वियाना हवाई अड्डे पर मुझे एक भारतीय सज्जन मिले। उनके फोन में भी यही मुश्किल थी। बहुत झुंझलाहट आयी।
सामान ज्यादा होने के कारण , मैं अपना लैपटॉप नहीं ले गया था। मेरा प्रस्तुतीकरण पहले ही भेज दिया था।
घूमते-घूमते, मेरी नजर एक भारतीय युवक पर पड़ी। उसके पास लैपटॉप था। वह कम्प्यूटर इंजीनियर था और अपनी कंपनी की तरफ से पोलैण्ड जा रहा था। उसे, वहां पर, बैंक की क्रेडिट कार्ड सर्विस का कंप्यूटरीकरण करना था। उसके फोन के साथ भी यही मुश्किल थी। मैंने उससे पूछा कि क्या उसका लैपटॉप काम कर रहा है। उसने कहा हां। मैंने उससे पूछा कि क्या मैं उसके लैपटॉप से अपनी पत्नी को ई-मेल भेज सकता हूं। उसने मना कर दिया। उसका कहना था,
'यह कम्पनी का है। इससे प्राइवेट ई-मेल नहीं जा सकती है। आप पब्लिक बूथ से फोन कर लीजिये।'मैं नहीं जानता था कि वह बहाना कर रहा था या सच में ऎसा था। यदि यह सच था तो वह कंपनी, मैनेजमेंट के साधारण सिद्घान्त को नहीं समझती। क्या मालुम वह यह सोचता हो कि मैं ई-मेल से बम ब्लास्ट करने की बात सोचता हूं और इसके लिये वह पकड़ जायगा :-)
मेरे पास यूरो थे पर सिक्के नहीं। मैंने कभी पब्लिक बूथ से फोन नहीं किया था। भाषा की मुश्किल अपनी जगह थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। जीवन में मैंने, अपने आप को इतना असहाय, कभी नहीं पाया।
बर्लिन पहुंच कर मैंने अपनी पत्नी को ई-मेल से मोबाइल फोन की मुश्किल के बारे में बताया। उसने टेलीफोन वालों से पूछकर निदान भी बताया पर काम नहीं बना। हार कर वहां पर प्रीपेड कार्ड खरीदा। मुझे इसका निदान वियाना में पता चला। इसके लिये Application में जाना पड़ता है। वहां से Network, फिर cell one में जाकर, International चुनना होता है। मैं Setting में जा कर, Network Service में, इसका हल ढूढ़ रहा था। वापस भारत आकर, यह प्रक्रिया पुन: अपनानी पड़ती है। इस बार National चुनकर उचित Network, जो कि Dolphin है, चुनना होता है।
बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन।। बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें।।सांकेतिक शब्द
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मैं कल्पना कर सकता हूं अन्जान जगह पर सम्प्रेषण न कर पाने और सन्देश न भेज पाने की तिलमिलाहट।
ReplyDelete"मैं नहीं जानता कि वह बहाना कर रहा था या सच में ऎसा है। यदि यह सच में हैं तो वह कंपनी, मैनेजमेंट के साधारण सिद्घान्त को नहीं समझती "
ReplyDeleteमैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि वह सही कह रहा था, मेरी कंपनी का लेपटाप भी मैं प्राईवेट ईमेल के लिये उपयोग नहीं कर सकता हूँ। यही कटु सच है।
संदेशा ना भेज पाने की झुंझलाहट दखदाई होती है।
यह तो बहुत कष्टदायी है...मैं तो अपने कंपनी लैपटॉप से सारे पर्सनल काम करता हूँ...ऐसा न हो तो मैं तो कंपनी को लैपटॉप वापस कर दूँगा... यह टिप्पणी भी मैं उसी से कर रहा हूँ :)
ReplyDeleteखैर, फ़ोन ना कर पाने पर बहुत झुंझलाहट होती है, जो मैं समझ सकता हूँ..
उन्मुक्त जी ,यात्रा वृत्तांत रोचक ,रोमान्च्पूर्ण है ;आपकी हालत से इत्तेफाक किया जा सकता है. किंतु क्षमा करें इन दिनों आप व्याकरण -वाक्य रचना के प्रति असावधान से हो गए लगते हैं .कृपया आलेख का सम्पादन करें .
ReplyDeleteअरविन्द जी, धन्यवाद। अच्छा लगा कि कोई मेरी चिट्ठियों को इतनी बारीकी से पढ़ता है।
ReplyDeleteमैंने काफी कुछ तो ठीक किया है।
परदेस यात्रा अपने आप में एक बहुत बड़ी शिक्षा दे जाती है ..आपके अनुभव भी सुने ..काश की यात्रियों की सुविधा के लिए बेहतर व्यवस्था की जाएं की जिनसे उनके सम्पर्क विधि में सरलता हो --
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