केरल यात्रा के दौरान हम कोचीन में ताज मालाबार होटेल में रुके थे। इस चिट्ठी में उसी की चर्चा है।
कोचीन में, हम लोग ताज मालाबार होटल में रूके थे। होटल में पहुंचते समय अभिलाष, स्वागत कक्ष पर थे। उन्होंने मुस्कुरा कर हम लोगों का स्वागत किया और कहा कि उसने हमें अपग्रेड दे दिया है और हेल्टज रूम में रहने की सुविधा प्रदान की है। मेरे पूछने पर कि उसने ऎसा क्यों किया। उसने कहा, इसकें दो कारण बताये,
'पहला, हमें पहले पता चल गया था कि हिन्दी चिट्ठाकार उन्मुक्त सपत्नीक आ रहें हैं। हिन्दी चिट्ठाकारों को तो खास कमरा देना ही होता है।'
वाह, हिन्दी चिट्टकारी का यह फायदा तो मुझे मालुम ही न था :-)
स्वगत कक्ष पर अभिलाष,
अभिलाष जी, अन्य हिन्दी चिट्ठकारों का भी ख्याल करना।
'दूसरा, इस समय होटेल में, अच्छे कमरे खाली हैं। आप जब वापस जाएं तो अपने मित्रों को इस होटल के बारे में बतायें और उन्हें यह ठहरने के लिये कहें।'
होटेल के बाहर का दृश्य
ताज मालाबार होटल दो भागों में बना हुआ है पहला भाग पुराना है। इसे १९३६ में अंग्रेजों ने बनवायया था। उस समय यह नाविकों के आराम गृह की तरह प्रयोग किया जाता था। बाद में, ताज होटल ने, इसे खरीद लिया। इसमें एक नई बिल्डिंग बनवायी गयी है जो उसके बगल में बहुमंजिली इमारत है। शायद, हम लोगों का आरक्षण बहुमंजिली कमरे में था। अभिलाष ने हमें, हेल्टज रूम में यानी १९३६ में बने कमरे में भेज दिया। अभिलाष ने मुझसे पूछा,
'इस कमरे में दोनो विस्तर अलग-अलग हैं। यदि आप चाहें तो हम आपको दूसरा कमरा दे सकते हैं जिसमें दोनो बिस्तर साथ साथ हो।'मैंने जवाब दिया,
'इस उम्र में हमें इसकी कोई जरूरत नहीं है। यह कमरा चलेगा।'
हम लोग जब कमरे में पहुंचे तो मुझे लगा कि हमारा रात में कोचीन में रूकने का निर्णय सही था। यह होटल भी बहुत अच्छा है और उसका कमरा भी। इस कमरे का भी फर्नीचर और समान, उसी समय की स्टाइल में था। इस कमरे के बाहर देखने पर अप्रवाही जल (Back water) और समुद्र का सुन्दर दृश्य दिखायी पड़ता था।
होटेल से बाहर अप्रवाही जल
कुछ साल पहले जब मै एक सम्मेलन में भाग लेने कोचीन आया था तब यहाँ पर 'ला मेरिडियन' होटल में ठहरा था। वह होटल भी एक बेहतरीन होटल है पर ताज मालाबार किसी मायने में उससे कम नहीं है।
सुबह मेरी मुलाकात होटेल के दरबान, ऑगस्टीन से हूई। मैं उसका चित्र नहीं ले पाया पर उसने बताया कि वह काम चलाऊ १८ भाषायें बोल सकता है। मैंने जब उससे पूछा कि उसने यह कैसे सीखा तो उसने बताया,
'कोचीन में विदेशी पर्यटक आते हैं। बस उन्ही से बात करते करते उनकी भाषा सीख ली।'मैंने ऑगस्टीन से काफी देर बात की। वह मुझे हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति लगा।
हम लोग कुमाराकॉम जाने के पहले, कोचीन के दर्शनीय स्थल भी देखने गये थे। उस श्रंखला की अगली चिट्ठी, उसी के बारे में।
कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा
क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों को तो खास ख्याल रखना होता है।।
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सांकेतिक शब्द
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अगली बार आपका नाम लेकर ताज मालाबार में ही रुकेंगे....हेरिटेज कमरा जो मिल जायेगा...रोचक जानकारी दी है आपने..
ReplyDeleteनीरज
रोचक जानकारी।
ReplyDeleteताज मालाबार का पुराना हिस्सा वाकई सुन्दर है. हम तो कोचीन में भी आपसे मिल सकते थे और साथ ले आते शास्त्री जी को. हम आपको घुमा लाते. हमारे जैसा गाइड नहीं मिलेगा.
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बस कभी जाना हुआ तो आप से पता ले कर जायेगे, बहुत सुंदर लगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
अच्छा लगा पढ़ना !
ReplyDeleteहिन्दी ब्लागर (मेरे जैसा) कहीं होटल में ठहरेगा तो या तो उस की तारीफ करेगा, या फिर बुराई। अब होटल वाला दोनों में से पहला विकल्प ही चुनेगा। अच्छी चिट्ठी! आज का दिन केरल का लगता है। सुबह सुबह शब्दों का सफर वहीं से आरंभ हुआ था।
ReplyDeleteवाह ! ब्लोगर होने का अच्छा फायदा है. ये तो कभी सोचा ही न था :)
ReplyDeleteक्या सचमुच ध्यान रखा जाएगा :) कार्यक्रम बनाना पड़ेगा.
ReplyDeleteकोई आई कार्ड भी जारी किया है क्या हिंदी चिट्ठाकारो का.....हमें अगस्त में हैदराबाद जाने का है इसलिए ...
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