Monday, August 03, 2020

रक्षाबन्धन - तुम्हारे बिना?

आज श्रावण मास की पूर्णिमा है और रक्षा-बन्धन भी। इस चिट्ठी में, कुछ यादें जीजी की, कुछ बीते हुऐ रक्षाबन्धनों की।
जीजी, दादा को राखी बांधते हुऐ
तुम्हारे बिना - दूर चले गये लोगों की याद में, यह नयी श्रंखला है। इसमें पहले प्रकाशित कुछ प्रसांगिक चिट्ठियों के भी लिंक  दिये है।

मां के बाद, ईश्वर की सबसे प्यारी नेमत, बहन ही होती है - छोटी हुई तो बड़ों से आपकी शैतानियों से बचाती है और बड़ी हुई तो मां सा प्यार देती है। जीजी मुझसे सात साल बड़ी थीं और मेरा उसका रिश्ता तो मां की तरह रहा।

रक्षाबन्धन तो हमेशा खास दिन रहता था। वरान्डे को सजाया जाता था बीच में चौकी। टोपी पहन कर हम उसमें बैठते थे। जीजी पहले टीका, फिर आरती, उसके बाद  राखी - इसके बाद, जीजी का अपने हाथ से मिठाई खिलाना और बाद में, चौकी पर बैठ कर खुद भी खाना।

हमारे साथ हमारी एक बुआ भी रहती थीं। वे सबसे पहले मेरे पिता (जिन्हें हम दद्दा कहते थे) को राखी पहनाती थीं। उसके बाद जीजी हमें राखी बांधती थीं।

स्कूल में पढ़ते समय, मेरे पास रिस्ट्वॉच नही रही। हांलाकि इम्तिहान के समय रिस्ट्वॉच मिल जाती थी। मुझे पहली रिस्ट्वॉच, राखी के रूप में, जीजी ने बांधी। यह भी कुछ इस तरह से हुआ।

जीजी ने, १९५७ में, ८वीं कक्षा पास की। वे विज्ञान पढ़ना चाहती थीं। लेकिन उस समय, लड़कियों के लिये, क्रॉसवेट गर्लस स्कूल को छोड़कर, लड़कियों के किसी अन्य स्कूल में विज्ञान की पढ़ाई नहीं होती थी। इसलिये वहीं दाखिला लिया। फिर, १९६५ में गणित और १९६७ में भौतिक शास्त्र में पोस्ट-ग्रेजुएट की डिग्री ली। भाभा एटॉमिक सेंटर में शोद्ध करने का मौका भी मिला। लेकिन घर से इतनी दूर, अकेले वह भी बम्बई में, न तो अम्मां को उन्हें भेजने की हिम्मत हुई, न ही दद्दा ने जाने दिया। जीजी ने, घर के बगल ही के गर्ल्स हाई स्कूल में गणित और भौतिकशास्त्र पढ़ाना शुरू किया।

जीजी के पढ़ाना शुरू करने का बाद, शायद १९६८ या फिर १९६९ का रक्षाबन्धन होगा। उसने अपने पहले वेतन से, एचएमटी की  रिस्ट्वॉच खरीदी और  रक्षाबन्धन पर, राखी की जगह, वह रिस्ट्वॉच पहनायी।

राखी की जगह मिली इस घड़ी को, मैंने तब तक पहना, जब तक घड़ी पहनना छोड़ नहीं दिया। फिर जब मैंने कमाना शुरू किया और कुछ पैसे बचने लगे, तब जीजी  को एक पश्मीने का शॉल दिया जो अन्त तक उसके पास रहा।

२००२ में, घर के तीनो बेटों के स्नातक बनने के बाद, दिये गये लंच पर, जीजी अपने बांये कन्धे पर, उसी शॉल के साथ

हमारे पास एक रिकॉर्ड प्लेयर भी था। उस दिन राखी और भाई-बहन से जुड़े, सारे गाने सुने जाते थे पर शायद सबसे प्यारा गाना था,



आने वाल समय में, जीजी  की कुछ और यादों और कुछ अन्य की भी चर्चा करूंगा।

About this post in Hindi-Roman and English
Rakshababdhan ke din, jijee kee kuchh yadon ke saath, beete logon kee yaad mein, 'TUMHAARE BINA' nayee sharnkhla. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi mein  padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

On Rakshabandhan, some memories of my elder sister and this new seiries 'TUMHAARE BINA' in memories of people gone by. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
। Culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो,
#हिन्दी_ब्लॉगिंग #HindiBlogging
#Jijee

3 comments:

  1. बहुत सुंदर पोस्ट और प्यारी यादें
    प्रणाम स्वीकार कीजियेगा

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  2. भाभा एटॉमिक सेंटर में शोद्ध करने का मौका भी मिला। लेकिन घर से इतनी दूर, अकेले वह भी बम्बई में, न तो अम्मां को उन्हें भेजने की हिम्मत हुई, न ही दद्दा ने जाने दिया। => I wish she'd got this opportunity of being RA.

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  3. Anonymous10:41 pm

    Didi ko sader naman aaj bahut yad aana swabhavik hai

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