'२५ साल पहले डल लेक की परिधि ३२ किलोमीटर थी। अब घटकर १६ हो गयी है। लोग इसे मिट्टी से पाटकर कब्जा करते जा रहे हैं। इसमें बदमाशी में राज्य सरकार भी भागीदार है। दो साल पहले जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दाखिल की गयी जिसे कारण यह रोका जा सका और डल लेक में कुछ सफाई शुरू की गयी।'
गोवा में भी हमने देखा कि न्यायपालिका के कारण वहां का समुद्री-तट बचा। दिल्ली में भी यदि प्रदूषण कम हुआ तो वह न्यायपालिका के कठोर कदमों के कारण। इलाहाबाद में प्रसिद्घ कम्पनी बाग है। जिसके बारे में ममता जी बता रही हैं यह समाप्त हो रहा था। इसे भी एक लोकहित याचिका के द्वारा ही बचाया जा सका।
यह पूथ्वी मां हमें अपने पूर्वजों से नही मिली है इसे तो हमने अपने बच्चों से गिरवी ली है। यह हमारे ऊपर है कि हम इसे कैसे उन्हें वापस देते हैं। यह बात शायद केवल न्यायपालिका ही समझ पा रही है बाकी लोग तो शायद ...
लोग अक्सर न्यायपालिका के न्यायिक क्रिया-कलापों (Judicial activism) की आलोचना करते हैं पर भूल जाते हैं कि बहुत जगह पर्यावरण बचा हुआ है तो वह न्यायपालिका के कारण ही। नेता ऎसे निर्णय नहीं लेते, जिससे उनके वोट बैंक में कमी आये।
कश्मीर यात्रा
जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।। बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है।। मिथुन चक्रवर्ती ने अपने चौकीदार को क्यों निकाल दिया।। आप स्विटज़रलैण्ड में हैं।। हम तुम एक कमरे में बन्द हों।। Everything you desire – Five Point Someone।। गुलमर्ग में तारगाड़ी।। हेलगा कैटरीना और लीनुक्स।। डल झील पर जीवन।। न्यायपालिका और पर्यावरण।।
इन जगहों मे तो फिर भी न्यायपालिका की बात लोग मान लेते है पर अंडमान मे तो लोग समुन्द्र पाट-पाट कर घर ही बना लेते थे और सुनामी आने के बाद भी समुन्द्र को पाट कर घर बनाने को तैयार है।हालांकि अब वहां प्रशाशन उन्हें ऐसा करने नही दे रहा है।
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