आज श्रावण मास की पूर्णिमा है और रक्षा-बन्धन भी। इस चिट्ठी में, कुछ यादें जीजी की, कुछ बीते हुऐ रक्षाबन्धनों की।
जीजी, दादा को राखी बांधते हुऐ |
तुम्हारे बिना - दूर चले गये लोगों की याद में, यह नयी श्रंखला है। इसमें पहले प्रकाशित कुछ प्रसांगिक चिट्ठियों के भी लिंक दिये है।
तुम्हारे बिना
।। 'चौधरी' ख़िताब - राजा अकबर ने दिया।। बलवन्त राजपूत विद्यालय आगरा के पहले प्रधानाचार्य।। मेरे बाबा - राजमाता की ज़बानी।। मेरे बाबा - विद्यार्थी जीवन और बांदा में वकालत।। बाबा, मेरे जहान में।। पुस्तकें पढ़ना औेर भेंट करना - सबसे उम्दा शौक़।। सबसे बड़े भगवान।। जब नेहरू जी और कलाम साहब ने टायर बदला।। मेरे नाना - राज बहादुर सिंह।। बसंत पंचमी - अम्मां, दद्दा की शादी।। अम्मां - मेरी यादों में।। दद्दा (मेरे पिता)।।My Father - Virendra Kumar Singh Chaudhary ।। नैनी सेन्ट्रल जेल और इमरजेन्सी की यादें।। RAJJU BHAIYA AS I KNEW HIM।। मां - हम अकेले नहीं हैं।। रक्षाबन्धन।। जीजी, शादी के पहले - बचपन की यादें ।। जीजी की बेटी श्वेता की आवाज में पिछली चिट्ठी का पॉडकास्ट।। चौधरी का चांद हो।। दिनेश कुमार सिंह उर्फ बावर्ची।। GOODBYE ARVIND।।मां के बाद, ईश्वर की सबसे प्यारी नेमत, बहन ही होती है - छोटी हुई तो बड़ों से आपकी शैतानियों से बचाती है और बड़ी हुई तो मां सा प्यार देती है। जीजी मुझसे सात साल बड़ी थीं और मेरा उसका रिश्ता तो मां की तरह रहा।
रक्षाबन्धन तो हमेशा खास दिन रहता था। वरान्डे को सजाया जाता था बीच में चौकी। टोपी पहन कर हम उसमें बैठते थे। जीजी पहले टीका, फिर आरती, उसके बाद राखी - इसके बाद, जीजी का अपने हाथ से मिठाई खिलाना और बाद में, चौकी पर बैठ कर खुद भी खाना।
हमारे साथ हमारी एक बुआ भी रहती थीं। वे सबसे पहले मेरे पिता (जिन्हें हम दद्दा कहते थे) को राखी पहनाती थीं। उसके बाद जीजी हमें राखी बांधती थीं।
स्कूल में पढ़ते समय, मेरे पास रिस्ट्वॉच नही रही। हांलाकि इम्तिहान के समय रिस्ट्वॉच मिल जाती थी। मुझे पहली रिस्ट्वॉच, राखी के रूप में, जीजी ने बांधी। यह भी कुछ इस तरह से हुआ।
जीजी ने, १९५७ में, ८वीं कक्षा पास की। वे विज्ञान पढ़ना चाहती थीं। लेकिन उस समय, लड़कियों के लिये, क्रॉसवेट गर्लस स्कूल को छोड़कर, लड़कियों के किसी अन्य स्कूल में विज्ञान की पढ़ाई नहीं होती थी। इसलिये वहीं दाखिला लिया। फिर, १९६५ में गणित और १९६७ में भौतिक शास्त्र में पोस्ट-ग्रेजुएट की डिग्री ली। भाभा एटॉमिक सेंटर में शोद्ध करने का मौका भी मिला। लेकिन घर से इतनी दूर, अकेले वह भी बम्बई में, न तो अम्मां को उन्हें भेजने की हिम्मत हुई, न ही दद्दा ने जाने दिया। जीजी ने, घर के बगल ही के गर्ल्स हाई स्कूल में गणित और भौतिकशास्त्र पढ़ाना शुरू किया।
जीजी के पढ़ाना शुरू करने का बाद, शायद १९६८ या फिर १९६९ का रक्षाबन्धन होगा। उसने अपने पहले वेतन से, एचएमटी की रिस्ट्वॉच खरीदी और रक्षाबन्धन पर, राखी की जगह, वह रिस्ट्वॉच पहनायी।
राखी की जगह मिली इस घड़ी को, मैंने तब तक पहना, जब तक घड़ी पहनना छोड़ नहीं दिया। फिर जब मैंने कमाना शुरू किया और कुछ पैसे बचने लगे, तब जीजी को एक पश्मीने का शॉल दिया जो अन्त तक उसके पास रहा।
२००२ में, घर के तीनो बेटों के स्नातक बनने के बाद, दिये गये लंच पर, जीजी अपने बांये कन्धे पर, उसी शॉल के साथ
हमारे पास एक रिकॉर्ड प्लेयर भी था। उस दिन राखी और भाई-बहन से जुड़े, सारे गाने सुने जाते थे पर शायद सबसे प्यारा गाना था,
आने वाल समय में, जीजी की कुछ और यादों और कुछ अन्य की भी चर्चा करूंगा।
सांकेतिक शब्द
। Culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो,
#हिन्दी_ब्लॉगिंग #HindiBlogging
#Jijee
बहुत सुंदर पोस्ट और प्यारी यादें
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार कीजियेगा
भाभा एटॉमिक सेंटर में शोद्ध करने का मौका भी मिला। लेकिन घर से इतनी दूर, अकेले वह भी बम्बई में, न तो अम्मां को उन्हें भेजने की हिम्मत हुई, न ही दद्दा ने जाने दिया। => I wish she'd got this opportunity of being RA.
ReplyDeleteDidi ko sader naman aaj bahut yad aana swabhavik hai
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर यादें। जय श्री सीताराम जी जय श्री हनुमान जी
ReplyDeleteYati, I have a lovely Pashmina shawl gifted by you when Abhi was born. I treasure it. Thanks.
ReplyDeleteकृप्या 'हम अकेले नहीं हैं' लिंक पर देखें। आपको पसन्द आयेगा।
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