Tuesday, February 09, 2021

मेरे नाना - राज बहादुर सिंह

अम्मां, के जन्मदिन पर, कुछ चर्चा, अपने नाना के बारे में - सुभद्रा कुमारी चौहान पर, उनकी बेटी सुधा चौहान की लिखी जीवनी, 'मिला तेज से तेज' के उद्धरण के साथ।

तुम्हारे बिना 
चौधरी धनराज सिंह - राजा बलवन्त सिंह कॉलेज के पहले हेडमास्टर।। मेरे बाबा - राजमाता की ज़बानी।। बाबा - जैसा सुना।। बाबा - जैसा देखा, जैसा समझा।।मेरे नाना - राज बहादुर सिंह।। अम्मा।। दद्दा (मेरे पिता)।। नैनी सेन्ट्रल जेल और इमरजेन्सी की यादें।। RAJJU BHAIYA AS I KNEW HIM।। रक्षाबन्धन।। जीजी, शादी के पहले - बचपन की यादें ।  जीजी की बेटी श्वेता की आवाज में पिछली चिट्ठी का पॉडकास्ट।। दिनेश कुमार सिंह उर्फ़ दद्दा - बावर्ची।।
 

अट्ठारह सौ सत्तावन की लड़ाई में, मेरे पिता के परिवार ने, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उसके बाद, परिवार का सब कुछ जब्त हो गया। इसकी चर्चा मैंने यहां की है। मेरे मां का परिवार, अंग्रेजों के खिलाफ तो नहीं लड़ा, पर उन्हें सहायता भी नहीं दी। इसलिये उन्होंने भी अपना सब कुछ खो दिया।
राज बहादुर सिंह मेरे नाना थे। सुभद्रा कुमारी चौहान, उनकी सगी बहन, महिपाल सिंह उनके बाबा और अम्मां के पर-बाबा थे। वे बड़े जमींदार थे उनकी जमींदारी कैसे छिनी, यह बात बहुत सुधा चौहान ने अपनी मां सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी 'मिला तेज से तेज' में लिखी है।
अम्मा के परिवार की वंशावली
'कड़े मानिकपुर के पास एक गांव है, लोंहदा। वहां के जमींदार थे, ठाकुर महिपाल सिंह। एक रात कुछ, अंग्रेज भागते हुए आये और उन्होंने ठाकुर साहब से छिपने के लिए जगह मांगी । ठाकुर साहब ने गदर में कोई सक्रिय भाग तो नही लिया था, पर अपने देश के दुश्मन अत्याचारी फिरंगियो कि शरण देने के लिए भी अपने को तैयार नहीं कर सके। निहत्थों को मारना राजपूती शान के खिलाफ होता, इसलिए उनको उन्होंने मारा तो नही लेकिन ठहरने के लिए स्थान भी नहीं दिया । पर वे आखिर जाते कहां, भागते-भागते ही तो किसी तरह यहां तक पहुँंचे थे। भागने की ताकत अभी और होती तो यहां अनजानी जगह शरण मांगने क्यों आते, सीधे इलाहाबाद छावनी जाकर न रुकते?
जो हो, जमीदार साहब, ठाकुर महिपाल सिंह ने उनको जगह देने से इन्कार कर दिया। लेकिन जमींदार साहब के अहीर को उन फिरंगियों पर दया आ गयी। महिपाल सिंह के ही घर की भूसे की कोठरी में उसने उनको छिपा दिया। दो-तीन दिन बाद संकट टल जाने पर, वे लोग अपनी सुविधा से आगे निकल गये।
केन्दीय नेतृत्व की दुर्बलता से और मुख्यरूप से हमारे देशवाशियों की गद्दारी से, अंग्रेज अन्तत: विजयी हुऐ और गदर समाप्त हुआ। अंग्रेज प्रभु-सत्ता ने धीरे-धीरे फिर अपने पैर जमाये। इसे देश निवासियों में से बिना कुछ लोगो को मित्र बनाये और उनका विश्वास प्राप्त किये फिरंगी राज्य यहां नहीं चल सकता, यह बात अच्छी तरह उनकी समझ में आ गयी थी। इसीलिए अब उन्हें अपने उपकारियों की याद आयी। लोंहदा ग्राम के जमींदार ठाकुर महिपाल सिंह को हटाकर, उन्होंने अपने दुर्दिन के साथी, उसी अहीर को वहां का जमींदार बना दिया। महिपाल सिंह अपना यह अपमान कैसे सहते; अपने ही अहीर की रैयत बनकर उन्हें उस गांव में एक बूंद पानी पीना भी मंजूर नहीं हुआ। अपनी स्त्री और दो बच्चों को लेकर, वे रातों-रात इलाहाबाद के पास निहालपुर गांव में पहुंचे।'
मेरे नाना राजबहादुर सिंह 'रज्जू भैया'
मेरे नाना को लोग रज्जू भैया कहते थे। वे तीन भाई और पांच बहने थे। पिता, बड़े भाई रामऔतार सिंह और उनकी पत्नी वा एक बहन महादेवी का देहान्त जल्दी हो गया। अब परिवार में, उनसे बड़े भाई रामप्रसाद सिंह (दिनेश कुमार सिंह के सगे बाबा) और उनसे छोटी चार बहनें बचीं। 
नाना के चाचा बैजनाथ सिंह और उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद, उनकी बेटी गोमती भी नाना के साथ रहने आ गयी। इस तरह परिवार में दो भाई और पांच बहने हो गयीं।जीवनी के पेज ४४ पर, सुधा चौहान, नाना के भाई रामप्रसाद सिंह  के लिये, लिखती हैं कि वे  
'सदा के अलमस्त लापरवाह व्यक्ति थे।' 
उसी पेज पर नाना के लिये लिखती हैं 
'घर की सारी जिम्मेवारी रज्जू भैया की थी'। 
इसमें शक नहीं यह जम्मेवारी, नाना ने बहुत अच्छी तरह से निभायी। अपनी पांचों बहनों को पढ़ाया और शादी करवायी। नाना के लिये, पेज ३७ पर लिखती हैं,
'दोनो भाइयों में स्वभाव का बहुत बड़ा अन्तर था, वह परिवार के प्रति उनके व्यवहार में भी स्पष्ट था। रज्जू भैया के लिये, स्त्री की इज्जत छोटी-छोटी बातों से नहीं जाती थी, जाती थी उसके अकारण अपमानित होने या प्रताड़ित होने से। उनके सबसे बड़े भाई रामऔतार सिंह में बहनों को पढ़ाने का उत्साह था उसे, उनके इस दुनिया में चले जाने के पर अब रज्जू भैया ने, बड़े सहज भाव से, अपने सिर ओढ़ लिया था। बहनों को हर अच्छे काम के लिये उत्साहित करने में, वे हमेशा सदा तत्पर रहते थे। बहनों को शिक्षित बनाना है। उनमें कविता के प्रति रुझान है, इस गुण को विकास का अनुभव देना है, यह सब रज्जू भैया ने समझा था'
सुभद्रा कुमारी चौहान सबसे छोटी बहन थी - सबसे प्रतिभावान, सबसे नटखट और नाना की राजदुलारी। वे भी नाना से बहुत स्नेह करती थीं। आत्म कथा के पेज ३८-३९ पर एक घटना का वर्णन है जो भाई बहन के प्रेम  और उसकी निश्छलता को बताता है। उस समय सुभद्रा नौ वर्ष की थी, 
'सुभद्रा प्रकृति से बहुत चंचल थी। वह देखती कि जब स्त्रियों की कवितायें या लेख छपते है तो उनके साथ छपा हुआ नाम बड़ा प्रभावशाली दिखायी पड़ता है। उनका पुस्तकों पर भी उनका नाम ऐसा ही लम्बा-चौड़ा लिखा रहता है। उसे अपना सुभद्रा कुंवरि नाम बहुत छोटा और  बहुत महत्वहीन सा लगता था। उसने अपनी अब तक की लिखी छोटी-बड़ी सब कविताएँ एक कॉपी में खूब साफ-साफ अक्षरों में लिखीं और कॉपी के ऊपर उसकी लेखिका का नाम लिखा - सुभद्रा कुंवरि धर्मपत्नी ठाकुर राजबहादुर सिंह। उस समय अपने भैया से ज्यादा अच्छा उसे कोई नही लगता था और कविताओं की प्रशंसा भी तो आखिर सबसे ज्यादा भैया से ही मिलती थी।
उसने यह बढ़िया सी कविता पुस्तक, अपने बक्से में रख दी। एक दिन घर में, किसी बहन के हानिन्यानवे साल की अम्माथ वह कॉपी लग गयी, फिर तो वह घर भर के हाथ में घूमी और खूब हंसी हुई। सुभद्रा बेचारी यह तो नही समझ पायी कि लोग क्यों हंस रहे हैं पर उसने मारे गुस्से के वह कॉपी फाड़कर फेंक  दी। दूसरी किसी भी लेखिका के नाम साथ धर्मपत्नी अमुक-अमुक छपा रहता था। बेचारी छोटी-सी लड़की, धर्मपत्नी जैसे भारी-भरकम शब्द का अर्थ क्या जाने। फलाने की बहू या फलाने की घरवाली लिखा रहता तो शायद उसकी कुछ समझ में भी आता।'
मेरी मां को भी पढ़ने का बेहद शौक था। शादी के बाद, उन्होंने स्नातक और कानून की पढ़ायी की। इसकी चर्चा मैंने यहां की है। लगता है पढ़ाई का वह जोश, वह प्रेम, नाना से मिला, जिसे मेरे पिता के परिवार ने प्रोत्साहित किया।
 
 बीच में वीरेन्द्रकुमार सिंह चौधरी अपने घर में, साथ में सुधा चौहान (दाये) और उनके पति अमृत राय (बायें)

आप 'मिला तेज से तेज' पुस्तक के कुछ अंश सुभद्रा कुमारी चौहान - बचपन एवं विवाह, जबलपुर आगमन मुश्कलें और रचनायें, जीवन की कुछ घटनायें, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, शीर्षक से लिखी चिट्ठियों पर पढ़ सकते हैं।

About this post in Hindi-Roman and English

Subhdra Kumari Chauhan kee beti Sudha Chauhan ne unkee jeevani 'Mila Tej Se Tej' namak pustak likhee hai. is chitthi mein, usee ke udhran ke saath, Amma ke parivar kee charcha hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi mein  padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

Sudha Chauhan has written biography of her mother Subhdra Kumari Chauhan in the book titled 'Mila Tej Se Tej'. This post in  Hindi (Devanagari script) is about my mother's family with excerpts from the book. You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
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2 comments:

  1. बहुत अच्छा लगा जानकर पुरानी बातें

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  2. 🙏🙏 पढ़कर गर्व महसूस होता है

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