(इस बार चर्चा का विषय है महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)
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अधिकतर धर्मों के लिये स्वीय कानून (Personal Law) अलग-अलग है। अलग-अलग धर्मों में महिलाओं के भरण-पोषण भत्ता की अधिकारों की सीमा भी अलग-अलग है पर यह अलगाव अब टूट रहा है।
Indian Divorce Act ईसाइयों पर लागू होता है। इसकी धारा ३६ में यह कहा गया है कि मुकदमे के दौरान पत्नी को, पति की आय का १/५ भाग भरण-पोषण भत्ता दिया जाय। पहले, अक्सर न्यायालय न केवल मुकदमा चलने के दौरान, बल्कि समाप्त होने के बाद भी १/५ भाग भरण-पोषण के लिए पत्नी को दिया करते हैं। यह सीमा न केवल ईसाईयों पर बल्कि सब धर्मों पर लगती थी। इस समय यह समीकरण बदल गया है और कम से कम पति की आय का १/३ भाग पत्नी को भरण-पोषण भत्ता दिया जाता है। यदि पत्नी के साथ बच्चे भी रह रहे हों तो उसे और अधिक भरण-पोषण भत्ता दिया जाता है।
पत्नी को भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने के दफा फौजदारी की धारा १२५ में भी प्रावधान है। इस धारा की सबसे अच्छी बात यह थी कि यह हर धर्म पर बराबर तरह से लागू होती थी। वर्ष १९८५ में शाहबानो का केस आया। इसमें उसके वकील पति ने शाहबानो को तलाक दे दिया। उसे मेहर देकर, केवल इद्दत के दोरान ही भरण-पोषण भत्ता दिया पर आगे नहीं दिया। शाहबानो ने फौजदारी की धारा १२५ के अंतर्गत एक आवेदन पत्र दिया। १९८५ में उच्चतम न्यायालय द्वारा Mohammad Ahmad Kher Vs. Shahbano Begum में यह फैसला दिया कि यदि मुसलमान पत्नी, अपनी जीविकोपार्जन नहीं कर पा रही है तो मुसलमान पति को इद्दत के बाद भी भरण-पोषण भत्ता देना होगा।
शाहबानो के फैसले का मुसलमानों के विरोध किया। इस पर संसद ने एक नया अधिनियम मुस्लिम महिला विवाह विच्छेद संरक्षण अधिनियम Muslim Women (Protection of Rights on Divorce Divorce Act) 1986 बनाया। इसको पढ़ने से लगता है कि यदि मुसलमान पति, अपनी पत्नी को मेहर दे देता है तो इद्दत की अवधि के बाद भरण-पोषण भत्ता देने का दायित्व नहीं होगा। यह कानून मुसलमान महिलाओं के अधिकार को पीछे ले जाता था। इस अधिनियम की वैधता को एक लोकहित जन याचिका के द्वारा चुनौती दी गयी। वर्ष २००१ में Dannial Latif Vs. Union of India के मुकदमें में उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम को अवैध घोषित करने से तो मना करा दिया पर इस अधिनियम के स्वाभाविक अर्थ को नहीं माना। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम के आने के बावजूद भी यदि पत्नी अपनी जीविकोपार्जन नहीं कर पाती है तो मुसलमान पति को इद्दत की अवधि के बाद भी भरण-पोषण भत्ता देना पड़ेगा। अर्थात इस अधिनियम को शून्य तो नहीं कहा पर इसे निष्प्रभावी कर दिया। उच्चतम न्यायालय का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों के सम्बन्ध में अच्छे फैसलों में से एक है।
अगली बार चर्चा का विषय रहेगा - घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) २००५
आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता
क्षमा करें मगर आपके बोलने की गति बहुत धीमी है।
ReplyDeleteकानून पर आपकी जानकाी के लिये धन्यवाद आगे भी इसी प्रकार जानकारी देते रहे
ReplyDeleteपुरुष बेरोजगार हो जाए और महिला बारोजगार, गुजारा भत्ता किसे मिलना चहिए?
ReplyDeleteअच्छी जानकारी पूर्ण चर्चा. बधाई.
ReplyDeleteअनुराग, हर लोगो की समझने की शक्ति अलग अलग होती है। यदि आप उस विषय के विशेेषज्ञ हैं तो वह उस विषय को ज्यादा ज्लदी समझ सकता है।
ReplyDeleteमैं बोलने की गति केवल इसलिये कम रखता हूं ताकि सब लोग इसे अच्छी तरह से समझ सकें।
इस समय जो विषय है वह कुछ आसान है पर कुछ दिन पहले जब मैं पेटेंट के बारे में पॉडकास्ट कर रहा तो वह कठिन विषय था उसे समझने में समय लगता था। फिर भी तुम्हारे सुझाव पर अगली पर तेज बोलने की कोशिश करूंगा।
संतोष जी आपका सवाल आसान नहीं है और सब धर्मो में इसका जवाब भी शायद अलग हो। इसकी व्याख्या के लिये तो किसी कानूनी विशेषज्ञ की सहायता चाहिये। आपकी प्रोफाईल में लिखा है कि आप इलाहाबाद शहर से हैं। इलाहाबाद तो कानूनी लोगो का गढ़ है, वहां यह सूचना अवश्य मिलेगी।
ReplyDeleteरवी जी के चिट्ठी पर आपने पूछा है कि पॉडकास्ट क्या होता है इसे आप मेरी चिट्ठी ' ब्लॉग पॉर्टमेन्टो शब्द है' की चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं।
बहुत अच्छी व लाभकारी जानकारी दी है।
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