Thursday, November 16, 2006

On Balance

मैंने अपनी पोस्ट 'मां को दिल की बात कैसे पता चली' पर यह जिक्र किया था कि मैं न्यायमूर्ति लीला सेठ की आत्म कथा On Balance के बारे में ज्लदी ही चर्चा करूंगा। यह रही वह चर्चा।
वकालत का पेशा पुरुष प्रधान है। इस पेशे में महिलाओं के लिये पग-पग पर मुश्किलें हैं। इस क्षेत्र में ऊंचा उठना, या जज बनना, किसी भी महिला के लिये मुश्किल की बात है। यदि कोई महिला अच्छा वकील, या जज बन बन पाती है तो यह बहुत सम्मान की बात है और उसके आत्मविश्वास की द्योतक है। न्यायमूर्ति लीला सेठ ने वकालत पटना में शुरु की। पटना उच्च न्यायालय में कितनी मुश्किलें थीं, इसका अन्दाजा आप उनके इस बात से लगा सकते हैं,
'There was, unfortunately, no proper women’s toilet. A musty storeroom, a good distance away, had been allotted for this purpose. It was kept locked and the key was with Dharamshila Lal. After my arrival, it was decided that the key should be kept with the librarian, Khadim, a gentle and quiet man... The most awful part of it all was that this room was infested with bats. I was just terrified to go inside. Having heard stories that bats clung to your hair, I used to cover my head with the end of my sari, clinging to it while using the toilet. The room was dark and full of old, discarded files and every time the door squeaked open, the bats started flying about in great agitation.'
न्यायमूर्ति लीला सेठ जब इस बारे में एक अन्य महिला वकील सुश्री धर्मशीला से बात की तो उसने आश्चर्यचकित हो कर कहा कि,
‘How do you intend to practice and do well in Bihar if you are afraid of bats?'
शायद यह बात सब जगह सच हो। अपने प्रतिद्वन्दी के लिये अफ़वाह फैला देना तो समय बिताने का सबसे प्रिय तरीका है - वकील इससे अलग नहीं हैं। न्यायमूर्ति लीला सेठ इसका जिक्र इन शब्दों में करती हैं,
'It made me unhappy when I realized that however hard I worked, the younger male lawyers kept spreading the rumour that I was not serious, and that, being a woman, I could not run around alike them and get things done. Further, I was a fashionable and frivolous woman who, because she had no need for money, would quit a case without notice.'

यह हाल जब पटना उच्च न्यायालय का है तो आप समझ सकते हैं कि निचली अदालतों का क्या हाल होगा। On Balance पुस्तक सरल भाषा में लिखी है और पढ़ने योग्य है। 

मैं इस किताब के बारे में यह कहना चाहता था कि यह किताब क्यों न अच्छी लिखी हो, आखिरकार न्यायमूर्ति लीला सेठ, विक्रम सेठ की मां हैं: अच्छा तो लिखेंगी ही। पर मैंने इसे लिखा नहीं, क्योंकि इस पर मुझको यह किस्सा याद आता है। बीसवीं शताब्दी में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में आईज़ेक एसीमोव (नीचे नोट-१ देखें) का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने जितना इस क्षेत्र में कार्य किया उतना किसी और ने नहीं। उनके द्वारा विज्ञान पर कल्पित ( fiction) या अकल्पित (non-fiction) पुस्तकें पढ़ने योग्य हैं। 

आईज़ेक एसीमोव के माता पिता यहूदी थे और रूस में रहते थे। आईज़ेक का जन्म रूस में १९२० में हुआ था। इनके माता पिता अच्छे जीवन की तलाश में १९२३ में अमेरिका आ गये। इन दोनो को अंग्रेजी नहीं आती थी। ये लोग रूस में यह खाते-पीते परिवार के थे पर अमेरिका में सब कुछ नये सिरे से करना पड़ा - काफी मुश्किलों का सामना किया। आईज़ेक के पिता छोटे-मोटे काम करते थे और इनकी मां मिठाई (candy) का स्टोर चलाती थीं। वृद्धावस्था में उन्होंने यह कार्य करना छोड़ दिया और सोचा कि क्यों न अंग्रेजी सीख ली जाय। वे बहुत तेजी से अंग्रेजी सीखने लगीं। इस पर उनके अध्यापक ने पूंछा,

’क्या वे आईज़ेक एसीमोव की रिश्तेदार हैं ?‘
उन्होंने इसका उत्तर हां में दिया और बताया,
'मैं उसकी की मां हूं।‘
इस पर अध्यापक ने कहा,
‘कोई आश्चर्य नहीं कि आप अंग्रेजी सीखने में इतनी तेज हैं।‘
इस पर आईज़ेक एसीमोव की मां ने अध्यापक की आंखों में आंखे तरेर कर कहा,
‘आश्चर्य नहीं, कि आईज़ेक एसीमोव की अंग्रेजी इतनी अच्छी है।'
न्यायमूर्ति लीला सेठ अच्छा इसलिये नहीं लिखती हैं कि वे विक्रम सेठ की मां हैं पर विक्रम सेठ इसलिये अच्छा लिखते हैं क्योंकि वे न्यायमूर्ति लीला सेठ के पुत्र हैं।

नोट-१: आईजेक एसीमोव मेरे प्रिय लेखकों में से एक हैं। मेरे पास इनकी लगभग सारी किताबें हैं जिन्हे मैंने कम से कम एक बार पढ़ा है। मैं इनके बारे में चर्चा करूंगा - पर यहां केवल इतना ही। शायद चर्चा करने को इतनी बातें हैं कि इनका नम्बर ही नहीं आ पा रहा है।

सांकेतिक शब्द
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3 comments:

  1. Anonymous8:06 am

    पढकर अच्‍छा लगा। अगली कडी का इन्‍तजार रहेगा।

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  2. रोचक विवरण! ऐसी ही एक किताब ए एन रॉय की पढ़ी थी - बिहार में पुलिस और न्याय व्यवस्था के बारे में उनके अनुभवों पर. वह किताब भी ऐसे ही एक्सट्रीम अनुभवों से भरा हुआ था.

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  3. "न्यायमूर्ति लीला सेठ अच्छा इसलिये नहीं लिखती हैं कि वे विक्रम सेठ की मां हैं पर विक्रम सेठ इसलिये अच्छा लिखते हैं क्योंकि वे न्यायमूर्ति लीला सेठ के पुत्र हैं।"

    क्या यह टिप्पणी गैरजरूरी नहीं?जाती-तौर पर मां-बेटा दोनों ही लेखक हो सकते हैं.

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