इस चिट्ठी में कृष्ण-जन्मभूमि के इतिहास की चर्चा है।
कृष्ण जन्मभूमि पर केशवदेव मन्दिर और शाही ईदगाह - चित्र आउटलुक से |
इस समय, कृष्ण-जन्मभूमि को, श्रीकृष्ण जन्मस्थान-सेवासंघ न्यास देखता है। यह सोसाइटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट के अन्तर्गत पंजीकृत है। यह न्यास न केवल वहां पर स्थित केशवदेव मन्दिर को देखता है पर इसके द्वारा की जाने वाली कुछ अन्य कल्याणकारी सेवाएं इस प्रकार हैं।
- बाल गोपाल शिक्षा सदन;
- आयुर्वेद भवन (आयुर्वेदिक चिकित्सालय);
- सचल चिकित्सा सेवा;
- मंदिर गौशाला;
- गौसेवा प्रकल्प;
- मानव शव अंतिम संस्कार सेवा;
- तीर्थो द्वार सेवा प्रकल्प।
इस न्यास के द्वारा प्रकाशित पुस्तिका से, कृष्ण-जन्मभूमि के इतिहास के बारे में यह पता चलता है। इसकी मुख्य सूचनायें इस प्रकार हैं।
जनश्रुति के अनुसार, इस स्थान पर, सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र, बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में, एक मंदिर बनवाया था।
पुरात्त्व की दृष्टि से सबसे पुराना शिला-लेख महाक्षत्रप शोड़ास के समय (ई०पू० ८०-५७) का मिला है यह ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है, जिससे पता चलता कि शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर, तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।
उसके पश्चात, दूसरा बड़ा मंदिर, ४०० ई० के लगभग, सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में बना। उस समय मथुरा नगरी संस्कृति एवं कला की बड़ी केन्द्र थी और यहां हिन्दू-धर्म के साथ साथ बौद्ध तथा जैन धर्म का भी उत्कर्ष था। इस स्थान के समीप ही बौद्धों और जैनियों के भी विहार एवं मंदिर बने हुए थे तथा उनके प्राप्त अवशेषों से यह स्पष्ट है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान बौद्ध एवं जैन धर्मानुयायियों के लिए भी आदर और सम्मान का केन्द्र था। सम्राट चन्द्र गुप्ता विक्रमादित्य द्वारा निर्मित, इस भव्य मंदिर को महमूद गजनवी ने सन १०१७ ई० में तोड़ा और लूटा।
संवत १२०७ (सन ११५० ई०) में जब महाराज विजयपाल देव मथुरा के शासक थे, जज्ज नामक एक व्यक्ति ने, यहां एक नया मन्दिर, तीसरी बार मंदिर बनवाया।
इसके लगभग १२५ वर्ष बाद, जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुन्देला ने, उसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया। इस मंदिर को, औरंगजेब ने सन् १६६९ ई० में नष्ट कर दिया और उसके एक भाग पर ईदगाह बनवा दी।
सन् १८१५ ई० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इसे नीलाम कर दिया। जिसे बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा और महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय की प्रेरणा से, २१ फरवरी सन् १९५१ ई० को भगवान श्रीकृष्ण के न्यास की स्थापना की। तत्पश्चात गर्भ गृह तथा भव्य भागवत भन का पुनरूद्वार व निर्माण कार्य आरम्भ होकर, फरवरी १९८२ में पूरा हुआ।
अगली बार हम लोग वृन्दावन चलेंगे।
मथुरा में एक दिन, पूरे बनारसी जीवन पर भारी - मथुरा यात्रा
रस्किन बॉन्ड।। कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा।। जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें। । कृष्ण-जन्मभूमि मन्दिर को महमूद गजनवी ने लूटा। । गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। बांके बिहारी से कुछ न मांग सका।। देना है तो पशु वध बन्द करवा दें।। माई स्वीट लॉर्ड।। चित्रकला से आध्यात्म।। शायद भगवान कृष्ण यहीं होंगे।। महिलायें जमीन पर लोट रही थीं।। हमारे यहां भरतपुर से अधिक पक्षी आते हैं।। भारतीय़ अध्यात्मिकता की नयी शुरुवात - गोवर्धन कथा।।
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पहले भी लुटे और आज भी लुट रहे हैं।
ReplyDeleteकृष्ण जन्मभूमि मंदिर की ऐतिहासिकता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteआभार
इस मंदिर से सम्बंधित जानकारी आप यहाँ भी देख सकते हैं :
http://www.cmindia.in/2010/03/cmquiz-27.html
संक्षिप्त परन्तु यथेष्ठ.
ReplyDeleteBahut badhiya jaankaaree se yukt aalekh!
ReplyDeleteलूटने वालों को और क्या काम ही रहता है ...फिर भी क्या कर पाए ...बहुत ही सुन्दर जज्बात ..जानकारी ...रचनाएँ ....शुभ कामनाएं
ReplyDeleteभ्रमर ५