मैं उस अज्ञात बन्धु का भी आभार प्रगट करना चाहता हूं, जिसने मुझे इस चुनाव के लिये नामांकित किया। क्योंकि उसके बिना तो मैं यहां तक नहीं पहुंच सकता था।
मेरे चिट्ठियों पर बहुत कम टिप्पणियां रहती हैं। मेरी अधिकतर चिट्ठियां बिना किसी टिप्पणी के हैं। इसलिये मैं कभी नहीं सोचता था कि मेरी चिट्ठियों को लोग पसन्द करते होंगे। तरकश पर अनूप जी ने मेरा परिचय देते समय लिखा कि मैं टिप्पणियां कम करता हूं। टिप्पणियों के बारे में पर तरुन जी ने यहां बताया कि इन पर 'इस हाथ ले उस हाथ दे' का सिद्धान्त लगता है। मैं सबके चिट्ठे तो अवश्य पढ़ता हूं पर यह सच है कि टिप्पणियां कम कर पाता हूं। कभी समय कि कमी, तो कभी यह न समझ पाने की इतनी सुन्दर चिट्ठी पर क्या लिखूं कि इसकी सुन्दरता बढ़ जाये। आने वाले समय पर मेरा यह भी प्रयत्न रहेगा कि मैं चिट्ठेकार बन्धुवों कि चिट्ठियों पर अधिक से अधिक टिप्पणी करूं।
मेरी तरफ से समीरलाल जी, शुऐब जी, और सागर चन्द जी को पुरुस्कार जीतने की बधाई।
सबको बधाई, जिन्होने इस चुनाव में वोट दिया। हांलाकि मैंने स्वयं या फिर मुन्ने की मां ने इस चुनाव में कोई वोट नहीं दिया। यह इस कारण से नहीं कि हमें इस चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं, पर इसलिये कि हम इस चुनाव में निष्पक्ष रहना चाहते थे। मैं तो मुन्ने की मां के अलावा किसी और को वोट दे ही नहीं सकता था, न ही देने की हिम्मत थी :-)
मेरी तरफ से तरकश टीम को भी बधाई। उन्होने न केवल इस तरह के आयोजन की बात सोची पर इसका इसका सफल आयोजन भी कराया। मैं आशा करता हूं कि वे न केवल इसका आयोजन हर साल करेंगे पर इस तरह के अन्य आयोजन भी करते रहेंगे जिससे लोगो में जोश बना रहेगा। आने वालो सालो में अलग अलग श्रेणियों में भी आयोजन कराने की बात सोची जा सकती है या फिर कुछ इस तरह के आयोजन की जिसमें न केवल किसी साल में शुरु किये गये चिट्ठेकार पर सारे चिट्ठेकार भाग ले सकें।
मुझे एक बात का दुख भी है। हमारे साथ कोई महिला चिट्ठाकार नहीं है।
मुझे मुन्ने की मां को कई बार कहना पड़ता है तब वह कोई चिट्ठी पोस्ट करती है। जब मैं उससे पूछता हूं कि वह और चिट्ठियां क्यों नहीं पोस्ट करती, तो उसका जवाब रहता है कि,
- कंप्यूटर तुम्हारा ज्यादा अच्छा मित्र है; या
- घर का काम कौन करेगा; या
- मुझे कंप्यूटर कम समझ में आता है।
देख लिया न अब तो, कि बिना टिप्पणी के भी लोग आपको पढ़ते हैं. थोड़ा समय दूसरों को टिप्पणी देने मे निकालेंगे तो मिलेगी तो जरुर. मगर आप इतना उमदा पेशकश लाते हैं कि बिना टिप्पणी के ही वो अपनी पताका फहरा जाती है. भाभी जी को कहें वो लिखते रहें. आरक्षण से क्या हासिल है और वो क्यूँ होना चाहिये. बस लिखते रहें सब पहचानेंगे और आने वाला समय स्वर्णिम होगा. आरक्षण से बनी पहचान को मैं पहचान मानने को ही इन्कार करता हूँ और कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है, इस बात का पक्षधर हूँ.
ReplyDeleteतरकश पर अब महावारी आयोजन हों इस बात का प्रयास है संजय/पंकज भाई का, जैसा मुझे ज्ञात हुआ है.
आपको बहुत बहुत बधाई. लेखन की श्रेष्ठता बनाये रखें. :)
उन्मुक्तजी,
ReplyDeleteआपके लेखों पर टिप्पणी करना भी सूरज को दिया दिखाने समान है. आप बस लिखते
रहें, आपके लेखों का इन्तजार रहता है.
पुरस्कार मिलने पर बधाई!
बहुत-बहुत बधाई!!!
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई उन्मुक्त भाई। आपने साबित कर दिया कि हमारी तरह बिना धुंआधार प्रचार किए भी जीत हासिल की जा सकती है।
ReplyDeleteमहोदय आपको टिप्पणीयाँ करता रहा हूँ, चाहे संक्षेप मे ही की हो. :)
ReplyDeleteआपको बधाई देता हूँ, आपकी छवि तो हम खोज नहीं पाए और आपने भेजी नहीं. अब श्रीमान अपना डाक-पता हमें ई-पत्र द्वारा भेजने की कृपा फरमाए. :)
उन्मुक्त जी ,
ReplyDeleteएक बार फिर आपको बहुत बधाई... मैने थोडी देर पहले आपके चिट्ठे पर मेरी पहली (शायद) टिप्पणी की है।
मैने आपके चिट्ठे को बहुत कम पढा है। पर आपको मिले व्यापक समर्थन ने मुझे आपके चिट्ठों को पढने के लिए मजबुर किया और अब मैं सोच रहा हुँ कि मैं इतने दिन क्यों नहीं पढता था। :)
खैर जागे तब सवेरा.....
आप गुमशुदा क्यों रहते हैं?
ReplyDeleteआपकी कोई तस्वीर उपलब्ध नहीं हो पाई। आपने अपना पता भी नहीं बताया? :(
पता और फोटो उपलब्ध न कराने का कारण कुछ दिन पहले मुन्ने की मांं ने यहां बताया है। आप इसे मेरी मजबूरी भी समझ सकते हैं। आशा है आप सब का सहयोग, प्रेणना, और प्रेम बना रहेगा।
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई, उन्मुक्त जी।
ReplyDeleteमेरी भी बधाई स्वीकार कीजिए
ReplyDeleteहालांकि तरकश की साईट पर आपको बधाई दे चुके हैं लेकिन एक बार फिर से बधाई!
ReplyDeleteमेरी तरफ से भी बधाई और बधाई देने के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteआप के लेखों का मैं शुरू से प्रशंषक हूँ पर टिप्पणीयाँ देना वही सूर्य को चिराग दिखाने वाली बात लगती है सो कई बार टिप्पणी नहीं दे पाता।
सभी विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDeleteउन्मुक्त भाई, बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteआपके चिठ्ठो की प्रशंसा के लिये टिप्पणीयो की जरूरत नही है। आपका हर लेख अपने आप मे परिपुर्ण रहता है।
आशीष
नमस्ते! क्षमाप्रार्थी हूँ, बधाई बहुत देर से देने के लिये.कई दिनों से आपका चिट्ठा पढ ही नही पा रही थी.सबकी तरह ही मुझे भी आपका लेखन बहुत पसंद है.कई लोगों के चिट्ठे पर मुझे भी संकोच रहता है,लेकिन आश्चर्यजनक रूप से मुझे यहाँ टिप्पणी करने मे कभी डर नही लगा और मैने कई बार की भी.जीतने की मिठाई या हलुआ बचा है कि नही मेरे लिये?
ReplyDeleteदेर से ही सही पर हमारी बधाई स्वीकार करें। aur mithai due rahi.
ReplyDelete