(इस बार चर्चा का विषय है काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)
काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ उससे कहीं अधिक है जितना कि हम और आप समझते हैं। यह बात, शायद काम करने वाली महिलाये या वे परिवार जहां कि महिलायें घर के बाहर काम करती हैं ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकते हैं। इस बारे में संसद के द्वारा बनाया गया कोई कानून नहीं है पर १९९७ में Vishakha Vs. State of Rajasthan (विशाखा केस) में प्रतिपादित या फिर कहें कि बनाया गया है।Sexual harassment ... |
यह निर्णय, न केवल महत्वपूर्ण है, पर अनूठा भी है।
संसद का काम कानून बनाना है, कार्यपालिका का काम उस पर अमल करना है; और न्यायालय का काम कानून की व्याख्या करना है। प्रसिद्घ न्यायविद फ्रांसिस बेकन ने कहा कि, न्यायाधीश का काम,
'To interpret law and not to make law'न्यायविद हमेशा से इसी पर जोर देते चले आ रहे हैं। हालांकि २०वीं शताब्दी में ब्रिटेन के न्यायाधीश जॉन रीड ने कहा
न्याय की व्याख्या करना है न कि कानून बनाना।
'We do not believe in fairy tales any more.'
हम अब इस तरह की परी कथाओं में विश्वास नहीं करते हैं।
विशाखा केस में न्यायायलय ने यौन उत्पीड़न (Sexual harassment) को परिभाषित किया और वे सिद्घान्त बनाये जो काम किये जाने की जगह पर अपनाये जाने चाहिये। यह काम संसद का है न कि न्यायपालिका का नहीं फिर भी न्यायालय ने ऐसा किया। यह अपने देश का पहला केस है जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कानून बनाया। न्यायालय के शब्दों में,
'The guidelines and norms [ regarding sexual harassment at working place] would be strictly observed in all workplaces for the preservation and enforcement of the right to gender equality of the working women. These directions would be binding and enforceable in law until suitable legislation is enacted to occupy the field.'
यह सिद्घान्त तब तक लागू रहेंगे जब तक इस बारे में कोई कानून न बनाया जाय।
विशाखा केस के सिद्घान्तों को १९९९ में Apparel Export promotion Council Vs. A.K.Chopra (चोपड़ा केस) में लागू किया गया। इस केस में चोपड़ा की सेवायें, विभागीय कार्यवाही में, इसलिये समाप्त कर दी गयी क्योंकि उसने काम की जगह पर, एक कनिष्क महिला कर्मचारी के साथ छेड़छाड़ की थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने चोपड़ा की याचिका स्वीकार करते हुये उसे वापस सेवा में ले लिया परन्तु जितने समय तक उसने काम नहीं किया था, उसका वेतन नहीं दिलवाया।
उच्चतम न्यायालय ने इस निर्णय के विरूद्घ अपील को स्वीकार कर, चोपड़ा की सेवायें समाप्त करने के विभागीय आदेश को बहाल कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि,
'That sexual harassment at the place of work, results in violation of the fundamental right to gender equality and the right to life and liberty.. the two most precious fundamental rights guaranteed by the Constitution of India.'.....
कार्य की जगह यौन उत्पीड़न का होना लैंगिक समानता, स्वतंत्रता एवं जीने के मौलिक अधिकारों का हनन है। यह अधिकार, हमारे संविधान के दो बहुमूल्य अधिकार हैं।
उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को फटकार लगाते हुये कहा,
'The observations made by the High Court to the effect that since the respondent did not “actually molest” Miss X but only “tried to molest” her and, therefore, his removal from service was not warranted, rebel against realism and lose their sanctity and credibility....The High Court overlooked the ground realities and ignored the fact that the conduct of the respondent against hhis junior female employee, Miss X, was wholly against moral sanctions, decency and was offensive to her modesty. Reduction of punishment in a case like this....is a retrograde step.'
उच्च न्यायालय ने कहा है कि विपक्ष पक्ष [चोपड़ा] ने सुश्री 'क' के साथ छेड़छाड़ नहीं की थी पर केवल इसका प्रयत्न किया था इसलिये उसे सेवा से हटाया जाना ठीक नहीं था। उनकी यह टिप्पणी वास्तविकता के खिलाफ है। विपक्ष पक्ष का अपनी कनिष्ठ महिला कर्मचारी के साथ का बर्ताव किसी तरह से क्षम्य नहीं था इस तरह के मामले में सजा कम करना पीछे जाने का कदम है। उच्च न्यायालय ने मामले को गलत तरीके से देखा है।
लैंगिक न्याय के परिपेक्ष में - समानता (equality), स्वतंत्रता (liberty) और एकान्तता (privacy) – का क्या अर्थ है यह अगली बार।
आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।। अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियम।। विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में।। यौन अपराध।। बलात्कार परीक्षण - साक्ष्य, प्रक्रिया।। दहेज संबन्धित कानून।। काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़
पर इसके बावजूद आज भी काम करने की जगहों पर महिलाओ के साथ छेड़छाड़ तो होती ही है।
ReplyDeleteकटु सत्य है कि आजकल इस कानून का दुरुपयोग करके कई महिलाओं कर्मचारियों द्वारा अपने सहकर्मियों/अधिकारियों पर झूठे आरोप के मामले लगाकर उनका जीवन बर्बाद कर दिया जा रहा है। अब तो महिलाएँ ही पुरुषों से छेड़छाड़ से लेकर.... तक अनेक प्रकार के अत्याचार कर रही हैं।
ReplyDeleteमेरा मानना है कि बिना आंशिक सहमति के छेड़छाड़ की कोशिश को कर ही नहीं सकता। वो सहमति भले ही दबाव से बनी हो।
ReplyDeleteआप की प्रस्तुति अच्छी है।
उन्मुक्त जी आपकी प्रस्तुति हमेशा कि तरह काफी अच्छी है। इस बात पर मैं बोधिसत्व से सहमत हूँ, पर उनकी दूसरी बात से कदापि सहमत नहीं हूँ। सहमति अगर दबाव से बनी हो तो वह सहमति नहीं कहलाएगी, उसे बेबसी कहेंगे।
ReplyDeleteकोई भी महिला अपनी सहमति से अपने साथ छेड़-छाड़ क्यों ही करने देगी भला?
मेरी राय में छेड़छाड़ के बारे में महिला की मूकदर्षिता या छेड्ख़ानी के लिये पुरूष को प्रेरित करने का व्यवहार,पहनावा या बातचीत का लहजा अधिक जिम्मेदार है। आपका लेख हकीकत बयां कर रहा है।
ReplyDeletenice to see your blog. become very happy to know that you r going with a mission in the world of blog.
ReplyDeleteपॉडकास्ट पर जब भी आपकी आवाज में आपके कहे को सुनते हैं तो बहुत अच्छा लगता है -- शास्त्री जे सी फिलिप
ReplyDeleteहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
बेहद सुंदर और सरगर्भीत है. इस क्रम को बनाएँ रखें....../
ReplyDeleteGiven there is no objectionabale content, how do yo decide which comments to approve and which to not?
ReplyDeleteमेरे अज्ञात मित्र, अच्छा होता कि आप टिप्पणी नाम बता कर करते।
ReplyDeleteयदि टिप्पणी में कोई आपत्तिजनक बात नहीं है और वह उसी चिट्ठी से संबन्धित है तो मैं उसे प्रकाशित होने देता हूं।
यदि आपत्तिजनक बात मेरे बारे मैं तो भी मैं उसे प्रकाशित करता हूं कृपया इस चिट्ठी पर ब्रह्मराक्षस की टिप्पणी देखें। उसके बाद वहां पर मेरा उनको जवाब और वह चिट्ठी भी देखें जो मैंने इस संदर्भ में लिखी।
कभी कभी कुछ लोग मेरे चिट्ठे पर टिप्पणी करते हैं जो उस चिट्ठी से संबन्धित नहीं होता है पर टिप्पणी द्वारा कुछ कहना चाहते हैं। यदि वे ईमेल का पता नहीं छोड़ते जैसा कि आपने किया है तो भी मैं प्रकाशित कर जवाब देता हूं जैसा कि अभी कर रहा हूं। यदि आपने ईमेल किखा होता तो यह टिप्पणी प्रकाशित न करता पर आपको जवाब दे देता।
apakaa bahut dhanyavaad is post ke liye.
ReplyDelete@bodhi (I do not know from where this enlightenment came to you?). and other who
share similar opinion!!!
The sexual haraasment at workplace has deep roots in male psyche, in the social structure which is aggressive against women and sometimes that is the only way to put down a women competitor, when she is outstanding in her profession or work.
We are still a savage society which puts blame on the victim and provides sympathy to the culprit, and even deny the recognition of the problems. More so because the crime against women are so wide spread. and now the violence against women is a collective efforts, in all fronts?