बीती बात को पीछे छोड़, जीवन को नयी परिस्थिति में पुनः ढालना ही जीना है। जीना इसी का नाम है। इसी की कुछ चर्चा इस चिट्ठी में।
मेरे ससुर जी की मृत्यु पिछले साल २०१४ में हो गयी और मेरी सास जो लगभग ८५ वर्ष की हैं विषाद में डूब गयी - न खाना अच्छा लगे न कहीं जाना। उन्हें अकेलेपन ने घेर लिया। हम सब, उन्हें उदासी से बाहर निकालने में लग गये। अब, हममें से जब भी कोई उनके शहर जाता है तब हम उन्हीं के पास ठहरते हैं ताकि उन्हें अकेलापन न लगे।खुशमय जीवन |
पिछले सप्ताह, मुझे एक शादी में, अपने ससुराल जाने का मौका मिला। अपनी सास के साथ ठहरा। उनसे मिल कर जीवन का नज़रिया ही बदल गया। कहां मैं सोचता था कि उनसे मिल कर उदासी दूर करने का प्रयत्न करूंगा, वहीं वह मुझे जीवन से भरपूर लगीं। मुझे कुछ आश्चर्य लगा क्योंकि कुछ महीने पहले तक वे असवाद में डूबी थीं।
मैने पूछा, 'मां आजकल आप कैसे समय गुजारती हैं।'
उन्होंने जवाब दिया, 'हम लोगों ने वाना नाम की नयी मित्र मंडली बनायी है और हमारा समय बहुत अच्छा बीतता है।'
'वाना, इसके बारे में कभी सुना नहीं। यह क्या है?' मैंने पूछा।
'वाना यानि कि WANA यह "We Are Not Alone" का लघुरूप है', उन्होंने कहा।
'इसमें आप लोग क्या करते हैं', मैंने पूछा।
उन्होंने बताया, 'यह एकल महिलाओं की मंडली है। हम लोग अपने-अपने घरों के पास सुबह और शाम पैदल सैर करते हैं। लेकिन सुबह सैर के बाद और शाम को सैर के पहले उन महिलाओं के यहां जा कर समय व्यतीत करते हैं जो कि बिस्तर पर हैं या घर से बाहर नहीं निकल सकती। सप्ताह में एक बार हम सब मिल कर साथ-साथ पैदल सैर का प्रोग्राम बनाते हैं। महीने एक बार साथ-साथ किसी मॉल में फिल्म देखते हैं और बस कर कहीं आस-पास पिकनिक पर जाते हैं। दोपहर और शाम को गरीब बच्चों को पढ़ाते निःशुल्क पढ़ाते हैं। महिलाओं और लड़कियों को व्यवसायिक कार्य जैसे सिलाई, कढ़ाई, बुनायी इत्यादि की ट्रेनिंग देते हैं। इसके बाद उनके समान को बेचने मदद करते हैं या स्वयं बेच के उन्हें पैसा देते हैं।'
मैने पूछा कि क्या यह किटी पार्टी की तरह है। उन्होंने इस पर अपना मुंह बनाया और कहा, 'यह किटी पार्टी नहीं है। किटी पार्टी में तो बस खाने पीने या ताश खेलने का प्रोग्राम रहता है और महिलाऐं का एक दूसरे के कपड़ों, आभूषणों या फिर खाने को लेकर एक दूसरे पर हावी रहने पर ज्यादा ध्यान रखती हैं। हम इसे छोड़ बाकी दूसरे काम करते हैं।'
इसकी मंडली में, अधिकतर वह महिलायें हैं जो कि अपने कम उम्र के जीवन में किसी व्यवसाय अथवा पेशे (अधिकतर शिक्षा) से जुड़ी थीं। इस साल, इस मंडली के द्वारा पढ़ाया जा रह एक विद्यार्थी इंजीनियरिंग में आ गया और एक युवती को बीएड करने के बाद सरकारी स्कूल में नौकरी लग गयी इससे वे और उत्साहित हैं।
बीती बात को पीछे छोड़, जीवन को नयी परिस्थिति में पुनः ढालना ही जीना है। बीती बातों के बारे में सोचना, उसी में डूबे रहना - न ही अकलमंदी, न ही जीना।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
सांकेतिक शब्द
। culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, Etiquette, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो, तहज़ीब,
अनुकरणीय
ReplyDeleteजरूरी है आगे बढ़ जाना ...लेकिन बचपन में उँगली छूट जाए तो थोड़ा मुश्किल रहता है ...
ReplyDeleteप्रेरणाप्रद पोस्ट ...धन्यवाद
अर्चना जी, मैं इस चिट्ठी पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़़ार कर रहा था। मुश्किलों पर जो विजय प्राप्त कर लर है वह ही व्यक्ति आगे बढ़ता है।
Deleteआप ने अपनी पहुँच को पता नहीं क्यों दुर्गम बना रखा है. दरअसल वियाना यात्रा वाली पोस्ट मैं अपनी पत्रिका में लेना चाहता था. प्रधान सम्पादक जी का कहना है, सिर्फ उन्मुक्त नाम से कैसे संभव है? पता- ठिकाना तो मिले. क्या यह संभव है? प्रतीक्षा है!
ReplyDeleteमेरा लेखन कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग व संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें।
Deleteमैं वा मेरी पत्नी का अज्ञात में चिट्ठाकारी करने का कारण मेरी पत्नी ने यहां बताया है। आपको इसे पढ़ कर अच्छा लगेगा।
हमें अपने जीवन को दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनाना चाहिए और यहीं आपकी सास ने किया है
ReplyDeleteबहुत ही शानदार लिखा है
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