इस चिट्ठी में लेखक रस्किन बॉन्ड के बारे में चर्चा है। यह मेरी मथुरा यात्रा की भूनिका है।
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रस्किन बॉन्ड पुस्तकों की दुकान पर - चित्र फोटोबकेट से चित्र |
रस्किन बॉन्ड (Ruskin Bond), अंग्रेजी भाषा के, बेहतरीन लेखक हैं। उनके पिता रॉयल ऐयर फॉर्स में थे। उनका एक भाई और एक बहन है। उनका जन्म १९ मई १९३४ में कसौली हिमाचल में हुआ था। उनका बचपन जामनगर, शिमला और देहरादून में बीता। वे छोटे ही थे जब उनके माता पिता का तलाक हो गया। उनकी मां ने एक हिन्दू से शादी कर ली।
रस्किन बॉन्ड ने अपनी पढ़ाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पूरी की। इसके बाद वे लंदन चले गये। लेकिन वे भारत को भूल नहीं पाये और वापस यहीं आ कर बस गये। इस समय वे, मसूरी के पास, लैंडोर (Landour) में, अपने गोद लिये परिवार के साथ, रहते हैं।
रस्किन बॉन्ड का बचपन पुस्तकों के बीच बीता। शायद इसी ने, उनके मन में पुस्तक प्रेम जगाया जिसने उन्हें लेखक बनने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने १७ साल की उम्र में पहली कहानी 'रूम ऑन द रूफ' (Room On The Roof) लिखी। इसके लिये उन्हें १९५७ में John Llewellyn Rhys पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरुस्कार ३५ साल से कम उम्र के कॉमनवेल्थ को इंग्लैंड में प्रकाशित अंग्रेजी लेखन के लिये दिया जाता है।
उन्हें साहित्य अकादमी के द्वारा १९९२ में अंग्रेजी लेखन के लिये उनकी लघु कहानियों के संकलन 'Our Trees Still Grow in Dehra' पर साहित्य अकादमी पुरुस्कार भी मिल चुका है। १९९९ में बाल साहित्य में योगदान के लिये वे पद्म श्री से सम्मानित किये गये हैं।
रस्किन बॉन्ड की कई कहानियों पर फिल्में बन चुकी हैं। शशी कपूर की फिल्म 'जनून' १८५७ की स्वतंत्रता की लड़ाई की घटना पर है। यह उनकी कहानी 'A Flight of Pigeons' पर आधारित है। फिल्म 'The Blue Umbrella' भी उनकी इसी नाम की कहानी पर बनी है। प्रियंका चोपड़ा के द्वारा अभिनीत की गयी फिल्म 'सात खून माफ', उनकी लघु कथा 'Susanna's Seven Husbands' पर बनायी गयी है।
रस्किन बॉन्ड, मेरे बेटे के प्रिय लेखक भी हैं हांलाकि मैंने उन्हें नहीं पढ़ा है। अपने बेटे के कहने पर, मैंने उनकी पस्तक 'The Best of Ruskin Bond' पढ़नी शुरू की। इसमें उनकी लघु कहानियां, वीभत्स कहानियां, निबन्ध, यात्रा वर्णन, गीत और प्रेम कवितायें हैं। यात्रा वर्णन में, उनका एक लेख मथुरा के बारे में 'Mathura's Hallowed Haunts' शीर्षक से है। इसमें वे लिखते हैं,
'It has been said that, “if a man spend in Benaras all his lifetime, he has earned less merit than if he passes but a single day in the sacred city of Mathura'
कहा जाता है कि बनारस में पूरा जीवन बिताने पर भी, मथुरा में एक दिन व्यतीत करने से कम पुण्य मिलता है।
लेकिन मथुरा में है क्या - यह अगली बार।
'द ब्लू अम्ब्रैला' का लोकप्रिय गीत 'छतरी का उड़न खटोला' सुनिये
मथुरा में एक दिन, पूरे बनारसी जीवन पर भारी - मथुरा यात्रा
रस्किन बॉन्ड।। कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा।। जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें।। कृष्ण-जन्मभूमि मन्दिर को महमूद गजनवी ने लूटा।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। बांके बिहारी से कुछ न मांग सका।। देना है तो पशु वध बन्द करवा दें।। माई स्वीट लॉर्ड।। चित्रकला से आध्यात्म।। शायद भगवान कृष्ण यहीं होंगे।। महिलायें जमीन पर लोट रही थीं।। हमारे यहां भरतपुर से अधिक पक्षी आते हैं।। भारतीय़ अध्यात्मिकता की नयी शुरुवात - गोवर्धन कथा।।
सांकेतिक शब्द
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मैंने रस्किन बूंद को केवल कोर्स में ही पढ़ा है. उन्हें '१८५७' में John Llewellyn Rhys पुरुस्कार से सम्मानित किया गया?
ReplyDeleteएक अनुरोध: कृपया अंतर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग करें. वे भी भारतीय अंकों का आधुनिक स्वरूप ही हैं.
आप हर पोस्ट के अंत में कौतूहल का एक सूत्र छोड़ ही देते हैं.
निशान्त जी, धन्यवाद। मैंने भूल सुधार ली है - पुरुस्कार १९५७ में मिला था न कि १८५७ में।
ReplyDeleteयह सच है कि अनन्तराष्ट्रीय अंक रोमन में हैं न कि वह हैं जैसे वे देवनागरी में लिखे जाते हैं लेकिन ऐसा करने के दो कारण हैं,
१- चिट्ठी देवनागरी में है इसलिये उसे देवनागरी में लिखा है यदि रोमन में लिखता तो उसमें लिखता जैसा रोमन में लिखे जाते।
२- मैं, लिनेक्स में, देवनागरी में हिन्दी SCIM या IBus का प्रयोग कर लिखता हूं। जब इस तरह हिन्दी लिखते हैं तब वह अंकों को जैसे देवनागरी में जैसे लिखे जाते हैं वैसे लिखता है। रोमन में लिखने के लिये, पुनः रोमन में वापस जाना होता है जो कि झंझट का काम है।
बहुत अच्छी जानकारी।
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteअरविन्द जी अपनी टिप्पणी पोस्ट नहीं कर पा रहे हैं उनके अनुरोध पर मैं डाल रहा हूं।
ReplyDelete'रस्किन बांड की लेखन शैली बड़ी सम्मोहक है ..किस्सागोई उनकी मुख्य प्रवृत्ति है -अभी हाल की एक फिल्म उनकी ही कृति सुसन्नाज सेवेन हसबैंड पर बनी है - आप समय निकाल सकें तो समीक्षा यहां पढ़ लें !मथुरा में धर्म एक सेलिब्रेशन है और बनारस में अध्यात्म .....बस यही फर्क है जाहिर है रस्किन जीवन्तता को ज्यादा वेटेज देते हैं!'
रस्किन बॉण्ड को अधिक नहीं पढ़ा है पर इच्छा अवश्य है।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी...........
ReplyDeleteआभार................
रस्किन बॉण्ड जी से एक बार मुलाक़ात का अवसर मिला था, - कतई अनौपचारिक| २००५ की ग्रीष्म ऋतु में, उन्हीं के निवास पर, प्रातः काल| बस हम ही थे, और लगभग १०-१५ मिनट बिताये उनके साथ, बहुत सामान्य सी उनके घर का अध्ययन कक्ष, सरल व्यक्तित्व व सादगीपूर्ण पहनावा|
ReplyDeleteमैंने उनकी कई कहानियां पढ़ी हैं। बहुत अच्छी हैं। मिला भी हूँ एक बार मसूरी में,"ब्लू अम्ब्रेला" भी मिली ऑटोग्राफ के साथ।
ReplyDeleteआप भाग्यशाली हैं पर टिप्पणी पर आपने अपना परिचय क्यों दिया।
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