इस चिट्ठी में, अपने पिता, इमरजेन्सी और नैनी सेन्ट्रल जेल की यादें।
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नैनी सेन्ट्रेल जेल का दरवाजा - जहां से हमें अन्दर ले जाया जाता था |
कुछ दिनो पहले, मुझे नैनी इलाहाबाद में स्थित, एक विश्वविद्यालय के दिक्षांत समारोह में शिरकत करने का मौका मिला। रास्ते में एक ऊंची दीवाल दिखी जिसमें सुन्दर देवी देवताओं के चित्र रंगे हुऐ थे। कार चालक ने बताया कि नैनी सेन्ट्रल जेल की दीवाल है जिसे इसी साल के कुंभ मेले के पहले, रंगा गया था। इस कुंभ के बारे में, मैंने यहां चर्चा की है। मैंने उसे लौटते समय नैनी जेल ले चलने की इच्छा जाहिर की।
लौटते समय, हम नैनी सेन्ट्रल जेल गये। कितनी यादें वापस आयीं। इमरजेन्सी के दौरान मेरे पिता २१ महीने इसी जेल में रहे। इसकी चर्चा, कुछ साल पहले फादर्स् डे पर 'कुछ यादें अपने पिता के बारे में' नामकी चिट्ठी में की है। मैं और मेरी मां, प्रत्येक रविवार, चाहे जाड़ा हो या गर्मी या बरसात बिना नागा, उनसे मिलने के लिये जाते थे। जेल के दरवाजे के सामने एक पेड़ था, वहीं बैठ कर अपने मिलने के समय का इंतजार करते थे।
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पेड़ जहां हम बैठ कर, इंतज़ार करते थे |
उस समय मुरली मनोहर जोशी भी इसी जेल में थे। वहां उनका परिवार भी रहता था - उनकी पत्नी और दो बेटियां। वहीं पर उनके परिवार से भी हमारा अटूट रिश्ता जुड़ा। उस समय कुछ और लोग भी रहते थे और केवल दो कारें एक हमारी फियेट और जोशी जी की ऐमबैस्डर। लेकिन इस बार तो अभी तो नज़ारा एकदम भिन्न था।
जेल के आस-पास बहुत भीड़ थी एक से एक, दर्जनों शानदार गाड़ियां खड़ी थीं लगता था कि मेला चल रहा है। वहां पर कुछ पुलिस वाले भी थे। मैंने उनसे पूछा कि यहां इतनी भीड़ और इतनी गाड़ियां क्यों हैं, क्या कोई मेला लगा है। उन्होंने बताया यहां को मेला नहीं है यह सब मिलने वाले लोग हैं। इतनी भीड़ तो रोज रहती है और छुट्टी के दिन और भी ज्यादा।
लगता है कि कैदियों के कद भी बढ़ गये और उनके रहन-सहन का स्तर भी - कम से कम शानदार गाड़ियों को देख कर ऐसा ही लगा।
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सांकेतिक शब्द
। culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, Etiquette, जीवन शैली, समाज, father's day, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो, तहज़ीब,
अति उत्तम लेख
ReplyDeleteआपकी हर पोस्ट में एक बात होती है जैसे हम हमेशा लाभान्वित होते हैं
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