Thursday, July 12, 2007

यौन शिक्षा

यह चिट्ठी यौन शिज्ञा के पक्ष में है।
ऐडस् के बारे में जगरुक करती फिल्म 'फिर मेलेंगे' में, सलमान खान और शेल्पा शैटी
यह लगभग २० साल पहले की बात है। मेरा बेटा मुन्ना स्कूल में पढ़ता था। उसका सबसे अच्छा दोस्त, एक मुस्लमान लड़का, अब्दुल (नाम बदल दिया है) हुआ करता था। उस समय हमारे कस्बे में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया - गोली और बम भी चले। घर में बहस के दौरान मैंने गोली और बम चलाने वालों के खिलाफ बात की। मुन्ने ने कहा,
'पापा तुमको यह देखना चाहिये कि गलती किसकी है, किसने बवाल शुरू किया। तुम तो बस गोली चलाने वालों की आलोचना कर रहे हो। यह तो देखो गलती किसकी है।'
मेरा जवाब था,
'गलती किसकी है, कैसे हुई - यह इसलिये जरूरी है कि आगे इस तरह का हादसा न हो पाये पर इस समय सबसे महत्वपूर्ण बात गोली और बम का रोका जाना। गोली और बम चलाने वाले यह नहीं देखते कि वे किस पर चला रहें हैं। गलती कोई करता है गोली और बम किसी और को लगती है। हो सकता है कि अगली गोली तुम्हारे मित्र अब्दुल को लगे तो तुम क्या कहोगे या तुम को लगे तो अब्दुल क्या कहेगा।'
मुन्ने ने प्रतिवाद नहीं किया। बाद में, वह मेरी बात का समर्थन करने लगा। आप यह सोच रहें होंगे कि इस घटना का इस शीर्षक से क्या संबन्ध है। बताता हूं धैर्य रखिये।

यौन शिक्षा के बारे में बात करने से पहले, दो शब्द तसलीमा नसरीन के बारे में।

तसलीमा नसरीन एक जानी मानी शख्सियत हैं। मैं उन्हें नहीं जनता हूं, न ही कभी मिलने का मौका मिला है। समयाभाव के कारण, मैं उनके द्वारा लिखा कोई लेख या पुस्तक अभी तक नहीं पढ़ पाया हूं - समय मिलते ही जरूर पढ़ना चाहूंगा। अब चलते हैं यौन शिक्षा पर और चर्चा शुरु करते हैं शोभा नरायन के टाईम पत्रिका के ११ जून २००७ के अंक में निकले 'द पेरेंट ट्रैप' नाम के लेख से।


शोभा नरायन का चित्र उनकी वेब साइट से
शोभा नरायन एक लेखिका हैं। उन्होनें 'मानसून डायरी' नामक एक चर्चित पुस्तक लिखी है। वे दो बेटियों की मां हैं। टाईम पत्रिका में लिखे लेख में, वे इस बात पर चिन्ता प्रगट कर रही हैं कि वे कब और किस तरह से अपनी बेटियों को समाज पल रहे यौन भक्षक भेड़ियों के बारे में बतायें। वे इसमें भारत सरकार के द्वारा १३ राज्यों मे किये सर्वेक्षण के नतीजों के बारे में बता रहीं हैं जिसमें यह बताया गया है कि भारत में हर दो बच्चों में से एक बच्चा यौन प्रताणना का शिकार है। वे उसमें उस सर्वेक्षण के बारे में भी बताती हैं जिसमें यह पाया गया है कि अधिकतर बलात्कार तथा यौन प्रताणना जान पहचान के व्यक्ति के द्वारा ही की जाती है। इस विषय पर राय कायम करने के पहले इस लेख को भी पढ़ें।

यौन शिक्षा का विरोध करने वाले, इसका अर्थ केवल संभोग, या फिर जनन समझते हैं। यह ठीक नहीं है।

संभोग, जनन - यौन शिक्षा का एक विषय है पर यौन शिक्षा में उसके अतिरिक्त बहुत कुछ और है जो कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरणार्थ, यौवनारंभ (age of puberty) के समय लड़के और लड़कियों में न केवल शारिरिक, पर भावनात्मक परिवर्तन भी होते हैं। लड़के अक्सर जिद्दी हो जाते हैं, बात नहीं सुनते। कई लड़कियों को रजोधर्म (menstruation) के शुरु होते समय बदन में ऐंठन (cramp), जीवन में उदासी, खिन्नता, निराशा (depression) होने लगती है। कईयों को यह नहीं भी होता है। यह प्राकृतिक है। यह न केवल लड़के और लड़कियों को समझना चाहिये पर उनके घरवालों को भी। मैंने केवल एक उदाहरण दिया है, इस तरह का बहुत कुछ यौन शिक्षा के अंदर आता है जिसका संभोग या जनन से कोई सीधा संबन्ध नहीं।

'हमने जानी है जमाने रमती खुशबू' श्रंखला के अन्दर 'यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है' चिट्ठी में मैंने यह बताने का प्रयत्न किया कि कैसे यौन शिक्षा मुझे मिली या कैसे मैंने इसे अगली पीढ़ी को दी। इसके बाद संजय जी ने 'बाल यौन-शोषण पर अन्यथा' नाम की चिट्ठी लिखी। मैंने टिप्पणी की,

' अपने लेख में यौन शोषण और परिवार में यौन उत्पीड़न के बारे में दबी जबान से लिखा है। यह उससे कहीं ज्यादा है जिसे समाज स्वीकार करना चाहता है।
बाल यौन शोषण में अक्सर चरम सीमा पहुंचने के बाद बच्चों की मृत्यु हो जाती है। निठारी में बच्चों की मृत्यु का सबसे संभावित कारण यही है। इसके लिये बड़े जिम्मेवार हैं क्योंकि उन्हें यौन शिक्षा ठीक से मिली नहीं।
यदि कोई अध्यापक विषय को ठीक से न पढ़ा पाये तो गलती अध्यापक की है न कि विषय की।'


मैं इसके बाद संजय जी की चिट्ठी में बतायी गयी पत्रिका अन्यथा पर भी गया, उसके लेख पढ़े। इसमें एक लेख 'यौन शोषण की समस्या और हिन्दी कथा साहित्य' पर है। यह लेख तसलीमा नासरीन की कविता से शुरू होता है।

'मैंने उस दिन रमना में देखा एक लड़का / लड़की खरीद रहा है
मेरी भी वही इच्छा होती है/ एक लड़का खरीद लाऊँ।
पेट गरदन पर गुदगुदी दे कर हसाऊं/ घर ले आऊँ और हील वाली जूती से/
ताबड़तोड़ कर पीट कर छोड़ दू/ जा साले!
.............................................
मेरी बड़ी इच्छा होती है लड़का खरीदने की
जवान जवान लड़के/ छाती पर उगे घने बाल
उन्हें खरीदकर पूरे तरह से रौंद कर
सिकुड़ अंडकोश पर जोर से लात मार कर कहूं/ भाग स्याले।'
(तसलीमा नसरीन की कवितायें 'उल्टा लेख' पृ. ७६)

मैंने कई बार सोचा कि इस कविता को अपने चिट्ठे पर न लिखूं और केवल लिंक दे दूं पर शायद इसको प्रकाशित किये बिना मेरी बात पूरी न हो पाती इसलिये बहुत हिम्मत कर इसे प्रकाशित किया है। इसके लिये चिट्ठाकार बन्धु माफ करेंगे।

मैं नहीं जानता कि यह कविता जानी मानी शख्सियत तसलीमा जी की कविता है या किसी और की। मैं यह भी नहीं जानता कि यह किसी कविता का भाग है कि पूरी कविता। मैं नहीं कह सकता कि यह किस संदर्भ में लिखी गयी है। मैं आशा करता हूं कि इस कविता का वह अर्थ नहीं होगा को कि उद्धरित भाग से लग रहा है।

कहा जाता है कि कवितायें, चित्रकारी, कल्पना शक्ति, गुमान, fantasy, अवचेतन मस्तिक्ष की दबी इच्छायें होती हैं। मेरे विचार से यौन शिक्षा की एक महत्वपूर्ण भूमिका यह भी है कि लोग यह भी समझ पावें कि,

  • महिला या बालिका शोषण का हल, बालक शोषण नहीं है। बालक भी, उतने ही यौन शोषण के शिकार होते हैं जितना कि बालिकायें या फिर महिलायें।
  • बच्चों को ही नहीं पर बड़ो को भी यौन शिक्षा की जरूरत है। हां पहले ठीक से मिली हो तो शायद फिर जरूरत पड़े।

बस इसलिये मुझे २० साल पहले की घटना याद आ गयी। गलती किसी की और सजा किसी नादान को।

इस चिट्ठी में, मैंने, अपने विचार रखने का प्रयत्न किया है। मेरा मकसद किसी की भावनायें आहत करने का या दुख पहुंचाने का नहीं है। अज्ञानवश यदि किसी की भावनायें आहत हुई हैं या दुख पहुंचा हो, तो क्षमा करेंगे।


उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

लड़कियां ही नहीं, वरना लड़के भी यौन शोषण के शिकार होते हैं, इस बात को सत्यमेव जयते सीरियल के दूसरे एपीसोड में भी बताया गया है।

  

यौन शिक्षा पर लिखी मेरी अन्य चिट्ठियां


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सांकेतिक शब्द

23 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है। बधाई!

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  2. इसका लेबल दर्शन ही नहीं यौन शिक्षा भी दें.. बहुत सधा हुआ और ज़रूरी लेख.. आप जैसे बड़े और चाहिये..

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  3. मै पढना नही चाहता हूँ।

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  4. भले आपने कितना अच्‍छा लिखा हो।

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  5. This comment has been removed by a blog administrator.

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  6. बाल यौन शोषण में अक्सर चरम सीमा पहुंचने के बाद बच्चों की मृत्यु हो जाती है। निठारी में बच्चों की मृत्यु का सबसे संभावित कारण यही है। इसके लिये बड़े जिम्मेवार हैं क्योंकि उन्हें यौन शिक्षा ठीक से मिली नहीं।
    बाकी सब बढिया है लेकिन ये बात समझ से उपर है मतलब आप यहा ५/७ साल के बच्चो की गलती मान रहे है ...?आपके अनुसार ये ब्च्चे अगर योन शिक्षा पाये होते तो नही मरते...?
    आपके लेख से यही समझ मे आ रहा है,निठारी कंड के अपराधियो को बचाने मे सरकार और जो वकील लगे है उन्हे भेज दिजीये अपना ये फ़लसफ़ा,आप काफ़ी समाज की मदद कर पायेगे..?
    साधुवाद आपको ...

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    1. अरुण जी, मेरे विचार से मेरी बात स्पष्ट है लेकिन आपकी टिप्पणी से लगता है कि शायद स्पष्ट नहीं है।

      यौन शिक्षा बच्चों को नहीं पर उन बड़े लोगों की ठीक प्रकार से नहीं हुई जिन्होंने यह दुष्कर्म किया। वे समझ ही नहीं पाये कि वे कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं। इसीलिये लिखा है कि
      'इसके लिये बड़े जिम्मेवार हैं क्योंकि उन्हें यौन शिक्षा ठीक से मिली नहीं।'

      बच्चों को भी यौन शिक्षा मिलनी चाहिये। लेकिन उसके लिये जब उनमें बदलाव आने शुरू हों। यह इसके लिये भी जरूरी है कि वे इस तरह की मुसीबत को समझ सकें।

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  7. "यौन शिक्षा का विरोध करने वाले, इसका अर्थ केवल संभोग, या फिर जनन समझते हैं। यह ठीक नहीं है।"

    आपका कहना दुरुस्त है. लेकिन यौन-शिक्षा की वकालत करनेवाले भी यौन शिक्षा का अर्थ संभोग और जनन ही समझते हैं.

    और यौन शिक्षा का मतलब होता भी यही है. आपने उत्तर-प्रदेश की वे किताबें देंखी जिसमें गुप्तांगों का परिचय दिया गया था और एक जगह लिखा है योनि का मतलब होता है मैथुन का द्वार. क्या यह सब हमें पढ़ाने की जरूरत है. यही यौन-शिक्षा है. आपको शायद मालूम नहीं यौन-शिक्षा का हौवा नाको ने खड़ा किया है. इस नाको को पैसा कहां से आता है? नाको की डायरेक्टर सुजाता राव भारत से ज्यादा अमेरिका में रहती हैं. क्यों? और जिस सर्वे का आप हवाला दे रहे हैं वे कैसे तैयार होते हैं. बन्धु उनके परिणाम पहले निकाल लिये जाते हैं सर्वे बाद में होते हैं.

    शहरी जीवन में यौन उत्पीड़न हैं तो इसका साफ मतलब है हमारी संस्कृति में क्षरण आया है. परिवार का वह संवाद खत्म हो गया है जिससे यौन-शिक्षा भी मिल जाती थी और यह शब्द भी जबान पर नहीं आता था. तो वह कड़ी जोड़े या स्कूल जाकर यौन-शिक्षा का पाठ पढ़ें.

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  8. लेख अच्छा है. यौन शिक्षा के विषय में विचार फर्म-अप न होने के कारण मत व्यक्त करना प्रीमैच्योर होगा, पर लेख बढ़िया है.

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  9. एक जिम्मेवारी भरा लेख। मुझे आपके पिछले लेखों की भी कड़ियाँ मिलीं जो क्षमा करें मैंने पहले नहीं पढ़ी थी। यौन शिक्षा बेहद ज़रुरी है और वरत्मान समाज में जहाँ स्वच्छंदता, जिसे कुछ लोग उच्श्रृखंलता भी कहेंगे, है और यौन संबंध एड्स के बढ़ते ग्राफ के बावजूद छोटी उम्र से बन रहे हैं, यौन शिक्षा ज़रूरी है। हमारे समाज में स्त्रियों के लिये ये ज़्यादा ज़रूरी है क्योंकि ऐसे संबंधों की परिणाम उन्हें ज़्यादा भुगतने होते हैं। शारीरिक दृष्टि से भी प्रकृति उनकी ज़्यादा परीक्षा लेती है।

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  10. वैसे यौन शिक्षा बहुत ही विस्तृत विषय है। पर आज भी लोग इस पर बात करने से कतराते है।

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  11. बिलकुल नये विचारों के लिये मेरी बधाई स्वीकार करें।

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  12. naam unmukt hain to mukt hokar likho aur time mile to osho ki ek book padhe to apke vicharo main nirbhikta aa jayegi

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  13. उत्तम विचार. बेहतरीन और संतुलित लेख.

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  14. अरुण जी, मेरे विचार से मेरी बात स्पष्ट है लेकिन आपकी टिप्पणी से लगता है कि शायद स्पष्ट नहीं है।

    यौन शिक्षा बच्चों को नहीं पर उन बड़े लोगों की ठीक प्रकार से नहीं हुई जिन्होंने यह दुष्कर्म किया। वे समझ ही नहीं पाये कि वे कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं। इसीलिये लिखा है कि
    'इसके लिये बड़े जिम्मेवार हैं क्योंकि उन्हें यौन शिक्षा ठीक से मिली नहीं।'

    बच्चों को भी यौन शिक्षा मिलनी चाहिये। लेकिन उसके लिये जब उनमें बदलाव आने शुरू हों। यह इसके लिये भी जरूरी है कि वे इस तरह की मुसीबत को समझ सकें।

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  15. bachcho ko younshikchha dete samay vishesh sawdhani rakhni chahiye vachcho ke jigyasa ka uttar bagyanik trike se dena chahiye taki vah anatik youn sambandho ko samagh sake aur apna bachaokar sake.

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  16. lekh gyanvardhak hai .

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  17. Anonymous3:38 pm

    BILKUL SAHI H

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  18. sex eduction most want in indian school tell me i am right

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  19. behatar soch hai hame bacho ko jagruk karna chahiye

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  20. thanks for shearing this

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आपके विचारों का स्वागत है।