श्री अरविन्दो का चित्र विकिपीडिया से |
श्री अरविन्दो (जन्म १५-८१८७२ - मृत्यु ५-१२-१९५०) ने, पॉन्डेचेरी में आश्रम की स्थापना, २४ नवम्बर १९२४ में की। यह एक न्यास है। इसके पास, पॉन्डिचेरी में सम्पत्ति और खेत हैं। इन्हें साधक लोग देखते है। वे, खेतों में, खेती भी करते हैं।
पॉन्डिचेरी में लगभग एक हजार साधक रहते हैं। उनकी आवश्यक्ताओं को न्यास पूरा करता है। न्यास उनके रहने के लिये जगह और खाने का इन्तज़ाम करता है। उन्हें न्यास कपड़े और साइकिलें मिली हुई है। साधकों की जरूरतें, पूरा करने के लिए अलग अलग विभाग है। जिनहें साधक ही देखते हैं। जिनको ज्यादा देखभाल करनी पड़ती है उन्हें न्यास की तरफ से स्कूटर भी मिला है। उसके पेट्रोल का ख़र्चा भी न्यास उठाता है।
हम लोग, एक दिन दोपहर का खाना खाने के लिए, इनके भोजनालय में गये। खाने में ब्राउन ब्रेड थी। यह आंटे की बनी थी। यह भी इन्हीं की बेकरी में बनी हुई थी। इसके साथ चावल, दाल और एक सब्जी और मीठा आचार था। यह सब खाना वहीं पर बना हुआ था। खाने में मसाला नहीं था नमक कम था और खाना बिल्कुल सादा था। खाना खाने के बाद स्वीट डिश में केले थे।
आश्रम का भोजनालय। चित्र यूथ हॉस्टेल पॉन्डेचेरी की वेबसाइट के सौजन्य से। |
वहां बर्तन धोने की जगह थी। बर्तन धोने के लिये वहां साधक थे। जो उन बर्तनों को धो रहे थे और कुछ साधक उन बर्तनों को पोंछ रहे थे।
हम रसोई घर को भी देखने के लिए गये। यह आधुनिक था। वहां ४५ मिनट में, पांच हजार लोगों का खाना बन सकता है। वहां पर दो बड़े सिलिंडर थे। इनमें डीज़ल से पानी को गर्म करके भाप बनाईं जाती है। भाप को अलग अलग बर्तनों में ले जाया जाता है। वहां पर बड़े-बड़े हान्ड़ें थे और इसके बाहर की सतह खोखली थी जिसमें भाप दौड़ती थी और उसकी गर्मी के कारण दाल या सब्जी बनती थी। चावल बनाने के लिए वहां कुकर था जिसमें बड़ी-बड़ी ट्रे को अन्दर रखकर ऊपर से बंद कर भाप निकालते है। जिससे चावल बन सकता है।
इस तरह से खाना बनने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जो व्यक्ति खाना बनाता है उसके शरीर पर भाप नहीं लगती है। वह न तो गर्मी से परेशान होता है और न ही उसे पसीना आता है। साधक खाना बनाकर अपने काम पर जा सकते हैं।
न्यास एक विद्यालय चलाता है जो कि केजी स्तर से शुरू होकर विश्वविद्यालय स्तर तक का है। अगली बार वहीं चलेंगे।
पॉन्डेचेरी में रात के समय समुद्र तट |
मां की नगरी - पॉन्डेचेरी यात्रा
हो सकता है कि लैपटॉप के नीचे चाकू हो।। कोबरा मेरे हाथ पर लिपट गया।। घोड़ा डाक्टर, गायों और भैंसों की लात खाते थे।। पॉन्डेचेरी फ्रांसीसी कॉलोनी थी।। शाम सुहानी लग रही थी।। महिलाएं बेवकूफ़ बन रही हैं।। पैंतालिस मिनट में, पांच हजार लोगों का खाना।।
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वाह क्या पाक व्यवस्था है ?
ReplyDeleteबढ़िया.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! मैं सन १९८३ में साइकिल से भारत दर्शन करने गया था तब इसी आश्रम में रुका था। बहुत अच्छा लगा था।
ReplyDeleteअद्भुत व्यवस्था है मैने पहली बार पढा इस व्यवस्था के बारे मे। शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत अच्छा, मसाला नमक कम और व्यवस्था इतनी तेज।
ReplyDeleteकिचन के अन्दर का दृश्य देखने की इच्छा है...
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteअनुशासित श्रद्धा से क्या संभव नहीं.
ReplyDeletegood
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