है। यह कितना बड़ी है यह भी पुराने समय से, गणित की एक पहली के रूप में बताया जाता है। इस पहेली के जिक्र मैंने '२ की पॉवर के अंक, पहेलियां, और कम्पयूटर विज्ञान' श्रंखला की इस कड़ी में भी किया है। इसे मैंने अपने बचपन में गुणाकर मुले की पुस्तक ‘गणित की पहेलियाँ’ नाम से लिखी है। इसमें एक अध्याय ‘अंकगणित की पहेलियाँ’ नाम से है। इसमें इस पहेली का वर्णन कुछ इस तरह से है:
'कथा बहुत  प्राचीन है। उस समय काशी  में  एक  विशाल  मन्दिर था। कहा जाता है  कि ब्रम्हा ने जब इस संसार  की  रचना की,  उसने  इस मंदिर  में हीरे की बनी हुई  तीन छड़ें रखी  और फिर इनमें से एक में छेद  वाली  सोने की ६४ तश्तरियां  रखीं  सबसे बड़ी नीचे और सबसे  छोटी सबसे उपर। फिर ब्रम्हा ने वहां पर  एक  पुजारी को नियुक्त किया। उसका काम था कि वह एक छड  की तश्तरियां दूसरी छड़  में बदलता जाए।  इस काम के लिए  वह तीसरी छड़  का  सहारा ले सकता  था परन्तु  एक  नियम  का पालन जरूरी  था। पुजारी  एक समय केवल  एक  ही  तश्तरी उठा सकता था और छोटी तश्तरी के  उपर  बड़ी  तश्तरी वह  रख नहीं  सकता  था। इस  विधि  से जब सभी  ६४ तश्तरियां एक छड़  से  दूसरी छड़  में पहुंच जाएंगी, सृष्टि का अन्त हो जाएगा।
आप कहेंगे,
"तब तो कथा की  सृष्टि का अन्त हो जाना चाहिए था। ६४ तश्तरियों को एक छड़ से दूसरी छड़  में  स्थांतरित करने में समय ही कितना  लगता है।"
नहीं, यह 'ब्रम्ह-कार्य' इतनी शीघ्र समाप्त नहीं हो सकता। मान लीजिए  कि एक तश्तरी के बदलने में एक  सेकेंड का समय  लगता  है। इसके माने यह हुआ कि एक घंटे में आप ३६०० तश्तरियां बदल लेंगे। इसी प्रकार एक दिन  में आप  लगभग १००,००० तश्तरियों और १० दिन  में लगभग १,०००,००० तश्तरियां बदल लेंगे।
आप  कहेंगे,
"इतने परिवर्तनों में  तो ६४ तश्तरियां निश्चित रूप  से एक छड़  से दूसरी छड़ में पहुंच जाएंगी।" 
लेकिन  आपका अनुमान गलत है । उपरोक्त 'ब्रम्ह-नियम'  के अनुसार ६४ तश्‍तरियों  को बदलने में  पुजारी  महाशय  को  कम  से  कम ५,००,००,००,००,००० (पांच खरब) वर्ष लगेंगे।
इस बात पर शायद यकायक  आप विश्वास न करें । परन्तु गणित के हिसाब  से कुल परिवर्तनों की संख्या   २६४-१, अर्थात १८,४४६,७४४,०७३,७०९,५५१,६१५ होती   है,'
यह संख्या इतनी बड़ी है कि मैं नहीं जानता कि इसे शब्दों में क्या कहा जाय। क्या आप को मालुम है?


कार्ल सेगन की तरह, फ्रिटजॉफ कापरा ने भी विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए अपना योगदान दिया है। इन्होंने  वियना विश्वविद्यालय से भौतिक शास्त्र में शोध किया है। कापरा के अनुसार भी  हिन्दुवों की कई मान्यतायें आधुनिक विज्ञान के सबसे करीब है।  वे अपनी पुस्तक 'द टॉओ ऑफ फिज़क्सि' (पेज २५६-२५९) में कहते हैं,
The Eastern mystics have a dynamic view of the universe similar to that of modern physics, and consequently it is not surprising that they, too, have used the image of the dance to convey their intuition of nature.
...
The metaphor of the cosmic dance has found its most profound and beautiful expression in Hinduism in the image of the dancing god Shiva. Among his many incarnations, Shiva, one of the oldest and most popular Indian gods, appears as the King of Dancers. According to Hindu belief, all life is part of a great rhythmic process of creation and destruction, of death and rebirth, and Shiva's dance symbolizes this eternal life-death rhythm which goes on in endless cycles.
...
क्या शिव का यह नृत्य 'रचना और प्रलय', 'जीवन और मृत्यु' दर्शाता है? क्या यही, आधुनिक भौतिक शास्त्रियों के मूल-कणों का नृत्य है? 

For the modern physicists, then, Shiva's dance is the dance of subatomic matter. As in Hindu mythology, it is a continual dance of creation and destruction involving the whole cosmos; the basis of all existence and of all natural phenomena. Hundreds of years ago, Indian artists created visual images of dancing Shivas in a beautiful series of bronzes. In our time, physicists have used the most advanced technology to portray the patterns of the cosmic dance. The bubble-chamber photographs of interacting particles, which bear testimony to the continual rhythm of creation and destruction in the universe, are visual images of the dance of Shiva equalling those of the Indian artists in beauty and profound significance. The metaphor of the cosmic dance thus unifies ancient mythology, religious art and modern physics.
पूर्वी सन्तों की सृष्टि की कल्पना, आधुनिक भौतिक शास्त्रियों के अनुसार है। आश्चर्य नहीं कि इसलिये प्रकृति को समझाने के लिये नृत्य का सहारा लिया। 

हिन्दू मज़हब में इसे शिव के नृत्य द्वारा सबसे बेहतरीन तरीके से समझाया गया है। यह नृत्य   रचना-प्रलय जीवन-मृत्यु का प्रतीक है।

आधुनिक भौतिक शास्त्रियों के लिये शिव का नृत्य मूल कणों का नृत्य है ...


तो क्या हिन्दू मज़हब में सृजनवाद नहीं है? यदि है तो वह कहां है? इसके बारे में अगली बार।


यदि आप कॉसमॉस सीरियल की वह कड़ी देखना चाहते हैं जिसका कुछ हिस्सा मैंने इस चिट्ठी में उद्धरित किया है तो आप नीचे देख सकते हैं।

कार्ल सेगन और शिव का नृत्य करता चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से है।


डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।। सेब, गेहूं खाने की सजा।। भगवान, हमारे सपने हैं।।


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In Hindu religion, there are many stories about creation of universe and life. One of the stories says that we are in cycles of creation and destruction. This post talks about the same.  It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.


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Wednesday, June 10, 2009

हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा नाटक भोपाल में खेले और देखे जा रहे हैं

इस चिट्ठी में भोपाल की बड़ी झील, वहां के नाटक और हिन्दी की लेखिका मालती जोशी की चर्चा है।

मुझे काम के सिलसिले में कभी-कभी भोपाल जाना होता है। मुझे यह शहर अच्छा लगता है। चौड़ी सड़कें, झीलें मन मोह लेती हैं। मेरे कई मित्र, जान पहचान के लोग भोपाल में रहते हैं। इसलिये यह शहर और भी अच्छा लगता है।


मैं कुछ दिन पहले भोपाल में था। वहां मैं कोशिश करता हूं कि वन विहार और बड़ी झील पर भी जाऊं। यह झील बहुत बड़ी है और इसमें समुद्र जैसी लहरें आती हैं।

मैं इस बार भी बड़ी झील पर घूमने के लिये गया पर उसमें पानी बहुत कम रह गया है। बिलकुल पतली सी हो गयी है। लोगों का कहना है कि पिछले दो सालों से वहां पानी ठीक से नहीं बरसा इसलिये पानी सूख गया। आशा करता हूं कि इस साल खूब बरसे ताकि इसमें पूरा पानी आ जाय अन्यथा इस सुन्दर दृश्य से हम सब वंचित रह जायेंगे।


भोपाल के भारत भवन में भारत भवन है। यह सुन्दर जगह है - कला प्रेमियों के लिये। मुझे नाटक देखने का भी शौक है। इसमें 'इफ्तेकार नाट्य समारोह' चल रहा था। मैं वहां इसका आखिरी नाटक 'रेशम का यह शायर' देखने के लिये गया।

भारत भवन पहुंचने में मुझे कुछ देर हो गयी थी। वहां पर लगभग दो सौ कारें खड़ी थीं। मुझे आश्चर्य हुआ कि उतने लोग नाटक देखने में रुचि रखते हैं। गेट पर पहुंचा तो अचम्भा और भी बढ़ गया। वहां तीस रुपये का टिकट था। मैं नहीं समझता था कि कोई टिकट लेकर नाटक देखने आयेगा। मैंने टिकट खरीदना चाहा पर टिकट बेचने वाले ने कहा कि नाटक खत्म हो रहा है आप ऐसे ही चले जाईये।

भारत भवन में खुली जगह भी है और हॉल भी है। नाटक हॉल के अन्दर हो रहा था। वहां तिल रखने की जगह नहीं थी। वह हॉल एयर कंडीशन तो था पर भीड़ के कारण बिलकुल काम नहीं कर रहा था। पसीने छूटने लगे। लगता है कि टिकट बेचने वाले ने टिकट इस लिये देने से मना कर दिया कि टिकट बचे ही नहीं होंगे और मुझसे बहाना मार दिया। खैर मैंने तो मुफ्त में ही नाटक देख लिया :-)

इस नाटक में गुलज़ार की नज़्मों, शायरी, त्रिवेणियों और फिल्मी गीतों को पिरो कर शायर के जीवन की झलक दिखायी गयी थी जो कि रिश्तों के बारे में थी।



नाटक समाप्त होने के बाद, मेरी एक पत्रकार प्रवीण दीक्षित से मुलाकात हुई। मैंने जब इतनी भीड़ और टिकट लगने पर आश्चर्य प्रकट किया तो उसने बताया,
'हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा नाटक भोपाल में खेले और देखे जा रहे हैं। परसों तो इतनी भीड़ हो गयी थी कि बाहर स्क्रीन लगानी पड़ी।'
नाटक भविष्य भोपाल में उज्जवल है। जया भादुड़ी भोपाल की हैं और बेहतरीन कलाकारा हैं। मुझे लगता है कि वहां से अन्य बेहतरीन कलाकार भी निकलने चाहिये।
'रेशम का यह शायर' नाटक का यह चित्र प्रवीण दीक्षित जी ने मुझे ईमेल से भेजा है और उन्हीं के सौजन्य से है।

मुझे शाम को एक जगह मिलने जाना था। उनकी पत्नी ने हिन्दी की कुछ पुस्तकें पढ़ने की इच्छा व्यक्त की थी। मालती जोशी मेरी हिन्दी की मेरी प्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। वे भोपाल शहर में रहने वाली हैं। मुझे लगा कि उनकी ही पुस्तक ले लूं और यदि हो सके तो उनसे मिल कर उनके हस्ताक्षर करवा लूं।


मैं एक दुकान पर उनकी पुस्तकें खरीदने गया। मैंने उनकी दो पुस्तकें 'मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियां' और 'दर्द का रिश्ता' खरीदीं। दुकान मालिक से बात भी की। मैंने दुकान मालिक से कहा, कि मालती जोशी, इसी ४ जून को ७५ साल की हो रही हैं। क्यों नहीं वे लोग उनका अभिनंदन समारोह करते हैं। उसमें उनकी पुस्तकों के बारे में बात कर सकते हैं। उसके बाद यदि यह अखबार में इसे निकाला जाए तो हिन्दी की पुस्तकों का प्रचार होगा और उनकी पुस्तकें बिक सकेंगी।


दुकान मालिक को यह बात नहीं मालूम थी कि मालती जोशी ७५ साल की हो रही हैं। शायद इसका भी पता नहीं था कि वे भोपाल की रहने वाली हैं। मेरे जोश दिलाने पर उसने कहा,
'यहां एक पुस्तकालय है। मैं उनसे बात कर इस तरह का समारोह करवाने का प्रयत्न करुंगा।'

मैं चार जून के पहले ही भोपाल से चल दिया। मुझे नहीं मालूम कि यह समारोह हुआ कि नहीं पर यदि हुआ हो तो उसमें मेरा भी कुछ श्रेय है। मुझे दुख है कि मालती जोशी से नहीं मिल सका। प्रयत्न करुंगा कि यह अगली बार कर सकूँ।


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Sunday, June 07, 2009

मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता है

केरल घूमने में हमारा अनुभव अच्छा रहा। इस चिट्ठी में वहां हमारे साथ रहे टैक्सी ड्राइवर के बारे में चर्चा है।

हम लोगों ने केरल घूमने का पैकेज 'इन्टर साइट टूरस् एवं ट्रैवल्स्' कम्पनी से लिया था। उनकी तरफ से हवाई अड्डे पर हमें प्रवीन लेने आये थे। उसके पास वातानुकूलित टाटा इंडिका गाड़ी थी। वे इसके चालक थे। हमें पूरा पैकेज इन्हीं के साथ लेना था। इन्हें ही अंत पर हमें त्रिवेन्द्रम के हवाई अड्डे पर छोड़ना था।


हम लोगों ने जब साउथ अफ्रीका में क्रुगर पार्क घूमने के लिये सारी बुकिंग अन्तरजाल पर ही करवायी थी। उस समय हम डर रहे थे कि सब ठीक होगा या नहीं। लेकिन वहाँ पर सब काम बहुत अच्छी तरह से हुआ। वहाँ का ड्राइवर हमेशा समय से आता था। हमारा वहां का अनुभव, बहुत अच्छा था। हमें केरल की ट्रिप में भी कुछ इसी तरह का अनुभव हुआ।


हमारी गाड़ी के चालक, प्रवीण भी समय के पाबन्द थे। इनको जो भी समय बताया जाता था उस वक्त वह वहाँ पर मौजूद रहते थे। उनकी कार एकदम साफ रहती थी। वह हमेशा साफ सुथरे, सफेद कपड़े, पहनते थे। वे बातचित करने मे भी अच्छे थे। हर जगह की खासियत बताते थे, वहां पर क्या खरीदा जा सकती है, कौन सी दुकान अच्छी है। इस तरह सूचनांए भी हम लोगों को देते रहते थे। उनका बर्ताव भी बहुत अच्छा था। हमें उनके साथ घूमना अच्छा लगा।


प्रवीन ने बताया की उसके परिवार में सब लोगों का नाम 'प्र' अक्षर शुरू होता मैंने पूछा की क्या प्र से नाम का शुरू होना शुभ होता है। उसने कहा,
'हां, मेरे घर में सबका नाम प्र से शुरू होता है। मेरी पत्नी का नाम प्रविधा है मेरी बेटी का नाम प्रवीना है। न केवल मेरे पिता का नाम प्र से शुरू होता है पर भाई और भाभी एवं मेरी पत्नी तथा भाभी के मायके वालों का नाम भी प्र से शुरू होता है।'
प्रवीन एक बात से दुखी थे उन्होंने बताया,
'केरल में बहुत से लोग घूमने के लिए आते हैं। उसके लिए बहुत सारे होटल बने हुए हैं। लेकिन होटल मालिकों ने कोई भी जगह टैक्सी चालकों के रहने के लिए नहीं रखी है। हर रात टैक्सी चालक, अपनी टैक्सी में ही सोते हैं। रात में टैक्सी चालक खिड़की नहीं खोल सकते, क्योंकि मच्छर काटते हैं। गाड़ी में, गर्मी और उमस हो जाती है। इसलिए ड्राइवर गाड़ी मे ए.सी. चलाकर सोते है। इस कारण हर रात को केरल में लगभग एक लाख लीटर पेट्रोल और डीज़ल खर्च हो जाता है। यदि हर होटल में टैक्सी चालक के रहने के लिए शयनागार हो तो यह पेट्रोल और डीज़ल का खर्चा बचाया जा सकता है।'
उसने यह भी बताया,
'हमारे संगठन ने इस बात की लिखित तथा फोन पर शिकायत पेट्रोलियम मंत्रालय में की है। पर उन्होंने इस पर कुछ भी करने से मना कर दिया। हम लोग इस बात से बहुत ही हताश हैं।'
उसका यह भी कहना था,
'यहां पर कानून के अन्तर्गत तो सारे होटल मालिको को चालकों के लिये शयनागार बनाना चाहिए। लेकिन कोई भी होटल का मालिक उसे नहीं बनाता है और केवल कागजी कार्यवाही की जाती है। जो सरकारी लोग उसको चेक करने के लिए आते है वह भी ठीक से चेक नही करते है और वो घूस खा लेते हैं।'
उक्त बात के अतिरिक्त, प्रवीण ने मुझसे कोई भी बात नहीं की जिसमें केरल की कोई बुरायी निकलती हो। वह अपने प्रदेश के लिए बहुत ही उत्साहित था और उसके मुताबिक वहाँ जगह- जगह उन्नति हो रही है और केरल बहुत आगे जायेगा।


मेरी पत्नी ने एक-दो बार कार का दरवाजा जोर से बंद किया तो। प्रवीण ने उसे समझाया।
'मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता है क्योंकि इससे दरवाजा खराब हो सकता है।'
मैंने प्रवीण को बताया कि हमने मारूति की ए-स्टार खरीदी है उसका कहना था,
'कभी भी नई निकली कार नहीं खरीदना चाहिए। उस तरह की कारें, जब छ: महीना चल ले तब लेनी चाहिए। क्योंकि इस समय के अन्दर उस तरह की कारों की कमियां पता चल जाती है और उसके बाद खरीदने पर विचार किया जा सकता है कि उसे लेना चाहिए अथवा नहीं।'
ऎसे बात तो सही है पर हम तो ए-स्टार गाड़ी खरीद चुके हैं।


यह गाड़ी प्रवीण की थी जिसे उसने बैंक से ऋण पर लिया था। कार के लिये उसने ८० प्रतिशत ऋण लिया है और २० प्रतिशत स्वयं लगाया है। इसके लिये उसकी कम्पनी ने भी उसकी मदद की थी। उन्होंने इस बात को लिखकर दिया है कि प्रवीण की गाड़ी उनकी कम्पनी के साथ सम्बद्व रहेगी और इसके लिए प्रत्येक महीने वे एक निश्चित पैसा देगें जिससे वह कार के ऋण को वापस कर सकता है। वहां घूमने वाली कम्पनी की गाड़ी तीन साल से पुरानी गाड़ी नहीं लगायी जाती है। उसकी गाड़ी को भी लगभग डेढ़ साल हो चुका है और डेढ़ साल के अन्दर बेचकर दूसरी गाड़ी लेगा। वह डीजल की टाटा इन्डिका ही लेगा। उसके मुताबिक,
'यह चलने में सबसे अच्छी गाड़ी है।'


हम लोग कोचीन में ताज मालाबार होटल में रुके थे, अगली बार कुछ इसी के बारे में।

कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा

क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।।

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सांकेतिक शब्द
टैक्सी, ट्रैवेल गाइड
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