इस चिट्ठी में, फिल्म 'शकुंतला देवी' की समीक्षा है।
रामानुजन की तरह, शकुंतला देवी भी बिरला थीं और संख्याये उनकी मित्र। वे किसी भी कंप्यूटर से जल्दी, गणित में गणना कर सकती थीं और इसीलिये उन्हें 'मानव कंप्यूटर' कहा जाता था।
३१ जुलाई २०२० को, शकुंतला देवी के जीवन पर, इसी नाम से बनी फिल्म रिलीज़ हुई है। जिसमें शकुंतला देवी का किरदार विद्या बालन ने निभाया है और मैंने इस फिल्म को उसी दिन देखा। यह कहने की जरूरत नहीं कि फिल्म अच्छी लगी।
मुझे अभिनय पसंद आया। फिल्म के संगीत ने, विद्या बालन की एक और फिल्म ‘परणीता’ की याद दिलायी। शायद, यह इस कारण से हो क्योंकि शकुंतला देवी ने कुछ समय कलकत्ता में भी रहीं, जब उन्होंने बंगाली आईएएस अधिकारी से शादी की थी, जिससे उनकी एक बेटी भी है।
जीवनियों पर बनी फिल्में, एकदम सच नहीं बनायी जाती। उनमें कुछ मसाला डाला जात है ताकि फिल्म रोचक बन सके और बॉक्स ऑफिस पर हिट हो सके: अंग्रेजी फिल्म 'ए ब्यूटीफुल माइंड' और हिन्दी फिल्म 'दंगल' इसका उदाहरण हैं। इसलिए मैं यह नहीं कह सकता कि इसमें शकुंतला देवी का सही चित्रण है या नहीं, लेकिन फिल्म देखने के बाद मन में, अजीब भाव उठे, जिसका बता पाना मुश्किल है।
संख्याओं की गणना में, शकुंतला देवी शानदार रूप से उभरती हैं और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं, क्योंकि वे थी ही ऐसी। वे उस भ्रम को भी तोड़ती हैं कि महिलायें गणित में अच्छी नहीं हो सकती। वे आत्मविश्वासी, जीवन्त, मित्रता से भरपूर और ज़िंदादिल व्यक्ति के रूप में सामने आती है जैसा हम सब, अपने जीवन में होना चाहते हैं। लेकिन प्रतिभाशाली लोगों में खोट भी होता हैं।
न्यूटन अब तक का सबसे बड़े वैज्ञानिक माने जाते हैं। लेकिन एक व्यक्ति के रूप में वे अच्छे नहीं थे - वे कुटिल और स्वार्थी थे। इसकी वजह, उनका दुखी बचपन था। मैं जरुर चाहूंगा कि मेरे पास न्यूटन जैसी प्रतिभा हो लेकिन उनका व्यक्तित्व नहीं। मै न्यूटन के व्यक्तित्व के साथ, उनसे जगहें बदलना पसंद नहीं करूंगा।
फिल्म में, शंकुतला देवी एक स्वार्थी के रूप में उभरती हैं। ऐसा लगता है कि न्यूटन की तरह, उनके बचपन ने उन्हें ऐसा बनाया। हालांकि फिल्म के अंत में, इसे बदलने की कोशिश की गयी है। मैं यह नहीं कह सकता कि यह सच है कि नहीं। पुरानी आदतें मुश्किल से समाप्त होती हैं - जीवन के अंत में, अपने आप को बदलना मुश्किल होता है। केवल एक सच्ची जीवनी ही इसका सच बता सकती है। मैंने उनकी जीवन पर लिखी पुस्तक को ढूढ़ने का प्रयास किया पर अफसोस मिली नहीं।
शकुंतला देवी की मृत्यु २१, अप्रैल २०१३ को हुई। मुझे इस बात का भी अफसोस है कि सरकार, या किसी विश्विद्यालय ने, उनकी इस प्रतिभा को और जानने का प्रयत्न क्यों नहीं किया। शायद यह हमारे मस्तिष्क के रहस्य को खोल सकता।
क्या यह फिल्म देखनी चाहिए? यकीनन, अवश्य, अपने बच्चों के साथ देखिये।
सभी महिलाओं को, इस फिल्म को इसलिये देखना चाहिये कि उन्हें अपने सपनों का बलिदान करने की जरुरत नहीं और हमेशा दूसरों के लिए नहीं, पर अपने लिए भी जिया जाता है;
पुरुषों को इसलिये देखना चाहिये कि केवल वे ही नहीं, बल्कि महिलाऐं भी सपने देखती हैं और उन्हें, उनके सपने पूरा करने के लिए जगह मिलनी चाहिये;
माता-पिता को इसे इसलिये देखना चाहिए कि बच्चों का बचपन कैसे नहीं होना चाहिये; और
बच्चों को इसलिये देखना चाहिए कि असंभव भी संभव है।
ऐसा हो सकता है कि मैं शकुंतला देवी के व्यक्तित्व को समझ ही नहीं पाया। बिरले दिमाग को, बिरला ही समझ सकता है और मुझे बिरला होने की कोई गलतफहमी नहीं है।
यदि आपको यह फिल्म अच्छी लगे तब 'द मैन हू न्यू इनफिनिटी' और 'द इमिटेशन गेम' देखना न भूलियेगा।
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I don't like watching biopics .. rather i read biography . If given any chance , will watch this film once.
ReplyDeleteयदि आपको शकुंतला देवी की जीवनी के बारे में अच्छी पुस्तक के बारे में पता चले तब टिप्पणी करके बताइयेगा। मैं भी पढ़ना चाहूंगा
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