केरल यात्रा के दौरान हम कुमाराकॉम गये थे। यहां हम लोग ताज गार्डेन रिट्रीट में ठहरे थे। यह चिट्टी इसी के बारे में है।
सुबह, झील से, होटेल का दृश्य
ताज गार्डन रिट्रीट होटल मुझे बहुत सुन्दर और शान्त लगा। यहां पहले बेकर परिवार रहा करता था इसलिये इसे बेकर हाउस के नाम से जाना जाता था। केरल में, बेकर परिवार ने शिक्षा क्षेत्र में काम किया है। इनके परिवार का आखिरी सदस्य १९६२ में भारत छोड़कर चला गया और इसे १९७७ में बेच दिया। १९९२ में इसे ताज ग्रुप ने ले लिया।
यह लगभग १५ हेक्टेयर में स्थित है इसके बीचो बीच एक झील है। मन किया कि यहां कुछ दिन रुककर पुस्तकों का अध्ययन करूं, कुछ लिखूं। इस होटेल में एक जगह पुस्तकें रखीं थी। आप उन्हें कहीं पर बैठ कर पढ़ सकते थे। पूरे होटल में वाई-फाई (wi-fi) है। आप जहां चाहें वहां बैठ कर अपने लैपटॉप से काम कर सकते हैं, अन्तरजाल पर जा सकते हैं।
हम होटेल की इसी कॉटेज में रुके थे
हम लोगों को जब मालूम चला था कि एक रात हमें ताज रिट्रीट गार्डन में ठहरना है तब हमने इसके बारे में अन्तरजाल में देखा था। हमें वहां इसकी कुछ समीक्षाएं अच्छी नहीं थी। इसलिए हम घबरा रहे थे पर यह न केवल बेहतरीन होटल है पर यहां कि सेवा भी अति उत्तम है। मुझे दुख हुआ कि मैंने वहां केवल एक रात ही रूकने का क्यों प्रोग्राम बनाया।
बेकर पिरवार जिस भाग में रहता था इस समय वह होटल का मुख्य भाग था। इसमें उनके हेरीटॅज़ कमरे थे। बाद में इसमें जगह जगह कॉटेज बना दिये गये हैं। वहां पहुंच कर हमें बताया कि यहां भी हमें अपग्रेड कर दिया गया है इसका कारण वही बताया गया जो कि ताज मालाबार होटेल में दिया गया था।
हम जिस कॉटेज़ में ठहरे थे वह सुन्दर थी इसका बाथरूम अनूठा सा था। इसका कुछ भाग ऊपर से खुला था और उसके ऊपर जाल पड़ा था। वहां पर उसे प्रयोग करने पर लगता था कि हम खुली जगह पर हैं पर वह था, प्राइवेट।
वहां बहुत सी साइकलें रखी थीं मैने स्वागत कक्ष में बैठी महिला से पूछा कि यह यहां क्यों रखी हैं। उसने कहा,
'हमारा होटल बहुत फैला है। हमने यह साइकलें हमारे यहां ठहरने वाले मेहमानो के लिये रखी हैं। ताकि वे इसका प्रयोग कर एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिये करें।'मैंने वहां काफी साइकिल चलायी। होटेल के अन्दर आप जहां चाहें वहां साइकिल छोड़ सकते थे या कहीं भी रखी साइकिल को ले सकते थे। रात के समय होटेल वाले साइकिलों को वापस एक जगह पर रखते थे।
वहां कुछ साइकिलों के टायर पतले थे और कुछ के मोटे। पतले टायरों की साइकिल चलाने में मुश्किल पड़ी। लगता था कि वह इधर उधर भाग रही है। मुझे लगा कि कहीं मैं झील में न गिर जाऊँ। मोटे टायर वाली साइकिल चलाने में ज्यादा दम लगती थी।
मैंने न केवल बचपन में पर बाद के जीवन में काफी साइकिल चलायी है। हम अक्सर मित्रों से मिलने साइकिल पर जाया करते थे पर बाद में शुभा को साइकिल चलाने में तकलीफ होने लगी तब साइकिल चलाना छोड़ दिया। मैंने जिन साइकलों को चलाया है उनके टायर इन दोनो के बीच के होते थे। वे ही बेहतर थे।
आजकल मैंने पुन: साइकिल चलाना शुरू किया है। मेरी साइकिल में बीच के ही टायर हैं। मैं, आजकल इतवार को सुबह लगभग १५-२० किलोमीटर चलाता हूं और सप्ताह में प्रयत्न करता हूं कि सारे काम साइकिल में ही करूं। पेट्रोल भी बचा और वातावरण भी दूषित नहीं हुआ। हांलाकि भीड़ के कारण सब जगह साइकिल पर नहीं जाया जा सकता है।
इस होटेल में मेरी मुलाकात कई लोगों से हुई। वहां मुझे महिला सशक्तिकरण का नया रूप देखने को मिला। इस श्रंखला की अगली कुछ कड़ियों में उसी के बारे में।
कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा
क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है।। आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी।। साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं।।
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सांकेतिक शब्द
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अच्छा लग रहा है यह संस्मरण -और हाँ साईकिल चलाने का तो मेरा भी मन होता है !
ReplyDeleteजान कर अच्छा लगा कि आप 15-20 किलोमीटर साइकिल हर हफ्ते चला रहे हैं।
ReplyDeleteरोचक जानकारी .
ReplyDeleteसाइकल चलाने का नित्य अभ्यास और प्रयोग तो बहुत अच्छा है और समय की मांग भी है।
ReplyDeleteअच्छा लगा यह पढ़ना।
बहुत रोचक जानकारी है यात्रा के लिये बधाई अगली पोस्ट का इन्तज़ार रहेगा
ReplyDeleteरोचक जानकारी रूचिकर प्रस्तुति।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अच्छा लगा सुनकर की आपका अनुभव निराशाजनक नहीं रहा.
ReplyDeleteनमस्ते!! याद हूं ना मै? :) आपकी एक बहुत पुरानी पाठिका! पढती तो अब भी नियमित हूं. बस टिप्पणी नही करती. लेकिन आज ये कहना ही पडेगा कि आपका साइकिल प्रेम अनुकरणीय है!:)
ReplyDeleteआपकी यात्राओं के बारे में पढना हमेशा रोचक होता है.:)
ReplyDeleteउत्तरी यूरोप के कई देशों में तो स्थानीय प्रशासन सडकों के किनारे फ्री साइकिलें रखवाता है जिन्हें कोई भी लेकर कहीं भी जा सकता है और कहीं भी छोड़ सकता है. भारत में तो पहले दिन ही सारी साइकिलें गायब हो जाएँ;)
आपकी सब तो नही पर जो भी पोस्ट पढती हू ---लगता है मै भी आपके साथ घूम रही हूं---...........साईकिल आज भी पसंद है जब भी मौका मिलता है, जरूर चलाती हूँ ।
ReplyDeleteआज के समय में साइकिल पर आैर बहुत कुछ सकारात्मक कहने आैर उससे भी ज्यादा हम सबको साइकिल चलाने की जरूरत है । यह हमारी आैर प्रकृति दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद है । पाठकों को इस विषय पर सोचने के लिए आपने प्रेरित किया, आपको बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteहमारे मित्र जो एक हेज फंड में है उनके सीइओ रोज न्युयोर्क अपटाऊन से वालस्ट्रीट तक साइकिल चला कर आते हैं. आपके साइकिल वाले प्रकरण से याद आया. कुछ लोग ऐसे लोगों को सिरफिरे कहते हैं. काश सब ऐसे ही हो जाएँ !
ReplyDeleteहोटल में सायकल का प्रयोग अनुकरणीय लगा. लेख के साथ चित्र भी सुन्दर हैं.
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