Sunday, December 30, 2007

स्कॉट की आखिरी यात्रा - उसी की डायरी से: सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच


इस चिट्ठी में स्कॉट की आखिरी यात्रा (Scott's-last-Expedition) नामक पुस्तक की समीक्षा है। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में,
सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।

पिछली शताब्दी के शुरू में (१९१०-१३) दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की होड़ लगी थी। इस होड़ में अन्वेषक, कैप्टेन रार्बट फाल्कन स्कॉट (Captain Robert Falcon Scott) भी शामिल थे। स्कॉट, ने अंटार्कटिक की यात्रा लंदन से १ जून १९११ को टेरा नोवा (Terra Nova) नामक पानी के जहाज से शुरू की। वे इस यात्रा के दौरान अपनी डायरी लिखते रहे। Scott's last Expedition, इसी डायरी से, उनकी यात्रा की कहानी है।
टेरा नोवा

इस डायरी से कई बार, अलग-अलग लोगों ने
संपादित कर प्रकाशित किया गया है। मैंने जिस पुस्तक को पढ़ा है उसे फ्रैंक देबेनहाम (Professor Frank Debenham) ने संपादित किया है।
रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट

रोएल्ड एमंस्डसेन (Roald Amundsen) नॉरवे के अन्वेषक थे।
रोएल्ड एमंस्डसेन

रोएल्ड भी उसी समय एंटार्कटिक जा रहे थे। स्कॉट को यह मालुम था वह अक्सर कहते थे कि,
'मुझे इसकी चिन्ता नहीं कि दक्षिणी ध्रुव पर कौन पहले पहुंचता है क्योंकि मेरा काम विज्ञान अनुसंधान को आगे बढ़ाना है।'
स्कॉट का कथन सच नहीं था। सबको मालुम था कि जो दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचेगा उसका नाम इतिहास में अमर हो जायेगा। स्कॉट इस बात से प्रभावित थे पर चिन्ता नहीं करते थे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि वे ही पहले पहुंचेगे।

अपनी जन्मदिन की दावत पर स्कॉट ने लिखा,
'6 June ... my birthday, a fact I might easily have forgotten, but my kind people did not... we sat down to a sumptuous spread with our sledge banners hung about us ... everyone was very festive amiably appreciative.'मेरा जन्मदिन, ... जिसे मैं भूल गया पर मेरे साथी नहीं ... हम लोगों ने स्लेज़ और बैनरों के बीच बढ़िया भोजन किया ... सारा महौल खुशी का था।
६ जून १९१९ को स्कॉट के जन्म दिन पर दावत
स्कॉट १७ जनवरी १९१२ को दक्षिणी ध्रुव पहुंचे। वहां पर नॉरवे का झंडा फहरा रहा था। एमंस्डसेन, उनसे १ महीने पहले ही, वहां पहुंच गये थे।
दक्षिणी ध्रुव तो बेकार जगह है। हमने बिना मतलब ही इतनी मेहनत की।


दक्षिण ध्रुव पर पहुंच कर स्कॉट ने अपनी डायरी में लिखा,
'Great God! This is awful place and terrible enough for us to have laboured to it without reward of priority.'
हे भगवान! यह तो बेकार जगह है। हमने बेकार ही इतनी मेहनत की और पहले भी नहीं पहुंचे।
लौटते समय सात लोगों की मृत्यु हो गयी। स्कॉट और उनके चार साथियों की लाशें टेन्ट में मिली थी। दो अन्य साथी ओटस् (L.E.G. Oates) और एडगर इवेंस (Edgar Evans) भी रास्ते में मर गये पर उनकी लाशें नहीं मिली।
ओटस् ने कहा, 'मैं बाहर जा रहा हूं; बाहर कुछ समय तक रहूंगा।' वह लौट कर वापस नहीं आये। वे अपनी मृत्यु वरण करने ही बाहर चलेगये थे।


इसका सबसे प्रसिद्घ उद्घरण है कैप्टेन ओटस् के द्वारा कहा गया यह जुमला,
'I'm just going outside; I may be away for some time.'
मैं बाहर जा रहा हूं; मैं बाहर कुछ समय तक रहूंगा
ओटस् वापस लौटकर नहीं आये। वे बाहर अपनी मृत्यु वरण करने चले गये थे।

स्कॉट के पहले न पहुंचने के कई कारण रहे। स्कॉट अपने साथ कुत्ते ले गये थे पर सामान ढ़ोने के लिये उन्होंने मोटर स्लेज़ (Motor sledge) और टट्टू (pony) का प्रयोग किया। टट्टू साईबेरिया के थे पर वह दक्षिणी ध्रुव की
ठंडक को नहीं झेल पाये। स्लेज में बहुत जल्दी खराबी आ जाती थी और उनको बनाना मुश्किल पड़ा।
एमंस्डसेन अपने साथ कुत्ते (Greenland dogs) ले गये थे जिसके द्वारा उन्हें सहूलियत रही।
यह स्कॉट के द्वारा लिये गये रास्ते का नक्शा है। स्कॉट और उसके साथियों का शव Tent ONE TON DEPOT के दक्षिण में मिला।

स्कॉट पहले दक्षिणी ध्रुव नहीं पहुंच पाये फिर भी उनका नाम अमर हो गया। इसका श्रेय उनकी डायरियों को जाता है जिसमें उन्होंने इस यात्रा, इसकी कठिनाइयों, अपने तथा साथियों के जीवन के अन्तिम क्षणों को लिखा है। यह सब इस पुस्तक में जीवन्त हो उठा है। उनकी डायरी में आखिरी बार, उन्होंने २९ मार्च १९११ को लिखा इसकी आखिरी पंक्तियां हैं,
'we shall stick it out to the end, of course, and the end cannot be far.
It seems a pity, but I do not think I can write any more.
...
For God sake look after my people'
हम लोग अन्त तक प्रयत्नशील रहेंगे, हांलाकि अन्त दूर नहीं है। मै नहीं समझता कि मैं कुछ और लिख सकता हूं।
...
भगवान के लिये, मेरे लोगों का ख्याल रखना।
अन्त दूर नहीं है। मैं कुछ और नहीं लिख सकता हूं। मेरे लोगों का ख्याल रखना।
उनकी डायरी में, इसके बाद उसमें कुछ लोगों का पत्र और सार्वजनिक सूचना है। स्कॉट की डायरी उसके अदम्य साहस, और रोमांच की, दास्तान है। इन डायरियों ने ही उसे अमर कर दिया।

इस पर एक फिल्म १९४८ में Scott of the Antarctic नाम से बनी है।

स्कॉट की डायरियां अन्तरजाल पर उपलब्ध हैं, पर संपादित की गयी पुस्तक को पढ़ने का मजा और रोमांच कुछ और ही है।

इस अभियान से जुड़े कुछ चित्र आप यहां देख सकते हैं।

सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच
भूमिका।। विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न।। अस्सी दिन में दुनिया की सैर।। पंकज मिश्रा।। बटर चिकन इन लुधियाना।। कॉन-टिकी अभियान के नायक - थूर हायरडॉह्ल।। कॉन-टिकी अभियान।। फैंटास्टिक वॉयेज: अद्भुत यात्रा।। स्कॉट की आखिरी यात्रा - उसी की डायरी से


सांकेतित शब्द
expedition, exploration, travelogue, traveler's tales, यात्रा संस्मरण, यात्रा विवरण
book review, book review, books, Books, books, books, Hindi, kitaab, pustak, Review, Reviews, किताबखाना, किताबखाना, किताबनामा, किताबमाला, किताब कोना, किताबी कोना, किताबी दुनिया, किताबें, किताबें, पुस्तक चर्चा, पुस्तकमाला, पुस्तक समीक्षा, समीक्षा,

पुस्तक और फिल्म के कवर के चित्र को छोड़ कर, सारे चित्र ग्नू स्वतंत्र अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित हैं।











यह पोस्ट 'स्कॉट लास्ट एक्सपडीशन' नामक पुस्तक की समीक्षा है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

yah post 'scott's last expedition' naamak pustak kee smeekshaa hai. yah hindee {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is review of the book 'Scott's Last expedition'. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

Wednesday, December 26, 2007

बर्लिन दीवार का टूटना और दिलों का मिलना

इस चिट्ठी में, बर्लिन दीवाल और उसके टूटने की चर्चा है।  

बर्लिन दीवाल पार करते समय, ९० लोग मार दिये गये थे। पूर्वी बर्लिन के गार्ड की गोली से मरा एक यूवक 

Sunday, December 23, 2007

बैंडविड्थ की चोरी - क्या यह गैर कानूनी है

आज चर्चा का विषय है: बैंडविड्थ की चोरी - क्या यह गैर कानूनी है। इसे और इसकी अगली कड़ी 'बैंडविड्थ की चोरी - कब गैर-कानूनी है', को आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।
ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।

इस श्रंखला के अन्दर चिट्ठी 'चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं' और 'फ्रेमिंग भी ठीक नहीं' पर शास्त्री जी ने टिप्पणी की,
'यह दूसरे के बैंडविड्थ की चोरी है।'
किसी दूसरी वेबसाइट के चित्र को अपने वेबसाइट पर जोड़ने; या फिर कहीं और पर होस्ट की गयी ऑडियो या वीडियो फाइल को अपने वेबसाइट पर जोड़ने को - डायरेक्ट लिंक (direct link), या फिर रिमोट लिंक (remote link), या फिर हॉटलिंक (hot link) भी कहा जाता है। जब आप डायरेक्ट लिंक करते हैं; या फिर दूसरी वेबसाइट को फ्रेम करते हैं - तब दूसरे वेबसाइट की कुछ बैंडविड्थ, आपकी वेबसाइट पर डायरेक्ट लिंक या फ्रेम्ड वेबसाइट को दिखाने में खर्च होने लगती है। अथार्त दूसरी वेबसाइट की बैंडविड्थ का प्रयोग, आपके वेबसाइट के लिये होने लगता है। यह एक तरह से दूसरे की बैंडविड्थ की चोरी हुई क्योंकि दूसरी वेबसाइट ने बैंडविड्थ अपने लिये लिये है न कि आपके प्रयोग के लिये।

बैंडविड्थ क्या होती है; यह चोरी कैसे हो जाती है; इसकी कमी कैसे हो जाती है - इसके बारे में यदि, आप विस्तार से, पढ़ना चाहें तो शास्त्री जी की चिट्ठियां यहां, यहां, यहां, और यहां पढ़ सकते हैं जहां पर इस विषय को बहुत अच्छे तरीके से बताया गया है। इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिये यहां और यहां चटका लगायें।

क्या यह गैरकानूनी है?
'हुं: उन्मुक्त जी, मजाक छोड़िये - चोरी तो चोरी है गैर-कानूनी नहीं तो और क्या है?'
हूं न् न् न् ... फिल्मों में, कहानियों में तो नायिकायें नायक का दिल चोरी कर लेती हैं तो क्या वह गैर कानूनी है :-)

क्या यह सब लोग गैर कानूनी कार्य कर रहे हैं?


डायरेक्ट लिंकिंग बहुत जगह हो रही है। बहुत से लोग यह करने के लिये लोगों को प्रोत्साहित कर रहें है। इसमें दूसरी वेबसाइट का फायदा भी है - कुछ निम्न उदाहरण देखिये:
  • आप जहां भी चिट्टा बनाये चाहे वह वर्ड प्रेस पर हो या ब्लॉगर वह चित्र, विडियो, ऑडियो फाइल जोड़ने की सुविधा देता है। वे कॉपीराटेड सामग्री डालने को स्पष्ट रूप से मना करते हैं; अशलील सामग्री को भी मना करते हैं - फिर यदि डायरेक्ट लिंक करना गैर-कानूनी है तब इसे करने की सुविधा क्यों प्रदान कर रहे हैं। यदि यह गैर-कानूनी है तो वे भी इसमें शामिल हैं;
  • जिन वेबसाइट में चित्र, ऑडियो और विडियो फाइलों को अपलोड करने की सुविधा है वे स्वयं आपको एच.टी.एम.एल. कोड बना कर देते हैं कि आप उसे अपने चिट्ठे पर लगा सकें। वे खुद ही आपको अपनी वेबसाइट चोरी करने को कह रहे हैं। क्या वे बाद में कह सकते हैं कि आपने गैर-कानूनी कार्य किया है;
  • लगभग सारी वेबसाइट, अपने लोगो की विज़िट बना कर आपको चिट्ठे पर डालने की सुविधा देते हैं। क्या वे बाद में कह सकते हैं कि यह उनके बैंडविड्थ की चोरी है और गैरकानूनी है;
  • आप किसी तरह की लिंक दें। उससे उस वेबसाइट या चित्र का महत्व बढ़ता है - सर्च इंजिन में वह उपर आता है। यदी आप चित्र जोड़ते है तो उसका भी महत्व बढ़ता है। फिर भी बाद में क्या वह वेबसाइट - बिना नोटिस के - कह सकता है कि यह गैर-कानूनी है;
  • वेब तकनीक का अर्थ है जुड़ना। यदि कॉपीराइट या फिर ट्रेडमार्क का लफड़ा न हो तो क्या यह मूलभूत बात नकारी जा सकती है। यदि आपको जुड़ना पसन्द नहीं है तो वेब पर क्यों कार्य कर रहे हैं - कोई और माध्यम ढ़ूढ़िये;
  • मैंने पेजफ्लेक और टंबलर पर एवं उन्मुक्त – हिन्दी चिट्ठों और पॉडकास्ट में नयी प्रविष्टियां एवं चिट्ठे और पॉडकास्ट नामक पेज बनाया है। इस समय पेज-फ्लेक पर सारे हिन्दी चिट्ठियों और पॉडकास्ट और टंबलर केवल मेरे, मुन्ने की मां के चिट्ठों और मेरे पॉडकास्ट की प्रविष्टियां आती हैं। इसमें इस तरह का प्राविधान है कि चिट्ठियों को पोस्ट करते समय उसकी चिट्ठियों के पहले चित्र को भी पोस्ट करे। मैंने अपनी और मुन्ने की मां की चिट्ठियों के लिये यही प्राविधान लिया है क्योंकि इसमें कॉपीराइट और ट्रेडमार्क का लफड़ा नहीं है। यह दोनो पेज सार्वजनिक हैं और आप देख सकते हैं। यह मेरे बलॉगर और वर्डप्रेस के चिट्ठों के चित्रों को डायरेक्ट लिंक कर रहा है। चित्र डालने का कार्य मैं नहीं करता हूं पर यह कार्य, यह सुविधा वेबसाइट स्वयं कर रही है या फिर कहूं दे रही हैं। यदि यह गैर-कानूनी है तो यह वेबसाइट क्यों गैर-कानूनी सुविधायें प्रदान कर रही है;
  • यदि आपने गूगल में शेएर्ड् फोल्डर को सार्वजनिक कर रखा है तो जिन चिट्ठों के आप ग्राहक बने हैं उनको दिखाता है और चित्रों को जोड़ता है। बगल का चित्र बैंगलोर से चिट्टाकार बन्धु के शेएर्ड फोल्डर का है जो मेरे वर्डप्रेस के चिट्ठे को दिखा रहा है और उसके चित्र को डायरेक्ट लिंक कर रहा है। यानि कि गूगल वर्ड प्रेस की बैडविड्थ का प्रयोग कर रहा है। क्या गूगल गलत काम कर रहा है?
क्या वकीलों ने इन लोगों को उचित सलाह नहीं दी? यदि यह गैरकानूनी है तो यह सब क्यों कर रहे हैं? क्या वकीलों की कमी हो गयी है - इस पर मुकदमें क्यों नहीं दाखिल हो रहे हैं?
'उन्मुक्त जी. क्या आप कहना चाहते हैं कि यह चोरी, गैर-कानूनी नहीं है?'

वकीलों को क्या हो गया है? मुकदमें क्यों नहीं दाखिल कर रहे हैं?

मैं तो कोई कानूनी विशेषज्ञ नहीं हूं पर इतना अवश्य जानता हूं कि यदि यह सब गैर-कानूनी होता तब तो अभी तक सैकड़ों मुकदमे दाखिल हो गये होते। अमरीका में तो जरूर – वहां पर हर्जाना मिलने वाले मुकदमों में वकील लोग शुरू में मेनहताना न लेकर, मुकदमे के अन्त पर मिले हर्जाने के प्रतिश्त पर काम करते हैं। वहां भी मुकदमें दायर नहीं हो रहें हैं या फिर दायर हो रहे हों पर कोई बहुत चर्चा में नहीं हैं - कुछ तो बात होगी ही।

खैर कुछ और बात हो या न हो पर कुछ परिस्थितियों में तो यह अवश्य गैर-कानूनी है - यह अगली बार।

यह चिट्ठी और अगली चिट्ठी इस श्रंखला का भाग नहीं थी। मैं शास्त्री जी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि मैं यह चिट्ठियां उनके द्वारा बहस को साकारत्मक रूप से आगे बढ़ाने के कारण ही लिख पा रहा हूं।

मेरे चिट्ठे पर बोल्ड में कुछ पंक्तियां देख रहे हैं उसका जुगाड़ सागर जी ने अपने चिट्ठे पर बताया था। वह मेरे ब्लॉर चिट्ठे पर काम नहीं किया। रवी जी की सहायता से ही यह हो पाया - उनको भी धन्यवाद। रवी जी के अनुसार सागर जी का कोड, वर्ड-प्रेस पर ही काम करता है ब्लॉर पर नहीं। इस बारे में रवी जी हम सब को विस्तार से बतायें तो अच्छा हो।

अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।। लिकिंग, क्या यह गलत है।। चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं।। बैंडविड्थ की चोरी - क्या यह गैर कानूनी है।। बैंडविड्थ की चोरी - कब गैर-कानूनी है।।


सांकेतिक चिन्ह
bandwidth theft, ipr, law, law, Law, legal, linking, linking, links, कानून,
information , information technology, Internet, Internet, Podcast, Podcast, software, technology, Technology, technology, technology, Web, आईटी, अन्तर्जाल, इंटरनेट, इंटरनेट, ऑडियो टेक्नॉलोजी, टैक्नोलोजी, तकनीक, तकनीक, तकनीक, पॉड-वॉडकास्ट, पॉडकास्ट, पोडकास्ट , सूचना प्रद्योगिकी, सॉफ्टवेयर, सॉफ्टवेर,












इस पोस्ट पर चर्चा है कि क्या बैंडविड्थ की चोरी गैर कानूनी है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

is post pr charcha hai ki kyaa bandwidth kee choree gaer kanoonee hai. yah hindee {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post dicusses the issue whether bandwidth theft is illegal? It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

Thursday, December 20, 2007

फैंटास्टिक वॉयेज: अद्भुत यात्रा

यह पोस्ट आईसेक एसीमोव के द्वारा लिखी पुस्तक फैंटास्टिक वॉयेज की समीक्षा है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

yah posT Isaac Asimov ke dvaara likhee pustak Fantastic Voyage kee sameekSha hai. yah hindee (devanaagaree lipi) me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me paDh sakate hai. isake liye daahine taraf, oopar ke vijiT ko dekhe.

This post is a book review of the book 'Fantastic Voyage' by Isaac Asimov. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

१९६० के दशक में फैंटास्टिक वॉयेज (Fantastic Voyage) नामक एक फिल्म बनी थी। इसकी फिल्म कहानी में, लेखक के तौर पर कई लोग जुड़े थे लेकिन इसे अंतिम रूप दिया, पिछली शताब्दी में विज्ञान को सबसे ज्यादा लोकप्रिय बनाने वाले व्यक्ति, आईसेक एसीमोव (Isaac Asimov) ने। इस पर फिल्म भी बनी और यह यह पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित हुई है।

इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है कि भविष्य में किसी भी वस्तु को छोटा किया जा सकता है पर उसे जितना छोटा किया जायेगा वह उस हाल में उतने कम समय के लिये ही रहेगी और समय पूरा हो जाने पर वापस, अपने आकार पर, आ जायेगी।

एक वैज्ञानिक इस सिद्घान्त की काट निकाल लेता है और वह अपने देश से भाग कर दूसरे देश में जाना चाहता है। यह कहानी तब लिखी गयी थी जब अमेरिका और रूस के बीच में शीत युद्घ (cold war) चल रहा था। हालांकि इस कहानी में यह नहीं लिखा है कि वह वैज्ञानिक रूस से भाग कर अमेरिका जा रहा है पर कहानी पढ़ने से, ऎसा ही लगता है।

इस वैज्ञानिक के देश के लोग यह नहीं चाहते हैं कि वह दूसरे देश में पहुंच जाय इसलिए उसे मारने का प्रयत्न करते हैं। इसी दुर्घटना में वह वैज्ञानिक अस्वाभाविक निद्रा (Coma) में चला जाता है क्योंकि र्दुघटना में उसके मस्तिष्क में, खून का कतरा (clot) जम जाता है। यदि को जल्द न हटाया गया तो वह मर जायगा। डक्टरों के पास, इस कतरे (clot) को हटाने के लिये, थोड़ा ही समय है। उनकी समझ में नहीं आता है कि यह कैसे किया जाय - शायद ऑपरेशन नहीं किया जा सकता है।

डाक्टर इसके लिये एक नायाब तरीका सोचते हैं। यह कुछ इस प्रकार का है कि कुछ लोगों को एक सबमैरीन में बैठा कर छोटा कर दिया जायेगा फिर उन्हें मस्तिष्क में भेजा जायेगा। वहां कतरे को लेसर किरणों से से जला दिया जायगा। यह इसी यात्रा की कहानी है।

डाक्टरों की योजना थी कि सबमैरीन के गले की एक धमनी (artery) में डालकर मस्तिष्क में ले जाया जायेगा। कतरे को, लेसर किरण से नष्ट किया जायगा और सबमैरीन के अपने वास्तविक रूप में आने के पहले उसे बाहर निकाल लिया जायगा। लेकिन जो लोग सबमैरीन में हैं उनमे से एक व्यक्ति यह नहीं चाहता था। उसके कारण, वे धमनी से, शिरा (Vein) में पहुंच जाते हैं, फिर शरीर के अन्य अंगों में पहुंचते हैं। इस कहानी के द्वारा, शरीर के अलग-अलग अंगों के काम करने के तरीकों को बताया गया है। शरीर के अंग किस प्रकार से काम करते हैं, बताने
का यह अनोखा तरीका है।

शीत युद्घ समाप्त हो जाने के बाद एसीमोव, ने इस कहानी को पुन: लिखा और इसका नाम फैंटास्टिक वॉयेज-II (Fantastic Voyage-II: Destination Brain) रखा। इसमें रूस तथा अमेरिका के वैज्ञानिक एक साथ सबमैरीन से जाते हैं। इसकी कथा कुछ भिन्न है। दोनों ही कहानियां पढ़ने योग्य हैं पर मुझे तो पहले वाली पुस्तक ही अच्छी लगती है।


सांकेतित शब्द
science, Science, Science fiction, Si-Fi, कथा कहानी, विज्ञान, विज्ञान कहानी
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Tuesday, December 18, 2007

ऑफिस, स्कूल साइकिल पर – स्वास्थ भी बढ़िया, पर्यावरण भी ठीक

बर्लिन घूमते समय मुझे जगह-जगह लोग साइकिलों पर चलते आये। कुछ बच्चे थे कुछ युवक युवतियां तो फिर कुछ और बड़े। कुछ लोग अपने बच्चों को साइकिल पर बिठा कर जा रहे, कुछ लोग साइकिलों पर ही बर्लिन यात्रा कर रहे थे। बर्लिन में सारी जगह खम्बे बने हैं आप वहीं पर अपनी साइकिलों पर ताला लगा कर छोड़ सकते हैं। मेरे पास समय होता तो मैं भी किराये पर साइकिल लेकर घूमना पसन्द करता।

यूरोप में साइकिल चलाने का काफी चलन है। इसके दो बड़े कारण हैं। यह चालक के स्वास्थ और पर्यावरण दोनों के लिये फायदेमन्द है। बर्लिन में, मुझे बहुत सारे बच्चे साइकिल पर स्कूल जाते, और महिलायें एवं पुरुष ऑफिस जाते दिखे। वियाना में भी लोग साइकिलों पर घूमते नजर आये। शायद यही कारण हो कि इन दोनों जगह प्रदूषण बहुत कम था। इन दोनो जगह बहुत कम मोटर साइकिलें दिखीं। बहुत से लोग छोटी कार चलाते दिखे। लगता है कि यहां छोटी कारें काफी लोकप्रिय हैं।

यूरोप में किराये में साईकिल भी बहुत आसानी से मिल जाती है और इसे जगह जगह पर किराये पर लिया जा सकता है। यह किराये में ली जाने वाली कार जैसा है और स्वचलित हैं। लेकिन अब नयी तकनीक से युक्त होने के कारण खोयी जाने वाली साइकलों का आसानी से पता लगाया जा सकेगा। अमेरिका में भी इस तरह का चलन शुरू हो रहा है। इसके बारे में आप न्यू यॉर्क टाइमस् का यह लेख पढ़ सकते हैं।

यह चित्र न्यू यॉर्क टाइमस् के उसी लेख से

कुछ दिन पहले न्यूयार्क टाइम्स के एक लेख में भी लिखा था कि अमेरिका के कई शहरों में साइकिलों ट्रैक बन रहे हैं और वे साइकिल चलाने पर जोर दे रहें हैं। अपने देश में कुछ उल्टा हो रहा है। हम सस्ती एक लाख रुपये की कार बनाने के बारे में सोच रहे हैं ताकि सबको कार मिल सके पर न तो सार्वजनिक यात्रा करने के संसाधनों को मजबूत कर रहे हैं, न ही पैदल अथवा साईकल चलाने पर जोर दे रहे हैं। कुछ दिन पहले इसी बात को लेकर एक विदेशी का लेख हिन्दुस्तान टाइम्स में निकला था। यदि सारे हिन्दुस्तानियों के पास कार हो जायें यानि की एक अरब कारें- क्या हाल होगा। हर जगह ट्रैफिक जाम - शायद कुछ इस तरह का।

यह चित्र तस्वीर की आवाज़ चिट्ठे की इस चिट्ठी से और विपुल जी के सौजन्य से।

बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन।। बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें।। बर्लिन में भाषा की मुश्किल।। ऑफिस, स्कूल साइकिल पर – स्वास्थ भी बढ़िया, पर्यावरण भी ठीक।।

सांकेतिक शब्द
berlin, germany, cycle, environment, पर्यावरण
Travel, Travel, travel and places,
travelogue, सैर सपाटा, सैर-सपाटा, यात्रा वृत्तांत, यात्रा-विवरण, यात्रा विवरण, यात्रा संस्मरण

Saturday, December 15, 2007

फ्रेमिंग भी ठीक नहीं

आज चर्चा का विषय है: फ्रेमिंग (Framing) भी ठीक नहीं। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,

  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।

ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।

वेब तकनीक में किसी एक वेब-पन्ने को न केवल दूसरे से लिंक किया जा सकता है पर किसी भी वेब-पन्ने को दूसरे वेब-पन्ने के अन्दर दिखाया भी जा सकता है। इसे फ्रेमिंग (Framing) कहते हैं। यह चित्र जोड़ने लिकिंग की तरह है। चित्र जोड़ने पर केवल वह चित्र दिखायी देता है और फ्रेमिंग में पूरा वेब-पन्ना दिखायी पड़ता है।

वेब-पन्ना जिसका है, उसी की बौद्घिक संपदा है। जब आप किसी और के वेब-पन्ने को अपने वेब-पन्ने के अन्दर दिखाते हैं। तो यह ठीक नहीं हैं क्योंकि यह न केवल कॉपीराइट का उल्लंघन हो सकता है पर ट्रेड मार्क का भी।

यदि किसी वेब-पन्ने की सामग्री कॉपीलेफ्टेड (copylefted) या मुक्त (open) हो, और आपको उसे पुन: प्रकाशित करने की अनुमति भी हो तब भी फ्रेमिंग करना ठीक नहीं है क्योंकि यह हो सकता है कि उस वेब पन्ने का मालिक, अपने वेब पन्ने को, आपके वेब पन्ने के अन्दर न दिखाना चाहे।

मेरी पिछली चिट्ठी पर बाल किशन जी, ने पूछा कि क्या हम अगर पहले किसी चित्र को (इंटरनेट पर कंही से भी) अपने कंप्यूटर पर कॉपी करे फिर उसे अपनी पोस्ट पर चिपका दे तो क्या यह भी गलत है?

किसी चित्र को (इंटरनेट पर कंही से भी) अपने कंप्यूटर पर कॉपी कर फिर उसे अपनी पोस्ट पर चिपका देने और चित्र का लिंक देने में कोई अन्तर नहीं है। यदि चित्र कॉपीराइट के अन्दर आता है तब यह दोनो गलत हैं। यह केवल उस परिस्थिति में किया जा सकता है जब वह चित्र कॉपीराइट के अन्दर न हो या फिर कॉपीराइटेड सामग्री का प्रयोग कानूनी तौर पर बिना अनुमति से किया जाना संभव है। यह मैंने अपनी चिट्ठी 'मुजरिम उन्मुक्त, हाजिर हों' पर बताया है।

अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।। लिकिंग, क्या यह गलत है।। चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं।।

सांकेतिक चिन्ह
framing, ipr, law, law, Law, legal, linking, linking, links, कानून, फ्रेमिंग
information , information technology, Internet, Internet, Podcast, Podcast, software, technology, Technology, technology, technology, Web, आईटी, अन्तर्जाल, इंटरनेट, इंटरनेट, ऑडियो टेक्नॉलोजी, टैक्नोलोजी, तकनीक, तकनीक, तकनीक, पॉड-वॉडकास्ट, पॉडकास्ट, पोडकास्ट , सूचना प्रद्योगिकी, सॉफ्टवेयर, सॉफ्टवेर,




यह पोस्ट बताती है कि फ्रेमिंग चित्र जोड़ना क्यों ठीक नहीं है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

yah post bataatee hai ki freming ttheek naheen hai. yah hindee {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye dahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post explains why framing is not correct. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

Wednesday, December 12, 2007

Sunday, December 09, 2007

चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं

आज चर्चा का विषय है: चित्र जोड़ना (Image linking) - यह ठीक नहीं। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।
ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'लिंकिंग, क्या यह गलत है' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।

चित्र एक प्रकार की अभिव्यक्ति है और यह उस व्यक्ति का कॉपीराइट है जिसने वह चित्र बनाया है, अथवा खींचा है, या उस पर मालिकाना हक है।

अक्सर ऎसा भी होता है कि आप केवल चित्र को जो किसी और वेब पन्ने पर होता है, के साथ लिंक करते हैं। जिसके कारण वह चित्र आपकी वेब साइट पर दिखाई पड़ने लगता है। इसे इमेज लिकिंग (Image Linking) कहते हैं। यह उसके मालिक की बिना अनुमति के करना गलत है। क्योंकि चित्र पर किसी और का कॉपीराइट है और आप उसकी अनुमति के बिना उसे अपने वेब पेज पर नहीं दिखा सकते। यह न केवल कॉपीराइट का उल्लंघन है पर ट्रेड मार्क का भी उल्लंघन हो सकता है।

अक्सर लोग, अपने चित्रों को, कुछ शर्तों के साथ दूसरों को भी प्रकाशित करने की अनुमति देते हैं। ऎसी स्थिति में आप दूसरे वेब पन्ने के चित्र अपने वेब पन्ने पर प्रकाशित कर सकते हैं पर आपको वह चित्र उसी शर्तों के अंतर्गत प्रकाशित किया जाना चाहिये। उदाहरणार्थ,

विकिपीडिया, विकिमीडिया का उपक्रम है और विकिपीडिया में सारे चित्र विकिमीडिया में ग्नू स्वतंत्र अनुमति पत्र की शर्तों के साथ प्रकाशित होते हैं। यदि आप उन्हें अपने वेब-पन्ने पर लिंक दे कर या वहां से डाउनलोड कर प्रकाशित करते हैं तो उन्हें उन्हीं शर्तों के साथ प्रकाशित करें। जैसा कि आप मेरे चिट्ठे पर अक्सर देखते होंगे। हालांकि, शीघ्र ही, विकिमीडिया में प्रकाशित चित्र क्रिएटिव कामन लाइसेंस के अन्दर भी प्रकाशित किये जा सकेंगे। इसके बारे में आप छुट-पुट पर मेरी चिट्ठी विकिपीडिया की रिहाई पर पढ़ सकते हैं।

इस चिट्ठी के प्रकाशित हो जाने के बाद बाल किशन जी, ने एक सवाल पूछा। जिसका जवाब मैंने टिप्पणी द्वारा दे दिया पर मुझे लगता है वह सूचना मुख्य चिट्ठी पर भी होनी चाहिये इसलिये यहां डाल के प्रकाशित कर रहा हूं।

मेरी राय में किसी चित्र को (इंटरनेट पर कंही से भी) अपने कंप्यूटर पर कॉपी कर फिर उसे अपनी पोस्ट पर चिपका देने और चित्र का लिंक देने में कोई अन्तर नहीं है। यह तभी किया जा सकता है जब वह चित्र कॉपीराइट के अन्दर न हो या फिर कॉपीराइटेड सामग्री का प्रयोग कानूनी तौर पर बिना अनुमति से किया जा सकता हो। यह कुछ परिस्थितियों में हमेशा हर देश में किया जा सकता है। यह मैंने अपनी चिट्ठी 'मुजरिम उन्मुक्त, हाजिर हों' पर बताया है।

अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।। लिकिंग, क्या यह गलत है।। चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं।।

सांकेतिक चिन्ह
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Monday, December 03, 2007

बर्लिन में भाषा की मुश्किल

बर्लिन में मुझे होटल में ठहरना था। वहां होटलों में चेक-इन का समय ३ बजे का होता है। मैं वहां १० बजे सुबह पहुंच गया था। उन्होंने सामान रखने की अनुमति दे दी पर कहा कि कमरा तीन बजे के बाद ही मिलेगा। मैं सामान रख कर बर्लिन घूमने निकल गया।

बर्लिन में ट्रेन, ट्राम, और बसें तीनो चलती हैं पर बस का सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। शहर घूमने के लिए, कई एजेंसियां अपनी बस सेवा चलाती हैं। यह हॉप ऑन, हॉप ऑफ (Hop on, Hop Off) कहलाती हैं। आपको केवल एक बार टिकट लेना होता है। यह पूरे दिन के लिए वैध है। यह घूमने की जगह के पास रूकती हैं। आप किसी भी जगह उतरें और कहीं पर बैठ सकते हैं। दस मिनट बाद, वहां पर दूसरी बस आयेगी। बसों में हेडफोन है, जिससे सात भाषाओं में जगहों का वर्णन आता रहता है। इसमें अंग्रेजी
तो शामिल है पर हिन्दी नहीं है। मैंने सोचा था कि एक चक्कर बिना उतरे लूंगा फिर दूसरी बार जो जगह अच्छी लगेगी उस पर उतर कर देखूंगा। बीच में ही मुझे भूख लगने लगी। एक जगह मुझे बहुत सारे ढ़ाबे दिखाई पड़े, मैं वहीं उतर गया।

बाज़ार

ढ़ाबों में मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या खाऊं। मैं शाकाहारी हूं पर दूध, अण्डा, और मछली ले लेता हूं। मैंने भारत छोड़ते समय निश्चय किया था कि खाने से परहेज नहीं करूंगा, पर यह समझ में नहीं आ रहा था कि क्या खाना लूं। एक ढ़ाबे में, मैंने महिला से
बात की। उसने जर्मन भाषा में कुछ जवाब दिया। मैंने कहा,
'डाउच नाइन (जर्मन भाषा नहीं), इंगलिश याह (अंग्रजी हां)।'
वह बोली,
'डाउच नाइन अला...ला...ला....।'
मुझे लगा भूख से मरा रा रा...।

बर्लिन नगरपालिका की ईमारत

बगल के ढ़ाबे में अश्वेत लोग थे। वे अंग्रेजी अच्छी बोलते थे। मैंने उनसे कुछ शाकाहारी खाने के लिए कहा। उन्होंने मुझे चावल के साथ राजमां और सब्जियां दी, साथ में चटनी भी। खाना गर्म था, मजा आया। खाना खा कर मैं फिर बस में चढ़ गया।

बस में घूमते हुए हम उस क्षेत्र से भी गुजरे जहां पर दूतावास हैं। यहां भारतीय दूतावास भी देखा। यह लाल रंग की इमारत है। जिसके पत्थर राजस्थान से आये हैं। एक चक्कर पूरा करने में ही शाम हो गयी, दूसरा चक्कर लेने का न तो समय था, न ही हिम्मत। मैं वापस पैदल ही होटल की तरफ चल दिया, जो कि लगभग एक किलोमीटर दूर था।

मैं वापसी में रास्ता भटक गया। मुझे दो छोटी लड़कियां मिलीं। मैंने उन्हें नक्शा दिखाकर पूंछा कि मैं यहां कैसे जाऊं। वे अंग्रेजी नहीं समझती थीं पर उन्होंने मुस्करा कर इशारे में बताया और मैं उधर ही चल दिया। काफी दूर जाने के बाद भी जब होटल नहीं मिला तो घबरा गया। वहीं पर एक वृद्घ दंपत्ति दिखाई पड़े। वे भी अंग्रेजी नहीं
समझते थे। मैंने उनसे पता पूछा तो वे मुस्करा कर बार बार कुछ इशारा करने लगे। कुछ देर बाद समझ में आया कि मेरा होटल दो इमारत के बाद था और वे उसके बोर्ड की तरफ इशारा कर रहे थे। मैंने उन्हे धन्यवाद दिया और कमरे में पहुंचा।

बर्लिन में एक चर्च जो द्वितीय विश्व युद्ध में बमबारी का शिकार रहा

कमरे के फ्रिज में, पानी या बीयर के दाम में कोई अंतर नहीं था। मैं शराब या बीयर नहीं पीता हूं पर पानी इतना मंहगा। बाथरूम से लेकर पानी नहीं पिया गया। ७ बज रहे थे। मैंने पिछली रात हवाई जहाज में काटी थी - थकान अलग लग रही थी, जल्द ही गहरी नींद में डूब गया।

मुझे बर्लिन में भाषा की मुश्किल पड़ी। अच्छा हुआ कि मैं कुछ जर्मन के शब्द सीख कर गया था नहीं तो और भी मुश्किल पड़ती।


बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन।। बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें।। बर्लिन में भाषा की मुश्किल

सांकेतिक शब्द
berlin, germany, german
Travel, Travel, travel and places,
travelogue, सैर सपाटा, सैर-सपाटा, यात्रा वृत्तांत, यात्रा-विवरण, यात्रा विवरण, यात्रा संस्मरण

Friday, November 30, 2007

लिकिंग, क्या यह गलत है

आज चर्चा का विषय है, लिकिंग, क्या होती है, क्या यह यह गलत है, क्या आप किसी को लिंक करने से मना कर सकते हैं? इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।

ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'वेब क्या होता है' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।

वेब तकनीक की खासियत है कि इसमें एक वेबसाइट दूसरे से जुड़ी रहती है। इसके द्वारा कोई भी प्रयोगकर्ता एक वेब-पन्ने से दूसरे वेब-पन्ने पर आसानी से जा सकता है। किसी भी वेबसाइट का पहला पन्ना, मुख्य पृष्ठ (Home page) कहलाता है। जब लिकिंग मुख्य पृष्ठ से की जाती है तो उसे केवल लिकिंग (Linking) कहा जाता है। अक्सर किसी भी वेबसाइट पर सूचनायें, मुख्य पृष्ठ के अन्दर, अलग वेब-पन्ने पर होती हैं। जब मुख्य पृष्ठ के अतिरिक्त, उसके किसी दूसरे पृष्ठ से लिंक दी जाती है तो उसे Deep Linking कहा जाता है।

वेब तकनीक का अर्थ है एक दूसरे से जुड़े रहना। इसलिये इसे, वेब (Web) या जाल कहा जाता है। यदि आप कोई सूचना, वेब पर प्रकाशित करते हैं तो इसका अर्थ है कि आपने हर किसी को इस बात का लाइसेंस दे दिया है कि वह आपकी सूचना से जुड़ सकता है। सच बात तो यह है कि यह फायदेमंद भी होता है। वेबसाइटों की आमदनी का मुख्य जरिया विज्ञापन है और विज्ञापन देने वाले इस बात का ध्यान रखते हैं कि उस वेबसाइट पर कितनी बार लोग आते है। जितनी ज्यादा लिंक होंगी, न केवल उस वेबसाइट पर उतने ही ज्यादा लोग आयेंगे पर सर्च इंजिन के लिये वह वेबसाइट उतनी ही ज्यादा महत्वपूर्ण होगी। ज्यादा लिंक वाली वेबसाइट, सर्च करते समय ऊपर आयेगी।

लिंक करना, उसी तरह का संदर्भ है जैसे कि आप किसी पुस्तक या लेख को संदर्भित करते हैं। जिस तरह से इस तरह के संदर्भ को मना नहीं किया जा सकता, उसी तरह से किसी को वेब साइट से लिंक करने से भी मना नहीं किया जा सकता है। यदि आप लिंक नहीं देना चाहते हैं तो वेब पर लिखते ही क्यों हैं।

कुछ समय पहले कुछ चिट्ठाकार बन्धुवों ने दूसरे को अपने चिट्ठे की लिंक देने से मना कर दिया था। मेरी राय में यह गलत है - वे ऐसा नहीं कर सकते। यदि वे यही चाहते हों तो अपने चिट्ठे को सार्वजनिक न करें - केवल निमत्रंण के द्वारा ही रखें।

एक बार किसी ने टिम बरनस् ली (वेब के आविष्कारक) से उनके वेब-पन्ने को लिंक करने की अनुमति चाही। टिम का जवाब था,
'मैं इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मुझे यह मना करने का अधिकार नहीं है।'
मैं तो टिम की बात मानता हूं - कोई मेरे चिट्ठे की लिंक देना चाहे तो मुझे भी बिलकुल आपत्ति नहीं है, उसका स्वागत है :-)

लिंक देने से, कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं होता है पर यह बात शायद न केवल इमेज लिकिंग और फ्रेमिंग के लिये सच नहीं है - इसकी चर्चा आगे करेंगे।

अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।। लिकिंग, क्या यह गलत है।। चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं।।

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Monday, November 26, 2007

बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें: बर्लिन-वियाना यात्रा

मैं भारत से वियाना सुबह पहुंच गया था। वहां से बर्लिन के लिये फ्लाइट तीन घन्टे बाद थी। वियाना और बर्लिन का समय एक ही है और भारत के समय से ४:३० घन्टे पीछे है। मैंने अपनी पत्नी को फोन करने के लिये मोबाइल निकाला। यह बी.एस.एन.एल. का है। मैं इसे अन्तर्राष्ट्रीय घूमने के लिये करवा कर ले गया था पर यह काम न कर, केवल सीमित सेवाओं को दिखा रहा था।

वियाना हवाई अड्डे पर मुझे एक भारतीय सज्जन मिले। उनके फोन में भी यही मुश्किल थी। बहुत झुंझलाहट आयी।

सामान ज्यादा होने के कारण , मैं अपना लैपटॉप नहीं ले गया था। मेरा प्रस्तुतीकरण पहले ही भेज दिया था।

घूमते-घूमते, मेरी नजर एक भारतीय युवक पर पड़ी। उसके पास लैपटॉप था। वह कम्प्यूटर इंजीनियर था और
अपनी कंपनी की तरफ से पोलैण्ड जा रहा था। उसे, वहां पर, बैंक की क्रेडिट कार्ड सर्विस का कंप्यूटरीकरण करना था। उसके फोन के साथ भी यही मुश्किल थी। मैंने उससे पूछा कि क्या उसका लैपटॉप काम कर रहा है। उसने कहा हां। मैंने उससे पूछा कि क्या मैं उसके लैपटॉप से अपनी पत्नी को ई-मेल भेज सकता हूं। उसने मना कर दिया। उसका कहना था,
'यह कम्पनी का है। इससे प्राइवेट ई-मेल नहीं जा सकती है। आप पब्लिक बूथ से फोन कर लीजिये।'
मैं नहीं जानता था कि वह बहाना कर रहा था या सच में ऎसा था। यदि यह सच था तो वह कंपनी, मैनेजमेंट के साधारण सिद्घान्त को नहीं समझती। क्या मालुम वह यह सोचता हो कि मैं ई-मेल से बम ब्लास्ट करने की बात सोचता हूं और इसके लिये वह पकड़ जायगा :-)

मेरे पास यूरो थे पर सिक्के नहीं। मैंने कभी पब्लिक बूथ से फोन नहीं किया था। भाषा की मुश्किल अपनी जगह थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। जीवन में
मैंने, अपने आप को इतना असहाय, कभी नहीं पाया।

बर्लिन पहुंच कर मैंने अपनी पत्नी को ई-मेल से मोबाइल फोन की मुश्किल के बारे में बताया। उसने टेलीफोन वालों से पूछकर निदान भी बताया पर काम नहीं बना। हार कर वहां पर प्रीपेड कार्ड खरीदा। मुझे इसका निदान वियाना में पता चला। इसके लिये Application में जाना पड़ता है। वहां से Network, फिर cell one में जाकर, International चुनना होता है। मैं Setting में जा कर, Network Service में,
इसका हल ढूढ़ रहा था। वापस भारत आकर, यह प्रक्रिया पुन: अपनानी पड़ती है। इस बार National चुनकर उचित Network, जो कि Dolphin है, चुनना होता है।

बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन।। बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें।।

सांकेतिक शब्द
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Saturday, November 24, 2007

किताबी कोना

क्या आप जानते हैं कि आपका सबसे अच्छा मित्र, मेरा भी सबसे अच्छा मित्र है।
'उन्मुक्त जी आप क्या मजाक कर रहें हैं। सबके मित्र अलग अलग हैं फिर वह सबके लिये एक कैसे हो सकता है।'
लेकिन ऐसा ही है क्योंकि सबसे अच्छी मित्र होती हैं - पुस्तकें।

कुछ समय पहले हिन्दी चिट्ठाजगत में, एक विचार आया कि चिट्ठाकार बन्धु अपनी पढ़ी पुस्तकों की समीक्षा लिखें। यह बात आगे नहीं चल पायी। अच्छी पुस्तकों का नाम लिखना तो आसान है पर उसकी समीक्षा लिखने के लिये समय चाहिये। मैं कुछ समय से पुस्तकों के बारे में लिखता चल रहा हूं और आगे भी लिखने की सोचता हूं। मुझे लगा कि क्यों न मैं जब पुस्तक समीक्षा लिखूं तो उसको एक श्रंखला का रूप दे दूं। सवाल उठा कि इस श्रंखला का क्या नाम दूं।

कुछ सोचने के बात याद आया कि इस श्रंखला के लिये प्रत्यक्षा जी ने एक नाम सुझाया था क्यों न वही नाम दे दूं। मैं वह नाम भूल गया। मैंने उनसे नाम के बारे में पूछा तो उन्होने 'किताबी कोना' बताया। मैं, इस श्रंखला का यही नाम रखता हूं। प्रत्यक्षा जी को इसके प्रयोग की अनुमति देने के लिये धन्यवाद।

क्या ऐसा कोई तरीका हो सकता है कि हम कोई कोड हो या टैग हो जो हम पुस्तक समीक्षा की चिट्ठी पर डालें ताकि यदि कभी उस शब्द से खोजे तो सारी चिट्ठियां तिथि से खोजने में मिल जांय – जैसे शायद अनुगूंज में होता है। यह एक तरह का असीमित अनुगूंज। इस तरह की बात जीवनी के बारे में भी हो सके तो और भी अच्छा है।

मैं कंप्यूटर तकनीक से वाकिफ नहीं जानता हूं। शायद कोई और इसे बेहतर रूप दे सके पर मैं जब ही किसी प्रिय पुस्तक की समीक्षा करूंगा तब उसे इसी श्रंखला के अन्दर करूंगा।

मैंने कुछ चिट्ठियों में अपनी प्रिय पुस्तकों के बारे में बताया है हालांकि वे चिट्ठियां किसी और संदर्भ में लिखी गयी थीं। मैंने जिन चिट्ठियों में पुस्तकों के बारे में लिखा है उनका लिंक यह रहा है और यह पुराने से नये की तरफ है।

किताबी कोना

मेरा नया पॉडकास्ट 'लिंकिंग - क्या यह गलत है' सुने। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप, Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में; Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।



सांकेतित शब्द
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Monday, November 19, 2007

ऑस्ट्रियन एयरलाइनः बर्लिन-वियाना यात्रा

भारत से वियाना तक की फ्लाइट ऑस्ट्रियन एयर लाइन की थी। प्लेन सही समय पर उड़ा। मुझे आगे की सीट मिली थी। एक महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ आयी। उसने कहा कि मैं उसे यह सीट दे दूं। आगे की सीट में बैठने का यह फायदा है कि बच्चों के लिये वह क्रैडल लग जाती है। जिस पर उन्हे लिटाया जा सकता है। मैंने मान लिया पर परिचायिका ने यह नहीं करने दिया क्योंकि आगे पहले से ही एक महिला बच्चे के साथ बैठी थी और ऊपर केवल एक ही अतिरिक्त ऑक्सीजन मॉस्क था दो नहीं। उस महिला को पुनः अपनी जगह वापस जाना पड़ा। किसी भी अन्य यात्री ने जिसकी सीट के सामने बच्चे के लिये क्रैडल लग सकता था, उस महिला के साथ सीट बदलने से मना कर दिया। वह कुछ मायूस हो गयी। इससे उसे रास्ते में कुछ तकलीफ तो जरूर हुई होगी पर मैं कुछ कर नहीं सकता था।

परिचारिकायें लाल परिधान पहने थीं। युवतियां लाल स्कर्ट, लाल बेल्ट, लाल या सफेद ब्लाउज, लाल जैकेट, लाल कोट, लाल स्टॉकिंग, यहां तक की लाल जूते पहने थीं पर गले में स्कार्फ आसमानी रंग का था। यही हाल युवकों का भी था। वे हमसे तो अंग्रेजी में बात करते थे पर आपस में किसी और भाषा में बात करते थे। मैंने एक परिचारिका से पूछा कि क्या वह जर्मन में बात कर रही है। उसने कहा
'हां। पर हमारा उच्चारण जर्मन के कुछ भिन्न है पर वर्तनी, व्याकरण बाकी सब वही है।'
मैंने जवाब दिया डांके शॉन (आपको बहुत धन्यवाद)। वह मुस्कराकर बोली,
'लगता है आपको जर्मन आती है।'
मैंने कहा, मैं जर्मनी जा रहा हूं इसलिये कुछ शब्द सीख लिये हैं।

मेरे बगल की महिला इटली जा रही थी और जो महिला मुझसे सीट बदलना चाहती थी वह स्पेन जा रही थी। वे हरियाणा के किसी गांव की लग रही थी। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। वे घबरा रही थी। मैंने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है मैं मदद करूंगा। मैंने वियना में उन्हें उस जगह तक पहुंचाया जहां से उन्हें अपनी, अगली फ्लाइट पकड़नी थी। हांलाकि बाहर निकलते समय एक व्यक्ति खड़ा था जो टिकट देखकर लोगों की सहायता कर रहा था।

मैं बर्लिन जाने के लियें, हाथ का सामान चेक करने के लिये देने लगा। एक व्यक्ति ने मुस्कराकर पूछा कि क्या लैपटॉप हैं? मैंने कहा नहीं। उसने कहा कि क्या नोटबुक है ? मैंने कहा
'नहीं, इसमें मेरे कपड़े हैं।'
उसे बहुत आश्चर्य हुआ, मानो कह रहा हो कि क्या कोई भारतीय बिना लैपटॉप के यात्रा कर सकता है। शायद सूचना प्रौद्योगिकी, भारतीयों की पहचान बन गयी है।

वियाना हवाई अड्डे और बर्लिन में मुझे एक परेशानी हुई पर उसका कारण मैं खुद था न कि वियाना हवाई अड्डा या बर्लिन शहर - यह अगली बार।

बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन

Saturday, November 17, 2007

वेब क्या होता है

आज चर्चा का विषय है 'वेब क्या होता है'। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।
ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'इंटरनेट क्या होता है' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।

मैंने अपनी चिट्ठी टिम बरनस् ली पर बताया था कि १९८० के दशक में, टिम ने यूरोपियन नाभकीय लेब्रोटरी जो सर्न (CERN) के नाम से जानी जाती है, में काम करना शुरू किया। । वहां हर तरह के कंप्यूटर थे जिन पर अलग अलग के फॉरमैट पर सूचना रखी जाती थी। टिम का मुख्य काम था कि सूचनाये एक कंप्यूटर से दूसरे पर आसानी से ले जायीं जा सकें। यह करते हुऐ उन्हे लगा कि क्या सारी सूचनाओं को इस तरह से पिरोया जा सकता है कि वे एक जगह ही लगें। बस इसी का हल सोचते, सोचते उन्होने वेब को अविष्कार कर दिया और दुनिया का पहला वेब पेज ६अगस्त १९९१ को सर्न में बना।

इस तकनीक में उन्होंने हाईपर टेकस्ट मार्कअप भाषा (एच.टी.एम.एल.) {Hyper Text Markup Language (HTML)} और हाईपर टेकस्ट ट्रान्सफर प्रोटोकोल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} का प्रयोग किया।
  • एच.टी.एम.एल. कम्प्यूटर की एक भाषा है जिसके द्वारा सूचना प्रदर्शित की जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि किसी अन्य सूचना को उससे लिंक किया जा सकता है। सारी सूचनायें किसी न किसी वेब-साइट या कम्प्यूटर पर होती हैं जिसका अपना पता होता है जिसे यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (यू.आर.एल.) {Uniform Resource Locator (URL)} कहते हैं। एच.टी.एम.एल. में लिखे किसी पेज को दूसरे पेज में संदर्भित करने के लिये उसके यू.आर.एल. उस पेज में डालना (embed करना) होता है। यह लिंक किसी भी वेब पेज में एक खास तरह से, अक्सर नीले रंग से या फिर नीचे लाईन खिंची तरह से दिखायी पड़ती है। माऊस को किसी भी लिंक पर ले जाने पर करसर का स्वरूप बदल जाता है।
  • आप लिंक पर चटका लगा कर संदर्भित पेज पर पहुंच सकते हैं। सूचना का इस तरह से प्राप्त करना या भेजना जिस तकनीक या प्रोटोकॉल के अन्तरगत होता है उसे हाईपर टेक्सट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} हाइपरटेक्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल (H.T.T.P.) कहा जाता है।

सारे वेब पेज, एक तरह से जुड़े हैं। दुनिया भर में वेब पेजों का जाल बिछा है। इसीलिये इस तकनीक का नाम विश्व व्यापी वेब {World Wide Web (www)} या केवल वेब (web) कहा जाता है। वेब पेज के पहले अक्सर http या फिर www लिखा होता है जो यह दर्शाता है। हांलाकि यह अब इतना सामान्य हो गया है कि इसके लिखने की जरूरत नहीं है।

टिम ने एच.टी.एम.एल. भाषा या फिर एच.टी..टी.पी. का आविष्कार नहीं किया। उसने इन सब तकनीकों को जोड़कर सूचना भेजने और प्राप्त करने का तरीका निकाला। यह तब हुआ जब टिम सर्न में काम कर रहे थे। यह सर्न की बौद्घिक संपदा थी। सर्न ने टिम के कहने पर ,३० अप्रैल १९९३ को इस तकनीक को मुक्त कर दिया। अब यह न केवल मुफ्त में बल्कि मुक्त रूप से उपलब्ध है। इसके लिए किसी को भी फीस न तो सर्न को न ही किसी और को देनी पड़ती है।

इण्टरनेट और वेब में कुछ अंतर है, इण्टरनेट दुनिया भर के कम्प्यूटरों का जाल है जो एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। वेब संवाद करने का खास तरीका है।

सर्न के द्वारा वेब तकनीक को मुफ्त और मुक्त तरीके से उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा फायदा हुआ कि यह सूचना भेजने तथा सूचना प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका हो गया। यह इतना महत्वपूर्ण है कि अक्सर लोग इंटरनेट और वेब को एक दूसरे का पर्यायवाची समझते हैं। यह बात किसी सटैंडर्ड या फॉरमैट को मुक्त रूप से उपलब्ध कराने के महत्व को समझाती है।

ओपेन फॉरमैट, ओपेन सटैंडर्ड कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसका एक और कारण की चर्चा मैंने अपनी चिट्ठी, पापा क्या आप उलझन में हैं, पर भी किया है।

अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।।

सांकेतिक चिन्ह
web, tim berners lee,
information technology, Internet, Internet, Podcast, software, Web, Technology, technology, technology, आईटी, अन्तर्जाल, इंटरनेट, इंटरनेट, टेक्नॉलोजी, टैक्नोलोजी, तकनीक, तकनीक, तकनीकी, पॉडकास्ट, पॉडकास्ट, पोडकास्ट, पॊडकास्टिंग, फ़ाइल ट्रांसफ़र सॉफ्टवेयर, ब्राउज़र्स सॉफ्टवेयर, सूचना प्रद्योगिकी, सॉफ्टवेयर, सॉफ्टवेर, सॉफ्टवेर, सौफ्टवेर,

Tuesday, November 13, 2007

जर्मन भाषाः बर्लिन-वियाना यात्रा

कुछ समय पहले, मुझे बर्लिन जाने का मौका मिला। भारत से बर्लिन के लिये, कोई भी सीधी हवाई जहाज की उड़ान नहीं है। मैंने बर्लिन जाने के लिये, वियाना होते हुए टिकट लिया। मैंने लौटते समय दो दिन वियना में रहने का प्रोग्राम बनाया। मुझे लगा कि इससे अच्छा मौका, इन दोनो जगहों को देखने का नहीं मिलेगा।

जर्मनी और ऑस्ट्रिया दोनो जगह जर्मन भाषा बोली जाती है। इसलिये मैंने जर्मन भाषा के सीखने की बात सोची। इसके लिये मैंने दो पुस्तकें लीः
  • पहली है Learn German in a Month (Readwell Publication New Delhi); और
  • दूसरी है German in your pocket (Aureole Publishing, Noida)।
पहली पुस्तक का फायदा यह है कि इसमें शब्द देवनागरी में भी हैं जिससे उच्चारण ठीक से समझ में आते हैं। दूसरी का फायदा यह है कि यह छोटी है और आपकी जेब में आ जाती है।

मैंने जर्मन भाषा सीखने की सीडी भी सुनी यह हारर एजूकेशन लिमिटेड के द्वारा बनायी गयी है और अच्छी है इसमे सुनने में शब्दों के उच्चारण समझ में आये। जर्मन भाषा सीखने के लिये अन्तरजाल पर यहां से भी सहायता मिली।

मैं जर्मन भाषा तो पूरी तरह नहीं सीख पाया। इसके लिये कुछ और समय चाहिये था पर कुछ सामान्य जर्मन शब्द इस प्रकार हैं। इन शब्दों की वहां जरूरत पड़ी और इसका फायदा हुआ।

अंग्रेजी में

जर्मन भाषा में

जर्मन शब्दों का उच्चारण

Bye! See you later. (casual)

Tschüs!

ट्यूस्

Can you help me?

Können Sie mir helfen?

कॉनेन सिआ हेलफ्न

Fine, thanks.

Danke, gut.

डांकॅ गुट

Gentleman

Herr

हेर

Good


गुट

Good Afternoon, Good day, Hello! - Hi!

Guten Tag! - Tag!

गुटन टाग

Good evening!

Guten Abend!

गुटेन आबेन्ड

Good morning! - Morning!

Guten Morgen! - Morgen!

गुटन मॉरनेन

Good night!

Gute Nacht!

गुट नाक्ट

Good-bye,

Auf Wiedersehen.

ऑउफ वीडरसेहन

Great, Very good

Sehr gut.

सेर गुट

How are you?

Wie geht es Ihnen?

वि गी इस इहनन

How are you? (familiar, informal)

Wie geht's?


I am sorry


एन्ट शुलडिगन

I don't understand German


एक फसते हे काइन डॉइच (जर्मन)

I would like...

Ich möchte...

इश मश्तय्

Lady

Dame

डामे

May I?

Darf ich?

डार्फ इश

No thanks!

Nein, danke!

नाइन डान्कॅ

Not so well.

Nicht so gut.

नित्स सो गुट

Please! - Yes, please!

Bitte! - Ja, bitte!

बिटॅ

Thank you!

Danke schön!

डान्कॅ शॉन

Thanks a lot! - Many thanks!

Vielen Dank!

फिलेन डान्कॅ

Thanks! - No thanks!

Note: "Danke!" in response to an offer usually means "No thanks!" If you want to indicate a positive response to an offer, say "Bitte!"

Danke!

डान्कॅ

What would you like?

Was möchten Sie?

वस मश्त इज़ी

You're welcome! (in response to "Danke schön!")

Bitte schön!

बिटॅ शॉन