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Monday, September 06, 2021

दादी की चिट्ठी - रमरीका यात्रा

१९८२ में, मेरी मां, अमेरिका घूमने गयीं थी। उन्होंने इसका विवरण पत्रों के द्वारा मेरे बेटे को दिया। यह चिट्ठी उन पत्रों की भूमिका है। 

पहली यात्रा- गंगोत्री

सबसे नीचे, बायें तरफ से - चन्द्रा बुआ जी (रज्जू भैइया की सगी बहन), रूबी दादा (चन्द्रा बुआ जी के पुत्र), ऊषा बुआ (अशोक सिंघल की सगी बहन) 

उसके ऊपर की पंक्ति में - दद्दा (मेरे पिता), अम्मां (मेरी मां), बड़े चाचा जी (रज्जू भैइया)

सबसे ऊपर उनके साथ गये दो सहयोगी 

 दादी की चिट्ठी - रमरीका यात्रा 

भूमिका 

आपातकाल के दौरान मेरे पिता, नैनी जेल में बन्द थे। लेकिन रज्जू भैइया (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चौथे सर-संघचालक) ने, भूमिगत रह कर, आपातकाल के खिलाफ काम किया। आपातकाल के बाद, रज्जू भैइया, हर साल, सितंबर के महीने में, कुछ दिन, अपने काम से छुट्टी लेकर, व्यक्तिगत यात्राओं में जाने लगे। इसमें उनके साथ, उनके प्रिय लोग रहा करते थे। 

इस तरह की यात्रा, सितंबर १९७७ में शुरू की। पहली यात्रा गंगोत्री की थी। इसमें, उनके साथ, मेरी मां, मेरे पिता, चन्द्रा बुआ जी (रज्जू भैइया की सगी बहन, जो कि डा. आर वी सिंह प्रधानाचार्य लखनऊ मेडिकल कॉलेज और बाद में कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय को ब्याही थीं), रूबी दादा (प्रो राजनरायन सिंह भौतिकी विभाग लखनऊ विश्विद्यालय और चन्द्रा बुआ जी के पुत्र) और उषा बुआ थीं।

रज्जू भैइया, अशोक सिंघल, और हमारे परिवार के बीच, प्रगाढ़ संबन्ध थे। अशोल सिंघल, सात भाई और एक बहन थे। उषा बुआ, अशोक सिंघल की एकलौती बहन थीं। 

विश्व हिन्दू परिषद ने, १९८२ में, एक समारोह लॉस एंजलीस में आयोजित किया था। बड़े चाचा जी उसमें, बोलने गये थे और साथ में, अम्मां, दद्दा, ऊषा बुआ और उनकी बेटी भावना भी थीं। राजश्री बुआ के पति, मानू फूफा जी उस समय जमैका में थे। अम्मां और दद्दा वहां भी गये। 

अम्मां की यह अकेली विदेश यात्रा थी। वे इस यात्रा से काफी उत्साहित थीं। उन्होंने इसकी चर्चा, मेरे बेटे मुन्ना को, पत्र लिख कर की। अगली कुछ चिट्ठियों में, उन्हीं पत्रों की चर्चा होगी। 

अम्मां ने पत्रों में कुछ शब्द, अंग्रेजी में लिखे हैं। बस इन शब्दों को, मैंने देवनागरी में लिख दिया है। अलग-अलग चिट्ठियों में, तारतम्य रखने के लिये, अन्त में कुछ काट दिया है या फिर शुरू में कुछ जोड़ दिया है। इसके अतिरिक्त कुछ और बदलाव नहीं किया गया है।

 
About this post in Hindi-Roman and English 
My mother Krishna Chaudhary went abroad for the first time in 1982, She described it to my son in letters. This post is introduction to those letter. It is in Hindi (Devnagri script) is about 'Katarniaghat Wildlife Sanctuary' and 'Motipur Guest House'. You can read translate it into any other  language also – see the right hand widget for translating it.

Meri ma pahli bar baar 1982 mein videsh gayee theen. iska vivran unhone patron ke dvara mere bete ko diya. hindi (devnagri) kee yeh chitthi, un patron kee bhumika hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.
 
 
सांकेतिक शब्द   
Travel, Travel, travel, travel and places, Travel journal, Travel literature, travelogue, सैर सपाटायात्रा वृत्तांत, यात्रा-विवरण, सैर-सपाटा, यात्रा विवरण, यात्रा संस्मरण, 

 #हिन्दी_ब्लॉगिंग #HindiBlogging #KrishnaChaudhary

 

 

 

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