यह चिट्ठी जाने माने सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ फ्रीमैन डायसन को श्रद्धांजलि है।
फ्रीमैन डायसन का यह चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
फ्रीमैन डायसन का जन्म १५ दिसंबर १९२३ को विलायत में के ऐसे परिवार में हुआ था जिसका विज्ञान से दूुर-दूर तक नाता नहीं था। उनके पिता संगीतकार और मां वकील थीं। सर फ्रैंक डायसन रॉयल एस्ट्रॉनमर थे। वे उनके रिश्तेदार नहीं थे पर उसी जगह से आते थे जहां से वे लोग। उन्ही के कारण फ्रीमैन डायसन को विज्ञान पसन्द आने लगा। फ्रीमैन की बड़ी बहन ऐलिस के अनुसार , वह एक ऐसा लड़का था जो हमेशा विश्वकोशों से घिरा रहता था और पेपर पर कुछ न कुछ गणना करता रहता था।
सत्तरह साल की अल्प आयु में, उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिन्टी कॉलेज में दाखिला लिया। यहां वे प्रसिद्ध गणितज्ञ गॉडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी के संपर्क में आये। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने रॉयल एयर फोर्स के बॉम्बर कमांड के ऑपरेशनल रिसर्च सेक्शन में काम किया। यहां उन्होंने विश्लेषणात्मक तरीके विकसित किए जिससे जर्मन निशानों पर बेहतर तरीके से बम डाले जा सकें।
युद्ध के बाद, वे वापस ट्रिन्टी कॉलेज आये और गणित में स्नातक की शिक्षा पूरी की। १९४७ में, कॉमनवेल्थ फेलोशिप पर, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में हंस बेथ के साथ भौतिक शास्त्र पर काम करने के लये अमेरिका आये। कुछ समय बाद, वे इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस स्टडी प्रिंसटन चले गए। साल भर बाद वे वापस विलायत के बर्मिंघम विश्वविद्यालय में शोध करने के लिये आ गये।
डायसन के पास डॉक्टरेट की डिग्री नहीं थी। फिर भी, १९५१ में, कॉर्नेल विश्वविद्यालय ने उन्हें भौतिक शास्त्र में प्रोफेसर नियुक्त कर दिया। वे जब इस बार अमेरिका आये तो यहीं बस गये। दिसंबर १९५२ में, ओपेनहाइमर ने उन्हें प्रिंसटन, न्यू जर्सी में इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस स्टडीज में एक स्थायी पद दे दिया, जहां वह अपने अंत तक रहे। उनकी मृत्यु पिछले शुक्रवार २८ फरवरी २०२० को हो गयी।
डायसन सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ थे। अपने महत्वपूर्ण काम के लिये वे, क्वांटम इलेक्ट्रोडायनामिक्स, ठोस-राज्य (Solid state) भौतिकी , खगोल विज्ञान और परमाणु इंजीनियरिंग क्षेत्र में जाने जाते हैं। उन्होंने कई महत्पूर्ण पेपर लिखे जिसके लिये उन्हें नोबल पुरुस्कार से नवाजा जा सकता। लेकिन दुर्भाग्यवश, यह पुरुस्कार उनसे अछूता ही रहा।
मैंने कभी भी डायसन का नाम अपने विद्यार्थी जीवन में नहीं सुना था। मेरा उनसे परिचय उनकी पुस्तक 'डिस्टरबिंग द युनिवर्स' से हुआ। यह पुस्तक मैंने १९८० दशक के शुरुवाती वर्षों में पढ़ी। इसमें उनके छुट-पुट लेख हैं। इसमें कई लेख, फाइनमेन, ओपेनहाइमर और नाभकीय उर्जा के बारे में हैं। इन सब से मेरा परिचय विद्यार्थी जीवन में हो चुका था। इसमें एक लेख 'अ ट्रिप टू अल्बुकर्क' नाम से है। फाइनमेन और उन्होंने १९४८ की गर्मियों में, कार्नेल से अल्बुकर्क तक की कार में यात्रा की थी। इस लेख में, उसी यात्रा की चर्चा है। यह बहुत रोचक है। यह पुस्तक मुझे बेहद अच्छी लगी। इसकी भाषा सरल है, वैज्ञानिकों के किस्से हैं, विज्ञान के विषयों को आसान तरीके समझाया गया है। यहीं से मेरा उनके साथ प्रेम शुरू हुआ।
डायसन ने बहुत सी पुस्तके लिखी हैं, जिसमें में कई वैज्ञानिकों के लिये हैं तो कई आम लोगों के लिये। उन्होंने आम लोगों के लिये निम्न पुस्तकें लिखीं -
- Disturbing The Universe;
- From Eros to Gaia;
- Infinite in All Directions;
- The Sun, The Genome, and The Internet: Tools of Scientific Revolutions;
- Origins of Life;
- The Scientist As Rebel.
'इनफिनिट इन ऑल डाइरेक्शन' में वे इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस स्टडी में होने वाले शॉटगन सेमिनार की चर्चा करते हैं। इसमें विषय तो पहले से बता दिया जाता है लेकिन वक्ता का नाम तय नहीं होता है। जितने लोग वहां रहते हैं वे सब अपना नाम एक थैली में डालते हैं फिर उनमें एक नाम निकाला जाता है और जिसका नाम निकलता है उसे उस विषय पर बोलना होता है। इससे यह फायदा होता है कि सब लोग उस विषय पर पढ़ कर आते हैं। इसी को पढ़ कर मैंने भी अपने कस्बे में बहुत समय तक शॉटगन सेमिनार आयोजित किये जिसका अपना अलग आनन्द था।
१९९७ में, द न्यूयॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी एवं ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस के तत्वधान में, डायसन ने तीन भाषण दिये थे। इन भाषणों में इस बात की चर्चा थी कि सूुर्य ऊर्जा, जिनोम और इंटरनेट किस तरह से २१वीं शताब्दि में अमूल परिवर्तन करेंगे। यह उनकी पुस्तक 'द सन, द गेनोम, एण्डड द इंटरनेट' में है। मेरे विचार से इंटरनेट के द्वारा अमूल परिवर्तन हो चुका है। सूर्य ऊर्जा से बहुत कुछ हो चुका है और काफी कुछ बाकी है। जिनोम के कारण आने वाल बदलाव की अभी शुरुवात ही है।
'द साईंटिस्ट एस रिबेल' इसके पहले लेख में, वे चर्चा करते हैं कि विज्ञान किसी सभ्यता या फिर देश की देन नहीं है। इसमें सबकी हिस्सेदारी है। वे आगे कहते हैं कि महान अरबी गणितज्ञ और खगोलशास्त्री ओमार खय्याम के लिए, विज्ञान इस्लाम के बौद्धिक अवरोध के खिलाफ विद्रोह था और २०वीं शताब्दि के महान भारतीय भौतिकशास्त्री, रमन, बोस और साहा, के लिये विज्ञान दोहरा विद्रोह था - पहला अंग्रेजी वर्चस्ववाद और दूसरा हिंदू धर्म की भाग्यवादी नीति के खिलाफ। इस पुस्तक की विस्तार से, मैंने यहां समीक्षा की है।
डायसन की मृत्यु के साथ, न केवल हमारे बीच से महान भौतिकशास्त्री चला गया पर एक ऐसा लेखक जिसने वैानिकों के कस्सों के साथ गूढ़ वैज्ञानिक विषयों को आसान भाषा में लोगों के बीच रखा और विज्ञान में लोगो की रुचि बढ़ायी।
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मैंने इस महान वैज्ञानिक की ऊर्जा संरक्षण की अद्भुत सोच डायसन स्फीयर से जाना जो एक बहुत लोकप्रिय अवधारणा है। विनयपूर्ण श्रद्धांजलि।
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