tag:blogger.com,1999:blog-23104312.post7398005394166740072..comments2024-02-22T19:15:31.889+05:30Comments on उन्मुक्त: बटर चिकन इन लुधियानाउन्मुक्तhttp://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-23104312.post-8594870509846923202012-07-13T15:28:59.655+05:302012-07-13T15:28:59.655+05:30pankaj ji ludhiana ke kaun se restaurant mein apne...pankaj ji ludhiana ke kaun se restaurant mein apne chicken khaya tha <br />Vikas GulatiOrange Productionshttps://www.blogger.com/profile/14572598089940226576noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23104312.post-30866441915139504082007-10-02T16:17:00.000+05:302007-10-02T16:17:00.000+05:30पुस्तक को आपके नजरिये से जानना अच्छा लगा...अभी अभी...पुस्तक को आपके नजरिये से जानना अच्छा लगा...अभी अभी अनूप जी की पोस्ट पढी और पता चला कि आपके पास भी बहाने है टिप्पणी नही करने के, लेकिन हमे कोई बहाना मन्जूर नही.. :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23104312.post-17096761978767208952007-09-28T07:44:00.000+05:302007-09-28T07:44:00.000+05:30अच्छा लगा ,पंकज मिश्रा और आप के विचारोंकी काकटेल ...अच्छा लगा ,पंकज मिश्रा और आप के विचारोंकी काकटेल पढ़कर.मैं बनारस में पिछले १० वर्षों से रह रहां हूँ ,यहाँ विदेशी औरतों के साथ छेड़खानी का प्रतिशत वही है जो दीगर टूरिस्ट शहरों में है.अभी आगरा की ख़बर अपने पढी होगी .दरअसल बनारस के बारे में अनेक कारणों से लोगों के अपने पूर्वाग्रह भी हैं.दूसरे शहरों के बजाय बनारस के बारे में कुछ ऐसा वैसा सुनने सुनाने को लोग लालायित रहते हैं ,किताब भी चर्चा में आ जाती है.आप आश्वस्त रहें बनारस आज भी आप की यादों जैसा है ,एक कन्तेम्पोरैरी क्लासिक -विस्वास न हो तो ख़ुद आ के देख लें -मेरे निजी निमंत्रण पर !स्वागत है.Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23104312.post-53957674961602237822007-09-28T07:30:00.000+05:302007-09-28T07:30:00.000+05:30बहुत अच्छी लगी पुस्तक चर्चा। अब मिलेगी तो पढ़ डालें...बहुत अच्छी लगी पुस्तक चर्चा। अब मिलेगी तो पढ़ डालेंगे इसे। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23104312.post-5486317691991115582007-09-27T20:27:00.000+05:302007-09-27T20:27:00.000+05:30लो जी एक पुस्तक और जुड़ गयी पढ़ने की फेहरिस्त मे...लो जी एक पुस्तक और जुड़ गयी पढ़ने की फेहरिस्त में । <BR/>मुझे एक और पुस्तक याद आ गयी जो बरसों पहले पढ़ी थी फिर दोबारा हासिल नहीं हुई । <BR/>नाम था बंबई रात की बांहों में । ख्वाजा अहमद अब्बास इसके संपादक थे शायद । <BR/>इसमें कई लेखकों ने संस्मरण लिखे थे कि उनका अपना शहर रात को कैसा दिखता है । <BR/>वहां क्या क्या होता है वगैरह ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.com