Wednesday, November 08, 2006

निज़ाम के गहने और जैकब हीरा

एक बार हैदराबाद ट्रिप पर मालुम चला कि सलारजंग संग्रहालय में निज़ाम के गहनों की प्रदर्शनी चल रही है। बस, मैं और शुभा भी देखने पहुंच गए। गहने तो इतने भारी, तड़क भड़क वाले थे कि मन में कुछ अनिच्छा सी हो गयी। मैंने कहा
‘क्या इन्हें कोई भी पहन सकता है’
बगल में एक विवाहित महिला अपने परिवार के साथ थी मुझे और शुभा को देख कर कुछ मुस्करायी और बोली,
‘आप लोगों को देखकर लगता है कि कोई आप तो किसी प्रकार के गहने नहीं पहन सकते।‘
मैं न तो कोई अंगूठी और न ही कफ-लिंक वगैरह पहनता हूं। यही हाल शुभा का है - वह तो फैशन से बहुत दूर रहती है। उसे गहनो से लगाव नहीं। यहां तक कि न चूड़ी, न बिन्दी न सिन्दूर।

निज़ाम के गहनों की प्रदर्शनी में जैकब हीरा भी रखा था। यह रोचक लगा - कुछ इसके बारे में।

जैकब हीरा सवा सौ साल पहले अफ्रीका की किसी खान में कच्चे रूप में मिला था। वहां से इसे एक व्यवसाय संघ द्वारा ऐमस्टरडैम लाया गया और कटवा कर इसे नया रूप दिया गया। कहते हैं कि, यह दुनियां के सबसे बड़े हीरे में से एक है इसका वजन कोई १८४.७५ कैरेट (३६.९ ग्राम) है। यदि आप इसकी तुलना कोहिनूर हीरे से करें तो पायेंगे कि कोहिनूर हीरे का वजन पहले लगभग १८६.०६ कैरेट (३७.२ ग्राम) था। अंग्रेजी हुकूमत ने कोहिनूर हीरे की चमक बढ़ाने के लिये इसे तरशवाया और अब इसका वजन १०६.०६ कैरेट (२१.६ ग्राम) हो गया है।

जैकब हीरे को भारत लाने का श्रेय अलैक्जेंडर मालकन जैकब को जाता है। जैकब रहस्यमयी व्यक्ति था पर भारतीय राजाओं के विश्वास पात्र था। कहते हैं कि वह इटली में एक रोमन कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ था। किपलिंग के उपन्यास किम में ब्रितानी गुप्त सेवा के लगन साहब का व्यक्तित्व जैकब पर आधारित है।

१८९० में जैकब ने, इस हीरे को बेचने की बात, छठे निज़ाम महबू‍ब अली पाशा से की। उस समय इसका दाम १ करोड़ २० लाख रूपये आंका गया पर बात बनी ४६ लाख में। निजाम ने २० लाख रूपये उसे हिन्दुस्तान में लाने के लिये दिये, फिर लेने से मना कर दिया क्योंकि British Resident ने इस पर आपत्ति कर दी। निज़ाम ने जब पैसे वापस मांगे तो जैकब उसे वापस नहीं कर पाया। इस पर कलकत्ता हाईकोर्ट में मुकदमा चला और सुलह के बाद यह हीरा निज़ाम को मिल गया।

महबूब अली पाशा ने जैकब हीरे पर कोई खास ध्यान नहीं दिया और इसे भी अन्य हीरों की तरह अपने संग्रह में यूं ही रखे रखा। उनके सुपुत्र और अंतिम निज़ाम उस्मान अली खान को यह उनके पिता की मृत्यु के कई सालों बाद में उनकी चप्पल के अगले हिस्से में मिला। उन्होने अपने जीवन में इसका प्रयोग पेपरवेट की तरह किया।

इस हीरे का दाम इस समय ४०० कड़ोड़ रुपये है। प्रर्दशनी के बाहर इस हीरे के नकल का क्रिस्टल ४०० रुपये में बिक रहा था। मैंने इसे खरीद लिया। कम से कम इसे तो मैं पेपरवेट की तरह प्रयोग कर सकता हूं।

मुन्ने की मां को गहनो से लगाव न रहने के कारण मुझे इस तरह के खर्चे नहीं करने पड़ते। इस कारण मेरे पैसे तो बचते हैं पर कभी कभी इस तरह का उपहार न दे पाने की टीस रहती है।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

3 comments:

  1. हम भी आज अपने पुरखों के जूते चप्पल तलाशते हैं, क्या पता मुझे भी कोई छोटा मोटा हीरा मिल जाये ;)

    ज्ञान वर्धक लेख लिखा है आपने - बधाई।

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  2. वाह भाई उन्मुक्त जी, बहुत बेहतरीन जानकारी दी. मजा आया पढ़ कर.

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  3. 400 करोड़ का पेपरवेट. कुछ ज्यादा ही वेट नहीं हो गया. इस बारे में सुन रखा था आज आपने विश्वास दिला दिया.
    नकली हीरे की एक नजदीक की फोटो भी रखे. देखे तो सही हीरा आखिर दिखता कैसा है.

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