पीटर हिग्स - हिग्स बॉसौन की कल्पना करने वाले |
इस चिट्ठी में चर्चा है कि हिग्स बॉसौन को गॉड पार्टिकल क्यों कहा जाता है।
पिछली बार, हम लोगों ने इस बात कि चर्चा की थी कि यदि बिग-बैंग का सिद्धांत सही है, तब कणों एवं पदार्थों को किस प्रकार संहति (mass) मिली। यह बिग-बैंग के बाद पैदा हुई ऊर्जा की फील्ड (हिग्स फील्ड) के कारण हुआ।
हिग्स फील्ड एक ऊर्जा फील्ड है। इसलिये इससे सुसंगत कोई सब-एटौमिक कण भी होना चाहिये। इस कण का नाम हिग्स बॉसौन रखा गया। इसे गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है। यह भी एक रोचक बात है कि इसे गॉड पार्टिकिल क्यों कहा गया।
आइंस्टाइन ने एक बार कहा था कि भौतिक शास्त्रियों का काम, ईश्वर के मानस को समझना है। यह तभी हो सकता है जब उन कणों के बारे में जाने, जिससे सृष्टि, जीवों की रचना हुई। सब-एटौमिक (नाभकीय कणों) के बारे में जानना - ईश्वर के मानस को समझना ही है।
एलेक्ट्रॉन सब-एटौमिक कण है। इसकी खोज उन्नीसवीं शताब्दी में हो गयी थी। लगभग बाकी सारे अन्य सब-एटौमिक कणों की खोज बीसवीं शताब्दी में हो गयी थी पर वह नाभिकीय कण, जिससे सब को संहति (mass) मिली, यानि कि हिग्स बॉसौन, उसकी खोज बीसवीं शताब्दी में नहीं हो सकी थी। उस समय, इसके अस्तित्व को सिद्ध कर पाने के लिये कोई तरीका नहीं था।
फ्रौंस्वा ऑन्ग्लेर, पीटर हिग्स के साथ नोबल विजेता |
लिऔन लेडरमैन प्रयोगिक भौतिक शास्त्री हैं और नाभकीय कणों पर शोधध करते हैं। वे अमेरिका के इलिनॉए राज्य में, शिकागो के पास स्थित फर्मी लैब के अवकाश पूर्व सम्मानित निदेशक हैं। १९८८ में, उन्हें, माइक श्वार्टज़ एवं जैक स्टाइनबर्गर के साथ, न्यूट्रिनो पर, काम करने के लिये नोबल पुरस्कार मिला है।
हिग्स बॉसौन, ब्रह्माण्ड के अन्तिम स्वरूप को समझने के लिये आवश्यक है। लेकिन इसका अस्तित्व कहीं से पकड़ में नहीं आ रहा था इसलिये लेडरमैन ने, एक भाषण के दौरान, हिग्स बॉसौन को 'द गॉड पार्टिकल' के नाम से सम्बोधित किया। यह नाम मीडिया और भौतिक शास्त्रियों को पसन्द आया और वे भी इसका प्रयोग करने लग गये।
उसी समय, लेडेरमैन ने, डिक टेरेसी के साथ, नाभकीय कणों के इतिहास पर एक पुस्तक लिखनी शुरू की, तब टेरेसी ने पुस्तक के चलतू नाम के लिये 'द गॉड पार्टिकल' का सुझाव दिया। उसका कहना था कि कोई भी प्रकाशक पुस्तक का चलतू नाम अन्त में नहीं रखता।
लेडरमैन की पुस्तक का प्रकाशन १९९३ में हुआ। वे कहते हैं कि हिग्स बॉसौन की शरारतपूर्ण प्रकृति एवं सिद्ध करने में लग रही लागत के कारण, वे इसे गॉडडैम पार्टिकल कहना चाहते थे लेकिन उनके प्रकाशक ने इसे ऐसा करने से मना कर दिया।
'द गॉड पार्टिकल' नाम कुछ कौतूहल पैदा करता है - शायद प्रकाशक के मना करने का यही कारण हो। लेकिन लेडरमैन इसका एक और कारण देते हैं। वे कहते हैं इसका संबन्ध एक अन्य पुरानी पुस्तक (द ओल्ड टेस्टामेन्ट) से है और वे इसे टावर ऑफ बेबल से जोड़ते हैं।
लेडरमैन की पुस्तक 'द गॉड पार्टिकल – इफ यूनिवर्स इस द आन्सर देन वॉट इस द क्वेस्चेन?' (The God Particle: If the Universe Is the Answer, What Is the Question?) नाम से निकली। इसके बाद, मीडिया वाले भी इसे, इसी नाम से पुकारने लगे और आम लोगों के बीच हिग्स बॉसौन 'द गॉड पार्टिकल' नाम से आम लोगो में जाना जाने लगा।
'द गॉड पार्टिकल' का नाम प्रयोग करने से लोग इसके प्रति ज्यादा जागरूक और उत्सुक बने। लेकिन, बहुत से वैज्ञानिक कहते हैं कि यह नाम ठीक नहीं है। क्योंकि, इसका ईश्वर से कोई लेना देना नहीं है; न ही ब्रह्माण्ड कैसे बना जैसे बुनियादी सवाल का जवाब देता है। यह भौतिक शास्त्र के बहुत सारे मूलभूत सवालों को भी अनुत्तरित छोड़ता है।
'उन्मुक्त जी, आपने पिछली चिट्ठी में बताया था कि हिग्स बॉसौन का अस्तित्व सर्न की एलएचसी प्रयोगशाला में हुआ। यहां आप वौक्साहैशि शहर में, सुपरकंडक्टिंग सुपर कॉलाइडर (एसएससी) प्रयोगशाला की बात कर रहें हैं।'वौक्साहैशि शहर में एसएससी प्रयोगशाला पूरी नहीं बन पायी। इसकी २३.५ किलोमीटर (१६.६ मील) लम्बी गोल सुरंग १९९३ तक बन गयी थी। उस समय अमेरिकी कॉग्रेस ने इस परियोजना को बन्द कर दिया। क्योंकि, उनके मुताबिक इसमें बहुत पैसा लग रहा था। लेकिन १९९८ में सर्न ने एलएचसी को बनाना शुरू किया, जिसमें किये गये प्रयोगों से हिग्स बॉसौन का अस्तित्व सिद्ध किया जा सका।
'उन्मुक्त जी, लेकिन आपने यह तो बताया ही नहीं कि लेडेरमैन की पुस्तक "द गॉड पार्टिकल – इफ यूनिवर्स इस द आन्सर, वॉट इस द क्वेस्चेन?" में है क्या?'इसके लिये तो आपको अगली कड़ी का इन्तजार करना पड़ेगा।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
मिल गया, मिल गया।। हिग्स बॉसौन का नाम गॉड पार्टिकल क्यों पड़ा।। यदि ब्रह्माण्ड जवाब है तो सवाल क्या था।।
सांकेतिक शब्द
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Very interesting-a study says gravity and Higgs boson interacted to save the universe
ReplyDeleteलगता है आपने हिग्स बोसॉन कण को ईश्वरीय कण समझ लिया है। ऐसा क्यों कह रहा हूँ। इस श्रृंखला के अंत में कहूँगा। धन्यबाद...
ReplyDeleteशेष लेखों की प्रतीक्षा में...
न तो हिग्स बॉसौन ईश्वरीय कण है न मैंने ऐसा समझा है। इस चिट्ठी में केवल यह बताया गया है कि लोग और मीडिया इसे क्यों ईश्वरीय कण कहने लगे। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं इसे ईश्वरीय कण मानता हूं। यदि चिट्ठी पढ़ने से ऐसा लगता है तो शायद मेरी लेखनी में कुछ कमी है।
Deleteजी नहीं, आपकी लेखनी में कोई कमी नही है। बस एक पंक्ति में ऐसा कुछ पढ़ने को मिला। जिससे कि ऐसी प्रतिक्रिया देनी पड़ी। लगता है हिग्स बोसॉन कण के नामकरण ने आप पर भी प्रभाव डाला है। फलस्वरूप उसके अस्तित्व से संबंधित शर्तों की समझ में छोटी सी चूक हो गई। आप आगे के लेख लिखें। श्रृंखला के अंत में हम चूक होने का कारण और उस गलती दोनों पर चर्चा करेंगे। ताकि इस तरह की चूक दो बारा दोहराई न जा सके।
Deleteहमें आपके लेख पढ़ने में बहुत अच्छे लगते हैं। क्योंकि आपके लेखों में विषय का चुनाव उपयोगिता, समस्या, भूतकाल और वर्तमान में उसका स्वरुप तथा भविष्य में उसकी नियति निर्धारण के आधार पर किया जाता है। बहुत-बहुत शुक्रिया..
आपको मेेरे लेख अच्छे लगते हैं इसके लिये शुक्रिया।
Deleteमैंने विज्ञान की पढ़ाई लगभग ४५ वर्ष पहले की थी। इसलिये शायद विज्ञान की बात में कुछ गलती हो सकती है।
इस श्रंखला में बस एक और कड़ी बची है जो कि लिऔन लेडरमैन एवं डिक टेरेसी की लिखी पुस्तक 'द गॉड पार्टिकल – इफ यूनिवर्स इस द आन्सर, वॉट इस द क्वेस्चेन?' के बारे में है। उसके बारे में लिख रहा हूं।
Have u been to Texas ? Have u visited that laboratory where ssc experiment started in 1988 ?
ReplyDeleteनहीं :-(
Deleteलेख में जो चूक दिखी वह यह कि "हिग्स बोसॉन, ब्रह्माण्ड के अन्तिम स्वरूप को समझने के लिये आवश्यक है।" दरअसल ब्रह्माण्ड के स्वरुप निर्धारण के लिए ब्रह्माण्ड के घटक ज़िम्मेदार हैं न कि अवयव। ब्रह्माण्ड के स्वरुप निर्धारण के चार घटक हैं : ब्रह्माण्ड की सीमा, ऊर्जा, अंतरिक्ष और उसके नियतांक एवं नियम। जबकि अणु, परमाणु से लेकर ग्रह, उपग्रह, तारे और आकाशगंगा ये सभी ब्रह्माण्ड के अवयव हैं। इस चूक के दो कारण समझ में आते हैं। और ये वे कारण हैं जो हमेशा से भ्रम उत्पन्न करते हैं। अत्याधिक ताप और दाब के कारण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति महाविस्फोट के रूप में हुई है। यह भ्रम भी इसी श्रेणी में आता है। जबकि वास्तविकता यह है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय अत्यधिक ताप और दाब था। जो निरंतर कम होते जा रहा है। न कि अत्याधिक ताप और दाब ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का कारण है।
ReplyDeleteपहला कारण : ब्रह्माण्ड को घटकों के स्थान पर अवयवों के द्वारा परिभाषित किया जाना।
दूसरा कारण : महाविस्फोट के ठीक बाद ही परमाणुओं के निर्माण ने इस चूक की संभावनाओं को जन्मा है।
हिग्स बोसॉन कण, परमाणु के मानक नमूने का आखिरी अनसुलझा पहलू था। जिसे उसके क्षेत्र (Field) के रूप में पहचाना गया। हिग्स बोसॉन के इसी क्षेत्र ने परमाणु सहित हम-आप को द्रव्यमान दिया। जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के ठीक बाद ही निर्मित हो गया था।
"ब्रह्माण्ड के अन्तिम स्वरूप को समझने के लिये हिग्स बोसॉन के प्रमाण की आवश्यकता हिग्स बोसॉन को ईश्वर का दर्जा देने के लिए काफी है।"
सम्बंधित लेख : ब्रह्माण्ड के समूह (Multiverse) की अवधारणा । http://unmukt-hindi.blogspot.in/2014/11/god-particle-higgs-boson.html