लैंगिक न्याय अर्थात किसी के साथ लिंग के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिये। बहुत से लोग समलैंगिक अधिकारों को भी इसके अन्दर मानते हैं। समलैगिंकों के साथ भेदभाव होता है लेकिन वह इसलिये नहीं कि उनका लिंग क्या है वह इसलिये कि वे अपने लिंग के ही लोगों में रूचि रखते हैं। मेरे विचार से, समलैंगिग अधिकारों को लैंगिक न्याय के अन्दर रखना उचित नहीं है। उनके अधिकारों को अलग से नाम देना, या अल्पसंख्यक (Minority) या जातीय (ethnic) अधिकारों के अन्दर रखना, या Gay rights कहना ठीक होगा।
हम कुछ अन्य श्रेणी के व्यक्तियों के अधिकारों पर भी विचार करें, उदाहरणार्थः
- Trans- Sexual: यह वह लोग हैं जो एक लिंग के होते हैं पर बर्ताव दूसरे लिंग के व्यक्तियों की तरह से करते हैं;
- Trans gendered: लिंग परिवर्तित: यह वह व्यक्ति हैं जो आपरेशन करा कर अपना लिंग परिवर्तित करवा लेते हैं। इसमें सबसे चर्चित व्यक्ति रहे रीनी रिचर्डस्। ये पुरुष थे और आपरेशन करा कर महिला बन गये, पर उन्हें महिलाओं की टेनिस प्रतियोगिता में कभी भी खेलने नहीं दिया गया। उन्हें कुछ सम्मान तब मिला जब वे मार्टीना नवरोतिलोवा की कोच बनीं। मैंने इस तरह के लोगों के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री कि चिट्ठी पर लिखा है;
- Inter-Sex बीच के: लिंग डिजिटल नहीं है। मानव जाति को केवल पुरूष या स्त्री में ही नहीं बांटा जा सकता हैं। हम क्या हैं, कैसे हैं, यह क्रोमोसोम तय करते हैं। यह जोड़े में आते हैं। हम में क्रोमोसोम के २३ जोड़े रहते हैं। हम पुरूष हैं या स्त्री, यह २३वें जोड़े पर निर्भर करता है। महिलाओं में यह दोनों बड़े अर्थात XX होते हैं पुरूषों में एक बड़ा एक छोटा यानि कि XY रहते हैं। अक्सर प्रकृति अजीब खेल खेलती है। कुछ व्यक्तियों में २३वें क्रोमोसोम जोड़े में नहीं होते: कभी यह तीन या केवल एक होते हैं अर्थात XX,Yया XYY, या X, या Y. यह लोग पूर्ण पुरूष या स्त्री तो नहीं कहे जा सकते - शायद बीच के हैं। इसलिए इन्हें Inter-Sex कहा जाता है। संथी सुन्दराजन शायद इसी प्रकार की हैं। इसलिये दोहा एशियाई खेलो में, उनसे रजत पदक वापस ले लिया गया।
अगली बार इस विषय से सम्बंधित संविधान और कानून के प्राविधान एवं अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों की।
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आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice||
वाह, अच्छा लगा यह पढ़कर!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी!!
ReplyDeleteचिट्ठा जगत की काँय-माँय के बाद ऐसे लेख पढ़ना सुकुन देता है.
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