राजेश खन्ना
कहानी इस प्रकार है कि राजेश खन्ना एक असफल प्रेम प्रसंग के कारण अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। पागलखाने में राधा नाम की एक नर्स हैं जिसका किरदार वहीदा रहमान ने निभाया है। डाक्टर, वहीदा रहमान को राजेश खन्ना के साथ प्रेम का नाटक करने को कहते हैं। राजेश खन्ना तो ठीक हो जाते हैं पर वहीदा रहमान अपना मानसिक संतुलन खो बैठती है क्योंकि इसके पहले धर्मेन्द्र के साथ प्रेम का नाटक करते-करते वह सच में उससे प्रेम करने लगी थी और बार-बार प्रेम का नाटक नहीं कर सकती।
वहीदा रहमान
खामोशी की सहृदय नर्स राधा के किरदार में वहीदा का अभिनव अद्वितीय है। इस किरदार को उनकी जैसी संवेदनशील कलाकारा ही अभिनीत कर सकती थी, कोई और नहीं। हांलाकि मुझे इस फिल्म की कहानी में कोई दम या सत्यता नहीं लगती।
धर्मेन्द्र
(राजेश खन्ना एवं धर्मेन्द्र के चित्र खामोशी फिल्म से नहीं हैं। यह चित्र अंग्रेजी विकीपीडिया से लिये गये हैं और उसी की शर्तों के साथ प्रकाशित किये गये हैं)
इस फिल्म में गुलजार का लिखा एक गीत है जिसे लता मंगेशकर ने गाया है। यह गाना मेरे प्रिय गानो में से एक है। इसके बोल इस प्रकार हैं:
'हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू,
हाँथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो।
सिर्फ अहसास है ये, रूह से महसूस करो,
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।
प्यार कोई भूल नहीं, प्यार आवाज नहीं,
एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है।
न ये झुकती है न रूकती है न ठहरी है कहीं,
नूर की बूंद है सदियों से बहा करती है।
सिर्फ अहसास है ये, रूह से महसूस करो,
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।'
स्नेहलता
'मुस्कराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं,
और पलकों के उजाले से झुकी रहती है।
होंठ कुछ कहते नहीं काँपते ओठों से मगर,
इसमें खामोशी के अफसाने रूके रहते हैं।
सिर्फ अहसास है ये, रूह से महसूस करो,
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।'
यह गीत राजेश खन्ना की पहली प्रेमिका के ऊपर फिल्माया गया है। इसका अभिनव एक गुजराती कलाकारा स्नेहलता ने किया है। मुझे यह नहीं समझ में आया था कि यह उस पर क्यों फिल्माया गया था। यह तो वहीदा रहमान के किरदार राधा पर फिल्माया जाना चाहिये था।
इस गाने को आप पियानो पर भी सुन सकते हैं। यह पियानो मैंने नही बजाया है। ईश्वर ने मुझे जीवन के मधुरतम रसों - संगीत, गाने, कविता - से वंचित रखा। यह मैंने हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट की इस चिट्ठी से लिया है। इसे सुरजीत चटर्जी ने बजाया है जिनके बारे में आप उसी चिट्ठी में पढ़ सकते हैं।
इस गाने को, विडियो में भी देख सकते हैं।
जहां तक मैं समझता हूं, यही है -
- इस श्रंखला का सरांश,
- इस जमाने की रमती खुशबू,
- रिश्तों की महकती खुशबू।
मैंने यह श्रंखला रचना जी की रिश्ते नाम की चिट्ठी के कारण शुरू की। मुझे अच्छा लगा कि उन्होने ने निराशवादिता के भ्रम को गुम हुआ मित्र वापस आया में दूर कर दिया। वे कुछ समय तक, इस श्रंखला के साथ रहीं फिर एक अप्रत्याशित दुर्घटना के कारण बीच में ही चली गयीं। इस श्रंखला के अतिरिक्त, उनके कारण, मैंने कई चिट्ठियां लिखींः
- 'एक अनमोल तोहफ़ा',
- 'मास्टर और मास्टरनियों को मेरा सलाम', और
- 'You’re Too Kind – A Brief History of Flattery'
यह चिट्ठी, यह श्रंखला - रचना जी की बेटी पूर्वी को, उसकी याद में, समर्पित है। पूर्वी संगीत प्रेमी थी। उसके द्वारा बजाया गया, अनाड़ी फिल्म का गीत 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार' का आनन्द ले। यह गाना भी मुझे बेहद पसन्द है।
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आशा है कि रचना जी ज्लद ही अपने सामान्य जीवन में आयेंगी और दुख को भूल कर चिट्ठाकारी पुनः शुरू करेंगी। क्या मालुम, हिन्दी चिट्ठाकारी ही उनके दुख को दूर करे।
इसी चिट्ठी के साथ यह श्रंखला समाप्त होती है। अब कुछ नया शुरू करेंगे। फिर भी, मैं इस श्रंखला पर कभी एक पुनःलेख लिखना चाहूंगाः
- इस श्रंखला का मेरे जीवन में क्या महत्व रहा;
- इसने मेरे, मेरे परिवार, हम भाई बहनो के बीच कितनी खुशियां भरीं;
- इसने मेरे मित्रों के जीवन में क्या बदलाव किया।
भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।
बहुत सुन्दर पोस्ट!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteआपका ये लेख एक अलग सी खुशबू लिए हुए है।
ReplyDeleteआप ऐसा कैसे कह सकते हैं कि ईश्वर ने गीत संगीत के मधुर रसों से दूर रखा - संगीत सुनकर हम गीत संगीत के साथ साथ हम ईश्वर के करीब भी होते हैं.
ReplyDeleteअक्सर मै यह सोचा करता था कि यह लाईन कहां से ली हुई है , हमने जानी है जमाने मे रमती खुशबू!!
ReplyDeleteजानें क्यों अपनी ओर खींचती सी लगती है यह लाईन!!
आपकी लेखन शैली बांध लेती है!!
आभार!
संवेदनशीलता को नये अभिप्राय देती बेहद भावुक कर देने वाली संगीतमय पोस्ट . प्रेम का तो संगीत होता ही है, उदासी का भी एक मद्धम संगीत होता है जिसे हर कान नहीं सुन पाता .
ReplyDeleteआप अपने बारे में चाहे जो कहें पर आप गीत-संगीत के बहुत निकट हैं . हमें पूरा भरोसा है .
वाह मज़ा आ गया । बेहतरीन प्रस्तुति । इस गीत पर मेरी अकसर अपने एक वरिष्ठ साथी से बहस होती थी । वो कहते हैं कि आंखों में भला कोई खुश्बू होती है । मैं कहता था मिर्जा गालिब का ये शेर—
ReplyDeleteया रब ना वो समझे हैं ना समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको जो ना दे मुझे ज़बां और ।
Khamoshee film ke baareme padhaa,to aapke saath pooree tarah sahmat huee!
ReplyDeleteUnmuktjee meree"Neele,Peele Phool"kahanee pooree ho gayee hai!Zaroor padhiyaga!
उन्मुक्त जी, जिस तरह बेहद आसान शब्दों में गुलजार साहब ने प्यार की छुअन को बयाँ किया है । उसे फ़िल्म के परिदृश्य पर उपस्तिथ कराने में आपकी समीक्षा पूरी तरह कामयाब दिखती है, इसके लिये आप निसंदेह बधाई के पात्र हैं ।
ReplyDeleteखामोशी फिल्म के बारे में पढ़कर बचपन की यादें ताज़ा हो गई. आज हैरानी होती है कि सिर्फ 9 साल के होने पर भी फिल्म देखते हुए प्यार के एहसास ने इतना रुलाया था कि आँखें खूब लाल हो कर सूज गई थी.
ReplyDeleteयहफिल्म और यह गाना बहुत ही पसंद है मुझे भी ....आज आपका यह लिखा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा कुछ फिल्मे कभी भूल नहीं पाती न ही उनके गाने यह उन्ही में से एक है ...
ReplyDeleteव्यस्तता में कहीं खो गई संवेदना को झकझोर कर जगा देने वाला पोस्ट। गजब की लेखन शैली...आप संगीत, कविता से कहां वंचित हैं? आपकी पूरी लेखनी खुद में संगीत से कम नहीं। खामोशी का ये गीत मेरे भी पसंदीदा गीतों में शामिल हैं।
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