समुद्र तट सार्वजनिक होते हैं। इस चिट्ठी में इस चिट्ठी में त्रिवेन्दम के समुद्र तट के साथ, इसी की चर्चा है।
त्रिवेन्दम में हम लोग केटीडीसी के समुद्र होटेल में ठहरे थे। वहां पहुंच कर हम लोगों ने चाय पी और नीचे समुद्र तट पर घूमने चले गये। इस तट का नाम ही ‘समुद्र तट‘ है । यहां पर सूर्यास्त हो रहा था - बहुत दृश्य सुन्दर था।
हम लोगों ने यह सोचा कि पूरे तट का एक नज़ारा ले लिया जाए। हम लोग जब एक तरफ आगे जाने लगे तो एक जगह, एक गार्ड, हम लोगों को जाने से रोकने लगा। वहां पर कोई प्राइवेट होटल था। वह उसी का गार्ड था। उसने हमसे कहा,
‘यह समुद्र तट का हिस्सा केवल उसके होटल के अतिथि के लिए है सबके लिए नहीं आप लोग नहीं जा सकते हैं।‘मैंने उससे रौबीली आवाज़ में कहा,
‘भारत में कोई भी समुद्र तट प्राइवेट नहीं है। सारे समुद्र तट सरकारी और सार्वजनिक है। हां कुछ सुरक्षा की दृष्टि से कुछ तट सार्वजनिक तौर पर नहीं खुले है। तुम हमें यहां घूमने से नहीं रोक सकते हो।
हाँ यह बात अलग है कि हम लोग कोई अश्लील तरीके का कपड़ा पहने या कोई अश्लील काम को करें, तो रोक सकते हो। लेकिन हम लोग न अश्लील कपड़े पहने हुए हैं और न ही अश्लील हरकत कर रहे है। इसलिए हमें रोकना एकदम गलत है। तुम अपने मैनेजर को बुलाकर लाओ या फिर मुझे उसके पास ले चलो। मैं उसे समझा देता हूं।'इतना सुनने के बाद वह थोड़ा सा घबरा सा गया। उसने कहा अच्छा-अच्छा आप लोग आगे जा सकते है। हम लोग आगे तक घूमने गये। वहां घूमते हुऐ उसकी बात समझ में आयी।
उस होटल में बहुत सारे विदेशी पर्यटक भी थे। यह लोग भारतियों से बहुत कम कपड़े पहने हुए थे और धूप का आनन्द ले रहे थे या नहा रहे थे। सारे भारतीय उन्हीं की तरफ देख रहे थे। भारत के पुरूष भी जो नहा रहे थे वह भी ठीक तरह के कपड़े पहनकर नही नहा रहे थे। मुझे ही देखने में अजीब लग रहा था तो विदेशियों को देखने में अजीब लगेगा ही। किसी को भी यह हरकत परेशान करेगी। इसीलिए वह मना कर रहा था।
हम लोग दो साल पहले गोवा गये थे वहां पर 'सिटा दे गोवा' नामक होटल में ठहरे थे। यह बहुत सुन्दर होटल है पर इसने अपनी इमारत इस तरह से बना ली है कि इसके सामने का समुद्र तट इन्हीं का हो गया है। इस इमारत को भी उन्होंने गैर कानूनी तौर से बनाया है। इस बारे में वहां एक लोकहित याचिका हुई। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इमारत तोड़ने का आदेश हो गया पर गोवा सरकार ने इसे बचाने के लिए अध्यादेश जारी कर दिया है। इसलिए आजकल वहां बवाल मचा है। इस विषय पर अधिक जानकारी आप डाउन टू अर्थ नामक पत्रिका के लेख में पढ़ सकते हैं। डाउन टू अर्थ एक अच्छी पत्रिका है। मैंने इसके और पर्यावरण पर कुछ अन्य पत्रिकाओं के बारे में यहां लिखा है।
समुद्र तट पर घूमते हुए वहाँ पर कुछ लोगों ने मुझसे पूछा क्या नाव पर घूमना पसन्द करूंगा। मैंने कहा,
'इस समय तो कुछ अंधेरा हो रहा है इसलिए आज तो नहीं पर कल घूमना पसन्द करूंगा। लेकिन, इसके लिये आपको कितने पैसे देने होंगे।'मेरा इतना ही कहना था कि मुन्ने की मां मुझसे कहने लगी,
‘तुम नाव पर नहीं जाओगे। यदि तुम्हें नाव पर घूमने के लिए जाना है तो तुम अकेले आया करो या फिर मुझे अपने साथ न लाया करो।'इतने में उस व्यक्ति ने जवाब दिया,
'नाव में एक बार घूमने पर चार सौ पचास रूपये लगेगा और कल सुबह साढ़े नौ बजे से सैर करना शुरू होगा।'हम जब वहां से चलने लगे, तो मुन्ने की मां ने फिर से कहा,
'चाहे जो भी हो जाए, लेकिन, तुम नाव पर घूमने नहीं जाओगे।'मैंने उसका मन रखने के लिए कहा,
'मैं तो उससे केवल पैसा पूछ रहा था, मैं घूमने नहीं जा रहा हूं।'मैंने सोचा कि अगले दिन अकेले आऊँगा और चुपके से बिना बताये घूमने चला जाऊँगा लेकिन यह हो न सका। हम उसके बाद बहुत व्यस्त रहे।
अगली बार बात करेंगे इटालियन सुन्दरी, सिलविया की।
कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा
क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है।। आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी।। साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं।। पुरुष बच्चों को देखे - महिलाएं मौज मस्ती करें।। भारतीय महिलाएं, साड़ी पहनकर छोटे-छोटे कदम लेती हैं।। पति, बिल्लियों की देख-भाल कर रहे हैं।। कुमाराकॉम पक्षीशाला में।। क्या खांयेगे - बीफ बिरयानी, बीफ आमलेट या बीफ कटलेट।। आखिरकार, हमें प्राइवेट और सरकारी होटल में अन्तर समझ में आया।। भारत में समुद्र तट सार्वजनिक होते हैं न की निजी।। हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
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सांकेतिक शब्द
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जगह और काम के अनुरूप सलिका तो सीखना ही चाहिए.
ReplyDeleteआपके द्वारा दिए गए लिंक के लिए आभार. निश्चित ही समुद्र तट निजी नहीं हो सकता. २०० मीटर तक तो किसी भी प्रकार का निर्माण वर्जित है. सुन्दर आलेख के लिए आभार
ReplyDeleteभारत में बहुत सी सार्वजनिक संपत्तियाँ निजि लोगों ने या संस्थाओं ने इसी तरह कब्जा ली है, सरकारों के सहयोग से।
ReplyDeleteआंखें बंद करके घूमने में अधिक आनंद आता।
ReplyDeleteरोचक विवरण
ReplyDeleteबी एस पाबला
हाँ मैंने मैरे लिबेरम जैसा कुछ पढ़ा था जो इंटरनेशनल ला के अधीन पढाया गया था -फिशरीज की डिप्लोमा में ! समुद्र के तट तो सार्वजनिक ही हैं !
ReplyDeleteऔर हाँ डाउन तो अर्थ निश्चित ही एक अच्छी पत्रिका है !
चित्र लगाने में कंजूसी ठीक नही उन्मुक्त जी :-)
ReplyDeleteसही आकर -प्रकार के लगाया करें ...जिससे की हम उन्हें डेस्कटॉप में लगा सकें
waah sunset ka chitra bahut sunder hai.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका यह लेख ...
ReplyDeleteलवली कुमारी की मांग पर गौर किया जाये उन्मुक्तजी।
ReplyDeleteकारोबार करने वालों ने एक्सक्लूसिव के चक्कर में समुद्र तक को निजी बनाने की कोशिश कई जगह शुरू कर दी है। लेकिन, ये जरूरी है कि समंदर के किनारे तो, किसी की बपौती न हों।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी दी है आभार.
ReplyDeleteचलिये, अगली बार सिल्विया जी का चित्र होगा?!
ReplyDeleteसार्वजनिक सम्पति तो आपकी अपनी संपत्ति होती है. कुछ लोग बस अपना ही तो मान लेते हैं :)
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