केरल में, बीफ, काफी खाया जाता है। इसका आभास हमें कुमारकॉम से त्रिवेन्दम जाते समय, रास्ते में हुआ। इसी की चर्चा इस चिट्ठी में है।
इस यात्रा के दौरान, कन्याकुमारी में विवेकानन्द रॉक मेमोरिएल से समुद्र का चित्र
कुमाराकॉम से त्रिवेन्द्रम के लिये हम लोग टैक्सी से निकले। रास्ते में हरि पार्क नामक जगह आयी। मैंने प्रवीण से कहा कि हम लोग कहीं पर रुककर कॉफी पायेंगे और बाथरूम का प्रयोग करना चाहेंगे। वह हम लोगों को इन्डियन कॉफी हाउस ले गया।
कॉफी हाउस को कोऑपरेटिव सोसायटी चलाती हैं। इनका हेड ऑफिस त्रिशूल में है। इस कॉफी ऑफिस की दीवारों में, कुछ बड़े अक्षरों में उनके मीनू लिखे हुए थे। उस मीनू में प्रमुख था बीफ बिरयानी, बीफ आमलेट और बीफ कटलेट। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि किसी भी रेंस्ट्रा में इतनी आसानी से बीफ मिल सकता है। मेरे कस्बे में तो बीफ इस तरह से नहीं बिक सकता। शायद लोग बुरा मान जाएँ। मुझे आश्चर्य लगा कि बीफ इतने खुले तरीके से बिक रहा है। प्रवीण ने बताया,
'यहाँ पर हिन्दू भी बीफ खाते है। इसलिये यह सब जगह मिल जाता है। यह केवल केरल में ही है और दक्षिण के किसी अन्य प्रान्त में ऐसा नही है। यहाँ पर जो अलग दूसरे प्रान्त के हिन्दू लोग आकर रहते हैं वे भी बीफ नहीं खाते हैं।'
मैंने कभी बीफ नहीं खाया था। मैं खाकर देखना चाहता था कि खाने में कैसा लगता है। मैंने अपने लिए बीफ कटलेट मंगाया। यह स्वाद में आलू के कटलेट की तरह था। मुझे तो कोई अन्तर नहीं लगा। मैंने वेटर से पूछा कि इसमें कितना बीफ था। वह नहीं बता सका। वह उसके बनाने वाले को मेरे पास लेकर आया। उसने बताया,
‘मैं चालीस कटलेट के लिए, एक किलो बीफ का प्रयोग करता हूं।‘यह अनुपात शायद बहुत कम है। इसलिये इसका स्वाद पता नहीं चल पाया।
हम कटलेट खा कर आगे चले पर वहां जैम, अरे मेरे मतलब ट्रैफिक जैम इंतजार कर रहा था। यह पोंगल त्योहार के कारण था। इस श्रंखला की अगली कड़ी में इसी के बारे में।
कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा
क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है।। आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी।। साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं।। पुरुष बच्चों को देखे - महिलाएं मौज मस्ती करें।। भारतीय महिलाएं, साड़ी पहनकर छोटे-छोटे कदम लेती हैं।। पति, बिल्लियों की देख-भाल कर रहे हैं।। कुमाराकॉम पक्षीशाला में।। क्या खांयेगे - बीफ बिरयानी, बीफ आमलेट या बीफ कटलेट।।हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
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सांकेतिक शब्द
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बस आपने बीफ कटलेट खाई और पोस्ट खत्म हो गयी ? यह तो पाठकों के साथ सरासर नाइंसाफी है -और केरल में तो बीफ खाने के लिए अलग से कोई आर्डर देने की जरूरत नहीं है -वहां हर खाद्य वस्तु में यह अविभाज्य रूप से मिश्रित रहता है .चावल का ऑर्डर करिए तो बिरयानी मिलेगी और दाल मांगिये तो 'लखदावा '(किसी सब्जी के टुकडों से मिश्रित दाल )-वहां शाकाहारियों की शामत है -आपने बीफ चाप क्यों नहीं टेस्ट किया ? तब आपको बीफ का स्वाद भी मिल जाता !उसने आपको वही कटलेट दिया जो वह शाकाहारियों को भी सर्व करता है !मेरे तो केरल के अनुभव बहुत खराब हैं खान पान को लेकर !
ReplyDeleteजारी रहिये....भूलवश एक बार मैं भी खा चुका हूँ और स्वाद में अंतर न पता कर पाया किन्तु मालूम चलने के बाद खा भी न पाया.
ReplyDeleteहमने तो हमेशा होटलों में बड़े बड़े अक्षरों में केवल यही पढ़ा है कि यहाँ बीफ़ नहीं मिलता है, केरल के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ।
ReplyDeleteभारत सरकार दावे से कहती है की सम्पूर्ण भारत में गौहत्या/गौमांस पर प्रतिबन्ध है, फिर यह सब कैसे चल रहा है?
ReplyDeleteभारत में बीफ का उपयोग.. आपकी पोस्ट को पढकर कुछ आश्चर्य हुआ .. टिप्पणियों को पढकर अधिक !!
ReplyDeleteबड़े गंदे आदमी हो यार... थू...थू...।
ReplyDeleteमालूम चलने के बाद तो हम भी ना खा पायें
ReplyDeleteयह पोस्ट पढ़कर बहुत दुख:द एहसास हुआ, अपने अपने नाम से उन्मुक्त बताया है, उन्मुक्तता में सब पैरो का बढ़ने की क्षमता आप में है।
ReplyDeleteयदि आप मुस्लिम धर्म से सम्बन्ध रखते है तो आपके लिये यह जायज हो सकता है किन्तु यदि आप हिन्दु अथवा किसी धर्म से सम्बन्धित है तो आपको सोचना चाहिये था।
विहिप वाले कहां घास खोद रहे हैँ!
ReplyDeleteआपने गाय का मांस खाया???!!!!!
ReplyDeleteआपने बीफ खा लिया तो लोगों को इतना आश्चर्य क्यों हो रहा है?
ReplyDeleteबडाही साफ़ गोई से लिखा है आपने ..आज बड़े अरसे के बाद आपका सही लिंक खुला ..! कहींसे follow करते ,करते पहुँची हूँ ...अब पोड कास्ट भी सुनही लूँगी ..! आपको बहुत कुछ कहना /पूछना चाहती हूँ , मेरे लेखन को लेके ..एक रहनुमाई भी . ..गर नज़रे इनायत हो !
ReplyDeleteकोई खता नही गर अनजाने में हमसे गलती हो ..मै तो उसे गलती भी न कहूँ ! जबकि , मै ख़ुद तकरीबन शाकाहारी हूँ ..फिर भी..गनगा नदी समझ उसमे स्नान करनेवाला उतना ही puny पायेगा,जितना की, असली gangaa se pata....खैर..मै इस तरह के पुण्य को नही मानती..जो रोज़मर्रा के काम सही नीयत से करे, वही साधक होता है...पुण्य वही कमाता है..!
आप यकीनन इसाइयों के हाथों बिके हुओं में से एक हैं|आपने बीफ खाया या फिर गटर का कचरा, ये आपका व्यक्तिगत मामला है|इस तरह से इस बात का प्रचार करने से आपका क्या मतलब है?आप अपनी बेशर्मी का नमूना दिखा रहे हैं या फिर हिन्दुओं के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं ?मुझे आश्चर्य है कि ऐसे वाहियात पोस्टों को यहाँ जगह कैसे मिल जाती है|
ReplyDeleteयह तो आश्चर्यजनक जानकारी दी आपने।
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
काफ़ी सारे लोगों के लिये ये जानकारी नयी होगी. इसे सार्वजनिक करके ठीक ही किया.
ReplyDeleteपर मेरा तो यही मानना है कि गौ-मांस भक्षण गाली खाने लायक ही काम है. एक हिन्दू होकर ऐसा कोई कैसे कर सकता है?
वैसे किसी भी प्रकार का मांस भक्षण करने वाला पूरी तरह इंसान कहलाने के लायक नहीं.
मैं शुद्ध शाकाहारी ब्राहमण परिवार से हूँ ..कोई क्या खाता है अथवा क्या खाना गलत समझता है यह उसका निजी मामला है इसे निरर्थक विवाद का विषय नही बनाया जाना चहिये. न सिर्फ केरल बल्कि कोलकाता के कई प्रतिष्ठित रेस्टुरेंट बड़े शान से बीफ परोसतें हैं और खाने वाले खाते हैं ..पर आई टिप्पनिओं को देखकर साफ जाहिर हो रहा है लोग अब तक बहुत गलफ़त में पड़े हैं. दुखद है यह.
ReplyDeleteमेरी समझ से खान पान निजी मामला है और इसे लेकर यहाँ उद्विग्नता यही दिखाती है है की हम सोच के स्तर पर अभी भी संस्कारित नहीं हो पाए -विवेकानंद ने कहा था की लोगों ने रसोई को मंदिर और बर्तनों को देवता बना रखा है !
ReplyDeleteउन्मुक्त जी अब आगे से यह ध्यान रखियेगा की आप हिन्दी ब्लाग जगत में हैं !
भाई ,केरल की यात्रा कराने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteवाकई चिंतनीय... घिनौना ..
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