Saturday, February 15, 2014

राज्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणकर्ता है

इस चिट्ठी में, सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा निर्णीत किया गया मेसर्स एम.सी.मेहता विरुद्ध कमलनाथ १९९७ (१) एस.सी.सी. ३८८ (कमलनाथ केस) तथा उसमें प्रतिपादित सिद्धान्त की चर्चा है।
सुन्दर हिमाचल - प्राकृतिक संसाध का प्रयोग केवल जनहित के लिये
मेसर्स स्पान मोटल्स को करीब ४० बीघा ३ बिस्वा जमीन दिनांक ०१.१०.१९७२ से ०१.१०.२०७१ यानि ९९ वर्ष के लिये दिनाँक- २९.०९.१९७२ को, पट्टे पर दे दी गई। सन् १९८१ में, इस मोटेल के लगभग सभी अंश/ शेयर कमलनाथ के पास पहुंच गये।  इसी समय तक मोटेल, ने अवैध रूप से वन भूमि पर कब्जा भी कर लिया।

तत्पश्चात्, जब पर्यावरण व वन मंत्रालय, कमलनाथ के प्रभार में था, तब भारत सरकार के पर्यावरण व वन मंत्रालय ने, दिनांक २४.११.१९९३ को, २७ बीघा व १२ बिस्वा जमीन के पट्टे का अनुमोदन प्रदान कर दिया।  यह वही वन भूमि थी, जिस पर मोटेल ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया था। इस क्षेत्र का पट्टा हिमाचल प्रदेश की सरकार ने दिनांक ११.०४.१९९४ को निष्पादित किया।

दिनांक २५.०२.१९९६ को इंडियन एक्सप्रेस में एक समाचार छपा था किः

  • मोटेल ने वन भूमि पर अतिक्रमण कर उस पर निर्माण किया है;
  • इस अवैध कार्यवाही का नियमितिकरण किया जा रहा है;
  • इस अवैध कब्जे के कारण ब्यास नदी का रास्ता बदल रहा है।

उक्त रिपोर्ट पर उच्चतम न्यायालय ने, स्वमेव कार्यवाही करते हुए मेसर्स एम.सी.मेहता विरुद्ध कमलनाथ १९९७ (१) एस.सी.सी. ३८८ (कमलनाथ केस) शुरू किया।  उच्चतम न्यायालय ने दिनांक ११.०४.१९९४ को, प्रदत्त पट्टे अवैध मान्य करते हुए उसे निरस्त कर दिया।  


न्यायालय ने इस मुकदमे को निर्णीत करते समय, लोक न्यास (Public Trust) का सिद्धान्त लागू किया। इसका अर्थ यह है कि राज्य, समस्त प्राकृतिक संसाधनों का जनहित के लिये न्यासी और संरक्षणकर्ता है। उसे केवल जनहित के लिये प्रयोग किया जा सकता है अन्यथा नहीं।


उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें। 

हरित पथ ही राजपथ है 
भूमिका।। विश्व पर्यावरण दिवस ५ जून को क्यों मनाया जाता है।। टिकाऊ विकास और जनहित याचिकाएं क्या होती हैं।। एहतियाती सिद्घांत की मुख्य बातें क्या होती हैं - वेल्लौर केस।। नुकसान की भरपाई, प्रदूषक पर - एन्वायरो एक्शन केस।। राज्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणकर्ता है।।


About this post in Hindi-Roman and English
This post, in Hindi (Devanagari script) talks about 'M/s MC Mehta Vs. Kamalnath' 1997 (1) SCC 388 (the Kamalnath case) and the principles decided therein. You can read it in Roman script or any other Indian regional script as well – see the right hand widget for converting it in the other script. 

hindi (devnaagree) kee is chitthi mein 'M/s MC Mehta Vs. Kamalnath' 1997 (1) SCC 388 (the Kamalnath case) mukdmen aur usmen pratipadit sidhant kee charchaa hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.


5 comments:

  1. सौन्दर्य अपने विनाशक आकर्षित करता है, मरुस्थल में कोई मोटेल बनाने नहीं जाता। प्रकृति की रक्षा तो मिलकर ही करनी होगी।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति को आज की मिर्ज़ा ग़ालिब की 145वीं पुण्यतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. मोटेल बंद हुआ या उसे कोई और जामा पहनाकर डील को विधिसम्मत किया गया, कोई आईडिया सरजी?

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  4. बहुत ही बढिया जानकारी दी है आपने साधुवाद

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