'हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू' श्रृंखला की इस कड़ी में, यौन शिक्षा के बारे में डेविड र्यूबॅन (David Reuben) के द्वारा लिखी एक अच्छी पुस्तक ऍवेरीथिंग यू वान्टेड टू नो अबॉउट सेक्स बट वेर अफ्रेड टू आस्क (Everything you always wanted to know about sex but were afraid to ask) के बारे में चर्चा है।
यहां पर ही क्यों, सेक्स पर बात करना हर जगह वर्जित है। हांलाकि कि बीबीसी के मुताबिक बहुत कुछ बदल रहा है। हिन्दी चिट्ठा-जगत में कुछ दिन पहले 'सेक्स क्या' नामक चिट्ठे को नारद पर रखने या नहीं रखने के लिये बहस चली जिसकी आखरी कड़ी रजनीश जी ने लिखी है। सी.बी.एस.ई. में यौन शिक्षा को पाठ्य-क्रम में रखा गया है। इसे कई राज्य सरकारों ने मना कर दिया। इस संबन्ध पर कईयों ने यहां (यह चिट्ठा अब सबके पढ़ने के लिये नहीं रहा), यहां, यहां, यहां, और यहां लिखकर अपनी राय दी है। मैं यौन शिक्षा का पक्षधर हूं। मेरे विचार से यौन शिक्षा को पढ़ाया जाना ठीक है।
यौन शिक्षा - इस रिश्तों की श्रखंला में! आपको कुछ अजीब लग रहा है न। चलिये पहले मैं यह स्पष्ट कर दूं कि यह चिट्ठी इस श्रंखला के अन्दर क्यों लिख रहा हूंं?
महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा छेड़खानी भीड़-भाड़ की जगह होती है पर यौन उत्पीड़न सगे संबन्धी या जान पहचान व्यक्ति के द्वारा ही ज्यादा होता है। पारिवारिक रिश्तों के अन्दर, यौन शिक्षा किस तरह से हो, एक नाजुक पर महत्वपूर्ण विषय है। इसीलिये मैं, इसे, इस श्रंखला के साथ लिख रहा हूं।
मैं नहीं जानता कि इस विषय को बताने का क्या सबसे अच्छा तरीका है पर मैं वह तरीका अवश्य जानता हूं जैसा कि हमारे परिवार में हुआ। मैंने यह विषय कैसे अपनी आने वाली पीढ़ी को बताया।
मुझे अपने काम के कारण, अक्सर स्कूल, प्रोफेशनल विद्यालय, विश्व-विद्यालय में जाना पड़ता है। बच्चों से मुलाकात होती है। अक्सर मेरे पास बच्चे यह पूछने के लिये आते हैं कि वे क्या कैरियर चुने, कहां पढ़ने जायें। मैं कभी कभी उनसे यौन शिक्षा के विषय पर भी बात करता हूं। मैं क्या उनसे बताता हूं यहां कुछ उसी के बारे में।
मेरे बचपन का एक बहुत अच्छा मित्र, टोरंटो इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापक रहा। कुछ समय पहले उसकी मृत्यु हो गयी। बचपन में ही उसके पिता का देहान्त हो चुका था। भाई, बहनो की भी शादी के बाद, वह और उसकी मां हमारे ही कस्बे में रहते थे। अक्सर उसकी मां उसके भाई या बहनो के पास रहने चली जाती थी। उस समय उसका घर खाली रहता था। उस समय, उसके घर, काफी धमाचौकड़ी रहती थी।
यह १९६० का दशक था। हेर संगीत नाटक का मंचन हो चुका था। इसका जिक्र मैंने 'ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके' की श्रंखला में किया है। हिप्पी आंदोलन अपने चरम सीमा पर था। हमारी इस धमाचौकड़ी में, अक्सर लड़कियों भी शामिल रहती थीं। कभी कभी चरस और गांजा भी चलता था। मैं खेल में ज्यादा रुचि रखता था। मुझे जिला, विश्वविद्यालय एवं अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। इसी कारण इस तरीके की धमाचौकड़ी में शामिल नहीं रहता था।
एक बार मेरे मित्र को कुछ ब्लू फिल्में मिल गयीं। एक दूसरे मित्र ने प्रोजेक्टर का इंतजाम कर दिया। उन लोगों ने फिल्म को भी देख लिया। यह सोचा गया कि उसे फिर देखा जायगा पर सवाल था कि ब्लू फिल्म कहां रखी जाय। कोई भी उसे रखने को तैयार नहीं था। मैं ही ऐसा था जो कि इस धमाचौकड़ी मे शामिल नहीं था। इसलिये मेरे पास ही रखना सबसे सुरक्षित समझा गया या यह समझ लीजये कि मुझे उन ब्लू फिल्मों को रखने में कोई हिचक नहीं थी।
मैं ने यह ब्लू फिल्में अपने कपड़े की अलमारी में रख दी। एक दिन मेरे कपड़े लगाते समय अम्मां को ब्लू फिल्में मिल गयीं। उनके पूछने पर मैंने सारा किस्सा बताया और यह भी बताया कि मैंने कोई भी ब्लू फिल्म नहीं देखी है। अम्मां ने पूछा कि मुझे सेक्स के बारे में कितना ज्ञान है। मेरा जवाब था थोड़ा बहुत। उन्होने कहा कि,
'ब्लू फिल्मों मे बहुत कुछ नामुमकिन बात होती है और अधिकतर जो भी होता है वह ठीक नहीं। तुम्हें मालुम होना चाहिये कि क्या ठीक नहीं है। इसलिये इसे, तुम्हें देख लेना चाहिये पर उसके पहले सेक्स का अच्छा ज्ञान भी होना चाहिये।'
हम लोग किताबों की दुकान पर गये और वहां से एक पुस्तक Everything you always wanted to know about sex but were afraid to ask by David Reuben खरीद कर लाये। यह पीले रंग की पुस्तक है इसलिये यह पीली पुस्तक के नाम से भी मशहूर हुई।
सेक्स के बारे में उत्तेजना चित्र देख कर होती है या इसके किये जाने के वर्णन से। यदि यह वर्णन साधारण रूप से है तो नहीं। इस पुस्तक में कोई भी चित्र नहीं हैं। इसमें सारा वर्णन प्रश्न और उत्तर के रूप में है। इसे पढ़ कर कोई उत्तेजना नहीं होती है। इस पुस्तक में कुछ सूचना समलैंगिक रिश्तों और सेक्स परिवर्तन के बारे में है। यह इस तरह के विषयों को नकारती है। इसी लिये कुछ लोग इस पुस्तक पर विवाद करते हैं। यह दोनो विषय विवादस्पद हैं। मैंने इनके बारे में 'Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री', 'आईने, आईने यह तो बता - दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन', 'मां को दिल की बात कैसे बतायें', और 'मां को दिल की बात कैसे पता चली' नाम से लिखा है। मैं इसके बारे विस्तार से लिखने की हिम्मत जुटा रहा हूं। यदि आप इस पुस्तक में इस विषय की सूचना को छोड़ दें तो बाकी सूचना के बारे में कोई विवाद नहीं है और लगभग सही है। मेरे विचार से यह एक अच्छी पुस्तक है।
मैंने, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद ब्लू फिल्म देखना जरूरी नहीं समझा। ब्लू फिल्म न देखने के निर्णय में, कई अन्य बातों ने भी महत्वपूर्ण रोल निभाया। अम्मां ने,
- मुझे न तो उन फिल्मों को रखने के कारण डांटा, न ही देखने के लिये मना किया। जिसके बारे में मनाही हो, उसी के बारे में उत्सुकता ज्यादा रहती है;
- हमेशा हमें ऑउटडोर खेल पर, पढ़ाई से भी ज्यादा, ध्यान देने के लिये प्रोत्साहित किया। उस समय पढ़ाई का वैसा बोझ नहीं था जैसा कि आजकल होता है।
'पढ़ाई बन्द करो और बाहर जा कर खेलो।'यदि हम रात को देर तक पढ़ते थे तो हमेशा कहती थीं
'चलो, सोने जाओ। बहुत रात तक पढ़ना ठीक नहीं।'परीक्षा के दिनो में तो हमारे कमरे की बत्ती बहुत ज्लद ही बन्द कर दी जाती थी। वे कहती थीं,
'परीक्षा के समय दिमाग एकदम तरोताजा रहना चाहिये।'
हमार मुन्ना, जब स्कूल में ही था तब मैंंने उसे यह पुस्तक पढ़ने के लिये दी। वह बारवीं तक हमारे पास ही रहा, उसके बाद आई.आई.टी. कानपुर पढ़ने चला गया। वहां सब होस्टल में ही रहते हैं। मैं समझता हूं कि उसे इस पुस्तक को पढ़ने के कारण मदद मिली।
देश के कुछ महाविद्यालयों में, पास-ऑउट करने वाले छात्रों की एक पत्रिका निकाली जाती है। आई.आई.टी. कानपुर में ऐसा होता है। यह पत्रिका विद्यार्थी ही निकालते हैं इसमें उनके साथी ही उन्हीं के बारे में लिखते हैं। मैं एक बार उनकी इस पत्रिका को पढ़ने लगा तो उन्होने मना किया,
'पापा, तुम मत पढ़ो। इसे पढ़ कर तुम्हे अच्छा नहीं लगेगा।'मैंने कहा,
'मैं भी अपने विद्यार्थी जीवन में इन सब से गुजर चुका हूं इसलिये कोई बात नहीं।'उनकी पत्रिका में बहुत सारी बातें स्पष्ट रूप से लिखी थीं। हमारे समय में भी उस तरह की बातें होती थी पर इतना स्पष्ट रूप से नहीं लिखा जाता था।
मैंने School Reunion चिट्ठी लिखते समय लिखा था कि मुन्ना आई.आई.टी. कानपुर की पत्रिका में दी गयी पहली दो सूची में नहीं है पर विद्यार्थियों की इस पत्रिका में, उसके बारे में, यह अवश्य लिखा है कि वह वहां के साफ सुथरे बच्चों में से एक है। हो सकता है यह उसके संस्कारों के कारण हो पर मेरे विचार से यह उसके इस पुस्तक को पढ़ने और यौन शिक्षा को अच्छी तरह से समझने के कारण है।
मेरे विचार में, आने वाली पीढ़ी को अच्छी किताबें बताना, मुक्त पर स्वस्थ यौन चर्चा करना, एक अच्छी बात है। अन्यथा, नयी पीढ़ी को गलत सूचना मिल सकती है जिसकी संभावना अधिक है। इस कारण वे गलतफहमी के शिकार हो सकते हैं।
ऐडस् के बारे में जागरुकता फैलाती फिल्म 'फिर मिलेंगे' का एक लोकप्रिय गीत 'बेताब है दिल' का आनन्द लीजिये।
सांकेतिक शब्द
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१९९३ में जब मैं (१५-१६ साल का था)इलाहाबाद विश्वविद्यालय आया था तब All About Love & Sex by 'Marie Biswas' पढी़ थी|
ReplyDeleteकृपया सी बी एस सी को सी बी एस ई से बदल दें।
धन्यवाद।
"मेरे विचार में, आने वाली पीढ़ी को अच्छी किताबें बताना, मुक्त पर स्वस्थ यौन चर्चा करना, एक अच्छी बात है। अन्यथा, नयी पीढ़ी को गलत सूचना मिल सकती है जिसकी संभावना अधिक है। इस कारण वे गलतफहमी के शिकार हो सकते हैं।"
ReplyDeleteऐसा हर समझदार व्यक्ति सोचता है, और इसी लिए यौन शिक्षा की वकालत करता है.
आपका लेख, हमेशा की तरह बहुत अच्छा है. एण्ड यू हैव सच एन अण्डरस्टेण्डिंग मदर.
ReplyDeleteयौन शिक्षा पर मेरे विचार फर्म-अप नहीं हैं. सो टिप्पणी करना उचित नहीं लगता.
सोलह साल की उम्र मेरी बुक स्टाल हुआ करती थी. इस किताब को पढ़ा तो नहीं पर बेचा बहुत हैं.
ReplyDeleteपीत पत्रकारिता और सेक्स संबन्धी साहित्य पीले पारदर्शी रैपर में लिपटा आता है, इसका आपस में क्या संबन्ध है?
आपने जो जानकारी दी वह बहुत ही साहरीनिय है. इस जानकारी के लिये आप धन्यवाद के पात्र है.
ReplyDeleteआपका अनुभव और लेख का जो संगम है वो सराहनीय है । किसी भी बात का हल बात से ही निकला जा सकता है ना कि उसे छुपा या दबा के । हम आप बडे ही अपने अनुजो को बता सकते हैं कि सेक्स के बारे में कितना जानना चाहिऐ । आपका लेखा सच में बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteकुछ दिन पहले प्रमेन्द्र ने भी इस पर एक पोस्ट लिखी थी . मैने १९७५ मे हई स्कूल किया था , हमारा स्कूल एक मिशनरी स्कूल था और इलाहाबाद बोर्ड से संबधित था लेकिन आप ताज्जुब करेगें कि हाई स्कूल के पाठयक्रम मे यौन शिक्षा न होने के बावजूद स्कूल के अपने पाठय्क्रम मे थी . ९-१० क्लास मे मिली यौन शिक्षा का परिणाम हमने बाद के दिनो मे महसूस किया . यौन शिक्षा आवशयक ही नही नितातं आवशयक है -एक स्वस्थ समाज के सृजन के लिये .
ReplyDeleteमैंने इसी विषय पर नवंबर 2005 में एक प्रविष्टि लिखी थी -
ReplyDeleteआर यू सेक्सुअली लिट्रेट?
मेरे बुक शेल्फ में अभी भी प्रकाश कोठारी लिखित तथा मेरे उस लेख में उल्लेखित मेन्युअल रखे हैं. मेरे बच्चे भी युवा हो रहे हैं. यदा कदा निश्चित ही वे उन्हें पढ़ेंगे. और मेरे विचार में यही सबसे उचित तरीका भी है :)
हमेशा की तरह उम्दा पोस्ट. योन शिक्षा का प्रचार प्रचार तेजी से हो ही रहा है और यह बहुत अच्छी पहल है. आने वाले समय में यह और प्रचारित होगा, इसमें कोई संदेह नहीं. अच्छी जानकारी तो हमेशा ही हितकर है.
ReplyDelete-बधाई इस आलेख के लिये.
आपने बहुत ही बैलेंस तरीके से लिखा है।
ReplyDeletesach kaha mamtaji
Deletemukul.sharma4829@gmail.com
सभी समझदार साथी बार बार कह रहे हैं कि यौन शिक्षा होनी चाहिए तो ठीक ही कह रहे होंगे। लेकिन एक बात है कि ब्लॉग पर तो सभी बोल देते हैं ईमानदारी पूर्वक बताइए कि असल जीवन में आप सब में से कितने लोग अपने बच्चों से इस बारे में बात कर सकते हैं?
ReplyDeleteहमारे पास नवीं कक्षा में रिप्रोडक्शन (जनन) का अध्याय हुआ करता था जिसे सभी अध्यापक छोड़ दिया करते थे। शुक्र है कि मुझे बॉयोलॉजी नहीं पढ़ानी होती लेकिन यदि मुझे पढ़ानी पढ़े तो मैं भी यह अध्याय सहज होकर नहीं पढ़ा सकूँगा।
अपने अनुभव से फिर यही कहूँगा कि ब्लॉग पर लिखना अलग बात है, कॉलेज-विश्वविद्यालय में सैक्स संबंधी चर्चा करना अलग बात है, लेकिन एक स्कूल में इस विषय को पढ़ाने की हिम्मत बहुत कम लोगों को होगी। जब सामने १३-१४ साल के बच्चे बैठे हों तो कोई भी यौन चर्चा में सहज महसूस नहीं कर सकता। फिर ऐसी चर्चा की भी जाए तो छात्र बजाय उसको गंभीरतापूर्वक लेने के टीचर के मजे लेने के चक्कर में ज्यादा रहते हैं। इसलिए यदि ऐसे कुछ अध्याय सिलेबस में हों भी तो अध्यापक अक्सर उन्हें स्किप किया करते हैं।
अर्थात बात फिर वहीं आ जाती है कि यौन शिक्षा हेतु सही उम्र क्या हो। पहले विद्वान लोग इसका निर्धारण करें, फिर यौन शिक्षा की वकालत करें।
लिखा अच्छा है किन्तु कई प्रश्न मन में है, कभी उल्लेख करूँगा
ReplyDeleteकाश ... आपके चिट्ठों से हमारा समाज कुछ सीख पाए तो बात बने... बहुत कुछ जो आपके चिट्ठों में है...हमारा परिवार उन्हीं विचारों का मिला जुला रूप है....आज आपके सभी चिट्ठों पर गए और शुभाजी का ब्लॉग भी देखा... हिन्दी ब्लॉगजगत में आपके सभी ब्लॉग अलग हट कर हैं... नए विचारों से सहमत लेकिन पुराने का मोह और आदर भी...
ReplyDeleteVery GOOD THOUGHTS
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