Saturday, November 29, 2014

यदि ब्रह्माण्ड जवाब है तो सवाल क्या था

इस श्रंखला की पहली कड़ी में, हिग्स बॉसौन की चर्चा थी। इसकी दूसरी कड़ी में चर्चा थी कि  इसका नाम गॉड पार्टिकल क्यों पड़ा।  

इस कड़ी में, १९८८ के नोबल पुरस्कार विजेता लिऔन लेडरमैन एवं डिक टेरेसी की लिखी पुस्तक 'द गॉड पार्टिकल – इफ यूनिवर्स इस द आन्सर, वॉट इस द क्वेस्चेन?' (The God Particle: If the Universe Is the Answer, What Is the Question ?) की समीक्षा है।

लिऑन लेडरमैन प्रयोगिक भौतिक शास्त्री हैं। १९८८ में, उन्हें, माइक श्वार्टज़ एवं जैक स्टाइनबर्गर के साथ, न्यूट्रिनो पर,  काम करने के लिये नोबल पुरस्कार मिला।  उन्होंने, 'द गॉड पार्टिकल – इफ यूनिवर्स इस द आन्सर देन वॉट इस द क्वेसचेन?' पुस्तक तब लिखनी शुरू की जब अमेरिका के टेक्साज़ राज्य के, वौक्साहैशि शहर में, सुपरकंडक्टिंग सुपर कॉलाइडर (superconducting super collider) (SSC) (एसएससी) का बनना आरंभ हुआ। यह समय भौतिक शास्त्रियों के लिये जोश से भरा समय था और उन्हें लगता था कि बहुत जल्द ही हिग्स बॉसौन की खोज कर ली जायगी।

इस पुस्तक में, कण भौतिकी (Particle Physics) के इतिहास के साथ, कण भौतिकी से जुड़े वैज्ञानिकों और उनसे जुड़े किस्सों की चर्चा है। यह शुरू होती है ईसा से ६०० साल पूर्व ग्रीक दार्शनिक थालीस (Thales) से, जिसने सबसे पहले यह सवाल पूछा कि क्या ब्रह्माण्ड के सारे पदार्थों को, किसी मूलभूत सिद्धांत के अन्दर, किसी एक कण से जोड़ा जा सकता है।

इस पुस्तक का दूसरा पड़ाव ईसा से ४५० साल पूर्व ग्रीक दार्शनिक डिमॉक्रिटस (Democritus) है, जिसने ऐसे कणों, एटम (atomos) की कल्पना की जो दिखायी नहीं देते हैं पर न तो उन्हें काटा जा सकता था न ही तोड़ा। 

पुस्तक भौतिक शास्त्रियों एवं रसायन शास्त्रियों के बीच चलती है। पुस्तक में रसायन शास्त्रियों का भी जिक्र आवश्यक था क्योंकि डालटन ने ही किसी भी तत्व के सबसे छोटे कण को एटम का नाम देकर डिमॉक्रिटस को पुनः जीवित किया। पुस्तक का यह पड़ाव रुकता है जेजे थॉमसन (JJ Thomson) पर, जिन्होंने एलेक्ट्रॉन की खोज कर यह सिद्ध किया कि एटम से भी छोटे कण हैं।

भौतिक शास्त्र का पुराना युग, न्यूटोनियन भौतिक शास्त्र का था। लेकिन आधुनिक भौतिक शास्त्र तो क्वांटम भौतिक शास्त्र का है। यह बताता है कि एटम के अन्दर क्या होता है। एटम से छोटे कण किस प्रकार से व्यवहार करते हैं। यदि किसी पदार्थ की प्रकृति कण की है तो उसकी प्रकृति तरंग की भी है।

क्वांटम सिद्धान्तों किस प्रकार से आये, उनका विकास कैसे हुआ - इसकी चर्चा पुस्तक में सरल तरीके से की गयी है। इसी के साथ-साथ, विषय से संबन्धित वैज्ञानिकों के मज़ेदार किस्सों का सिलसिला भी चलता रहता है जो पुस्तक को रोचक बनाता है।

मैक्स प्लांक ने तरगों की ऊर्जा और उसकी फ्रीक्वेनसी के बीच संबन्ध निकाला था और इसका स्थिरांक इन्हीं के नाम पर जाना जाता है। एक बार, वे भूल गये कि उन्हें किस कक्षा को और कहां पढ़ाना है। वे विभाग के ऑफिस पहुंचे और क्लर्क से पुछा कि मैक्स प्लांक कहां पढा रहे हैं। क्लर्क ने उनकी तरफ आंखें तरेरी और कहा,
'नवयूवक, तुम्हें वहां जाने की कोई जरुरत नहीं है। तुम बहुत छोटे हो। तुम्हें ज्ञानी प्रोफेसर मैक्स प्लांक की बातें समझ में नहीं आयेंगी।'
क्वांटम यांत्रिकी (Quantum mechanics) सहज-ज्ञान के विपरीत है। वह सहज-ज्ञान से नहीं समझी जा सकती। क्वांटम यांत्रिकी की नीव नोबल पुरस्कार विजेता नील्स बोर भी थे। वे कहते थे, यदि कोई क्वांटम सिद्धान्तों से स्तंभित नहीं होता तो उसे इन सिद्धान्तों की समझ नहीं है। फानइनमेन का कुछ और ही कहना था। उनके मुताबिक कोई भी क्वांटम सिद्धान्तों को ठीक से नहीं समझता। आइंस्टाइन भी बहुत समय तक क्वांटम सिद्धन्तों से सहमत नहीं थे वे कहते थे कि ईश्वर पांसे नहीं खेलता।

यही कारण है कि बहुत से लोग क्वांटम सिद्धान्तों मज़हब और रहस्यवाद से जोड़ते हैं और इन दोनों जोड़ती कुछ पुस्तकें लिखी गयी हैं इनमें मुख्य हैं  फ्रिटजॉफ  कापरा की 'टाओ ऑफ फिज़िक्स' और गैरी ज़ुकाव की 'द डांसिंग वू ली मास्टरस'। लेडरमैन यह तो मानते हैं कि इन दोनों के कारण कुछ लोगों को भौतिकि में दिलचस्पी हुई पर इनको गलत तरीके से मज़हब से जोड़ने के लिये आलोचना करते हैं।

प्रायोगिक कण भौतिकी में,  शोध, कणों को ऊर्जावान कर, आपस में टकराने के बाद मिले आंकड़ों से होता है। इस काम को जिस उपकरणों में किया जाता है उन्हें ऐक्सेलरेटर/ कोलाइडर कहा जाता है। पुस्तक में एक अध्याय इनके इतिहास के बारे में भी है।

प्रकृति में बहुत सी सममितियां (Symmetry) हैं। यह सारी किसी न किसी संरक्षण के नियम से जुड़ी हैं। इन दोनों (सम्मिति और उससे जुड़ा संरक्षण का नियम) में से यदि एक सच है तो दूसरा भी सच है; यदि एक गलत है तो दूसरा भी गलत है। 

मुझे सबसे अच्छी बांये-दायें की सम्मिति (symmetry) लगती थी। यह बताती है प्रकृति बांये या दायें में फर्क नहीं समझती – उसके लिये दोनों बराबर हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि प्रकृति मे बांये या दायें का अन्तर नहीं होता है। इसका केवल यह मतलब है कि प्रकृति यदि कोई काम बांये तरफ से कर सकती है तो दायें तरफ से भी; प्रकृति, बांये या दायें दोनों को, बराबर पसन्द करती है; इनमें से किसी को ज्यादा पसन्द नहीं करती। 

यानि कि, जो बात यहां सच है वह उसके आइने के प्रतिबिम्ब में भी सच होगी। दूसरे शब्दों में कोई नियम नहीं है जिससे पता चल सके कि कोई बात यहां हो रही है और कौन सी उसके आईने के प्रतिबिम्ब में। आप किसी भी नियम से यह नहीं बता सकते कि यह वास्विक दुनिया है या आइने के प्रतिबिम्ब की दुनिया।

बांये-दायें की सम्मिति, पैरिटी संरक्षण का नियम,से जुड़ी थी। १९५७ मे रौचेस्टर विश्वविद्यालय मे भौतिक शास्त्र की एक गोष्टी मे इस तरह के सवाल उठाये गये कि क्या ऐसा हो सकता है कि कुछ परिस्थितियों मे पैरिटी न संरक्षित हो। उसके कुछ वर्ष बाद दो चाईनीस वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि पैरिटी हमेशा संरक्षित नहीं होती है। इस बात को किसी और संदर्भ में चिट्ठी 'आईने, आईने, यह तो बता – दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन' में बताया है। पैरिटी कैसे संरक्षित नहीं होती है इसे समझने में कुछ मुश्किल होती है। पुस्तक में इसे भी बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है।

इस पुस्तक में, एक अध्याय हिग्स फील्ड के बारे में जिसे अच्छी तरह से समझाया गया है। हालांकि जब यह पुस्तक लिखी गयी उस समय न तो सर्न का लार्ज हैडरॉन कोलाइडर बनना शुरू हुआ था न ही हिग्स बॉसौन की खोज हुई थी।


पुस्तक में समीकरण हैं पर वे नहीं के बाराबर हैं। यह इस पुस्तक की सबसे अच्छी बात है। लेकिन, इसे समझने के लिये भौतिकी का कुछ ज्ञान आवश्यक है। यदि आपको विज्ञान में रुचि है, आपने इन्टर तक भौतिकी पढ़ी है तब इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। यदि आपके बेटे या बेटी विज्ञान में रुचि रखते हैं और वे इन्टर या इससे उपर की कक्षा में पढ़ रहे हैं तो उन्हें यह पुस्तक उपहार में दें।


उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें
ईश्वरीय कण
मिल गया, मिल गया।। हिग्स बॉसौन का नाम गॉड पार्टिकल क्यों पड़ा।। यदि ब्रह्माण्ड जवाब है तो सवाल क्या था।।
 
About this post in English and Hindi (Roman)
This post in Hindi (devnagri) is review of Leon Lederman's book 'The God Particle: If the Universe Is the Answer, What Is the Question?'. You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

Hindi (devnagri) kee is chitthi mein Leon Lederman kee likhee pustak 'The God Particle: If the Universe Is the Answer, What Is the Question?' kee samaakchha hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

सांकेतिक शब्द
CERN, Large Hadron Collider, Higgs Boson, Peter Higgs, François Englert, Superconducting Super Collider, Leon Lederman, The God Particle: If the Universe Is the Answer, What Is the Question?, Melvin Schwartz, Jack Steinberger, 
।  Scienceविज्ञान, समाज, ज्ञान विज्ञान, ।  technology, technology, Technology, technology, technologyटेक्नॉलोजी, टैक्नोलोजी, तकनीक, तकनीक, तकनीक,
Hindi,


9 comments:

  1. नोबेल पुरस्कार विजेता की पुस्तक ऐसी आखिर क्यों न हो -सिफारिश कबूल सर !

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  2. बहुत बढ़िया शीर्षक, बहुत ही बढ़िया, जबरदस्त...
    साथ ही 600 ईसा. पूर्व के उस प्रश्न (विचार) को पढ़कर बहुत आनंद आया। जिसने मूलभूत कणों की खोज की आधारशिला रखी। अब क्वांटम भौतकी है ही इतनी रोमांचक कि लोगों को सोचने में मजबूर कर दे। दरअसल क्वांटम भौतिकी का मूल "अनिश्चितता का सिद्धांत" दो तथ्यों से मिलकर बना है। और उसके निष्कर्षों ने वैदिक और चीनी सभ्यता के "ब्रह्माण्ड के समूह" में होने की अवधारणा को पुनःजीवित कर दिया है। जहाँ इस सिद्धांत का एक कथन ब्रह्माण्ड के स्वरुप के बारे में है। तो दूसरा उसकी परिघटनाओं के बारे में है। एक कथन समान्तर ब्रह्माण्ड के परिदृश्य के बारे में है तो दूसरा शिशु ब्रह्माण्ड के परिदृश्य के बारे में है। और फिर किसी अन्य ब्रह्माण्ड में गांधी जी के प्रथम प्रधानमंत्री बनने जैसी संभावनाओं ने क्वांटम भौतिकी के पाठकों की संख्या में वृद्धि कर दी है।

    लेख में "टाओ ऑफ फिज़िक्स" जैसी पुस्तकों के जिक्र ने लेख में जान डाल दी। हमें आपकी सबसे अच्छी बात यह लगती है कि आप अच्छी पुस्तकों को उपहार में देने की बात करते है। मैं जब कभी लेख के अंत में इस बात को पड़ता हूँ तब चेहरे में मुस्कान आए बिना नहीं रहती।

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  3. जैसा कि लेख के शीषर्क ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया है इसलिए उसके बारे में पुरानी लिखी बातों को साझा करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ।

    जब हम अपने व्यक्तिगत कार्यों को अंजाम देने में लगे होते हैं तब हम दूसरों को नज़र अंदाज़ करते रहते हैं। नज़र अंदाज़ करने के लिए हमें अलग से किसी कार्य को करना नहीं होता। बल्कि नज़र अंदाज़ करने का यह सिलसिला तो व्यक्तिगत कार्यों में फसे होने के परिणाम स्वरुप खुदवा खुद होता रहता है। आराम के दिनों में जब इस सृष्टि को निहारने का मौका मिलता है तो हम खिल उठते हैं ! इसकी ख़ूबसूरती के रहस्य को जानने की इच्छा कर बैठते हैं ? ये सृष्टि बनी कैसे ? कहाँ तक है यह फैली ? कब हुई इसकी उत्पत्ति ? किन नियमों ने है रचा इसे ? और अंत में इसका भविष्य क्या है ? हम बार-बार इन्ही प्रश्नों को सुनते हैं और न जाने कितने हज़ारों वर्षों से इन प्रश्नों के जबाब तलाशते आए हैं ? फिर भी ये प्रश्न ज्यों के त्यों बने हुए हैं। तो क्या हम इस रहस्य को कभी नहीं सुलझा पाएंगे ? इसमें समस्या क्या है ? यह सोचने का विषय है कि आखिर हम इन्ही प्रश्नों को क्यों जानना चाहते हैं ? इन प्रश्नों का इस ब्रह्माण्ड के लिए क्या महत्व है ? दरअसल ये प्रश्न वाकई में इस ब्रह्माण्ड के रहस्य को सुलझाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि ये सभी प्रश्न स्वतंत्र रूप से पूछे गए प्रश्न नहीं है। ये मूल प्रश्न हैं। ये सभी प्रश्न एक दूसरे के साथ गुथे हुए हैं। फलस्वरूप इन प्रश्नों को आज तक हम पूर्ण रूप से सुलझा नहीं पाए। हर एक प्रश्न के जबाब में हमने ब्रह्माण्ड को एक नए स्वरुप में पाया है। और जब तक हम इन सभी प्रश्नों के जबाब में ब्रह्माण्ड के संभावित स्वरूपों में से किसी एक ब्रह्माण्ड के स्वरुप का चयन वास्तविक ब्रह्माण्ड के रूप में नहीं कर लेते। तब तक ये प्रश्न ज्यों के त्यों बने रहेंगे।

    वास्तव में सृष्टि का रहस्य उसी सृष्टि में छुपा हुआ है जिसे हम और आप देखते आए हैं। न कि सृष्टि को देखने के उपरांत हमारे मन में उभरने वाले उन प्रश्नों में सृष्टि का रहस्य छुपा है। क्योंकि इस सृष्टि को देखने के उपरांत जो प्रश्न मन में उभरते हैं। उनके प्रश्नों के उत्तर इसी ब्रह्माण्ड में हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो ब्रह्माण्ड के इसी स्वरुप में है। और चूँकि यह स्वरुप अभी तक पूर्णतः ज्ञात नहीं है इसलिए लेख की भाषा में सृष्टि का रहस्य ब्रह्माण्ड के संभावित परिदृश्यों में छुपा हुआ है।

    पूरा लेख : www.basicuniverse.org/2014/10/Brahmand-ke-Sambhavit-Paridrushy.html

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  4. अाप हैं कौन, अपना नाम क्यों नहीं लिखते।

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  5. विज्ञान का छात्र नहीं रहा हूं, प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान ही थोड़ी-बहुत पढ़ाई की है। आप इतने गहन और जटिल विषयों पर इतनी रोचकता से लिखते हैं कि पूरा लेख पढ़ने के बाद ही रुका जा सकता है।
    पुनश्च: इधर, इन दिनों आप कुछ कम लिख रहे हैं ऐसा महसूस हो रहा है। कृपया अन्य विषयों पर भी नियमित रूप से लिखा करें।

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    1. अनुपम जी आपको लेख पसन्द आते हैं इसका शुक्रिया।
      आजकल कुछ व्यस्त हूं, जीवन को संभाल रहा हूं - बस इसलिये ही कुछ कम लिखा जा रहा है।

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  6. आप की जानकारी हर बार की तरह रोचक है जिसकी इस विषय मे रुचि ना हो वो भी आपके लेख रोचकता से पढे ये क्षमता है आपकी लेखनी की ।

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  7. अच्छी समीक्षा। पु्स्तक पढ़ने को प्रेरित करती हुई।

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  8. आर्डर कर दी है जी!

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आपके विचारों का स्वागत है।