यह चिट्ठी, चार्लस् डार्विन के जन्म के २००वें साल पर शुरू की गयी नयी श्रंखला, 'डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े' की भूमिका है।
इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
- Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
- Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
- Linux पर सभी प्रोग्रामो में,
सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें। यह आपको इन फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें। इन्हेंं डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।
कुछ समय पहले शास्त्री जी ने एक चिट्ठी 'ईश्वर की ताबूत का आखिरी कील!' नामक शीर्षक से लिखी थी। इसमें ईश्वर का संदर्भ देते हुऐ चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के विकासवाद (evolution) के सिद्धांत को गलत बताने का प्रयत्न किया गया था।
इस पर अरविन्द जी ने टिप्पणी की,
'मैं कोई पुराना चिट्ठाबाज़ तो नही हूँ मगर अल्प समय मे आपके मानवीय गुणों ने मुझे प्रभावित किया है, मगर मुझे यह असुविधाजनक अंदेशा भी रहा है की आपका कोई प्रायोजित मकसद भी है। मुझे यह भी डर था की आप देर सवेर अपने ब्लॉग पर डार्विन को घसीटेंगे जरूर और सच मानिए मेरा संशय सच साबित हो गया। डार्विन ... की पुस्तक डिसेंट ऑफ़ मैन ने सचमुच मनुष्य के पृथक सृजन की बाइबिल -विचारधारा पर अन्तिम कील ठोक दी थी तब से बौद्धिकों मे डार्विन के विकास जनित मानव अस्तित्व की ही मान्यता है। इस मुद्दे पर मैं आपसे दो दो हाथ करने को तैयार हूँ। आप कृपया यह बताये कि डार्विन के किस तथ्य को बाइबिल वादियों ने ग़लत ठहराया है? एक एक कर कृपया बताएं ताकि इत्मीनान से उत्तर दिया जा सके। हिन्दी के चिट्ठाकार बंधू भी शायद गुमराह होने से बच सकें।'
इस चिट्ठी पर मेरी टिप्पणी यह थी,
'शायद इस चिट्ठी की बातें न तो प्रमाणिक हैं न ही ठीक।यह श्रंखला इसी विषय के बारे में है।
डार्विन एक महानतम वैज्ञानिकों में से एक हैं। वे स्वयं पादरी बनना चाहते थे इसलिये उन्होने Origin of Species प्रकाशित करने में देर की। उनका जीवन संघर्षमय रहा। यदि आप Irving Stone की The Origin पुस्तक पढ़ें तो उनके बारे में सारे तथ्य सही परिपेक्ष में सामने आयेंगे।
इस बारे में, अमेरिका में ... मुकदमा चला। पहला तो १९२० के दशक में था। इसमें फैसला Origin of Species के विरुद्ध रहा। यह अमेरिका के कानूनी इतिहास के शर्मनाक फैसलों में गिना जाता है। इसके बाद [के] ... फैसले ... Origin of Species के पक्ष में हुऐ हैं।
...
विज्ञान और धर्म दो अलग अलग क्षेत्र की बातें हैं। मेरे विचार से दोनो को जोड़ना ठीक नहीं।
मैं agnostic [अज्ञेयवादी] हूं यदि मेरे विचारों से दुख पहुंचा तो क्षमा प्रार्थी हूं।'
एक तरफ इस श्रंखला को लिखने कुछ हिचक सी लग रही है। इसका कारण यह है कि डारविन के बारे में बहुत कुछ सामग्री हिन्दी चिट्ठाजगत पर उपलब्ध है। अरविन्द जी कुछ बेहतरीन चिट्ठियां अपने चिट्ठे पर यहां और यहां तथा कुछ Science Blogger's Association of India पर लिखीं हैं। रचनाकार में सूरज प्रकाश और के पी तिवारी ने उनकी आत्मकथा का हिन्दी में अनुवाद प्रकाशित किया है। सच यह है कि मैं अपने आप को, इस सामग्री में कुछ भी जोड़ पाने में असमर्थ पाता हूं।
नवयूवक वैज्ञानिक डार्विन का चित्र विकिपीडिया से
दूसरी तरफ,
- डारविन न ही केवल महानतम वैज्ञानिकों से एक थे पर वे हिम्मती और बेहतरीन व्यक्ति थे। शायद उनकी जैसी हिम्मत वाला और बेहतरीन व्यक्तित्व का कोई अन्य वैज्ञानिक नहीं हुआ है। मुझे लगता है कि मेरे जीवन काल में इस साल से बेहतर समय, इस महान व्यक्ति को श्रधांजलि देने के लिये नहीं आयेगा
- चर्च ऑफ इंगलैंड (Church of England) ने डार्विन के साथ किये गये अन्याय पर माफी मांग ली है पर हर मज़हब में कुछ लोग कट्टरवादी होते हैं। वे अक्सर विज्ञान, तथ्य, और तर्क को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। मैंने कुछ समय पहले 'ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके' नामक श्रंखला भी, ऐसी ही एक अन्य भ्रांति दूर करने के लिये लिखी थी। इस समय, एक अन्य भ्रांति, सर्जनवाद (Creationism) (नया नाम Intelligent Design) के नाम पर अपना फन उठा रही है। मेरे जीवन काल में, इस विषय पर लिखने के लिये, शायद वर्ष २००९ से बेहतर कोई अन्य साल नहीं होगा।
- इस दुनिया से, विदा हो जाने के बाद ही, यह चिट्टा मेरी याद दिलायेगा, सनद रहेगा कि मैं इस अंधकार में खो नहीं गया था - मैंने भी अपनी आपत्ति दर्ज की थी; मैंने भी एक दिया इस अन्धकार को मिटाने के लिये जलाया था।
इस श्रंखला में हम चर्चा करेंगे,
- डार्विन की;
- प्रणियों के उत्पत्ति की, विकासवाद की;
- मज़हबों की, सृजनवाद की;
- सृजनवादियों की विकासवाद के विरुद्ध आपत्तियों की;
- इन दोनो विचारधाराओं से जुड़े विवाद; तथा
- इससे जुड़े चर्चित मुकदमों की।
अगली बार डार्विन के जीवन से जुड़ी कुछ बातें, उसके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव।
रिचर्ड डॉकिंस् (Richard Dawkin) जीव वैज्ञानिक हैं। वे ऑक्सफर्ड विश्विद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हैं। इस समय विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिये लिखते हैं। डार्विन के महत्व और विज्ञान एवं मज़हब के बीच द्वन्द को इस प्रकार से समझाते हैं।
डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
भूमिका,सांकेतिक चिन्ह
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वाह ,मजा आ गया बड़े परिश्रम और जिम्मेदारी से आपने यह श्रृखला डार्विन द्विशती पर शुरू की हैं -हम तो आपके इस तरह के लेखन के मुरीद हैं हीं ! इसे भी मनोयोग से पढ़ते रहेंगें -यह पहली ही चिट्ठी जोरदार है !
ReplyDeleteअच्छा विचार किया है. लिखें.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लेखन परंपरा शुरू की है आप ने.
ReplyDeleteयदि निम्न वाक्य "हो सकता है कि, यह श्रंखला कुछ लोगों को कष्ट पहुंचायें" में आप ने मुझे जोडा हो तो उसे निर्दयता से निकाल फेंकें.
मैं विकासवाद का विरोधी हूँ लेकिन दूसरी ओर तर्क एवं शास्त्रार्थ का पक्षधर हूँ अत: हर विषय पर खुल कर चर्चा करने का हिमायती हूँ. ऐसे ही तो विज्ञान और विचार आगे बढते है.
यही कारण है कि मेरे सृ्स्टिवादी विचारधारा का विरोध करने वाली टिप्पणियों को कभी भी मिटाया नहीं जाता. कारण यह है कि जिस दिन हम में से किसी ने विपरीत विचारधारा को अनदेखा करने की कोशिश की, उस दिन हमारे अंदर का बुद्धिजीवी खतम हो जाता है.
आपके और डा अरविंद की कलम से इन विषयों पर पढना बहुत अच्छा लगता है.
सस्नेह -- शास्त्री
यह एक गम्भीर मुददा है। आशा है आपकी यह श्रृखला कई मायनों में महत्वपूर्ण होगी।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary- TSALIIM / SBAI }
चलिए इसी बहाने एक अच्छी श्रृंखला तो पढने को मिलेगी :)
ReplyDeleteडार्विन के विकासवाद कि यह सारी जानकारी गलत है यह भी एक थ्योरी कल अंधविश्वास है जिस बात को हम ठीक तरह से नहीं जानते हैं उस बात को हम दुनिया के सामने रख रहे हैं इंसानों द्वारा बनाई गई सारी चीजों को डार्विन की तरह क्रम से रखोगे तो आप भी पाओगे कि वह एक क्रम विकास जैसा सिस्टम बनता है लेकिन उस पर किसी का ध्यान नहीं गया है आप एक साइकिल की डिजाइन ओं से देकर मोटरसाइकिल के बनने तक आप एक सादा कंप्यूटर से लेकर मोबाइल के कंप्यूटर के बनने तक जब लाइन से सारे मोबाइल या मोटरसाइकिल और साइकिल और वह लगाकर देखोगे तो एक क्रम विकास जैसा सिस्टम बनेगा और हमें यह कहेंगे यह अपने आप हो गया है तो आपको लोग पागल कहेंगे
ReplyDeleteक्योंकि सारी चीजों को बनाने में किसी न किसी प्रोग्राम का ही हाथ है कोई भी दुनिया की चीज अपने आप नहीं बन सकती है तो यह जैव विकास सिर्फ झूठ का पुलिंदा है और कुछ नहीं है
आपका परिचय सबके देखने के लिये नहीं है। मेरे विचार से यदि आप किसी बात से असहमत होतें हैं तब आपको परिचय सबके देखने के लिये होना चाहिये।
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