चिट्ठी में रजोधर्म के बारे समाज में अज्ञानता का वर्णन है और 'मेरी छोटी सी लाल किताब' (My Little Red Book) की समीक्षा है।
कुछ समय पहले डेसमंड मॉरिस ने डिस्कवरी चैनल पर 'मानव लिंग' (The Human Sexes) नामक एक श्रंखला निम्न पांच भागों में की थी।
- Different but Equal
- The Language of the Sexes
- Patterns of Love
- Passages of Life
- The Maternal Dilemma
महिलाओं और पुरुषों में बहुत कुछ भिन्नता तो सदियों से दोनो को अलग अलग कार्य करने के कारण या उनके लालन पालन में है पर कुछ भिन्नता जैविक भी है। जैविक भिन्नता का सबसे पुख्ता सबूत रजोधर्म (Menstruation) है। लेकिन जब अब पुरुष भी बच्चे पैदा करने लगे तो शायद यह भिन्नता भी नहीं रहे।
अधिकतर सभ्यताओं में, महिलाओं को रजोधर्म के समय अपवित्र माना गया। वे इसके दौरान न तो खाना बना सकती थी न ही पूजा कर सकती थीं। मेरे विचार में यह बीते हुऐ कल की बात है और आज ऐसा नहीं समझा जाता है। मैं, यह इसलिये सोचता था क्योंकि मैं एक सयुंक्त परिवार में बड़ा हुआ हूं। हमारे परिवार में चाचियां, बहनें, भाभियां थीं पर मुझे कभी भी पता नहीं चलता था कि वे कब इस दौर से गुजर रहीं हैं। मेरे परिवार में महिलाओं के साथ कभी भी रजोधर्म के समय उनसे कोई अन्तर नहीं किया गया।
लगता है कि, मेरी सोच सही नहीं है। रजोधर्म के बारे में लोगों की अज्ञानता समाप्त नहीं हुई है।
मैंने कुछ दिन पहले 'आज की दुर्गा - महिला सशक्तिकरण' की कहानी कई कड़ियों में अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर लिखी थी। इसे बाद में संकलित कर इसी नाम से अपने चिट्ठे लेख में यहां प्रकाशित किया है। इस श्रंखला की एक कड़ी, महिलाओं में रजोधर्म (Menstruation) से संबन्धित थी। इसमें मैंने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का जिक्र किया था जिसमें इसके बारे में सूचना को एकान्तता के अन्दर बताया गया था। किसी को इसके बारे में सूचना मांगना अनुचित कहा गया। मेरे विचार से, इस तरह की सूचना मांगना, अज्ञानता की निशानी है।
कुहू जी, मुझे अन्तरजाल पर मिली थी। मैंने उनका परिचय, अपनी चिट्ठी 'अंतरजाल पर हिन्दी कैसे बढ़े' में करवाया था। उन्होंने कुछ दिन पहले अंग्रेजी में 'The Red Coloured Blues' और हिन्दी में सुनो, सुनो एक बात सुनो नामक चिट्ठी लिखी है। वे एक शादी में चेन्नई गयी हुई थीं। वहां रजोधर्म के दौरान क्या हुआ यह इस चिट्ठी में लिखा है। उन्हें एक कोने में बैठा दिया गया। उनके खाने के बर्तन बदल दिये गये। यह मुझे अविश्वसनीय लगता है। मैं सोच ही नहीं सकता कि आधुनिक भारत में इस तरह का बर्ताव हो सकता है।
मेरे कुछ मित्रों की पत्नियां रजोधर्म के दौरान कम काम करती हैं। उनके मुताबिक उन्हें कमजोरी रहती है। हो सकता है कि यह सच न हो और सच कुछ और ही हो क्योंकि शुभा के मुताबिक इस दौरान कोई भी कमजोरी नहीं होती है। यह केवल मनोवैज्ञानिक है पर इसके अतिरिक्त मैंने, समाज में, रजोधर्म के समय महिलाओं के साथ बर्ताव में कोई अन्तर नहीं पाया। ।
आज जब मैं रजोधर्म के बारे में बात कर रहा हूं तो इस संबन्ध पर एक पुस्तक का जिक्र करना चाहूंगा। रैशल कॉंडर नालेबफ (Rachel Kauder Nalebuff ) ने एक पुस्तक 'मेरी छोटी लाल किताब' (My Little Red Book) (माई लिटल रेड बुक) नाम से लिखी है। इसमें उन्होंने ९२ युवतियों के पहले रजोधर्म के संस्मरण लिखें है।
'मेरी छोटी लाल किताब' में एक संस्मरण बैंगलोर की युवती का है जो कुहू जी की चिट्ठी में वर्णित व्यवहार की तरह है। इस पुस्तक में कुछ अजीब तरह के अनुभवों को बांटा गया है। यह पुस्तक, शायद पुरुषों को रुचिकर न लगे पर महिलाओं को अवश्य भायेगी। यह पुस्तक हर युवती को पढ़नी चाहिये। शायद पुरुषों को भी - वे उनकी मुश्किलों को, उनके साथ होते अन्याय को, ज्यादा अच्छी तरह समझ सकेंगे।
यदि आप इस पुस्तक के बारे में इसकी लेखिका रैशल से जानना चाहते हैं तो यहां सुन सकते हैं।
महिलाओं के साथ, इस तरह का व्यवहार, न केवल यौन शिज्ञा के महत्व को उजागर करता है पर इसकी जरूरत को भी दर्शाता है।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
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- Linux पर सभी प्रोग्रामो में - सुन सकते हैं।
is post per, smaaj mein rjodharm ke bare agyaanta ka varan hai aur meri chhotee see lal kitaab kee smeeksha hai. yeh hindi (devnagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen. This post talks about wrong practises about menstruation and reviews 'My Little Red Book'. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script. |
सांकेतिक शब्द
Family, Life, Sex education, दर्शन, यौन शिक्षा, विचार,
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मेरे चिट्ठे के बारे में लिखने के लिए धन्यवाद | मुझसे पाठकों द्वारा बहुत अनुरोध किया गया है अपने इस चिट्ठे को हिंदी में भी लिखने के लिए और मैं आजकल में लिख ही डालूंगी | फ़िर यह आपबीती कहानी ज्यादा लोगों तक पहुँच पायेगी |
ReplyDeleteकुहू
हूँ तो आप भी डेजमांड मोरिस के फैन निकले ! मैं उन्हें आधुनिक आधुनिक युग का डार्विन मानता हूँ !
ReplyDeleteसही है रजोधर्म को लेकर भारत में कई भ्रांतियां हैं जैसे बहुत से लोग मानते हैं कि इस दौरान यौन संसर्ग से गर्भ रह जाता है !
और मासकी धर्म के ठीक पहले प्रायः सभी महिलाओं का मानसिक और शारीरिक तनाव कई सामाजिक पारिवारिक असुविधाओं को जन्म देता है -यह सही है मगर इसबारे में जानकारी के अभाव से सम्शायें जटिल हो जाती हैं !
बहुत जानकारी परक !
बहुत महत्वपूर्ण पोस्ट है। रजोधर्म के समय स्त्रियों के साथ जो असमानता बरती जाती है और बहुत सी बातें उन्हें परंपरागत तरीके से सिखा दी जाती है(एक तरह का ब्रेनवाश) मुझे अपने ही घर में इस असमानता को दूर करने में बहुत दिक्कत आई। वस्तुतः इस मुद्दे पर बहुत काम की जरूरत है। अपितु आलेखों के दोहराव के साथ प्रस्तुत करने की जरूरत है। छपा हुआ साहित्य तो इस मामले में प्रचार में है ही नहीं। पत्र पत्रिकाओं में इस बारे में कभी कुछ पढ़ने को नहीं मिलता यहाँ तक कि कथित महिला पत्रिकाओं में भी नहीं। यहाँ तक कि महिला अधिकार से संबंधित ब्लागों पर भी नहीं। आप को बधाई जो इस विषय को यहाँ उठाया।
ReplyDeleteउत्कृष्ट ज्ञान वर्धन. दक्षिण भारत के परम्परावादी परिवारों में महिलाओं को अलग कमरे में रखा जाता है. तीन दिनों तक एक प्रकार से quarantine में.
ReplyDeleteआज भी कई जगह इस तरह की बाते सुनने में आती हैं ..बहुत कुछ बदलाव ही चुका है पर लगता है कई जगह अभी भी वह पुरानी बाते कायम है ...इस बारे में अधिक से अधिक जागरूकता लानी जरुरी है ...
ReplyDeleteमैं उस समाज से आता हूँ जहाँ रजोधर्म के समय अछूत नहीं माना जाता, अतः काफी बाद में इस विषय को जाना.
ReplyDeleteमुझे लगता है अछूतता सम्भव है सफाई को ध्यान में रख कर व महिलाओं को ज्यादा श्रम का कम न करना पड़े इस दृष्टी से लागू की गई होगी.
अब काफी कुछ बदल गया है. सेक्स को भी इस समय वर्जित नहीं माना जाता.
असम का प्रख्यात कमख्या मन्दीर वर्ष में तीन दिन बन्द रहता है. माता रजोधमिणी होती है, इस समय.
ReplyDeleteहमारे समाज मे कई बाते ऐसी है जहाँ क्यो? का जबाब नही मिलता। मै खुद एक भुक्त-भोगि हूँ । सिर्फ़ दक्षीण भारत ही नही,देश के कई हिस्सो मे मैने देखा है। इस समय महिलाओ का किसि मन्दिर या पवित्र स्थान मे प्रवेश वर्जित होता है ,वे किसि पुजा-पाठ मे हिस्सा नही ले सकती। रजोधर्म के बारे मे सही जनकारी देने के बजाय उनके दिल मे ये बात बैठा दी जाती है कि अगर उन्होने इन नियमो क पालन नही किया तो उनके साथ कोई अशुभ घटना घट सकती है । यहाँ तक कि रजोधर्मीणी स्त्री को किसी ने स्पर्श कर लिय हो तो उसे नहलाया जाता है।
ReplyDeleteमैं द ह्यूमन सेक्सेज के पूरे एपिसोड नही देख पाया पर शुरू के देखे हैं.
ReplyDeleteकाफ़ी अच्छा प्रोग्राम था. इससे काफ़ी जानकारी मिली.
इस विषय पर पहली बार गम्भीरतापूर्वक लिखा गया लेख पढने को मिला।
ReplyDeleteएक ऐसा विषय जिससे हर महिला गुज़रती पर बात करने से कतराती है. और कई भ्रांतियां भी फैली हैं . मेरी बेटी जब इस दौर से गुजरी तो उसकी दादी यह सोचकर परेशान हो गयीं की अब उसकी लम्बाई नहीं बढेगी. और मुझे इस प्रक्रिया का पूरा वैज्ञानिक कारण उन्हें समझाना पड़ा . इसी विषय पर आज BBC की साईट पर नेपाल में फैली प्रथाओं का ज़िक्र हुआ . यह देखिये http://news.bbc.co.uk/2/hi/south_asia/7870616.सतं.
ReplyDeleteपूनम जी के द्वारा बतायी गया वेब पेज को मैंने 'ज़मेंटा के द्वारा मिले संबन्धित वेब पेज' की सूची में जोड़ दिया है। वहां पर का चित्र भी उसी वेब पेज से है।
ReplyDeleteआपकी बात सही है उन्मुक्त जी समाज अब भी इस दकियानूसी बातों से मुक्त नही हो सका है ..मेरी नानी बताती है उनके समय में नहाने से भी मना किया जाता था कपडे नही बदलने दिए जाते थे ..और बर्तन भी अलग कर दिए जाते थे .घर में घुमना मना था एक अँधेरे कमरे में चुपचाप बैठा दिया जाता था.
ReplyDeleteऔर मुन्ने की माँ की बात सही है कोई बदलाव नही आता .मुझे महसूस नही हुआ.
लेकिन हमारे भारत मे आज भी कुछ परिवार इन बातो से बाहर नही निकले
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