Friday, October 28, 2011

गोलककोण्डा किला और विश्वप्रसिद्ध हीरे - भूमिका

गोलककोण्डा की खदानों से निकले हीरे विश्वप्रसिद्ध हैं।
यह चिट्ठी 'गोलकोण्डा किला और विश्वप्रसिद्ध हीरे' नामक श्रृंखला की भूमिका है।

गोलकोण्डा किले से हैदराबाद शहर
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Friday, October 21, 2011

जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें

इस चिट्ठी में, मथुरा में, कृष्ण जन्मभूमि की चर्चा है।
कृष्ण जन्म भूमि पर मन्दिर और बगल में मस्जिद

Friday, October 14, 2011

कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा

इस चिट्ठी में में मथुरा-वृन्दावन के महत्व के कारण की चर्चा है।  
कन्धई चित्रकला का नमूना

Thursday, October 06, 2011

स्टीव जॉबस्—कम्प्यूटर उपभोक्ता उत्पाद के पथ प्रदर्शक

स्टीव जॉबस् का चित्र विकिपीडिया से
यह चिट्ठी, स्टीव जॉबस् को श्रद्धांजलि है।
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दूसरे की गलती से सीखने वाले, बुद्धिमान होते हैं

यह चिट्ठी ई-पाती श्रंखला की कड़ी है। यह श्रंखला, नयी पीढ़ी की जीवन शैली समझने, उनके साथ दूरी कम करने, और उन्हें जीवन मूल्यों को समझाने का प्रयत्न है। सच में बुद्धिमान वह हैं जो दूसरी की गलती से ही सीख ले लेते हैं।


मैंने कुछ दिन पहले 'जिया धड़क धड़क जाये' शीर्षक से चिट्ठी प्रकाशित की थी। इसमें वर्ष २००८ का लेखा जोखा लिखा था। कुछ लोगों को लगा कि मैं इस बात से दुखी हूं कि मुझे टिप्पणियां कम मिलती हैं।
  • मुझे इस बात का मलाल नहीं है कि मुझे टिप्पणियां कम मिलती हैं। टिप्पणियां न मिलने के कई कारण हैं। मैं उनसे वाकिफ हूं। मैंने उक्त चिट्ठी पर टिप्पणियों की बात, सांख्यिकी के तौर पर लिखी थी न कि शिकायत के कारण।
  • मुझे मालुम है कि मेरी चिट्ठियां पढ़ी जाती हैं। मुझे, वर्ष २००६ में लिखी चिट्ठियों पर, औसतन एक से भी कम टिप्पणियां मिलीं। फिर भी, हिन्दी चिट्टागजत ने, इसी साल के लिये तरकश द्वारा आयोजित चुनाव में रजत कलम दिया। अब जब समीर जी सामने हों तो किसी और को स्वर्ण कलम कैसे मिल सकता है :-)
  • मुझे यह भी लगता है कि कुछ लोग मेरा लेखन पसन्द करते हैं। शायद, इसीलिये इस वेबसाइट को शुरू किया होगा।


    कौन है यह शख़्स, क्यों शुरू की यह वेबसाइट - कुछ समझ में नहीं आता है। लगता है कि मैं अज्ञात में चिट्ठाकारी करता हूं इसलिये ईश्वर ने मुझे यह सजा दी कि तुम भी इसी सोच में परेशान रहो।

कई लोगों को मेरी यह चिट्ठी, अलग-अलग कारणों से पसन्द नहीं आयी पर मेरे परिवार वालों को यह चिट्ठी अच्छी लगी। मुन्ने की सात समुन्दर पार से लिखी ईमेल और उसे मेरा जवाब यह है।