'It is not important as to what you were in the school but important is, what you are at the school reunion.'आईआईटी हर बैच के विद्यार्थियों को २५ साल बाद पुरातन छात्र सघं सम्मेलन में बुलाती हैं और जो व्यक्ति जीवन में सबसे अच्छा करता है उसे पुरुस्कार देती हैं। दीक्षांत समारोह पर आईआईटी एक बुकलेट भी प्रकाशित करती है। इसमें हर २५ साल पुराने बैच में के तीन विद्यार्थियों के नाम होते हैं
- जिसने प्रवेश परीक्षा में सबसे अच्छे नम्बर पाये हों,
- उसी बैच में पास होते समय, जिस विद्यार्थी को राष्ट्रपति का मेडल मिला हो, और फिर
- उसी बैच के उस विद्यार्थी का नाम जिसे २५ साल बाद पुरातन छात्र संघ सम्मेलन में पुरुस्कार मिला हो।
मेरा नाम कभी भी पहले दो कॉलमों में नहीं था। मुझे विद्यालय से पास हुऐ २५ से कहीं अधिक साल हो चुके हैं पर मेरे विद्यालय में २५ साल के बाद पुरुस्कार देने का कोई कार्यक्रम नहीं होता है। यदि होता तो भी कोई अन्तर नहीं था मैं जानता हूं हमारे बीच वह किसके नाम है। मेरे मुन्ने का नाम पहले दो कॉलम में नहीं है पर अभी उसके २५ साल पूरे नहीं हुऐ हैं।
जीवन के हर दौर की जरुरतें अलग-अलग होती हैं, स्कूल के दौरान पहले २ कालम में होना एक अच्छे जीवन की आधारशिला बन सकता है लेकिन आपने सही कहा
ReplyDelete"स्कूल की दौड़ पर आगे रहना महत्वपूर्ण नहीं जितना की जीवन की दौड़ में" ।
बहुत अच्छा लगा।
अक्सर लोग जीवन में लक्षय को छोड़, बेकार की बातों में पड़ जाते हैं।
ReplyDelete-बहुत गहरी बात कही है आपने उन्मुक्त जी. :)
अच्छा लगा आपका ये अनुभव और वो दो पंकतियां भी सत्य हैं..सही है जीवन की दौङ में आगे रहना ज्यादा जरूरी है..
ReplyDeleteबहुत सही सीख है. वैसे भी ज़िन्दगी 100 मीटर की दौड़ नहीं, ये रिले रेस है.
ReplyDeleteउन्मुक्त जी, मुझे लग रहा है कि ये पोस्ट मै पहले भी पढ चुकी हूँ (क्या मै सही हूँ?) शायद टिप्पणी भी की हो, फिर से कहना चाहती हूँ कि ये मेरी सबसे पसँदीदा पोस्ट मे से एक है!
ReplyDeleteउन्मुक्त जी, मुझे लग रहा है कि ये पोस्ट मै पहले भी पढ चुकी हूँ (क्या मै सही हूँ?) शायद टिप्पणी भी की हो, फिर से कहना चाहती हूँ कि ये मेरी सबसे पसँदीदा पोस्ट मे से एक है!
ReplyDeleteउन्मुक्त जी - आपकी छोटी सी बात भी चिंतन प्रक्रिया में chain reaction की प्रक्रिया प्रारम्भ कर देती है।
ReplyDeleteअपना नाम पहले 2 कॉलमों में कभी तो नहीं भी आया, आखिर में आया भी परंतु तब इसका लोभ नहीं रहा था कुछ उपयोगिता नहीं लगी थी, कुछ क्षोभ अवश्य था और यह लगने लगा था विद्यार्थी जीवन में ही, कि इस दौड़ का महत्व तो है पर एक सीमा तक ही।
अब रही आगे की दौड़, तो यह सही है कि वह अधिक महत्वपूर्ण है। यदि लक्ष्य ही सही मालूम हो तो दौड़ना क्या, उस दिशा की तरफ चलना ही पर्याप्त है। यह सोच कहाँ तक ठीक है, यह मैं नहीं जानता - या कि सिर्फ यह उस chain reaction का परिणाम है!
मैने इसे कहीं और भी पढा़ है, शायद आपने ही पुनः प्रकाशित किया।
ReplyDeleteधन्यवाद।
रचना जी मिश्र जी मैंने आईआईटी में दीक्षांत समारोह में रहने की बात तो लिखी थी पर इस उद्धरण का जिक्र नहीं किया था। सच तो यह है कि इस बहाने कुछ और लिखने के लिये शुरू यह चिट्ठी शुरु की थी पर लगता है कि हिम्मत नहीं पड़ी। शायद बहुत विवादास्पद हो जाती - बस इसी लिये यहीं इस रूप में छोड़ दिया।
ReplyDeleteवाह क्या बढिया बात कही ।
ReplyDeleteउन्मुक्तजी आप पहली दो जगहों में नहीं रहे लेकिन इस बार २५ साल बाद वाली सूची में आप जो रहे उसके बारे में कुछ जानकारी दें!
ReplyDeleteउन्मुक्त जी,
ReplyDeleteजीवन की हर दौड़ महत्वपूर्ण होती है। हमारी प्रायरिटीज़ बदलती रहती हैं और यह स्वाभाविक है।
माफ कीजियेगा किन्तु आपको टैग किया है। कृपया मेरे ब्लाग की आख़िरी प्रविष्टि पर जाइए:
kavyakala.blogspot.com