'उन्मुक्त जी आप क्या मजाक कर रहें हैं। सबके मित्र अलग अलग हैं फिर वह सबके लिये एक कैसे हो सकता है।'लेकिन ऐसा ही है क्योंकि सबसे अच्छी मित्र होती हैं - पुस्तकें।
कुछ समय पहले हिन्दी चिट्ठाजगत में, एक विचार आया कि चिट्ठाकार बन्धु अपनी पढ़ी पुस्तकों की समीक्षा लिखें। यह बात आगे नहीं चल पायी। अच्छी पुस्तकों का नाम लिखना तो आसान है पर उसकी समीक्षा लिखने के लिये समय चाहिये। मैं कुछ समय से पुस्तकों के बारे में लिखता चल रहा हूं और आगे भी लिखने की सोचता हूं। मुझे लगा कि क्यों न मैं जब पुस्तक समीक्षा लिखूं तो उसको एक श्रंखला का रूप दे दूं। सवाल उठा कि इस श्रंखला का क्या नाम दूं।
कुछ सोचने के बात याद आया कि इस श्रंखला के लिये प्रत्यक्षा जी ने एक नाम सुझाया था क्यों न वही नाम दे दूं। मैं वह नाम भूल गया। मैंने उनसे नाम के बारे में पूछा तो उन्होने 'किताबी कोना' बताया। मैं, इस श्रंखला का यही नाम रखता हूं। प्रत्यक्षा जी को इसके प्रयोग की अनुमति देने के लिये धन्यवाद।
क्या ऐसा कोई तरीका हो सकता है कि हम कोई कोड हो या टैग हो जो हम पुस्तक समीक्षा की चिट्ठी पर डालें ताकि यदि कभी उस शब्द से खोजे तो सारी चिट्ठियां तिथि से खोजने में मिल जांय – जैसे शायद अनुगूंज में होता है। यह एक तरह का असीमित अनुगूंज। इस तरह की बात जीवनी के बारे में भी हो सके तो और भी अच्छा है।
मैं कंप्यूटर तकनीक से वाकिफ नहीं जानता हूं। शायद कोई और इसे बेहतर रूप दे सके पर मैं जब ही किसी प्रिय पुस्तक की समीक्षा करूंगा तब उसे इसी श्रंखला के अन्दर करूंगा।
मैंने कुछ चिट्ठियों में अपनी प्रिय पुस्तकों के बारे में बताया है हालांकि वे चिट्ठियां किसी और संदर्भ में लिखी गयी थीं। मैंने जिन चिट्ठियों में पुस्तकों के बारे में लिखा है उनका लिंक यह रहा है और यह पुराने से नये की तरफ है।
किताबी कोना
- मार्टिन गार्डनर
- On Balance
- एक अनमोल तोहफ़ा
- मास्टर और मास्टरनियों को मेरा सलाम
- व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी
- Love means not ever having to say you're sorry
- You’re Too Kind – A Brief History of Flattery
- यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है
- Everything you desire – Five Point Someone
- अस्सी दिन में दुनिया की सैर
- आंकड़े गलत बताते हैं
- क्या मदर टेरेसा अच्छी अभिनेत्री थीं
- बटर चिकन इन लुधियाना
- बचपन की प्रिय पुस्तकें
- कॉन-टिकी
- क्या आप के पास सोचने नहीं है
मेरा नया पॉडकास्ट 'लिंकिंग - क्या यह गलत है' सुने। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप, Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में; Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।
सांकेतित शब्द
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बहुत अच्छा लगा आपका किताबी कोना देखकर. पुस्तक समीक्षा के लिए किताब पढ़कर लिखना ही काफी नही है , उस पर चिंतन करके लिखना ज़रूरी है यह सोचकर बस दूसरे दोस्त 'समय' का इंतज़ार है. तब तक आपके किताबी कोने में आकर समय बिताएँगें.
ReplyDeleteआपका कथन/सुझाव सराहनीय है. इसको जरुर आगे बढ़ना चाहिए.
ReplyDeleteएक जरूरी एवं सराहनीय आरंभ !!!
ReplyDeleteआपके द्वारा की गईं पुस्तक चर्चाएं वाकई रोचक होती हैं।
ReplyDeleteमैं भी अपने चिट्ठे पर पुस्तकों पर लिखी गई पोस्ट्स को "पुस्तक चर्चा" टैग देकर अलग रखता हूं।
मुझे "पुस्तक समीक्षा" से ज्यादा बेहतर इसे "पुस्तक चर्चा" कहना लगता है...भई समीक्षा तो समीक्षकों का काम है :)
यह widget अच्छा है....पहले मैं गूगल ट्रांसलेटर अलग से खोल कर वहाँ पर हिन्दी में टाइप कर के फ़िर यहाँ कॉपी-पेस्ट करता था....अब वह नहीं करना पड़ेगा...
ReplyDeleteकिंतु एक दिक्कत है....आपका कोई भी चिट्ठा खोलो तो उसमे सबसे पहले यह नीचे वाले टिप्पणी widget में आ जाता है....यह थोड़ा असुविधाजनक होता है...
अरे!!! मुझे लगा यहीं से टिप्पणी पोस्ट हो जायेगी...यह तो अभी भी कॉपी-पेस्ट करना पड़ेगा :(
परन्तु हाँ, कम से कम मुझे google transliterator नहीं प्रयोग करना पड़ेगा...
ReplyDeleteअच्छी शुरुआत है। वैसे इसी सिलसिले में प्रियंकरजी ने नाम सुझाया था- किताबनामा। :)
ReplyDeleteअच्छा सुण्झाव है पर एक बाट कहनी है आफ जब अंग्रेजी पुस्तक की चर्चा करें तो उसके मुख्य बातों को अंग्रेजी के साथ हिन्दी में भी लिखें, तभी अपने पल्ले पड़ेगी, वरना हिन्दी में लिखा तो पढ़ लेंगे और..... :)
ReplyDeleteएक बात और किताबें भले ही आपकी-मेरी मित्र हों, हमारी घरवाली ने उन्हें अपनी सौतन ही मानती हैं। :)
बहुत अच्छा लगा किताबी कोना देखकर, नाम भी अच्छा है |
ReplyDeleteजो आपने सुझाव माँगा है, उसका जवाब टैग ही है |
देखिये जैसे मेरी सारी कवितायें Poetry के अंतर्गत आती हैं | Poetry को चटका लगाया कि सारी कवितायें datewise खुल जाती हैं | अगर उसके अन्दर जाना हुआ तो इंग्लिश या हिन्दी पे चटका लगाने से respective भाषा की कवितायें देख सकते हैं.
प्रत्यक्षा जी ने चिर परिचित सा नाम सुझाया ,आपने अनुमोदित किया ,कक्कू जी ने पुनरानुमोदित..अच्छा है मगर आपको नही लगता की ये कुछ पौराणिक सा है, अंतर्जाल के युग मे पुराने का मोह कितना सुखद है !पुरान्मित्वेव साधु सर्वम...प्रतीक्षा है आपकी अगली पुस्तक समीक्षा की .
ReplyDeleteहिन्दी चिटठों की भीड में ऐसी जगहें कम ही हैं, जहां किताबों के बारे में पढने को मिलता है। अगर ऐसे ब्लागों की विहंगम पडताल की जाए, तो निश्चित रूप से आपका ब्लाग सिरमौर बनेगा। पुस्तक चर्चा से जुडा आपका यह लेख भी जबरदस्त है। आशा है जल्दी ही हमें किसी नयी पुस्तक की समीक्षा पढने को मिलेगी। अग्रिम शुभकामनाएं।
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