आज चर्चा का विषय है 'वेब क्या होता है'। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
- Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
- Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
- Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।
ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'इंटरनेट क्या होता है' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।
मैंने अपनी चिट्ठी टिम बरनस् ली पर बताया था कि १९८० के दशक में, टिम ने यूरोपियन नाभकीय लेब्रोटरी जो सर्न (CERN) के नाम से जानी जाती है, में काम करना शुरू किया। । वहां हर तरह के कंप्यूटर थे जिन पर अलग अलग के फॉरमैट पर सूचना रखी जाती थी। टिम का मुख्य काम था कि सूचनाये एक कंप्यूटर से दूसरे पर आसानी से ले जायीं जा सकें। यह करते हुऐ उन्हे लगा कि क्या सारी सूचनाओं को इस तरह से पिरोया जा सकता है कि वे एक जगह ही लगें। बस इसी का हल सोचते, सोचते उन्होने वेब को अविष्कार कर दिया और दुनिया का पहला वेब पेज ६अगस्त १९९१ को सर्न में बना।
इस तकनीक में उन्होंने हाईपर टेकस्ट मार्कअप भाषा (एच.टी.एम.एल.) {Hyper Text Markup Language (HTML)} और हाईपर टेकस्ट ट्रान्सफर प्रोटोकोल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} का प्रयोग किया।
- एच.टी.एम.एल. कम्प्यूटर की एक भाषा है जिसके द्वारा सूचना प्रदर्शित की जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि किसी अन्य सूचना को उससे लिंक किया जा सकता है। सारी सूचनायें किसी न किसी वेब-साइट या कम्प्यूटर पर होती हैं जिसका अपना पता होता है जिसे यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (यू.आर.एल.) {Uniform Resource Locator (URL)} कहते हैं। एच.टी.एम.एल. में लिखे किसी पेज को दूसरे पेज में संदर्भित करने के लिये उसके यू.आर.एल. उस पेज में डालना (embed करना) होता है। यह लिंक किसी भी वेब पेज में एक खास तरह से, अक्सर नीले रंग से या फिर नीचे लाईन खिंची तरह से दिखायी पड़ती है। माऊस को किसी भी लिंक पर ले जाने पर करसर का स्वरूप बदल जाता है।
- आप लिंक पर चटका लगा कर संदर्भित पेज पर पहुंच सकते हैं। सूचना का इस तरह से प्राप्त करना या भेजना जिस तकनीक या प्रोटोकॉल के अन्तरगत होता है उसे हाईपर टेक्सट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} हाइपरटेक्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल (H.T.T.P.) कहा जाता है।
सारे वेब पेज, एक तरह से जुड़े हैं। दुनिया भर में वेब पेजों का जाल बिछा है। इसीलिये इस तकनीक का नाम विश्व व्यापी वेब {World Wide Web (www)} या केवल वेब (web) कहा जाता है। वेब पेज के पहले अक्सर http या फिर www लिखा होता है जो यह दर्शाता है। हांलाकि यह अब इतना सामान्य हो गया है कि इसके लिखने की जरूरत नहीं है।
टिम ने एच.टी.एम.एल. भाषा या फिर एच.टी..टी.पी. का आविष्कार नहीं किया। उसने इन सब तकनीकों को जोड़कर सूचना भेजने और प्राप्त करने का तरीका निकाला। यह तब हुआ जब टिम सर्न में काम कर रहे थे। यह सर्न की बौद्घिक संपदा थी। सर्न ने टिम के कहने पर ,३० अप्रैल १९९३ को इस तकनीक को मुक्त कर दिया। अब यह न केवल मुफ्त में बल्कि मुक्त रूप से उपलब्ध है। इसके लिए किसी को भी फीस न तो सर्न को न ही किसी और को देनी पड़ती है।
इण्टरनेट और वेब में कुछ अंतर है, इण्टरनेट दुनिया भर के कम्प्यूटरों का जाल है जो एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। वेब संवाद करने का खास तरीका है।
सर्न के द्वारा वेब तकनीक को मुफ्त और मुक्त तरीके से उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा फायदा हुआ कि यह सूचना भेजने तथा सूचना प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका हो गया। यह इतना महत्वपूर्ण है कि अक्सर लोग इंटरनेट और वेब को एक दूसरे का पर्यायवाची समझते हैं। यह बात किसी सटैंडर्ड या फॉरमैट को मुक्त रूप से उपलब्ध कराने के महत्व को समझाती है।
ओपेन फॉरमैट, ओपेन सटैंडर्ड कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसका एक और कारण की चर्चा मैंने अपनी चिट्ठी, पापा क्या आप उलझन में हैं, पर भी किया है।
अंतरजाल की मायानगरी में
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बहुत ज्ञानवर्धन हुआ । धन्यवाद
ReplyDeleteविस्तार से बताने का शुक्रिया।
ReplyDeleteमूलभूत जानकारी..अंटी में बाँध ली..
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी भाई. शुक्रिया.
ReplyDeleteसरल भाषा में आप ने बहुत अच्छा परिचय दिया है. शुक्रिया -- शास्त्री
ReplyDeleteहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??