Thursday, July 24, 2014

पर्यावरण, प्रदूषण, वन, वन्य जीवों एवं जैव विविधता - अधिनियम एवं समबन्ध

इस चिट्ठी में, संसद के द्वारा पर्यावरण, प्रदूषण, वन, वन्य जीवों एवं जैव विविधता पर बनाये गये अधिनियमों में समबन्धों की चर्चा है।

संसद के द्वारा पर्यावरण, प्रदूषण, वन, वन्य जीवों एवं जैव विविधता पर बनाये गये अधिनियम अलग-अलग हैं, पर एक तरीके से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनका सम्बन्ध इस प्रकार है।

१९७४, १९८१ तथा १९७७-अधिनियम
१९७४-अधिनियम केन्द्र एवं राज्य प्रदूषण बोर्ड की स्थापना करती है। १९७४ तथा १९८१-अधिनियम, जैसा कि उनके नाम इंगित करते हैं, जल एवं वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण के लिये लागू किए गए हैं। इन अधिनियमों में जिस बोर्ड का संदर्भ है, वह १९७४ के अधिनियम के अन्तर्गत् स्थापित किया गया है।

१९७४ और १९८१-अधिनियम के अन्तर्गत यह सीमा तय की जा सकती है कि जल एवं वायु  में प्रदूषण करने वाले पदार्थों का कितना प्रतिशत हो सकते हैं।  इन अधिनियमों के, प्रावधानों के उल्लंघन पर (१९७४-अधिनियम के अध्याय-VII की धारा ४१-४८ एवं १९८१ अधिनियम के  अध्याय VI की धारा ३७-४७) दण्ड का प्रावधान है। 


यह अधिनियम  बोर्डों को अनुमति प्रदान करते है कि जल एवं वायु को प्रदूषित किये जाने की दशा में १९७४-अधिनियम की धारा ३३ और १९८१-अधिनियम की धारा २२-क में वे मजिस्ट्रेट से प्रतिबन्धात्मक आदेश प्राप्त कर सकते हैं। 


१९७७ का अधिनियम, १९७४ के अधिनियम के अधीन बोर्डों के कार्य संचालन के लिये कोष बनाने हेतु उपकर (Cess) का प्रावधान करती है।


१९८६-अधिनियम
१९८६ अधिनियम अधिक विस्तृत है और ये पर्यावरण की सुरक्षा एवं सुधार के सम्बन्ध में प्रावधान करती है।   

१९८६ अधिनियम की धारा ३ के अन्तर्गत, केन्द्रीय सरकार, पर्यावरण की सुरक्षा एवं सुधार हेतु आवश्यक उपाय कर सकती है तथा इसके लिये, उद्योगों को प्रतिबंधित करने या उनके संचालन में आवश्यक शर्त भी  अधिरोपित कर सकती है।


१९७४ या १९८१ के अधिनियमों के अन्तर्गत, बोर्ड या सरकार को प्रतिबन्धात्मक आदेश जारी करने की शक्ति प्राप्त नहीं है और उन्हें इस कार्य के लिये मजिस्ट्रेट के समक्ष जाना होता है। लेकिन, १९८६-अधिनियम, की धारा ३ के अन्दर, केन्द्रीय सरकार उचित तथ्यों पर उद्योग को बंद या प्रतिबन्धित करने का निर्देश जारी कर सकती है और इसके प्रावधानों और इसके अधीन निर्मित नियमों के उल्लंघन पर, धारा १५ से १७ के अन्दर दण्ड का प्रावधान है।

१९८६-अधिनियम के अधीन प्रदत्त शक्तियों के अनुपालन में, कुछ विशिष्ट उद्योग हेतु केन्द्रीय सरकार ने निम्न नियम बनाये हैं :

  1. बैटरियों (प्रबंधन और संचालन) नियम, २००१ {The Batteries (Management and Handling) Rules 2001};
  2.  जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और संचालन) नियम, १९९८ {The Bio-Medical Waste (Management and Handling) Rules 1998};
  3. रासायनिक दुर्घटनाओं (आपातकालीन योजना, तैयारी एवं प्रत्युत्तर) नियम १९९६ {The Chemical Accidents (Emergency Planing, Preparedness and Response) Rules 1996};                 
  4. ई-अपशिष्ट प्रबंधन एवं संचालन नियम २०१० {The E-Waste (Management and Handling) Rules 2010};
  5. खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन और संचालन) नियम, १९८९ {The Hazardous Waste  (Management and Handling) Rules 1989};
  6. खतरनाक रसायन नियम, १९८९ के निर्माण, भंडारन और आयात {The Manufacture, Storage and Import of Hazardous Chemicals Rules 1989};
  7. खतरनाक सूक्ष्म जीव अनुवांशिक अभियांत्रिक जीव या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और संग्रहण नियम १९८९ {The Manufacture, Use Import, Export and Storage of Hazardous Micro-Organism Genetically Engineered Organism or Cells Rules, 1989};
  8. नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और संचालन) नियम, २००० {The Municipal Solid Wastes  (Management & Handling)         Rules,2000};
  9. ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, २००० {The Noise     Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000};
  10. ओजोन क्षमकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियम, २००० {The Ozone Depleting Substances (Regulation and Control) Rules, 2000};
  11. प्लास्टिक अपशिष्ट (प्रबंधन एवं संचालन) २०११ (The Plastics Waste Management and Handling Rules 2011)।

१९९१-अधिनियम
खतरनाक उद्योगों के बढ़ते, दुर्घटनाओं की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं। यह दुर्घटनाएं, उन प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मकार को ही नहीं, पर जन साधारण को भी खतरे में डालती हैं। १९९१-अधिनियम, इस तरह के उद्यमों से प्रभावित जनसाधारण के लोगों को, बीमा प्रदान करता है।

इस अधिनियम के अन्तर्गत दायित्व सीमित है और  इसका निराकरण कलेक्टर द्वारा पूर्ण दायित्व के सिद्धान्त पर किया जाता है। लेकिन इसमें मिला अनुतोष, प्रभावित व्यक्ति को अधिक प्रतिकर का दावा करने हेतु, सक्षम न्यायालय जाने से नहीं रोकता है।


२०१०-अधिनियम
पहले राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण अधिनियम, १९९५; एवं राष्ट्रीय पर्यावरण अपील प्राधिकरण अधिनियम, १९९७ नाम से दो अधिनियम थे। २०१०-अधिनियम के द्वारा इन्हें प्रतिस्थापित कर दिया गया है।

२०१०-अधिनियम के द्वारा अधिकरण की स्थापना की गयी है। इसमें पर्यावरण सुरक्षा, वनों के संरक्षण, अन्य प्राकृतिक संसाधनों (जिसमें पर्यावरण से संबंधित अन्य विधिक अधिकार लागू करना सम्मलित है) प्रकरणों के निराकरण एवं व्यक्तियों और सम्पत्ति को हुई क्षति के अनुतोष एवं प्रतिकर प्रदान करने हेतु मुद्दों  का उपचार प्राप्त किया जा सकता है। इसकी निम्न विशेषता है:

  • जहां पर्यावरण के परिप्रेक्ष्य में सारभूत प्रश्न अन्तर्निहित हैं  या पर्यावरण से जुड़े किसी विधिक अधिकारों को लागू करने की बात है वहां अधिकरण को दीवानी के समस्त मामलों के निराकरण का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
  • यह 'विधायी प्रतिक्रिया' के शीर्षक में बताये अधिनियम के अन्दर प्रदूषण एवं पर्यावरण की क्षति पर हर्जाना देने को सक्षम है।
  • इसे उपरोक्त अधिनियमों के अधीन पारित आदेशों  के साथ जैव विविधता २००२ और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम १९८०) के विरूद्घ अपीलीय क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है।
  • यह अपने आदेशों को सिविल न्यायालयों द्वारा पारित डिक्रियों की तरह निष्पादन कर सकती है।
  • अधिकरण के आदेश से पीड़ित व्यक्ति उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील कर सकता है।
अगली बार हम लोग, कुछ भूले हुए उपचारों के बारे में बात करेंगें।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें। 

हरित पथ ही राजपथ है     
भूमिका।। विश्व पर्यावरण दिवस ५ जून को क्यों मनाया जाता है।। टिकाऊ विकास और जनहित याचिकाएं क्या होती हैं।। एहतियाती सिद्घांत की मुख्य बातें क्या होती हैं - वेल्लौर केस।। नुकसान की भरपाई, प्रदूषक पर - एन्वायरो एक्शन केस।। राज्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणकर्ता है।। वन, वृक्ष, और जैव विविधता का संरक्षण - आवश्यक।। जोखिम गतिविधि - पीड़ित मुआवजा का अधिकारी।। पर्यावरण, न्यायालय और सिद्धान्त।। पर्यावरण एवं वन्य जीवों पर अधिनियम।। पर्यावरण, प्रदूषण, वन, वन्य जीवों एवं जैव विविधता - अधिनियम एवं समबन्ध।।

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