इस चिट्ठी में तनिष्क विज्ञापन पर उठे विवाद पर चर्चा है।
लगभग दो दशक पहले, हम हैदराबाद गये थे। वहां पर निज़ाम के गहनों की प्रदर्शनी लगी थी। उन गहनों को देख कर मुझे अरुचि हो गयी थी। मैंने शुभा से कहा कि क्या कोई, उन गहनों को पहन सकता है। बगल में एक परिवार खड़ा था। उनके साथ खड़ी महिला, मुस्करा कर बोली,
‘आप लोगों को देखकर लगता है कि कोई आप तो किसी प्रकार के गहने नहीं पहन सकते।‘
इस घटना की विस्तार से चर्चा, 'निज़ाम के गहने और जैकब हीरा' नामक चिट्ठी में है। हम न कभी तनिष्क के शोरूम में गये, न ही वहां से कभी कोई आभूषण खरीदा, और न ही कभी उसकी चर्चा की पर आज तनिष्क की चर्चा, उसके नये विज्ञापन के कारण। ऊपर वही वीडियो है, जिसे अब तनिष्क ने हटा दिया है।
१८६८ में, जमेशद जी टाटा ने 'टाटा सन्स प्राइवेट लिमिटेड' की शुरुवात की। इसकी सब तो नहीं, पर अधिकतर पूंजी टाटा परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित न्यासों के पास है। यह कंपनी, टाटा समूह की मालिक है। टाइटन कंपनी, टाटा समूह का हिस्सा है। यह फैशन की दुनिया में, घड़ियां, आभूषण और चश्में बनाती है। तनिष्क, इसकी आभूषण बेचने वाले हिस्से का ट्रेड-मार्क है।
गोद भराई, अंग्रेजी में बेबी शॉवर (Baby Shower) की परम्परा, नये मेहमान आने की खुशी में, उसके स्वागत में, उसे बुरी नज़र न लगे, नये मेहमान और उसकी मां को भेंट देने के उद्देश्य से, सब धर्मों में, सारी सभ्यताओं में, दुनिया के हर कोने में मनाया जाता है। यह पूजा नहीं है। यह एक परम्परा है, परिपाटी है।
यह सोचना कि इसे केवल हिन्दू मनाते हैं - गलत है। हां यह भी सच है कि कुुछ लोग इस परम्परा को नहीं निभाते। इस चिट्ठी को लिखने से पहले, मैंने अपने कई मुसलमान दोस्तों और उनकी पत्नियों से बात की, जहां यह परम्परा जोर-शोर से मनायी जाती है। मैं अज्ञेयवादी हूं लेकिन जन्म से हिन्दू, हमारा परिवार हिन्दूू। लेकिन मुझे याद नहीं कि यह उत्सव, कभी भी, हमारे परिवार में मनाया गया हो।
लगता है कि इस विज्ञापन का मुस्लिम परिवार भी हमारे परिवार की तरह का है। वहां गोद भराई की रस्म नहीं मनायी जाती है। लेकिन बहू का परिवार, मेरे मुसलमान मित्रों के परिवार जैसा, जहां इस परम्परा को निभाया जाता है। बहू के पूछने पर, सास इसे मनाने का कारण बताती है, जो कि इसके वास्तविक कारण से एकदम अलग पर कहीं अधिक सच्चा, और प्यारा है। वह कहती है कि
'बिटिया को खुश रखने की रस्म, तो हर घर में होती है।'
तनिष्क का विज्ञापन, इसी बात को बेहतरीन तरीके से दिखाता है। एक मुस्लिम परिवार, उनकी हिन्दू बहू - और उसको खुश रखने के लिये परिवार गोद भराई का उत्सव। मेरे विचार में इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यह दिल को छूने वाला विज्ञापन है। ईश्वर करे सारी सासें ऐसी ही हों।
यह विज्ञापन अनेकता में, एकता का भी उदाहरण पेश करता है। यह हमारे आदर्शों का सच्चा प्रतिबिम्ब है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि दूसरे कैसे हैं, महत्वपूर्ण यह है कि हम कैसे हैं।
यह विज्ञापन दिखाया जाय या नहीं - यह तनिष्क के ऊपर है। लेकिन, इसका विरोध करना चाहिये या नहीं - यह हमारे ऊपर है। कुछ समय पहले, सर्फ-एक्सल के एक विज्ञापन पर भी विरोध के स्वर उठे थे, वह भी दुखद था। उसके बारे में, मैंने 'यह हम क्या कर रहे हैं' नामक चिट्ठी में लिखा था। इस विज्ञापन का विरोध सही नहीं है।
हो सकता है कि यह विज्ञापन सच न हो। महात्मा गांधी ने एक बार कहा - आप अपने को वैसे सांचे में ढ़ालो, जैसा आप समाज चाहते हों। लेकिन मैं तो ऐसा ही समाज, ऐसा ही देश, ऐसा ही विश्व चाहता हूं - इसी की कल्पना करता हूं, जैसा कि यह विज्ञापन,है। यह, हमें इसी तरह के समाज के लिये प्रेरित करता है। हम सब एक दूसरे को प्रेणना देते हैं - सहिष्णु दूसरों को सही रास्ता दिखाते हैं और उन्हें उस पर चलने को प्रेरित करते हैं।
हमें सोचना चाहिये कि ऐसे विज्ञापन का विरोध करना - क्या हमारे सपनों का भारत है। हम क्या कर रहे हैं, हम कहां जा रहे हैं?
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Great advertisement. Heart-touching.
ReplyDeleteSalute to the spirit behind the ad....
इस लेख के शीर्षक को पढ़कर मुझे 'आग से अंतरिक्ष तक' पुस्तक के उपसंहार की याद आ गई, जिसे मैंने 'हम किस गली जा रहे हैं' नाम से लिखा है।
ReplyDeleteउपसंहार में बर्ट्राण्ड रसेल, अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफेन हॉकिंग को उद्धृत कर विज्ञान के लक्ष्य पर चर्चा की है, तथा थॉमस कुह्न, पॉल फायरअबेंड और कार्ल पॉपर के दर्शन के आधार पर विज्ञान के लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में मानव जाति की वैज्ञानिक उपलब्धियों की समीक्षा की है।
मैं आपके विचारों से सहमत हूँ ।आपकी अभिव्यक्ति उल्लेखनीय और सराहनीय है । राजीव बजाज भी निर्णायक भूमिका में उभरे । प्रकरण दूसरा पर जज़्बा वही । आप जैसा । टाटा समूह अडिग रहते । प्रतीकात्मक एक संदेश अग्रसारित होता ।
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